शिमला:'किसी ने कहा तलाक हुआ होगा. तो कोई ने बोला कि विडो होगी. इतनी कामयाब कैसे हो गई'. पति ने ही गाड़ी चलाना सिखाया और कहा तुझे गाड़ी सिखा कर बहुत बड़ी गलती कर दी'.इतना कह कर मीनाक्षी की आंखें भर आई.'पांच महीने तक मेरे पति ने मुझसे बात नहीं की. पति ने बोला मुझे तेरी शक्ल तक नहीं देखनी. पीछे के दरवाजे से मैं पांच महीने तक घर के अंदर आती थी. हर कोई बस यही कहता था महिला है तो कामयाब कैसे नहीं होगी. महिला को देखकर तो मर्द दौड़े-दौड़े आते हैं. कितने लोगों के मुंह बंद करती. जितने मुंह उतनी बातें.'ये मीनाक्षी नेगी के संघर्ष की कहानी है. मीनाक्षी ने सब तानों और फब्तियों को नुकीले तीरों की तरह सहा और आज उन्हें शिमला की पहली महिला कैब ड्राइवर बनने का गौरव हासिल है.
पहाड़ों की लेडी ड्राइवर
कैब ड्राइवर बनने के सफर में मीनाक्षी की लड़ाई घर से ही शुरू हुई थी. मीनाक्षी का परिवार ये नहीं चाहता था कि वो कैब ड्राइवर न बनें, क्योंकि इस पेशे में पुरुषों का वर्चस्व है दूसरा समाज में इसे अच्छे नजरिए से भी नहीं देखा जाता है, लेकिन मीनाक्षी खुद से लड़ी, समाज से लड़ी, अपनों से लड़ी, सिर्फ अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए.
बचपन से था गाड़ी चलाने का शौक
चेहरे पर आत्मविश्वास, आंखों में कुछ कर गुजरने का जुनून, करीब 42 साल की मीनाक्षी दो बेटियों की मां हैं और किन्नौर से संबंध रखती हैं, लेकिन शिमला में ही लंबे समय से रहती हैं. मीनाक्षी ने शिमला से ही ग्रेजुएशन की. उसके बाद मीनाक्षी प्राइवेट जॉब करने के लिए दिल्ली चली गई. मीनाक्षी की 24 साल की उम्र में शादी हो गई. शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ी. कमाई का एक ही साधन था उनके पति. मीनाक्षी के पति सरकारी नौकरी करते हैं, लेकिन मीनाक्षी अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थीं और कुछ अलग करना चाहती थी, लेकिन उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था कि वो व्यवसाय के रूप में गाड़ी चलाना चुनेंगी. मीनाक्षी बताती हैं कि मुझे बचपन से ही गाड़ी चलाने का बहुत शौक था. जब छोटी थी तो बस में सफर करते हुए सबसे आगे बैठती थीं. ड्राइवर को गाड़ी चलाते हुए देखती रहती थी, फिर शादी होने के बाद उनके पति ने ही उनको गाड़ी चलाना सिखाया.
आर्थिक संकट के बीच मीनाक्षी ने थामा टैक्सी का स्टेयरिंग
पति से गाड़ी सीखने के बाद शुरुआत में मीनाक्षी के पास एक निजी वाहन था, जिसमें वो अपने बच्चों को स्कूल छोड़ती थी. बाद में उन्होंने अपने बच्चों के साथ ही पड़ोस के बच्चों को भी कार से स्कूल छोड़ना शुरू किया इससे उनकी कुछ आय होने लगी, लेकिन कोरोना के बाद स्कूल बंद हो गए, जिसके बाद बच्चों का स्कूल छोड़ना बंद हो गया और उनके होने वाली आय भी बंद हो गई. इससे गाड़ी की किस्त के साथ बच्चों का खर्च भी परेशान करने लगा. मीनाक्षी ने महसूस किया कि जब वो ड्राइविंग कर लेती हैं तो क्यों नहीं ड्राइविंग को ही व्यवसाय बना लिया जाए.
पति ने पांच महीने तक बात नहीं की
मीनाक्षी ने टैक्सी ड्राइवर बनने का सपना तो देख लिया था, लेकिन उनके लिए इसे पूरा करना पाना आसान नहीं था. सबसे पहले घर वालों ने ही विरोध किया. पति ने पांच महीने तक शक्ल तक नहीं देखी पतिने ही गाड़ी चलाना सिखाया और कहा तुझे गाड़ी सिखा कर बहुत बड़ी गलती कर दी. पांच महीने तक मेरे पति ने मुझसे बात नहीं की. पति ने बोला मुझे तेरी शक्ल तक नहीं देखनी. पीछे के दरवाजे से मैं पांच महीने तक घर के अंदर आती थी." इतना कह कर मीनाक्षी की आंखें भर आई.
'ये तो विडो होगी तभी कैब चला रही है'
घर से बगावत कर मीनाक्षी टैक्सी लेकर सड़क पर तो उतर तो गई थी, लेकिन लोगों की फब्तियों और ताने दिल और दिमाग में तीर की चुभते थे. मीनाक्षी कहती हैं कि, 'कोई कहता कि विडो होगी...किसी ने कहा महिला है तो कामयाब हो ही जाएगी. महिला को देखकर मर्द तो भागे आते हैं. कोई ड्राइविंग सीट पर महिला को देखकर गाड़ी में बैठता ही नहीं था. अगर वो खुद किसी को टैक्सी के लिए अप्रोच करती थी तो लोग बड़ी हैरानी से मेरी तरफ देखते थे. टैक्सी यूनियन का भी सहयोग नहीं मिलता था. जब सफलता मिली तो लोगों ने कहा कि इतनी कामयाब कैसे हो गई'