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Rajasthan: कहीं DJ न बजा दे कानों का 'बैंड', कानफोड़ू शोर मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन, यहां करें शिकायत

क्या आपको भी शादी-पार्टी में डीजे पर डांस करने में आनंद आता है? लेकिन इस डीजे के कई दुष्प्रभाव हैं, जानिए...

डीजे के कई दुष्प्रभाव
डीजे के कई दुष्प्रभाव (ETV Bharat)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 5 hours ago

Updated : 5 hours ago

अजमेर : शादियों में बैंड बाजों की जगह अब डीजे लेने लगे हैं. बदलते परिपेक्ष में शादियों में डीजे का प्रचलन इस कदर बढ़ा है कि डीजे की हाई वॉल्यूम के हानिकारक असर को भी नजर अंदाज किया जा रहा. वहीं, शादियों, धार्मिक उत्सवों और अन्य मांगलिक कार्यों में बैंड बाजे वालों को मौका कम मिलने से उनका रोजगार भी खत्म होता जा रहा है. बदलते समय में पहले गांव और अब शहर भी इससे अछूते नहीं रहे. खास बात यह है कि डीजे का शादियों में बेतहाशा उपयोग पर कोई नियंत्रण तक नहीं है.

शादी, धार्मिक उत्सव और अन्य कार्यक्रमों में बैंड बाजों की जगह अब डीजे अपनी जगह बनाने लगे हैं. डीजे का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. तेज आवाज में म्यूजिक लोगों को लुभाने लगा है. वहीं, आर्थिक तौर पर देखें तो बैंड-बाजे वालों से डीजे सस्ता पड़ता है. यही वजह है कि लोगों का रुझान डीजे की ओर बढ़ने लगा है, जबकि अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि डीजे पर बजने वाले तेज आवाज वाला म्यूजिक इंसान के शरीर के लिए घातक है.

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म्यूजिक बजाएं, लेकिन निर्धारित आवाज में :अजमेर जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. अनिल सामरिया बताते हैं कि बैंड के बजाए डीजे का उपयोग काफी बढ़ गया है. म्यूजिक का आनंद लीजिए, लेकिन निर्धारित सीमा के भीतर. आवाज इतनी ही होनी चाहिए, जिससे कि सेहत को नुकसान न हो. अगर 60 डेसीबल से अधिक आवाज में म्यूजिक बजाया जाता है तो वह शरीर के लिए हानिकारक होता है. लगातार तेज आवाज में म्यूजिक सुनने से सुनाई देना कम हो जाता है और धीरे-धीरे यह बंद हो जाता है. इसके दुष्प्रभाव से कान संबंधी समस्याएं भी होने लगती हैं. इसके अलावा अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और कई तरह के साइकेट्रिक डिसऑर्डर होने की संभावना रहती है.

डॉ. सामरिया ने बताया कि तेज म्यूजिक के प्रभाव से लोग उत्साह से नाचने लगते हैं, लेकिन इन लोगों में कई लोग ऐसे भी शामिल रहते हैं, जिनको पता ही नहीं होता कि वे ह्रदय रोग से ग्रस्त हैं. कई बार देखने में आया है कि नाचते नाचते कई लोग बेहोश हो जाते हैं या ह्रदय घात का शिकार बन जाते हैं. अधिकांश लोग इसके दुष्प्रभाव से अनजान हैं. ऐसे में सुझाव यही है कि म्यूजिक बजाएं, लेकिन उतनी आवाज में बजाएं, जिससे खुद को और दूसरों का नुकसान नहीं हो. तेज आवाज से बजने वाले म्यूजिक से विद्यार्थियों के अलावा बुजुर्ग और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त रोगियों को भी असुविधा होती है. डीजे से होने वाले कम्पन से शरीर को नुकसान पंहुचता है. घरों को भी नुकसान होता है.

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यह है सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन :अजमेर जिला बार के सदस्य समीर काले बताते हैं कि डीजे का प्रचलन बढ़ने के कारण इसके दुष्प्रभाव भी बढ़ने लगे हैं. तेज म्यूजिक के दुष्प्रभाव शरीर के लिए हानिकारक हैं. अस्पताल और स्कूल से 100 मीटर की दूरी तक तेज आवाज में म्यूजिक बजाना निषेध है, लेकिन कहीं न कहीं कानून की पालन करवाने में प्रशासन और पुलिस की कमी नजर आती है. उत्तर प्रदेश में तेज म्यूजिक और लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाया गया है तो फिर राजस्थान में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है? यहां डीजे पर बजने वाले तेज म्यूजिक का कोई मापदंड ही तय नहीं है. 120 से 130 डेसीबल में चलने वाले कानफाड़ू म्यूजिक से लोगों को असुविधा होती है. गंभीर बीमारियों से ग्रस्त और बुजुर्ग लोगों को काफी असुविधा होती है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है.

