शिमला: अरे यार अभी पांच मिनट हैं उतने में फेसबुक पर स्टेट्स लगा लेता हूं. अरे यार कल इंस्टाग्राम पर पोस्ट डाला था देखता हूं कितने लाइक, और कमेंट आए हैं. दो घंटे से मोबाईल नहीं देखा पता नहीं पिछली पोस्ट कितने लोगों ने देख ली होगी. ये हम सोशल मीडिया की उस अभासी दुनिया की बात कर रहे हैं, जिसके बिना अब हमें रहना असंभव लगता है. हेलो गाईज जैसे शब्द इसके तकिया कलाम हैं. सोशल मीडिया की ये आभासी दुनिया इतनी प्रबल है कि हमारे घर, परिवार, समाज और और तो हमारे पास मुंह के पास बैठे लोगों को भी नजरअंदाज करवा देती है.
इंस्टाग्राम, टि्वटर और फेसबुक जैसे दर्जनों ऐप इस आभासी माया की मोहिनी अप्सराएं हैं, जो दिन रात सोशल मीडिया के मायाजाल में फंसे लोगों के आगे नृत्य करती हैं. हर उम्र के लोग, चाहे बच्चे हों या बुजुर्ग आज सोशल मीडिया और शॉर्ट वीडियो के जाल में फंसता जा रहा है. ये आदतें अब केवल मनोरंजन का साधन नहीं रहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक परेशानियों का कारण बन रही हैं. लोग इतनी गंभीर स्थिति में पहुंच चुके हैं कि उन्हें इस लत से छुटकारा पाने के लिए अस्पतालों का रुख कर रहे हैं.
आईजीएमसी शिमला के मनोचिकित्सा विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर दिवेश शर्मा ने बताया कि, 'सोशल मीडिया और शॉर्ट वीडियो का एल्गोरिद्म ऐसा डिज़ाइन किया गया है कि एक बार जब कोई इसे इस्तेमाल करना शुरू करता है, तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. लोग अस्पताल तक इसलिए पहुंच रहे हैं क्योंकि सोशल मीडिया और इंटरनेट के प्रभाव ने उनकी दिनचर्या को प्रभावित कर दिया है. अब यह सामान्य व्यवहार नहीं है. हमने इसे एक बीमारी की तरह देखना शुरू कर दिया है. बच्चों भी ऑनलाइन स्टडी के दौरान पढ़ाई की जगह सोशल मीडिया पर समय बिताते हैं या दोस्तों के साथ चैटिंग करते हैं. जब पेरेंट्स स्क्रीन टाइम कम करने की कोशिश करते हैं, तो बच्चों में चिड़चिड़ापन, तनाव और फ्रस्ट्रेशन जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं. परिवार में भी ये आदत इतनी बढ़ गई है कि घर के सदस्य आपस में समय बिताने के बजाय फोन पर व्यस्त रहते हैं. यहां तक कि बुजुर्ग भी अब सोशल मीडिया में डूबे रहते हैं.'
सोशल मीडिया और इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल को अब मेडिकल क्षेत्र में भी गंभीरता से लिया जा रहा है. सोशल मीडिया ने सामाजिक, पारिवारिक ताने-बाने को उलझा कर रख दिया है. हर घर में परिजन बच्चों की मोबाइल की लत से परेशान हैं. मनोचिकित्सा की किताबों में अब "इंटरनेट एडिक्शन" और "बिहेवियरल एडिक्शन" जैसे अध्याय शामिल हो चुके हैं. इंटरनेट एडिक्शन और बिहेवियरल एडिक्शन, जैसे गैंबलिंग या ऑनलाइन सट्टा, अब गंभीर बीमारी के रूप में देखे जा रहे हैं. इनकी वजह से प्रोफेशनल्स तक कर्ज में डूब चुके हैं. ये सामान्य आदत नहीं है, क्योंकि सामान्य स्थिति में अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ती. आम तौर पर सट्टेबाजी या ऑनलाइन गेम्स में चेतावनी दी जाती है, लेकिन लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं.
असिस्टेंट प्रोफेसर दिवेश शर्मा ने बताया कि, 'IGMC शिमला का मनोचिकित्सा विभाग इन मुद्दों पर और गहन अध्ययन करेगा, लेकिन ये साफ है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट का बहुत ज़्यादा प्रयोग समाज के लिए गंभीर खतरा बन चुका है. इंटरनेट, सोशल मीडिया की आदतें बढ़ती जा रही हैं. बच्चों को सोशल मीडिया की आदत जल्दी लगती है. आराम के लिए बच्चे जब सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं तो बच्चे इसके आदी हो जाते हैं. सोशल मीडिया और फोन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल बीमारी बन चुका है, जिस प्रकार से नशा निवारण के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं उसी प्रकार सोशल मीडिया, इंटरनेट के खतरों से लोगों को अवगत करवाने के लिए भी अभियान चलाए जाने चाहिए, क्योंकि इसका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक साबित होता जा रहा है.'
ये भी पढ़ें: हिमाचल में इस दिन तक खराब रहेगा मौसम, मौसम विभाग ने जताई बारिश और बर्फबारी की संभावना