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गया में ड्राई फ्रूट्स से भी महंगी 'घास' मवेशियों को खिला रहे पशुपालक, जानें ये घास क्यों है खास? - Farming of Azola Grass in Gaya

गया में अजोला घास की खेती पर किसान फोकस कर रहे हैं. अजोला घास दुधारू पशुओं को खिलाने से उनके दूध का उत्पादन भी बढ़ता है. साथ ही उनका दुबलापन भी खत्म होता है. लेकिन ये घास ड्राइफ्रूट से भी महंगी है. इसके फायदे को देखते हुए गया के किसान अब इसकी खेती भी करने लगे हैं. कैसे होती है अजोला घास की खेती जानने के लिए देखिए वीडियो और पढ़ें पूरी खबर-

अजोला घास की खेती
अजोला घास की खेती

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 1, 2024, 6:03 AM IST

गया में अजोला घास की खेती और फायदे

गया : बिहार के गया में अजोला घास की खेती शुरू हुई है. अजोला घास की खेती कई मायने में महत्वपूर्ण है. खास कर दुधारू पशुओं के लिए यह एक तरह से अमृत के समान है. अजोला को पशु चारे में मिलाकर देने से दुधारू पशुओं में न सिर्फ दूध देने की क्षमता बढ़ती है, बल्कि उनका दुबलापन भी दूर हो शारीरिक विकास हो जाता है. इस तरह से पशुओं को अजोला निरोग रखता है. अजोला घास 3 सौ रुपए प्रति किलो मिलती है. इस तरह देखें, तो गया में किसान ड्राई फ्रूट से महंगा घास दुधारू पशुओं को खिला रहे हैं.

गया में अजोला की खेती: गया में अजोला की खेती शुरू हुई है. गया के किस बसंत कुमार यादव ने अजोला की खेती शुरू की है. अजोला दुधारू पशुओं के लिए कई तरह से महत्वपूर्ण है. इसे दुधारू पशुओं को दिए जाने से से न सिर्फ दुधारू पशुओं के दूध देने की क्षमता बढ़ जाती है, बल्कि दुधारू पशु अजोला घास खिलाने से निरोग भी रहते हैं और उनका शारीरिक विकास यह करता है. अजोला घास से पशुओं की प्रजनन क्षमता भी सही रहती है. अजोला घास दुधारू पशु जैसे गाय, भैंस, भेड़, बकरी, मुर्गी आदि को चारे में दिया जाए तो यह उनके लिए अमृत के समान होता है. वही, अजोला घास खिलाने का लाभ किसानों-मवेशी पालको को मिलता है. क्योंकि उनके दुधारू पशु में दूध देने की क्षमता 15 से 25% तक बढ़ जाती है.

अजोला घास

गया के तिनकेड़वा गांव में भी अजोला की खेती : गया जिले के तिनकेेङवा गांव में अजोला घास की खेती हो रही है. अजोला की खेती कर किसान भी मालोमाल हो रहे हैं. वही, दुधारू पशुओं के इससे स्वस्थ रहकर दूध देने की क्षमता बढ़ जा रही है है. गया जिले में पहली बार अजोला की खेती शुरू हुई है और दुधारू पशुओं को लेकर लोगों को जागरुक कर इसकी बिक्री भी की जा रही है. अजोला घास देने से दुधारू पशुओं में दूध देने की वृद्धि हो जाती है, तो किसानों ने अब अजोला घास का पैमाने पर उपयोग शुरू किया है. अजोला घास की खेती किसानों के लिए काफी मुनाफे का सौदा साबित हो रही है.

ड्राई फ्रूट से महंगा अजोला घास पशुओं को खिला रहे हैं किसान: अजोला घास ड्राई फ्रूट से भी महंगा है. किशमिश की तरह अजोला 300 रूपए किलो के आसपास की मिलती है. अजोला घास 300 रुपए के प्रति किलो की दर से बिक रही है. सामान्य तौर पर लोग पहले खेतों में होने वाले घास को खिलाते थे, जो कि 5 से 10 रुपए दउरी के हिसाब से मिलते थे, किंतु अब ड्राई फ्रूट से भी महंगी अजोला घास लोग पशुओं को खिला रहे हैं. किशमिश के आसपास के मूल्य के अजोला को खिलाकर किसान एक ओर अपने मवेशियों को अधिक दुधारू बना रहे हैं, तो दूसरी ओर पशुओं को निरोग रखने में भी सफल हो रहे हैं.

