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धान की खेती ने बढ़ाया मध्य प्रदेश में पानी का संकट, केन्द्रीय भूमिजल आयोग की रिपोर्ट के बाद एक्शन में सरकार - Paddy Farming Increase water crisis

केन्द्रीय भूमिजल आयोग की रिपोर्ट के खुलासे के बाद एमपी सरकार के होश उड़ गए हैं. दरअसल रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मध्यप्रदेश में धान की खेती का रकबा बढ़ा है और इसमें जमकर पानी का दोहन किया जा रहा है. जिससे आसपास के कई क्षेत्रों का तेजी से भूजल स्तर गिर रहा है. इसके बाद सरकार ने 9 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है.

PADDY FARMING INCREASE WATER CRISIS
धान की खेती ने बढ़ाया मध्य प्रदेश में पानी का संकट

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 1, 2024, 10:50 PM IST

Updated : May 1, 2024, 11:07 PM IST

भोपाल।खाने की थाली में चावल न हो तो थाली अधूरी लगती है, लेकिन यही चावल मध्यप्रदेश में धीरे-धीरे पानी का संकट बढ़ाने लगा है. दरअसल प्रदेश में धान की खेती का रकबा बढ़ने से जमकर पानी का दोहन किया जा रहा है. पानी की कमी होने से ट्यूबबैल से पानी निकाला जा रहा है. इससे कई क्षेत्रों में भूजल स्तर की समस्या बढ़ते देख अब राज्य सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक 9 सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया है.

केन्द्रीय भूमिजल आयोग की रिपोर्ट में खुलासा

केन्द्रीय भूमिजल आयोग की ताजा रिपोर्ट ने प्रदेश के कई इलाकों में भूजल के दोहन को लेकर एक बार फिर चेताया है. रिपोर्ट के मुताबिक 90 फीसदी भूजल का उपयोग खेती, 9 प्रतिशत का उपयोग घरेलू और एक प्रतिशत भूजल का उपयोग उद्योगों के लिए किया जा रहा है. भूजल के मामले में सबसे ज्यादा क्रिटिकल स्थिति इंदौर की है. यहां पिछले 10 सालों में 10 मीटर भूजल स्तर गिरा है. 2012 में इंदौर में 150 मीटर में भूजल था, जो अब 160 मीटर से ज्यादा पहुंच गया है. प्रदेश में 19 प्रतिशत भू-भाग में भूजल क्रिटिकल स्थिति में और 8 फीसदी में सबसे ज्यादा दोहन हो रहा है. प्रदेश के 26 ब्लॉक में अत्याधिक दोहन और 60 ब्लॉक में अलॉर्मिंग स्थिति है.

प्रदेश में बढ़ रहा धान का रकबा

भूजल का उपयोग सबसे ज्यादा खेती में हो रहा है. दूसरी फसलों की सिंचाई में तो भू-जल का उपयोग हो ही रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में प्रदेश में धान का रकबा बढ़ने से भूजल का दोहन और बढ़ गया है. पिछले साल प्रदेश में 33.51 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुवाई हुई थी.

कृषि विशेषज्ञ की राय

कृषि विशेषज्ञ जेएस जरियाल बताते हैं कि "प्रदेश में सोयाबीन की उत्पादन गिरा है, दूसरा धान के मुकाबले इसकी उपज के दाम भी कम मिलते हैं. मध्यप्रदेश का नर्मदा क्षेत्र गेहूं की फसल के लिए प्रसिद्ध रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में जमकर धान की खेती की जाने लगी है. सीहोर, होशंगाबाद, रायसेन जिले में किसान जमकर धान की खेती कर रहे हैं. इन क्षेत्रों में कई राइज मिल भी लग गई हैं जिससे किसानों को दाम भी अच्छे मिल रहे हैं. क्षेत्र में पानी की कमी होने पर किसान बोरिंग से जमकर भूजल का दोहन कर रहे हैं. यही स्थिति प्रदेश के कई और क्षेत्रों में है."

9 सदस्यीय कमेटी का गठन
केन्द्रीय भूमिजल आयोग की रिपोर्ट के बाद समिति गठित

9 सदस्यीय कमेटी का गठन

राज्य सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. इसमें जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव, सदस्य, किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव, सदस्य और संयोजक, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अपर मुख्य सचिव, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अपर मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव, नवीन एवं नवकरणीय विभाग के अपर मुख्य सचिव और उद्यानिकी विभाग के प्रमुख सचिव सदस्य बनाए गए हैं.

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समिति अब उठाएगी ये कदम

  • समिति प्रदेश के विभिन्न जिलों में जिलावार, फसलवार खासतौर से धान की बुवाई के आंकड़ों का विश्लेषण करेगी.
  • किसानों को खरीफ फसल में धान के विकल्प के रूप में स्थानीय परिस्थिति को देखते हुए नकदी फसल उत्पादन के लिए प्रेरित करेगी.
  • वैकल्पिक फसल के उपार्जन में ज्यादा मूल्य दिए जाने पर जोर दिया जाएगा.
  • धान की ऐसी किस्म की बुआई को प्रेरित करना, जिसमें पानी का कम उपयोग हो.
  • सिंचाई के लिए नहर, माइक्रो इरिगेशन जैसी अन्य विकल्पों की तरफ बढ़ाना.
  • भू जल संरक्षण के लिए कृषि सब्सिडी की व्यवस्था में सुधार करना.
Last Updated : May 1, 2024, 11:07 PM IST

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