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देश को रोशन करने वाले हिमाचल में बिजली बोर्ड के 51 पद खत्म, कभी सरकार को आर्थिक मदद देने वाला बिजली बोर्ड क्यों झेल रहा घाटे का करंट ?

कभी हिमाचल सरकार को आर्थिक मदद करने वाला बिजली बोर्ड आज खुद घाटे में है. ऐसे में आइए जानते हैं इसके पीछे की मुख्य वजह.

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 6 hours ago

घाट में हिमाचल बिजली बोर्ड
घाट में हिमाचल बिजली बोर्ड (FILE)

शिमला: हिमाचल प्रदेश की एक पहचान ऊर्जा राज्य के तौर पर भी है. यहां की नदियों में बहता पानी बिजली बनकर देश के कई राज्यों को रोशन करता है. सौ फीसदी विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल करने वाले राज्यों में भी हिमाचल का स्थान उल्लेखनीय है. यहां सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड के रूप में देश की मिनी नवरत्न कंपनी है, जो विद्युत उत्पादन में नित नए रिकार्ड बनाती है और अपने ही बनाए रिकॉर्ड तोड़ती है. यहां बिजली कट लगने की खबर इसलिए सुर्खियों में आती है, क्योंकि राज्य में बिजली की कोई कमी नहीं होती है.

हिमाचल में 24 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है. इसमें से अब तक 11209 मेगावाट का ही दोहन हुआ है. इसमें से 7.6 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार का है और बाकी केंद्र सरकार के उपयोग में हैं. इन सब बातों को देखते हुए हिमाचल को देश का उर्जा राज्य कहा जाता है. एक समय ऐसा था, जब हिमाचल प्रदेश में राज्य बिजली बोर्ड से सरकार भी कर्ज लिया करती थी, लेकिन अब बिजली बोर्ड लंबे समय से खुद घाटे में है. आलम ये है कि बिजली बोर्ड कर्मियों को कई दफा वेतन मिलने में देरी हो जाती है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि बिजली बोर्ड की ये दुर्दशा हो गई. ये पड़ताल इसलिए भी जरूरी है कि हाल ही में राज्य सरकार ने बोर्ड में 51 पद खत्म कर दिए हैं.

हिमाचल में बिजली बोर्ड की कहानी:हिमाचल प्रदेश में सितंबर 1971 में राज्य बिजली बोर्ड की स्थापना हुई. इस समय बिजली बोर्ड का सफर 53 साल से अधिक का हो गया है. पहले बिजली बोर्ड एक यूनिट था, लेकिन अब यह हिमाचल प्रदेश पावर कारपोरेशन व हिमाचल प्रदेश ट्रांसमिशन कारपोरेशन में बंटा हुआ है. इनके काम अलग-अलग हैं. राज्य बिजली बोर्ड खुद 18 फीसदी बिजली का उत्पादन करता है. नब्बे के दशक में एक समय ऐसा भी था, जब बोर्ड राज्य सरकार को फंड दिया करता था. अब आलम ये है कि बोर्ड खुद 3000 करोड़ रुपए से अधिक के घाटे में है.

हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड का घाटा कोई नई बात नहीं है. पूर्व में 31 मार्च 2015 को बिजली बोर्ड 1813.23 करोड़ रुपए के घाटे में था. वर्ष 2017 में 1999 करोड़ रुपए था. ये घाटा कभी कम कभी ज्यादा होता रहता है. वर्ष 2020 में ये घाटा 1531.50 करोड़ रुपए था तो वर्ष 2021 में बढ़कर 2043 करोड़ रुपए हो गया. अब ये घाटा 3000 करोड़ रुपए से अधिक है.

लगातार कम हो रहे कर्मचारी:हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड में एक समय 43 हजार कर्मचारी हुआ करते थे. अब ये संख्या घटकर 16 हजार रह गई है. इसके अलावा बोर्ड में 3000 कर्मचारी आउटसोर्स आधार पर सेवारत हैं. यानी कुल 19 हजार कर्मचारी 26 लाख उपभोक्ताओं को सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. अभी बिजली बोर्ड में 9000 पद विभिन्न श्रेणियों के खाली चल रहे हैं. आलम ये है कि राज्य में अलग-अलग सरकारों के समय बिजली बोर्ड के फंक्शनल पद खत्म कर दिए गए. जो पद तीन साल तक नहीं भरे गए, वो खत्म कर दिए गए. हाल ही में 51 पद भी खत्म किए गए हैं.

क्यों घाटे में जा रहा बिजली बोर्ड:हिमाचल का बिजली बोर्ड कई कारणों से घाटे में है. बोर्ड ने अन्य महकमों से कम से कम 170 करोड़ रुपए के बिल वसूलने हैं. सबसे अधिक लंबित देनदारी जल शक्ति विभाग की होती है. दूसरा कारण घाटे का मुफ्त की रेवड़ियां हैं. राज्य में पहले जयराम सरकार ने 125 यूनिट बिजली निशुल्क कर दी थी. कांग्रेस ने चुनाव पूर्व वादा किया था कि 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाएगी. हालांकि, ये वादा पूरा नहीं किया गया और बिजली बोर्ड को घाटे से उबारने के लिए चरणबद्ध तरीके से सब्सिडी खत्म की जा रही है. खैर, इससे पहले वर्ष 2022 में तत्कालीन जयराम सरकार ने 125 यूनिट बिजली निशुल्क प्रदान करने का फैसला किया था. इससे 11 लाख उपभोक्ताओं को लाभ मिला था. लेकिन बोर्ड को इससे नुकसान ही हुआ.

हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के महासचिव हीरालाल वर्मा का कहना है कि खाली पदों को भरा जाए और बोर्ड को प्रयोगशाला न बनाया जाए. फील्ड स्टाफ के पद प्राथमिकता के आधार पर भरे जाने चाहिए. निशुल्क बिजली का प्रावधान नहीं होना चाहिए, इसके बजाय बिजली की दरें सस्ती करनी चाहिए.

सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि बिजली बोर्ड को घाटे से उबारने के लिए उनकी सरकार प्रयासरत है. बिजली पर दी जा रही सब्सिडी चरणबद्ध तरीके से समाप्त की जा रही है. राज्य सरकार ने बिजली बोर्ड को घाटे से उबारने के लिए एक कैबिनेट सब-कमेटी का गठन किया गया है. ये कमेटी तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी की अगुवाई में काम करेगी और बोर्ड को घाटे से उबारने के उपाय सुझाएगी.

वहीं, वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है कि बिजली बोर्ड के घाटे को कम करने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास करने के साथ ही सरकार की इच्छाशक्ति भी जरूरी है. इस समय सरकार ने विभिन्न श्रेणियों की सब्सिडी खत्म करने का फैसला लिया है. उद्योगों की बिजली की दरें भी संशोधित की गई है. इससे सालाना 600 करोड़ रुपए का लाभ होगा. ऐसे ही फील्ड स्टाफ को मजबूत करने की जरूरत है.

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