खराब खानपान और बदलती जीवनशैली के कारण इनदिनों ज्यादातर लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं. अधिक वजन के चलते शरीर में कई तरह की समस्याएं भी होती रहती हैं, इसलिए ज्यादातर लोग ओबेसिटी को लेकर चिंतित रहते हैं. बता दें, ओबेसिटी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है जो एक्सरसाइज या फिजिकल वर्क की कमी के कारण आम होती जा रही है. ओबेसिटी के कारण शरीर में बहुत ज्यादा मात्रा में फैट जमा हो जाता है, जो कई तरह की हेल्थ प्राब्लम के खतरे को काफी हद तक बढ़ा देता है. बता दें, किसी व्यक्ति को तब मोटा माना जाता है जब उसका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 30 से ज्यादा हो. ओबेसिटी अक्सर जेनेटिक्स, लाइफस्टाइल और खाने की आदतों के हैबिट के कारण होता है.
पहले सिर्फ BMI यानी बॉडी मास इंडेक्स से मोटापे का पता चलता था. यानी, जिसका BMI ज्यादा है वह मोटापे का शिकार है, लेकिन अब इसको बदला गया है. जी हां, 15 साल के बाद मोटापे पर एक नया अध्ययन सामने आया है. जिसमें यह पता चला है कि मोटापा भी अब स्टेज के हिसाब से होगा. यह अध्ययन ब्रिटिश मेडिकल जर्नल The Lancet Diabetes & Endocrinology में प्रकाशित किया गया है और ऑल इंडियन एसोसिएशन फॉर एडवांसिंग रिसर्च इन ओबेसिटी (AIAARO) सहित 75 से अधिक चिकित्सा संगठनों द्वारा इसका समर्थन किया गया है.
स्टडी से क्या पता चला
नए अध्ययन में ओबेसिटी को दो स्टेजों में विभाजित किया गया है. दोनों फेज के लिए शुरुआती मानदंड BMI 23 से ज्यादा रखा गया है. इसमें पहले स्टेज को Innocent Obesity (मासूम मोटापा) और दूसरी को Obesity with Consequences (मोटापा और उसके परिणाम) कहा गया है. आइए समझते हैं कि अध्ययन में मोटापे को कैसे परिभाषित किया गया है...
रिपोर्ट में Diagnosis of Obesity के लिए दो नई कैटेगरी को पेश की गई है, जिन्हें व्यक्ति की बीमारी के "सटीक माप" के रूप में देखा जा सकता है. ये कैटेगरी कुछ इस प्रकार है हैं..
- क्लीनिकल ओबेसिटी (Clinical Obesity) तब होता है जब मोटापे की वजह से शरीर के किसी अंग की कार्यक्षमता पर खराब असर पड़ता है.
- प्री-क्लीनिकल ओबेसिटी (Pre-clinical Obesity) स्थिति तब होती है, जब किसी व्यक्ति के हेल्थ पर खतरा बढ़ता है. लेकिन अभी कोई बीमारी सामने नहीं आई होती है.
नई अध्ययन की मदद से मोटापे का सही तरह पता लगाकर सही इलाज करवा सकते हैं. इसमें BMI ही नहीं, पेट के आसपास जमा चर्बी से भी मोटापे को समझा जा सकेगा और आने वाले वक्त में होने वाली गंभीर बीमारियों का समय पर पता लगाकार इलाज हो सकेगा.
दशकों से, डॉक्टर मोटापे को मापने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (BMI) का इस्तेमाल करते रहे हैं. BMI को किलोग्राम में व्यक्ति के वजन को मीटर में उसकी ऊंचाई के वर्ग से बांटा गया है, जो शरीर में वसा के माप के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है. 30 से अधिक BMI वाले व्यक्ति को आमतौर पर मोटा माना जाता है. हालांकि, डॉक्टरों ने कहा है कि कभी-कभी, शरीर में अतिरिक्त वसा वाले लोगों का बीएमआई हमेशा 30 से अधिक नहीं होता है, जिसका अर्थ है कि उनके हेल्थ रिस्क पर ध्यान नहीं दिया जा सकता है. इसलिए, भारत के शीर्ष विशेषज्ञों ने एक ऐतिहासिक अध्ययन में भारतीयों के लिए मोटापे को फिर से परिभाषित किया है, जिसमें आबादी के सामने आने वाली अनूठी स्वास्थ्य चुनौतियों को संबोधित किया गया है.
