पटना: हिंदी सिनेमा के शोमैन राज कपूर की 14 दिसंबर को 100 वीं जयंती है. राज कपूर के 100 वीं जयंती पर सिने प्रेमी उन्हें अलग अलग तरह से याद करने की तैयारी कर रहे हैं. राज कपूर की फिल्म की बात हो तो उसमें 'तीसरी कसम' को लोग अभी भी नहीं नहीं भूले हैं. फिल्म अररिया के लेखक फणीश्वर नाथ 'रेणु' की प्रसिद्ध कहानी 'मारे गए ग़ुलफ़ाम' पर आधारित है. इसमें संवाद स्वयं फणीश्वरनाथ रेणु ने लिखे थे.
1966 में बनी फिल्म: फिल्म तीसरी कसम साल 1966 में बनी थी. इसका निर्माण गीतकार शैलेन्द्र ने किया था और इसका निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने किया था. इस फिल्म में राज कपूर और वहीदा रहमान ने काम किया था.
'दो गुलफामों की तीसरी कसम' बुक ने खोले कई राज : हिंदी फिल्मों के इकलौते शोमैन के रूप में आज भी राज कपूर को लोग याद करते हैं. राज कपूर की फिल्मों की बात की जाए तो तीसरी कसम एक ऐसी फिल्म है जिसमें उन्होंने ग्रामीण परिवेश के एक भोले भाले हीरामन का किरदार निभाया. राज कपूर की जयंती के अवसर पर दो गुलफामों की तीसरी कसम के लेखक अनंत ने राज कपूर से जुड़ी अनेक बातों को ईटीवी भारत से साझा किया.
मारे गए गुलफाम की कहानी: दो गुलफामों की तीसरी कसम के लेखक अनंत ने राज कपूर को याद करते हुए कहा कि फणीश्वर नाथ रेणु की रचना मारे गए गुलफाम पर तीसरी कसम फिल्म का निर्माण हुआ. इस फिल्म में राज कपूर जैसे कलाकार हीरामन की भूमिका अदा कर रहे थे. राज कपूर शहरी संस्कृति में पला बढ़ा आदमी ने गांव के एक भोले भाले नौजवान की भूमिका को सहज रूप से जीवंत बना दिया.
बिहारीपन राज कपूर पर छाया: तीसरी कसम फिल्म बनने में 6 साल का समय लगा. इस फिल्म के निर्माण में राज कपूर इतने डूब गए कि हीरामन के किरदार से निकलने में उनको कई वर्ष लग गए. जिस राज कपूर के सभी फैन थे, वह बिहार के फैन बन गए. लेखक अनंत ने इस फ़िल्म से जुड़े संस्करण को लेकर बताया कि तीसरी कसम फिल्म के निर्माण के 3 वषों के बाद राज कपूर की पत्नी की मुलाकात फणीश्वर नाथ रेणु से हुई थी. उन्होंने रेणु जी को बताया कि आपकी लिखी हुई कहानी की किरदार वह अभी तक घर में निभा रहे हैं.
"घर में अपनों के बीच बातचीत में वह तीसरी कसम के डायलॉग हमेशा बोलते रहते हैं.राज कपूर की पत्नी ने बताया था कि वह (राज कपूर) दिन भर घर में तीसरी कसम फिल्म का डायलॉग जा जा रे जमाना बोलते रहते हैं. इस फिल्म की कहानी का कैरेक्टर राज कपूर पर छा गया था."- अनंत, लेखक, दो गुलफामों की तीसरी कसम
'बिहार उनके अंदर बस गई': तीसरी कसम की किरदार को याद करते हुए अनंत ने बताया कि इस फिल्म के निर्माण के बाद राज कपूर के मन में बिहार की संस्कृति साहित्य और परिवेश रच बस गया था. यानी उनके मन में बिहार के गांवों का गवईपन उनके अंदर बस गया था.
दो गुलफामों की तीसरी कसम लिखने का कारण: लेखक अनंत ने बताया कि फणीश्वर नाथ रेणु की रचना पर उन्होंने काम करना शुरू किया. फणीश्वर नाथ रेणु के लेखनी में एक बहुत बड़ा हिस्सा मारे गए गुलफाम है, जिस पर तीसरी कसम फिल्म बनी है. इस किताब में तीसरी कसम फिल्म कैसे बनी इसको लेकर पूरा संग्रह है. कैसे फणीश्वर नाथ रेणु की लिखी हुई कहानी की चर्चा हिंदी साहित्य में शुरू हुई. रेणु की इस रचना को सबसे पहले नवेन्दु घोष पढ़ते हैं. इसके बाद बासु भट्टाचार्य को बांग्ला अनुवाद करने के लिए बोला जाता है.
