शिमला: हिमाचल प्रदेश की एक पहचान ऊर्जा राज्य के तौर पर भी है. यहां की नदियों में बहता पानी बिजली बनकर देश के कई राज्यों को रोशन करता है. सौ फीसदी विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल करने वाले राज्यों में भी हिमाचल का स्थान उल्लेखनीय है. यहां सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड के रूप में देश की मिनी नवरत्न कंपनी है, जो विद्युत उत्पादन में नित नए रिकार्ड बनाती है और अपने ही बनाए रिकॉर्ड तोड़ती है. यहां बिजली कट लगने की खबर इसलिए सुर्खियों में आती है, क्योंकि राज्य में बिजली की कोई कमी नहीं होती है.
हिमाचल में 24 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है. इसमें से अब तक 11209 मेगावाट का ही दोहन हुआ है. इसमें से 7.6 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार का है और बाकी केंद्र सरकार के उपयोग में हैं. इन सब बातों को देखते हुए हिमाचल को देश का उर्जा राज्य कहा जाता है. एक समय ऐसा था, जब हिमाचल प्रदेश में राज्य बिजली बोर्ड से सरकार भी कर्ज लिया करती थी, लेकिन अब बिजली बोर्ड लंबे समय से खुद घाटे में है. आलम ये है कि बिजली बोर्ड कर्मियों को कई दफा वेतन मिलने में देरी हो जाती है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि बिजली बोर्ड की ये दुर्दशा हो गई. ये पड़ताल इसलिए भी जरूरी है कि हाल ही में राज्य सरकार ने बोर्ड में 51 पद खत्म कर दिए हैं.
हिमाचल में बिजली बोर्ड की कहानी:हिमाचल प्रदेश में सितंबर 1971 में राज्य बिजली बोर्ड की स्थापना हुई. इस समय बिजली बोर्ड का सफर 53 साल से अधिक का हो गया है. पहले बिजली बोर्ड एक यूनिट था, लेकिन अब यह हिमाचल प्रदेश पावर कारपोरेशन व हिमाचल प्रदेश ट्रांसमिशन कारपोरेशन में बंटा हुआ है. इनके काम अलग-अलग हैं. राज्य बिजली बोर्ड खुद 18 फीसदी बिजली का उत्पादन करता है. नब्बे के दशक में एक समय ऐसा भी था, जब बोर्ड राज्य सरकार को फंड दिया करता था. अब आलम ये है कि बोर्ड खुद 3000 करोड़ रुपए से अधिक के घाटे में है.
हिमाचल प्रदेश में बिजली बोर्ड का घाटा कोई नई बात नहीं है. पूर्व में 31 मार्च 2015 को बिजली बोर्ड 1813.23 करोड़ रुपए के घाटे में था. वर्ष 2017 में 1999 करोड़ रुपए था. ये घाटा कभी कम कभी ज्यादा होता रहता है. वर्ष 2020 में ये घाटा 1531.50 करोड़ रुपए था तो वर्ष 2021 में बढ़कर 2043 करोड़ रुपए हो गया. अब ये घाटा 3000 करोड़ रुपए से अधिक है.
लगातार कम हो रहे कर्मचारी:हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड में एक समय 43 हजार कर्मचारी हुआ करते थे. अब ये संख्या घटकर 16 हजार रह गई है. इसके अलावा बोर्ड में 3000 कर्मचारी आउटसोर्स आधार पर सेवारत हैं. यानी कुल 19 हजार कर्मचारी 26 लाख उपभोक्ताओं को सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. अभी बिजली बोर्ड में 9000 पद विभिन्न श्रेणियों के खाली चल रहे हैं. आलम ये है कि राज्य में अलग-अलग सरकारों के समय बिजली बोर्ड के फंक्शनल पद खत्म कर दिए गए. जो पद तीन साल तक नहीं भरे गए, वो खत्म कर दिए गए. हाल ही में 51 पद भी खत्म किए गए हैं.