नेशनल डायबिटीज ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रॉल फाउंडेशन (एन-डॉक), फोर्टिस अस्पताल ( C-DOC) और एम्स दिल्ली ने मोटापे की व्याख्या को नए सिरे से डिफाइन किया है. इससे भारतीयों में मोटापे से होने वाली हेल्थ रिलेटेड डिजीज को बेहतर ढंग समझने, जानने और उसका ठीक इलाज करने में मदद मिल सकेगी. बता दें, यह स्टडी युवा, बुजुर्ग और महिलाओं पर अक्टूबर 2022 से जून 2023 के बीच किया गया. सर्वे में ओबेसिटी के कारण से होने वाली अन्य बीमारियों का भी बारीकी से अध्ययन किया गया है. इसमें डायबिटीज, हार्ट डिजीज और अन्य हेल्थ प्रोब्लेम्स शामिल हैं.
एम्स के मेडिसिन विभाग के डॉ. नवल विक्रम ने कहा कि यह नया अध्ययन भारतीयों को मोटापे और इससे संबंधित बीमारियों से निपटने के लिए एक यूनिक, लक्षित दृष्टिकोण देता है. हालांकि शरीर में एक्सट्रा चर्बी कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है, लेकिन मोटापे को अक्सर बीमारी के बजाय अन्य बीमारियों के लिए चेतावनी संकेत के रूप में देखा जाता है. इस विचार पर अभी भी बहस चल रही है. उन्होंने आगे कहा कि इसके अलावा, बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) का उपयोग, जो हमेशा से मोटापे का मानक माप रहा है, उसमें में भी खामियां हैं, यह शरीर में फैट का या तो अधिक या कम अनुमान लगा सकता है और इससे व्यक्ति के स्वास्थ्य की पूरी तस्वीर नहीं मिलती है.
मोटापे की नई परिभाषा
लैंसेट के शोधकर्ताओं ने क्लीनिकल मोटापा (Clinical Obesity) को बीमारी की एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया है, जो अन्य चिकित्सा विशेषज्ञताओं में लौंग टर्म बीमारी की धारणा के समान है, इसके साथ ही यह अंगों और ऊतकों के कार्य पर अतिरिक्त मोटापे के प्रभाव के कारण प्रत्यक्ष रूप से उत्पन्न होती है. मोटापे का मतलब है शरीर में बहुत अधिक चर्बी होना, जो आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है. जबकि मोटापे को शरीर की चर्बी से परिभाषित किया जाता है, इसे सटीक रूप से मापने के लिए अक्सर बायोइलेक्ट्रिकल इम्पीडेंस या DEXA स्कैन जैसी विशेष मशीनों की आवश्यकता होती है, जो महंगी होती हैं और आमतौर पर क्लीनिकों में उपलब्ध नहीं होती हैं. मोटापे से ग्रस्त लोगों में वसा की मात्रा अलग-अलग होती है, लेकिन शरीर में वसा कहां स्थित है, यह बहुत मायने रखता है. शोध से पता चलता है कि पेट के आस-पास ज्यादातर बहुत अधिक फैट होती है और अन्य क्षेत्रों में जमा फैट की तुलना में बीमारियों का खतरा पैदा करती है.
भारतीयों के लिए नए दिशा-निर्देशों की आवश्यकता क्यों थी?
भारतीय डॉक्टरों और शोधकर्ताओं के अनुसार, कई फैक्टर्स के कारण मोटापे के लिए नई परिभाषा और दिशानिर्देशों की आवश्यकता थी. पुराने बीएमआई मानदंड: 2009 के पुराने दिशा-निर्देश मोटापे के निदान के लिए केवल बीएमआई (वजन-से-ऊंचाई अनुपात) पर निर्भर थे.अब शोध से पता चलता है कि अकेले बीएमआई पर्याप्त नहीं है, खासकर भारतीयों के लिए क्योंकि...
पेट का मोटापा: अध्ययनों से पता चलता है कि भारतीयों में पेट की चर्बी, सूजन और प्रारंभिक स्वास्थ्य समस्याओं के बीच एक मजबूत संबंध है.
जोखिमों को स्पष्ट करना: नए दिशानिर्देश हानिरहित मोटापे को उस मोटापे से अलग करते हैं जो स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है.
नये दिशा-निर्देशों में प्रमुख परिवर्तन
पेट की चर्बी पर ध्यान दें: पेट की चर्बी अब मोटापे के निदान में एक महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि इसका संबंध इंसुलिन प्रतिरोध और अन्य स्थितियों से है.
स्वास्थ्य समस्याएं महत्वपूर्ण: इस परिभाषा में मोटापे से संबंधित समस्याएं जैसे मधुमेह, हृदय रोग और जोड़ों का दर्द शामिल हैं.