शिमला: कृतज्ञ भारत आज यानी 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है. महात्मा गांधी का अहिंसा और सत्याग्रह का दर्शन अभी भी विश्व को प्रेरित करता है. ब्रिटिशकालीन भारत की समर कैपिटल शिमला से बापू का करीबी रिश्ता रहा. वे यहां दस बार आए. महात्मा गांधी शिमला में जिन इमारतों में ठहरे उनमें से एक भवन चैडविक हाउस में निरंतर बापू की स्मृतियां धड़क रही हैं. चैडविक हाउस की स्मृतियां इसलिए अनमोल हैं, क्योंकि वो बापू की आखिरी शिमला यात्रा से जुड़ी हैं. किसी समय चैडविक हाउस को असुरक्षित घोषित किया गया था, लेकिन आज यहां आलीशान इमारत बुलंदी के साथ खड़ी है. इस इमारत की बुलंदी की नींव महात्मा गांधी के पग चिन्हों पर रखी गई है. यहां बापू की स्मृतियों के साथ-साथ भारत में ऑडिट एंड एकाउंट्स के इतिहास का संग्रहालय है. यहां तय शुल्क के टिकट के साथ सैलानी और इतिहास के जिज्ञासु इस इमारत और बापू के शिमला कनेक्शन की जानकारी ले सकते हैं. यहां आने वाले सैलानियों को चैडविक हाउस के इतिहास और बापू की आखिरी शिमला यात्रा सहित इमारत के मौजूदा स्वरूप का वर्णन करती शार्ट फिल्म भी दिखाई जाती है.
महात्मा गांधी यहां 2 मई 1946 से 14 मई 1946 तक रहे. इस दौरान बापू प्रार्थना सभाओं का आयोजन करते और प्रवचन भी देते. इसी इमारत के बारे में कहा जाता है- 'अगर यहां बापू के चरण न पड़े होते तो ये इमारत मिट्टी में मिल जाती'. ईटीवी भारत ने ('गांधी इन शिमला') नामक चर्चित पुस्तक के लेखक विनोद भारद्वाज से चैडविक हाउस के इतिहास, महात्मा गांधी की आखिरी यात्रा, बापू और उनकी स्मृतियों को लेकर बातचीत की. साथ ही ईटीवी भारत इस इमारत में धड़क रही बापू की स्मृतियों को कैमरे में संजोकर यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहा है.
विनोद भारद्वाज करीब चार दशक से लेखन व शोध कार्यों से जुड़े हैं. उन्होंने ब्रिटिशकालीन शिमला की ऐतिहासिक इमारतों और स्थलों पर दुर्लभ जानकारियां जुटाई हैं. साथ ही महात्मा गांधी के विराट कार्यों में उनकी विशेष रुचि है. विनोद भारद्वाज ने बताया कि बापू की आखिरी शिमला यात्रा 1946 में हुई. वे यहां चैडविक हाउस में ठहरे थे. ये इमारत बाद में जर्जर हो गई थी. वर्ष 2018 में इसका कायाकल्प हुआ. यहां संग्रहालय तैयार किया गया. विनोद भारद्वाज के अनुसार महात्मा गांधी की आखिरी शिमला यात्रा में उनके साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल, अब्दुल गफ्फार खान, आचार्य कृपलानी, सरदार पटेल की बेटी मनुबेन आदि आए थे. जवाहर लाल नेहरू एक अन्य इमारत में ठहरे थे. गांधी कैबिनेट मिशन की बैठक में हिस्सा लेने के लिए आए थे. यहां शिमला में 5 मई 1946 को कैबिनेट मिशन की बैठक शुरु हुई थी. अगले दिन गांधी ने वायसराय लार्ड वेवल्स से भेंट की थी. फिर 8 मई को बापू ने विश्वकवि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को श्रद्धासुमन अर्पित किए थे.
शिमला में बापू के प्रवचन
आखिरी यात्रा में महात्मा गांधी ने प्रार्थना सभाओं का आयोजन भी किया था. प्रवास के पहले ही दिन 2 मई 1946 को बापू ने प्रवचन में भविष्य की चिंता न करने और ईश्वर की इच्छा को सर्वोपरि मानने की बात कही. इस दौरान बापू ने शांति व्यवस्था, बीमारी के भय को दूर करने से जुड़े प्रवचन कहे. विश्व कवि रविंद्र नाथ टैगोर को आदरांजलि देते हुए गांधी ने 8 मई 1946 को उन्हें ऋषि कहा. महात्मा गांधी ने शिमला में स्वराज पर भी बात की थी और कहा था कि स्वराज हाथ से काते सूत की डोर से बंधा है.
शिमला में बापू की प्रतिमा और यात्राओं का विवरण
शिमला के रिज मैदान पर महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के पीछे सफेद संगमरमर पर महात्मा गांधी की शिमला यात्राओं का वर्णन है। उल्लेखनीय है कि पहले ये वर्णन अधूरा था। फिर विनोद भारद्वाज ने पूर्व आईएएस व विख्यात लेखक इतिहास मर्मज्ञ श्रीनिवास जोशी के साथ मिलकर सिस्टम को उन गलतियों को सुधारने के लिए मजबूर किया। विनोद भारद्वाज कहते हैं कि नई पीढ़ी को शिमला के समृद्ध इतिहास और खासकर महात्मा गांधी के शिमला कनेक्शन के साथ कनेक्ट करने की जरूरत है। चैडविक हाउस सहित महात्मा गांधी से जुड़े हर स्थान के बारे में नई पीढ़ी को जानकारी देने के लिए प्रशासन को प्रयास करना चाहिए और साथ ही बापू की स्मृतियों के प्रसार पर भी ध्यान देना चाहिए.