खंडवा: 'दुखी मन मेरे, सुन मेरा कहना, जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना, दुखी मन मेरे..दर्द हमारा कोई ना जाने.' हरफनमौला कलाकार किशोर दा का यह गाना आज उनके मकान की दुर्दशा बंया कर रहा है. मायानगरी मुम्बई में बेचैन खंडवा में बस जाना चाहते थे. उनका मन खंडवा में अपने पुश्तैनी मकान गौरीकुंज उर्फ गांगुली हाउस में बसा हुआ था, लेकिन आज उनका मन दुःखी है अपने मकान की दुर्दशा को देखकर.
किशोर दा का पुश्तैनी मकान जर्जर
आज 4 अगस्त को सुरों के सरताज किशोर कुमार की 95वीं बर्थ एनिवर्सरी है. उनका जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश के खंडवा में एक गांगुली परिवार में हुआ था. किशोर दा को अपनों ने ही भुला दिया. आज उनका मकान जर्जर हो गया है. जहां वे आराम करते थे, वहां उनकी मां के तस्वीर रखी हुई थी. आज यह कमरा तहस नहस हो गया है, कमरा धाराशाही हो गया है. मकान को संभाले रखे हुए पिलर जर्जर हो गए हैं. मकान का ऊपरी हिस्सा एक तरफ झुक सा गया है. मकान के गलियारें में दुकानदारों ने अपना सामान पटक रखा है. एक तरह से गोडाउन की तरह उपयोग कर रहे हैं.
किशोर दा को याद कर रोने लगा चौकीदार
किशोर दा के समय से मकान की देखरेख करने वाले चौकीदार सीताराम की आंखे भी अब धुंधला गई है. उनकी नजर कमजोर हो गई है, लेकिन किशोर की यादें और उनकी बांते आज भी उनके जहन में है. वो उन्हें याद कर रो देते हैं.
खंडवा में बितना चाहते थे आखरी समय
सीताराम काका का कहना है कि "किशोर दा को अपने मकान और खंडवा से बहुत लगाव था. आखरी बार जब वे खंडवा आये, तो कहने लगे कि काका अब यही बस जाना है. खंडवा में आकर रहूंगा. इसके बाद साहब गए, तो उनका पार्थिव शरीर है खंडवा आया. उनकी अंतिम इच्छा खंडवा में आकर रहने की अधूरी रह गई."