समस्तीपुर: 'किसी बिहारी का दिल टूटता है तो IAS बन जाता है', ये रील्स में आपने बहुत सुना होगा. अब एक ऐसे बिहारी की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसका IAS बनने का सपना टूटा तो किसानी कर बड़ा अंपायर खड़ा कर दिया.
125 एकड़ में फलों की खेती करने वाले किसान की कहानी: जरा सोचिए, जो किसान 125 एकड़ में फलों की खेती करता हो उसका क्या रुतबा होगा. हम बात कर रहे हैं समस्तीपुर के सुधांशु कुमार की. जिनकी खेती का हर कोई मुरीद बन बैठा है. कृषि में अनुसंधान करने वाले भी उनके यहां डेरा डालने पहुंच जाते हैं. तो आइये आपको सुधांशु कुमार की कहानी से रूबरू करवाते हैं.
कई राज्यों तक जाती है लीची (ETV Bharat) जमींदार परिवार में जन्मे सुधांशु कुमार: बिहार के समस्तीपुर जिले के नयानगर गांव के एक जमींदार परिवार में सुधांशु कुमार का जन्म हुआ था. उनके पिताजी का नाम दुर्गा प्रसाद सिन्हा था. उनके पिताजी के पास पुस्तैनी 1600 एकड़ जमीन थी. जिस जमाने में खेती का एकमात्र साधन हल-बैल हुआ करता था, उस समय उनके दादाजी ने 1952 में कैटलपिलर और जोंडिया ट्रैक्टर खरीद रखे थे. उसी ट्रैक्टर से उनके यहां खेती होती थी. उनके पिताजी भी उस समय इलाके के सबसे प्रभावशाली किसान हुआ करते थे. 1978 में उन्होंने गेहूं एवं मक्के की बीज की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की थी.
जमींदार परिवार से हैं सुधांशु (ETV Bharat) बड़े संस्थानों में शिक्षा ग्रहण किया: सुधांशु कुमार की प्रारंभिक शिक्षा बचपन से ही बोर्डिंग स्कूल में हुई.1972 में क्लास 1 में दाखिला दार्जिलिंग के सेंट पॉल स्कूल में हुई, वहीं से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद दिल्ली के प्रतिष्ठित हंसराज कॉलेज से उन्होंने स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की.
पिताजी ने देखा IAS बनाने का सपना: सुधांशु कुमार के पिता दुर्गा प्रसाद सिन्हा की इच्छा थी कि बेटा सिविल सर्विस क्वालीफाई करे. यही कारण था कि वे सिविल सर्विस की तैयारी में जुट गए. सिविल सर्विस के पीटी परीक्षा पास की, मेंस का एग्जाम भी दिया, लेकिन क्वालीफाई नहीं किया.
इन सभी की करते हैं खेती (ETV Bharat) डेयरी प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना: ईटीवी भारत से बातचीत में सुधांशु कुमार ने बताया कि पढ़ाई के दौरान ही उनको लग रहा था कि गांव में रहकर ही कुछ नया किया जाए. गांव में खेती का मतलब होता था कि परंपरागत फसलों की खेती करना. लेकिन वह कुछ अलग हटके करना चाह रहे थे. वह दिल्ली में पढ़ रहे थे लेकिन उन्होंने डेयरी के क्षेत्र में काम करने का फैसला कर लिया था.
''नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड एवं करनाल में जाकर डेयरी के बारे में पूरा अध्ययन किया. अपने गांव में बड़े पैमाने पर डेयरी को लेकर एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया. प्रोजेक्ट बड़ा था इसलिए लिए बैंक के सहयोग की जरूरत थी. बैंक, लोन के एवज में जमीन का मॉर्गेज मांगता है. इसीलिए पिताजी को अपना पूरा प्रोजेक्ट रिपोर्ट दिखाया.''-सुधांशु कुमार, किसान
अब आ रहा करोड़ों में टर्नओवर (ETV Bharat) 'पिताजी संपत्ति से बेदखल को तैयार': डेयरी प्रोजेक्ट का पूरा लेकर सुधांशु कुमार अपने पिताजी के पास पहुंचे. पिताजी बेटे के इस निर्णय पर इतने खफा हुए कि उन्होंने प्रोजेक्ट रिपोर्ट उनके सामने फाड़ कर फेंक दिया. उनका कहना था कि इतने बड़े स्कूल में बचपन से लेकर जवानी तक पढ़ाया, अब यह सब करोगे तो समाज क्या कहेगा?