तीसरी कसम की परिकल्पना: फणीश्वर नाथ रेणु की रचना पर फिल्म बनाने का निर्णय हुआ. फिल्म बनाने की जिम्मेदारी शैलेंद्र को दी गई. शैलेंद्र ने गीतकार रहते हुए भी इस विषय पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया. फिल्म के निर्माण को लेकर पूरी टीम तैयार होती है. राज कपूर को केंद्रित करते हुए फिल्म बनाने का निर्णय हुआ. हीरामन के रूप में राज कपूर तो हीराबाई के रूप में वहीदा रहमान का चयन किया गया.
फ़िल्म के गीत आज भी प्रसिद्ध: राज कपूर और वहीदा रहमान अभिनीत तीसरी कसम फिल्म की सफलता में संगीत का बड़ा योगदान रहा. लेखक अनंत ने बताया कि इस फिल्म के कई गीत इतनी प्रसिद्ध हुए कि लोग आज भी सुनते हैं.
"तीसरी कसम फिल्म में नायक हीरामन और नायिका हीराबाई की प्रेम की कहानी है, लेकिन इस फिल्म में नायक और नायिका यानी राज कपूर और वहीदा रहमान मिल नहीं पाते हैं. राज कपूर चाहते थे कि इस फिल्म के अंत में नायक आए और नायिका का मिलन होने दिया जाय."- अनंत, लेखक, दो गुलफामों की तीसरी कसम
फिल्म के गाने हुए लोकप्रिय: तीसरी कसम फिल्म संगीत आधारित थी. फणीश्वर नाथ रेणु की रचना में संगीत का पुट दिया हुआ था. इसलिए इस फिल्म की गीत बहुत ही लोकप्रिय हुए. शैलेंद्र ने इस फिल्म की गीत को प्रधानता दी. यही कारण है कि इस फिल्म की अधिकांश गीते सुपरहिट हुई थी. "सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है, लाली लाली डोलिया में लाली रे चुनरिया" जैसे गाने लोगों की जुबान पर आज भी हैं.
"राज कपूर के इस डिमांड पर फिल्म के निर्माण से जुड़े हुए सभी लोगों की लंबी चर्चा हुई. राज कपूर फणीश्वर नाथ रेणु शैलेंद्र के अलावा इस फिल्म से जुड़े हुए अनेक लोग इस को लेकर लंबी चर्चा किये कि फिल्म के क्लाइमेक्स में हीरो और हीरोइन को मिलाया जाए या नहीं.फणीश्वर नाथ रेणु और शैलेंद्र इस बात को लेकर तैयार नहीं हुए और फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी के आधार पर ही फिल्म का अंत हुआ."- अनंत, लेखक, दो गुलफामों की तीसरी कसम
बिहार की संस्कृति की पहली फिल्म: तीसरी कसम के बारे में अनंत का कहना है कि इस फिल्म ने बिहार की संस्कृति और बिहारीपन को पहली बार बड़े पर्दे पर दिखाने का काम किया. इस फिल्म में बिहार की संस्कृति को जीवंत रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत की गई.
पूर्णिया और अररिया में हुई शूटिंग: तीसरी कसम की अधिकांश शूटिंग मध्य प्रदेश में और कुछ शूटिंग बिहार के पूर्णिया एवं फणीश्वर नाथ रेणु के गांव में हुआ है. गांव के बाजार की शूटिंग पूर्णिया के के गुलाब बाग बाजार में में हुई थी. फिल्म की कुछ शूटिंग अररिया के औराही हिंगना में हुई थी. पूर्णिया और अररिया की बोलचाल की भाषा मैथिली है. इस फिल्म में पहली बार मैथिली में लोगों को संवाद करते हुए दिखाया गया था.
राज कपूर को मिले उचित सम्मान: लेखक अनंत का कहना है कि भारतीय हिंदी सिनेमा के इतिहास में एकमात्र शोमैन राज कपूर हुए इसीलिए उनके सम्मान में सरकार को उनकी फिल्मों के नाम पर ट्रेन चलानी चाहिए अथवा उनकी स्मृति में कुछ ऐसा निर्माण होना चाहिए जिसको देखकर लोगों के जेहन में राज कपूर रहें.
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