बीकानेर. मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 6 दिसम्बर को है. शास्त्रों में इस दिन को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है. दरअसल त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह हुआ था. इस तिथि को विवाह पंचमी या श्रीपंचमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन कई जगहों पर भगवान राम और माता सीता का विग्रह स्वरूप में विवाहोत्सव आयोजित किया जाता है.
स्वयंवर में रखी शर्त: माता सीता ने बचपन में पूजा स्थल पर जब शिव धनुष को देखा था तब उन्होंने अकेले अपने बाएं हाथ से धनुष को उठा लिया था. महाराज जनक ने जब इस अद्भुत दृश्य को देखा था, तब उन्होने प्रतिज्ञा ली थी जिस तरह देवी सीता अलौकिक हैं, उसी तरह उनका पति होना चाहिए. तब देवी सीता के पिता राजा जनक ने शर्त रखी थी कि जो कोई भी भगवान शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वही देवी सीता का वर होगा. राजा जनक ने स्वयंवर की तिथि निर्धारित कर सभी राजा- महाराजा को विवाह के लिए निमंत्रण भेजा. वहां आए सभी लोगों ने एक-एक कर धनुष को उठाने की कोशिश की, लेकिन किसी को भी इसमें सफलता नहीं मिली. गुरु की आज्ञा से श्रीराम धनुष उठा प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो वह टूट गया. इसके बाद धूमधाम से सीता व राम का विवाह हुआ.