''पिताजी ने कहा कि इतना पढ़ने लिखने के बाद जब यही करना है तो मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं मैं तुम्हें अपने जायदाद से बेदखल कर दूंगा. समाज के लोग भी पिताजी को बोलने लगे इतना पढ़ लिख कर गांव में खेती करेगा यह अच्छी बात नहीं. इस बात से पिताजी को और ज्यादा तकलीफ होती थी. कुछ दिनों तक उन्होंने मुझको टोकना छोड़ दिया.''-सुधांशु कुमार, किसान
अब तक मिले कई पुरस्कार (ETV Bharat) टाटा कंपनी में नौकरी मिली: डेयरी प्रोजेक्ट की कल्पना लेकर पिताजी के पास गए थे. पिताजी को इस बात की तकलीफ थी कि देश के बड़े संस्थानों में पढ़ाया और अब यह गांव में खेती और गाय और गोबर के के बारे में सोच रहा है. इसी बीच टाटा कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के लिए वैकेंसी निकला था उन्होंने परीक्षा दी और वह पास हुए.1987 ई में टाटा में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर केरल के मुनार में नौकरी शुरू की. 4000 रु वेतन पर नौकरी शुरू की.
टाटा कंपनी में कई सुविधाएं:इसके अलावा ऑफिसर क्वार्टर, टाटा कंपनी ने ट्रांसपोर्टेशन के लिए बुलेट की भी सुविधा दी थी. पिताजी को उन्होंने कहा कि जो आपका सपना था कि बेटा नौकरी करें आपका सपना पूरा कर रहा हूं. वहां जाकर कुछ दिनों तक नौकरी की. पिताजी को जब यह एहसास हुआ की बेटा बिहार से सीधा केरल जाकर नौकरी कर रहा है तो उनका भी मन पसीजा. पिताजी ने गांव में आने की सहमति दे दी.
15 एकड़ से शुरू की खेती: सुधांशु कुमार के पिताजी जो अपने जायदाद से बेदखल कर रहे थे शुरुआत में 15 एकड़ जमीन पर खेती करने की सहमति दी. उस 15 एकड़ जमीन पर पहले से ही आम के पेड़ लगे हुए थे. उस बगीचे से साल में 6 से 7 हजार रुपए आते थे. जब उन्होंने उसे जमीन पर अपने तरीके से पेड़ों की देखरेख की तो 2 साल के बाद 1 लाख 35 हजार रु में आम का फसल बिका. पिताजी भी खुश हुए. इस तरह उन्होंने खेती के क्षेत्र में अपनी अपनी परीक्षा पास की.
आधुनिक तरीके से खेती (ETV Bharat) 1992 में आधुनिक तरीके से खेती शुरू: ईटीवी भारत से बातचीत में सुधांशु कुमार ने बताया कि अब पिताजी को भी लगने लगा था कि खेती से भी मुनाफा हो सकता है. अब उन्होंने खेती करने की छूट दे दी. उन्होंने अब परंपरागत खेती करना शुरू किया ईख, मक्का एवं धान की खेती शुरू की. लेकिन इसकी खेती में बहुत ज्यादा मुनाफा नहीं होता था. वैसे इन फसलों में भी उन लोगों ने बहुत मेहनत की. उनकी ईख हसनपुर चीनी मिल को सप्लाई होती थी. जबकि गेहूं और मक्का करीब 2000 क्विंटल तक उपज होने लगा.
नगदी फसल की शुरुआत: सुधांशु कुमार ने बताया कि गेहूं मक्के की खेती में प्रति एकड़ लगभग 30 हजार के आसपास का आमदनी होती थी. इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि मुनाफा वाली खेती करनी है तो फ्रूट्स हॉर्टिकल्चर एवं प्रीमियम प्रोडक्ट की तरफ जाना होगा. इसीलिए उन्होंने फलों की खेती शुरू की. पहले 15 एकड़ जमीन पर 1100 लीची के पेड़ का बगीचा लगाया. जब लीची फल होने लगा तो उन्हें पता चला कि मुजफ्फरपुर में लीची के पल्प को लेकर एक प्रोसेसिंग यूनिट लगा हुआ है. उस कंपनी से उन्होंने बातचीत की और पहले साल में 3 लाख 50 हजार रुपए में लीची बिकी.
2007 में माइक्रो एरिगेशन की शुरुआत:बिहार सरकार माइक्रो इरिगेशन को लेकर अनेक तरह की योजना बना रही थी. इसका लाभ लेने पर 90% तक अनुदान की सुविधा थी. उन्होंने बिहार में पहला ड्रिप इरीगेशन लगाने का फैसला किया. 1100 पेड़ों तक पाइप के जरिए सिंचाई की सुविधा शुरू की.