उन्होंने बताया कि 18 जुलाई 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसला सुनाया था. इसके तहत तेज आवाज में म्यूजिक का शोर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि व्यक्ति को शांतिपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है. यह अधिकार जीवन का मौलिक अधिकार है. लाउडस्पीकर पर तेज म्यूजिक या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी हो सकती है, लेकिन यह किसी व्यक्ति की आजादी से बड़ी नहीं है. शोर मचाने वाले अनुच्छेद 19 (1) अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हैं. वकील समीर काले बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति के पास अभिव्यक्ति की आजादी है तो दूसरे व्यक्ति के पास उसको सुनने या नहीं सुनने का अधिकार है. लाउडस्पीकर से मनमानी शोर को दूसरों को सुनने के लिए बाध्य करना शांति से जीवन यापन करने के अनुच्छेद 21 में मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. कानून में ध्वनि की सीमा के उलंघन पर धारा 5 में सजा का प्रवधान है. डीजे पर बजने वाले तेज म्यूजिक पर रोकथाम के लिए जिला विधिक प्राधिकरण को भी लिखा गया है. कानून की पालना के तहत जिला विधिक प्राधिकरण में कलेक्टर और एसपी से जवाब मांगा है.

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वाहन का बिना स्वीकृति अल्ट्रेशन नहीं :अजमेर जिला परिवहन अधिकारी राजू कुमार विजय बताते हैं कि किसी भी वाहन को बिना परमिशन के अल्ट्रेशन नहीं किया जा सकता है, यानी हर वाहन का निर्धारित डिजाइन है जो सुरक्षा मानकों की कसौटी से गुजरकर स्वीकृत हुआ है. ऐसे में वाहन में यदि कोई बदलाव करना है तो बिना स्वीकृति नहीं किया जा सकता है और यदि कोई करता है तो यह नियमों का उल्लंघन है. उन्होंने बताया कि अल्ट्रेशन किए गए वाहनों के खिलाफ परिवहन विभाग की ओर से कार्रवाई की जाती है. पिकअप गाड़ियों में अल्ट्रेशन करवाकर डीजे गाड़िया बनाई जाती है जो नियमों के तहत गलत है. ऐसे डीजे वाहनों के खिलाफ भी विभाग समय समय पर कार्रवाई करता है. अल्ट्रेशन पर 5 हजार रुपए का जुर्माना है. वाहन में अल्ट्रेशन की कुछ खास कैटेगरी में परमिशन दी जाती है, लेकिन वाहन को डीजे के अनुरूप बना लेना इसकी कोई परमिशन नहीं दी जाती है. उन्होंने यह भी बताया कि वाहन जिस व्यावसायिक गतिविधि के लिए पंजीकृत हैं, वह वहां वही व्यवसाय गतिविधि कर सकता है. इसके अलावा यदि अन्य कोई व्यवसाय गतिविधि करता है तो ऐसे वाहनों के खिलाफ चालान बनाए जाते हैं और उन्हें सीज भी किया जाता है.

डीजे के खिलाफ यहां करें शिकायत :तेज आवाज में लगातार ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले डीजे संचालक के खिलाफ कोई भी नागरिक शिकायत कर सकता है. रात्रि 10 बजे बाद भी तेज आवाज में डीजे बजाना भी गैर कानूनी है. रात्रि 10 बजे से 12 बजे तक डीजे निर्धारित आवाज में बजाने के लिए विशेष स्वीकृति ली जाती है. वकील समीर काले बताते हैं कि डीजे तेज आवाज से यदि किसी को असुविधा होती है तो वह डीजे की आवाज को कम करवाने के लिए डीजे संचालक को कह सकता है. यदि डीजे संचालक आवाज निर्धारित माप दंड तक नहीं करता है तो उसके खिलाफ संबंधित थाने, परिवहन अधिकारी, उपखंड अधिकारी को लिखित शिकायत की जा सकती है.

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