सतना।मध्य प्रदेश के सतना जिले में एक अजीबो गरीब मामला सामने आया है. जहां एक 25 वर्षीय महिला जिसे प्रेगनेट होने के दौरान अलग-अलग तरह के बालों को खाने का अजीब शौक लग चुका था. यह शौक महिला के लिए जानलेवा बन गया था. जिसके बाद महिला को डॉक्टर को दिखाया गया. जहां डॉक्टर ने महिला के पेट का ऑपरेशन करने की सलाह दी. महिला के पेट का ऑपरेशन कर आमासय से करीब ढाई किलोग्राम बालों का गुच्छा बाहर निकाला गया. गुच्छा निकलने के बाद महिला पूरी तरीके से स्वस्थ बताई जा रही है.
प्रेग्नेंसी के दौरान महिला को लगा अजीब शौक
अक्सर आपने देखा या सुना होगा की महिलाओं को प्रेग्नेंट होने के बाद अलग-अलग तरीके के खान पान का शौक लग जाता है. महिलाएं कभी खट्टा चीजों को खाना, कभी मीठा, या फिर पान सुपारी खाना, नमकीन आदि खाने लगती हैं. वहीं मध्य प्रदेश के सतना जिले से अजीबो गरीब मामला सामने आया है. जहां एक प्रेगनेंट महिला को कई तरह के बालों को खाने की लत लग गई थी. जिससे की उसको पेट में तकलीफ बढ़ने लगी, फिर क्या था परिजन महिला को डॉक्टर के पास ले गए.
महिला के पेट से निकला बालों का गुच्छा
अस्पताल में डॉक्टर ने महिला के पेट की पूरी जांच कराई. जिसमें यह सामने आया की महिला के पेट में कोई बड़ी चीज है. जिसकी वजह से उसके पेट में तकलीफ हो रही है. डॉक्टर ने महिला का ऑपरेशन करने के कहा. फिर परिजनों के कहने के मुताबिक डॉक्टर ने महिला का ऑपरेशन किया. महिला के अमाशय से करीब ढाई किलोग्राम का बालों से इकट्ठा हो चुका गुच्छा बाहर निकाला गया. जिसे देखकर डॉक्टर सहित पूरा स्टाफ हक्का बक्का रह गए. फिर वह गुच्छा महिला के परिजनों को दिखाया है. परिजन भी बालों से लिपटे गुच्छे को देख दंग रह गए. महिला का सकुशल ऑपरेशन सम्पन्न होने पर इलाज जारी रखा है. महिला अब पूरे तरीके से स्वस्थ बताई जा रही है.
मेडिकल भाषा में कहते हैं ट्राइकोमेज्योर
इस बारे में जनकीकुंड अस्पताल की वरिष्ठ सर्जन डॉ पूनम आडवाणी (निर्मला गेहानी) ने बताया की 'यूपी के महोबा जिले से आई एक दर्द से पीड़ित महिला का ऑपरेशन कर पेट से ढाई किलो बालों का गुच्छा निकाला है. डॉ निर्मला गेहानी की मानें तो इस प्रकार के केस होते हैं, जिनमें महिलाएं प्रेगनेंसी के दौरान अलग-अलग तरीके से चीजों का सेवन करती हैं. उन्हें मेडिकल की भाषा में ट्राइकोमेज्योर कहा जाता है.' बाल खाने वाली महिलाएं अक्सर कम उम्र की होती हैं. साथ ही साइकेट्रिक भी होती हैं. आमतौर पर इस प्रकार के अमूमन एक प्रतिशत मामले ही होते हैं.