गया: छोटी शुरुआत और बड़ा मुकाम, जी हां, बिहार में गया के किसान सुबोध कुमार सिंह की कुछ ऐसी ही कहानी है. उन्होंने अच्छी खासी पगार वाली नौकरी छोड़ी, छोटी शुरुआत की और आज बड़े मुकाम के रूप में उनकी एक अपनी बड़ी डेयरी है. कभी रेलवे में पीडब्ल्यूएम के पद पर रहने वाले सुबोध कुमार सिंह ने यह नौकरी छोड़ी, फिर सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर चयन हुआ, तो वह नौकरी भी ज्वाइन नहीं की, लेकिन खुद का व्यवसाय करने के जज्बे को कायम रखा और आज पूरी तरह से पशुपालन व्यवसाय करके आत्मनिर्भर हैं.
तीन गायों के साथ की शुरुआत:सुबोध कुमार सिंह ने दो दशक पहले तीन गायों के साथ दुग्ध उत्पादन व्यवसाय की शुरुआत की थी. आज इनके पास डेढ़ सौ से दो दुधारू मवेशी है. इनकी एक बड़ी डेयरी है, जो मगध डेपरी के नाम से संचालित है. कभी इन्हें जानने वाले सीमित थे, लेकिन उनके डेयरी उद्योग ने उनकी राज्य और देश के स्तर पर पहचान बना दी है. कई पुरस्कार पशुपालन क्षेत्र और दुग्ध उत्पादन को लेकर इन्हें मिल चुके हैं.
पशुपालन के लिए सरकारी नौकरी छोड़ी: किसान सुबोध कुमार सिंह की नौकरी रेलवे में थी. रेलवे की पीडब्ल्यूएम के पद पर अच्छी खासी नौकरी और अच्छी खासी सैलरी भी इन्हें रास नहीं आई. इन्हें कुछ अलग पहचान बनाने की धुन थी. फिर सीआरपीएफ में एक बेहतर पद के लिए चयनित हुए, लेकिन वह भी उन्हें रास नहीं आया और ज्वाइन नहीं किया. इसके बाद वर्ष 1998 में इन्होंने तीन गायों के साथ दुग्ध उत्पादन का काम शुरू किया. दुग्ध उत्पादन का काम इन्हें रास आने लगा. धीरे-धीरे इसमें कुछ ऐसे रमते चले गए, जैसे उन्होंने नौकरी इन गायों के लिए ही छोड़ी हो.
डेयरी में 200 दुधारू मवेशी: सुबोध कुमार सिंह गया के खरखुरा मोहल्ले के रहने वाले हैं. इन्होंने जब रेलवे की नौकरी छोड़ी तो गया के कुजापी में तीन गायों के साथ दुग्ध उत्पादन की शुरुआत की. धीरे-धीरे इसमें इन्हें इतना मुनाफा मिलना शुरू हुआ, कि अब उनके डेयरी में 150 दुधारू गाये हैं, 50 की संख्या दुधारू भैंसे हैं. कुल मिलाकर 200 की संख्या में दुधारू मवेशी इनकी डेयरी में हैं.
गया शहर में करते हैं सप्लाई:गया शहर के 8 से 10 किलोमीटर की दूरी के दायरे में दूध पहुंचवाने का काम करते हैं. उनकी डेयरी में प्रतिदिन 700 से 800 लीटर दूध का प्रोडक्शन होता है. यह दूध लगभग शहर के हर हिस्से में जाता है. गया शहर के 8-10 किलोमीटर की दूरी में दूध पहुंचता है. वहीं, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में ही दूध जाता है. इन्होंने दर्जन भर अधिक लोगों को रोजगार भी दे रखा है. इस डेयरी व्यवसाय से दर्जन भर लोगों का अच्छा खासा गुजारा रहा, क्योंकि एक निश्चित राशि यहां डेयरी में काम करने वालों को मिल जा रही है.
म्यूजिक सिस्टम से दूध उत्पादन: किसान सुबोध कुमार सिंह म्यूजिक सिस्टम से दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना पर भी काम कर रहे हैं. इनका मानना है कि यह उनका सफल प्रयोग है. उन्होंने अपनी डेयरी में ऐसी तकनीक इजाद कर रखे हैं, कि उनके यहां के दुधारू मवेशिया म्यूजिक बजते ही चारा खाने के लिए तैयार हो जाती है. वहीं, दूध देने का जब समय होता है, तो उस समय भी किसान सुबोध कुमार सिंह म्यूजिक बजाते हैं. इनका मानना है, कि म्यूजिक सिस्टम से दूध के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है और गायें आराम से दूध देती है.
''हमने नोबेल इनोवेशन किया, जो कि म्यूजिक सिस्टम से दुग्ध उत्पादन पर था. इसके लिए सबौर यूनिवर्सिटी से प्रशंसा भी मिल चुकी है. सबौर यूनिवर्सिटी में नोबेल इनोवेशन म्यूजिक सिस्टम से दूध उत्पादन पर बोलने का मौका स्थापना दिवस के मौके पर मिला था. बांसुरी वाली धुन सबसे ज्यादा दुधारू मवेशियों को पसंद है. गाय-भैंस जब बांसुरी वाली धुन सुनते हैं, तो वह खुद को चारा खाने और दूध देने के लिए तैयार कर लेते हैं.''- सुबोध कुमार सिंह, डेयरी संचालक
म्यूजिकल डेयरी के फायदे: बायोलॉजिकली क्लॉक के द्वारा दुधारू मवेशियों को पता चल जाता है, कि खाना और दूध देने का समय हो गया है. वहीं, बांसुरी वाली धुन जब बजती है, तो गायें आराम से दूध देती है. इसे निकालने में भी काफी सहूलियत होती है. बताते हैं, कि हमारे यहां कई नस्लों की गाये हैं और जब म्यूजिक बजती है, तो यह गायें दूध देने और चारा खाने के लिए सामान्य हो जाती हैं. बांसुरी की धुन वाला म्यूजिक जब बजता है, तो यह दूध ज्यादा देती है.
दुधारू मवेशियों के लिए गर्मी और ठंडा में टेंपरेचर मेंटेन: किसान सुबोध कुमार सिंह अपने दुधारू मवेशियों का काफी ख्याल रखते हैं. यही वजह है, कि गर्मी में टेंपरेचर मेंटेन करते हैं. गर्मी में टेंपरेचर जब बढ़ जाता है, तो फागिंग चालू हो जाता है. मौसम के अनुसार ठंड और गर्मी में टेंपरेचर अनुकूल करते हैं. इस तरह आधुनिक तकनीक के साथ किसान सुबोध कुमार सिंह ने अपनी डेयरी संचालित कर रखी है और पिछले 20 सालों से अधिक समय से सफलतापूर्वक डेयरी को चला रहे हैं.