जयपुर : पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों के मूल्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 5 जनवरी को राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाता है. इस दिवस का उद्देश्य आवास विनाश, भोजन के विकल्प में कमी और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित पक्षी प्रजातियों के संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाना भी है. इस खास दिन हम आप को मिलाते हैं जयपुर के पक्षी प्रेमी सूरज सोनी से, जिन्होंने बेजुबानों की पीड़ा को देख कर उनके लिए घरौंदे बनाने का बीड़ा उठाया है. सूरज सोनी पिछले 18-20 साल से सेवाभाव के रूप में भीषण गर्मी, कड़ाके की सर्दी और तेज बरसात में बेजुबान पक्षियों की तकलीफ को जन सहयोग से दूर करने में जुटे हैं.
आधुनिकता की चपेट में पक्षी, कई प्रजातियां लुप्त : पक्षी प्रेमी सूरज सोनी बताते हैं कि आधुनिकता और विकास की इस अंधी दौड़ में सबसे ज्यादा अगर किसी को संघर्ष करना पड़ रहा है तो वो है बेजुबान पक्षियों को. शहरी क्षेत्र में ही नहीं बल्कि गांव में अब तेजी से बड़े-बड़े पेड़ काटे जा रहे हैं. इससे हमारा पर्यावरण, हमारा इकोलॉजिकल सिस्टम बिगड़ रहा है. पेड़ों की कटाई से बेजुबान पक्षी बेघर होते जा रहे हैं. हालात यह हैं कि पिछले 10-12 सालों में कई पक्षियों की प्रजातियां राजस्थान में लुप्त हो गई हैं और एक दर्जन से ज्यादा लुप्त होने की कागार पर हैं. सूरज सोनी कहते हैं कि भीषण गर्मी, कड़ाके की सर्दी और तेज बरसात में बेजुबान पक्षियों की तकलीफ को दूर करने के 18-20 साल पहले बेजुबान पक्षियों को बसेरा उपलब्ध कराने के लिए घरौंदे लगाने की एक मुहिम शुरू की थी, जो लगातार जारी है.
सूरज सोनी कहते हैं कि 18-20 साल पहले पक्षियों को सुरक्षित ठिकाना मिले, तेज बरसात और आंधी में उनके घरौंदे न बिखरें, इसको ध्यान में रखते हुए शुरू की गई मुहिम अब रंग ला रही है. अब तक जन समस्या निवारण मंच लोगों के सहयोग से जयपुर शहर में ही नहीं बल्कि राजस्थान भर में पक्षियों के लिए 40 हजार से अधिक आशियाने लगा चुका है. जिसे भी जरूरत होती है, उसे संस्था निःशुल्क सुविधा उपलब्ध करवाती है. सूरज सोनी कहते हैं पक्षियों को नेचुरल तो नहीं, लेकिन उनके घरोंदों से मिलते जुलते बर्ड हाउस बनाए जाते हैं. बारिश में खराब न हों, इसके लिए वाटरप्रूफ प्लाई और प्लास्टिक की रॉड का इस्तेमाल करते हैं. जहां से डिमांड आती है, टीम के सदस्य वहां जाकर लगाते भी हैं.
ऐसे आया आइडिया : सूरज सोनी कहते हैं कि कई साल पहले तेज आंधी में पेड़ पर बना घोसला गिर गया और बच्चों को बिल्ली ले गई. इसको देखते हुए सुरक्षित आशियाने यनाने का आइडिया आया. दीवार पर इनको लगाना शुरू किया. इनमें टू बीएचके, थ्री बीएचके और फोर बीएचके के सेट बनाते हैं. पहले आशियाने नारियल और बाद में छोटे मटके में बनाए, लेकिन दोनों सफल नहीं हुए. इसके बाद प्लाईवुड के बनाना शुरू किया. सूरज सोनी बताते हैं कि पक्षियों के लिए आशियाना बनाने में 200 से लेकर 800 रुपए प्रति बीएचके का खर्चा आता है. ये सब आपसी जन सहयोग से चल रहा है. अभी कड़ाके की इस सर्दी में पक्षियों को ठौर मिल सके, इसके लिए घरौंदे बनाने का काम चल रहा है. यहां जो घरौंदे बन रहे हैं, वो लकड़ी के हैं. खास बात यह है कि जो भी व्यक्ति इन घरौंदों को अपने घर की दीवार पर पक्षियों के लिए लगाना चाहता है तो उनको निःशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं.
कारीगर तैयार करते घरौंदे : सूरज सोनी कहते हैं कि जन समस्या निवारण मंच से जुड़े लोग घरौंदे बनाने के काम में लगे रहते हैं. इसके लिए सबसे पहले प्लाई बोर्ड और माइका एकत्र करते हैं और इसके बाद एक जगह चिह्नित कर वहां पर कारीगरों से काम करवाते हैं. तीन से चार माह तक काम चलता है, जिसमें 12 महीने के घरौंदे तैयार कर लिए जाते हैं. घरों में फर्नीचर का काम होता है तो उसमें जो बचता है या अनुपयोगी होता है, उसको अपने घर ले आते हैं और कारीगरों से घरौंदे तैयार करवाते हैं. इस मुहिम में अब युवाओं का भी साथ मिलने लगा है. सोनी ने कहा कि आधुनिकता की चकाचौंध का सबसे बड़ा नुकसान इन बेजुबानों को ही उठाना पड़ रहा है. पहले केवल मौसम की मार होती थी, लेकिन अब पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन ने भी इनके संघर्ष को बढ़ा दिया है.