ड्रिप इरीगेशन की शुरुआत:सुधांशु कुमार ने ड्रिप इरीगेशन के माध्यम से एक समय में 1100 पौधों को एक साथ सिंचाई करने की सुविधा सबसे पहले उन्होंने बिहार में शुरू की. मौसम अनुकूल नहीं रहने पर स्प्रेकर के जारीए पेड़ों पर पानी सिंचाई की सुविधा शुरू किया. इसका फायदा यह रहा की दूसरे के बगीचे के तुलना में उनके बगीचे का टेंप्रेचर हमेशा तीन से चार डिग्री कम रहता था तो पेड़ों का ग्रोथ भी बढ़ा और पैदावार भी बढ़ने लगी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की जमकर तारीफ (ETV Bharat) पहले से कई गुणा बढ़ी आमदनी: जहां पहले पुराने तरीके से पटवन से साल में फसल बेचकर चार लाख रुपए आमदनी होती थी. नये टेक्नोलॉजी से सिंचाई के कारण वही आमदनी 15 लाख रुपए पर पहुंच गया. आज स्थिति यह है कि इसी लीची के बागान से साल में 25 से 26 लाख रुपया आमदनी हो रहा है. आज वे लीची 15 एकड़ में, आम 20 एकड़ में, ड्रैगन फ्रूट 5 एकड़ में, अमरूद 5 एकड़ में, कस्टर्ड एप्पल एक एकड़ में, नींबू 1 एकड़ में और केला 60 एकड़ में खेती कर रहे हैं.
125 एकड़ में फलों की खेती: फलों की खेती में हो रहे मुनाफा को देखते हुए उन्होंने परंपरागत खेती को छोड़कर फलों की खेती शुरू की. गेहूं मक्के की खेती से प्रति एकड़ 30 से 35 हजार रुपए का मुनाफा होता था. लेकिन वही जब फलों की खेती शुरू की तो वही मुनाफा बढ़ कर 1 लाख से 3 लाख प्रति एकड़ हो गया. इसी को देखते हुए उन्होंने फलों की खेती की तरफ रुख किया. आज सुधांशु कुमार 125 एकड़ में विभिन्न प्रकार के फलों की खेती कर रहे हैं. जिसमें आम , लीची ,केला, मौसमी ,अमरूद स्ट्रॉबेरी, ड्रैगन फ्रूट, नींबू प्रमुख है.
2019 में नीतीश कुमार ने किया उद्धघाटन: 2019 में उन्होंने एक ही जगह पर सभी फलों की खेती शुरू की थी. उनके इस प्रोजेक्ट से प्रभावित होकर खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आकर इसका उद्घाटन किया था. 35 एकड़ के इस प्रोजेक्ट में पूरी तरीके से माइक्रो ऑटोमेटिक एरीगेशन के तहत काम शुरू किया गया था. इस स्प्रिंकलर प्रणाली के तहत प्रोग्रामिंग के द्वारा तय समय सीमा पर अपने आप पेड़ों को एक बटन दबाने पर कब कितना पानी देना है वह पहुंच जाता है. इस सिस्टम का सबसे ज्यादा फायदा उन्हें कोरोना के समय में हुआ. 2019 से लेकर 2020 तक जब मजदूर काम करने के लिए तैयार नहीं होते थे तो वह अकेले जाकर पूरे खेतों की सिंचाई आसानी से करके चले आते थे. अब टेक्नोलॉजी को अन्य खेतों में भी ले जाने की योजना बना रहे हैं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया उद्घाटन (ETV Bharat) 20 लोगों को दी स्थाई नौकरी: सुधांशु कुमार की खेती और इतनी उन्नत तकनीक से हो रही है कि उनको अब अस्थाई एम्पलाई रखना पड़ रहा है. दैनिक मजदूर के अलावे पूरे कामकाज को देखरेख के लिए 20 लोग को स्थायी नौकरी दिए हैं जिनके वेतन के मद में उन्हें सालाना करीब 20 लाख रु खर्च हो रहा है. इसके अलावे दैनिक मजदूर अगल है. जिसको 400 से 500 रु प्रतिदिन मजदूरी देना पड़ता है.
पूसा एग्रीकल्चर कॉलेज का सराहनीय योगदान: सुधांशु कुमार ने बताया कि पूसा में राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व विद्यालय होने का उनको बहुत लाभ मिला. एग्रीकल्चर कॉलेज की कृषि वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र सिंह कृषि वैज्ञानिक डॉ सुहाने और डॉ एच पी सिंह के अनुभव का उनको बहुत लाभ मिला.