ऐसी होती है खेती अजोला की खेती : अजोला घास की खेती थोड़ी मेहनत वाली होती है. इस पर ध्यान न दिया जाए तो फसल जल जाती है. अजोला की खेती के लिए सबसे पहले 6 इंच का गडढा करना होता है. 6 इंच का गडढा करने के बाद उसमें प्लास्टिक डाल देते हैं. इसके बाद 1 इंच मिट्टी, वर्मी कंपोस्ट डाली जाती है. फिर अजोला का बीज डाला जाता है. अजोला का बीज को अजोला घास भी कह सकते हैं. क्योंकि एक बार जब उसे लगा दें, तो फिर खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती. अन्य किसी को अजोला घास को भी अजोला बीच के रूप में दिया जा सकता है. फिलहाल में गया के तिनकेेङवा गांव के किसान बसंत कुमार यादव ने अजोला घास की खेती शुरू की है.

अजोला घास की खेती

मामूली खर्च, अधिक मुनाफा : किसान वसंत कुमार यादव बताते हैं कि अजोला की खेती करने में खर्च ज्यादा नहीं आता है. शारीरिक श्रम जरूर ज्यादा करना पड़ता है. वह शारीरिक श्रम बार-बार देखरेख करने की होती है. अजोला की खेती करने के लिए ऊपर से मैट भी लगाना पड़ता है. बसंत कुमार यादव बताते हैं अजोला की खेती करने में 5 से 10 रुपए किलो का ही खर्च आता है. किंतु यह 300 रूपए किलो बिकता है. जैसे-जैसे लोग जान रहे हैं, वैसे-वैसे खरीदने के लिए लोग आ भी रहे हैं. क्योंकि अजोला घास को दुधारू पशुओं का दूध बढ़ाने के लिए व्यापक तौर पर उपयोग कई जगहों पर होता रहा है, लेकिन अब गया जिले में भी इसकी शुरुआत हो गई है. यह बताते हैं कि चंद दिनों में ही उनके लगाए अजोला घास 20 किलो से अधिक हो गए. रांची से खरीद कर 2 किलो अजोला का बीज (घास)लाए थे. 2 किलो लगाया तो अब तक 20 किलो ग्राम अजोला घास चंद समय में ही बेच चुके हैं और अब उनके पास रहा अजोला दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ता है. 10 से 20 दिनों में ही इसकी वृद्धि दुगनी हो जाती है. उन्होंने 2 किलो अजोला का बीज या घास लगाया तो 10 से 15 दिनों में ही दुुगुने हो गए. फिर यह लगातार बढ़ता रहा और अभी कई किलो अजोला घास बेच भी चुके हैं.

यह है खासियत: अजोला घास में कई खासियत है. इसमें काफी मात्रा में प्रोटीन होते हैं. इसमें फास्फोरस, आयरन, कैल्शियम, अमीनो बड़े पैमाने पर होता है. अजोला घास में इतने गुण हैं कि इसे चारे के साथ मिलाकर पशुओं को दिया जाए तो उसका दूध काफी बढ़ जाता है. वही पशुओं को सेहतमंद भी रख सकते हैं. खल्ली, चारे, भूसे के साथ मिलकर अजोला घास मवेशियों को दिया जाता है.

अजोला घास का प्लास्टिक पर बना 'बेड'

साइलेनेसी फैमिली का है अजोला : इस संबंध में मगध विश्वविद्यालय पीजी डिपार्टमेंट ऑफ़ बॉटनी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अमित कुमार सिंह बताते हैं कि अजोला मूल रूप से साइलेनेसी फैमिली का होता है. अजोला की खेती अब गया में भी हो रही है. बेसिकली यह बायो प्रोटेक्शन है. बढ़ने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है. 3 से 10 दिनों में यह डबल हो जाता है. पशुओं को चारे के रूप में खिलाते हैं तो दुधारी पशुओं में दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाती है. न्यूट्रीशन वैल्यू ज्यादा है. इसमें प्रोटीन 25% तक होता है. अजोला घास बाहर से आई है.

''अजोला में कई तरह के गुण है. इसके घास में फास्फोरस, आयरन, कैल्शियम, अमीनो प्रचुर होते हैं. चंद दिनों में ही अजोला का घास दुगना हो जाता है. इस तरह समझे कि यदि 1 किलो की खेती कर रहे हैं तो वह हफ्ते भर में ही 2 किलो हो जाएगी. यदि 100 किलो कर रहे हैं तो वह कुछ दिन में ही 200 किलो हो जाएगी. इस तरह किसानों के लिए एक तरह से यह मुनाफे वाला सौदा है. वहीं, दुधारू पशुओं के लिए यह काफी फायदेमंद है और दुधारू पशुओं का दूध काफी बढ़ता है. अजोला की खेती गया में होना सराहनीय है.''- अमित कुमार सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर पीजी डिपार्मेंट ऑफ बोटनी, मगध विश्वविद्यालय.

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