इंटर्नशिप करने के लिए आ रहे हैं छात्र: सुधांशु कुमार ने बताया कि राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के 10 छात्र पिछले वर्ष उनके कृषि फार्म हाउस बनाकर इंटर्नशिप कर चुके हैं. उनके इस एग्रीकल्चर हाउस को देखने के लिए पिछले 5 वर्षों में 6000 से अधिक लोग यहां आ चुके हैं.
अन्य किसान हुए प्रभावित: सुधांशु कुमार के गांव के रहने वाले विद्यानंद भारद्वाज ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि वह लोग पहले परंपरागत खेती करते थे लेकिन जब से सुधांशु कुमार की खेती की तकनीक देखिए कितने प्रभावित हुए की उन्होंने भी इसी तकनीक पर खेती करने का फैसला किया. आज 6 एकड़ में हुआ भी इसी तरीके की खेती कर रहे हैं. पहले के खेती के मुकाबले आज 4 गुना ज्यादा मुनाफा इन लोगों को खेती में हो रहा है.
देश के कई मंचों पर हुए हैं सम्मानित: कृषि क्षेत्र में बेहतर काम काम को देखते हुए FICCI, CII, ASSOCHAM, PHDCC उनको अपने यहां ट्रेनिंग के लिए बुला चुकी है. इसके अलावा अनेक संस्थाओं के द्वारा कृषि क्षेत्र में बेहतर काम के लिए उनको पुरस्कृत भी किया गया है. 2009 में जगजीवन राम कृषि अवार्ड ,2011 में कृषि रोल मॉडल का अवार्ड, 2014 में महेंद्र समृद्धि एग्रो अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा कृषि के क्षेत्र में काम करने वाले अनेक संस्थाओं एवं विश्वविद्यालय के द्वारा दर्जनों पुरस्कार मिल चुका है.
2 करोड़ का सालाना टर्न ओवर: सुधांशु कुमार ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि कल 150 एकड़ की खेती वह कर रहे हैं, जिसमें 125 एकड़ फलों की खेती है. आज खेती से इनको सालाना 2 करोड़ के आसपास का टर्नओवर है. उन्होंने यह लक्ष्य रखा है कि अगले 3 साल में सालाना टर्नओवर 5 करोड़ तक पहुंचना है. सुधांशु कुमार ने बताया कि वह अपने काम को इतना आगे बढ़ा चुके हैं कि उनको खुशी होगी कि उनका बेटा जो मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर है नौकरी छोड़कर खेती शुरू करें.
पूरे देश में फलों की सप्लाई: सुधांशु कुमार ने बताया कि उनके फलों की बिक्री स्थानीय बाजार से लेकर बाहर के बाजार तक होती है. अनेक कंपनियों से उनका टाइप है. जिसमें बिग बास्केट, इकोजेन, केडिया, पर्पल प्रमुख है. इसके अलावा बिहार के बाहर के भी फलों के थोक विक्रेता से उनका टाइप है, जो उनके यहां से फल लेकर बिहार और दूसरे राज्यों में बेचते हैं.
वेतनमद में 18 लाख रुपया खर्च: सुधांशु कुमार ने बताया की खेती को लेकर उन्होंने 25 अस्थाई कर्मचारियों को स्थाई नौकरी पर रखा है. जिसके वेतन के मद में साल में 18 लाख रुपए खर्च होते हैं. इसके अलावा दैनिक मजदूर को काम के हिसाब से 400 से 500 रु प्रतिदिन के दर पर मजदूरी देते हैं.
बिहार में कृषि की संभावना: सुधांशु कुमार ने बताया कि बिहार के लोगों का मुख्य पेशा अभी भी कृषि ही है. बिहार में खेती को लेकर अभी भी बहुत ज्यादा संभावना है. कृषि रोड मैप आने के बाद किसानों की सुविधा के लिए सरकार बहुत फैसेलिटीज दे रही है. बिहार में बिजली अब गांव में 24 घंटे उपलब्ध है जिसका लाभ कृषि के क्षेत्र में हो रहा है. नौकरी पैसा को जितनी आमदनी होती है उतनी आमदनी किसानों को भी हो सकती है लेकिन उनको लिक से हटकर खेती करनी होगी. प्रीमियम प्रोडक्ट्स की खेती करने पर मुनाफा ज्यादा है इसीलिए नई सोच के साथ यदि खेती करते हैं तो कामयाबी भी मिलेगी और आर्थिक रूप से समृद्ध भी होंगे.
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