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झारखंड का यह संसदीय क्षेत्र पूरे देश के लिए है मिसाल, यहां नहीं काम करता जातिगत राजनीति का खेल, कास्ट से उपर उठकर लोग करते हैं वोट - Lok Sabha Election 2024

Chatra parliamentary constituency. झारखंड में एक संसदीय क्षेत्र ऐसा है जो पूरे देश के लिए मिसाल है. एक तरफ जहां पूरे देश में लोग जाति के आधार पर वोट करते हैं, वहीं दूसरी तरफ इस संसदीय क्षेत्र की जनता ने राजनीतिक दलों के जातीय समीकरण को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. इस क्षेत्र में जातीय बहुमत वाला उम्मीदवार हार जाता है, जबकि वैसे समाज से आने वाला व्यक्ति अच्छे वोटों से जीत जाता है. जिसकी संख्या क्षेत्र में काफी कम है. यह क्षेत्र है चतरा संसदीय क्षेत्र.

Chatra parliamentary constituency
Chatra parliamentary constituency

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 18, 2024, 1:40 PM IST

लातेहार:झारखंड राज्य का चतरा संसदीय क्षेत्र कई मायनों में अनोखा है. तीन जिलों में फैले इस लोकसभा क्षेत्र के मतदाता लोकतंत्र के लिए मिसाल हैं. यहां के पिछले चुनाव परिणाम के आंकड़ों पर नजर डालें तो एक बात साफ हो जाती है कि चतरा संसदीय क्षेत्र के मतदाता जाति के आधार पर नहीं बल्कि भावनाओं के आधार पर वोट करते हैं.

दरअसल, मौजूदा राजनीतिक माहौल में जाति और संप्रदाय एक बड़ा कारक बन गया है. राजनीतिक दलों के लोग भी चाहते हैं कि जिस क्षेत्र में जो जाति बाहुल्य है, वहां उसी जाति के उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाया जाये. लेकिन झारखंड का चतरा संसदीय क्षेत्र राजनीति के जातीय पैमाने को हमेशा नकारता रहा है. यहां के मतदाता जाति से ऊपर उठकर भावनाओं के आधार पर वोट डालते हैं. इस बात को यहां के मतदाता प्रत्येक मतदान में साबित भी करते हैं.

चतरा संसदीय क्षेत्र के चुनाव परिणाम के आंकड़ों पर ध्यान दें तो यहां से ऐसे उम्मीदवार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं, जिनकी जाति और समुदाय के पांच हजार लोग भी इस लोकसभा क्षेत्र में नहीं रहते हैं. वहीं, चुनाव के दौरान कई ऐसे उम्मीदवारों को 5000 वोट भी नहीं मिल सके, जिनकी जाति और समुदाय के लोगों की संख्या लाखों में है. यानी चतरा संसदीय क्षेत्र के मतदाता जाति आधारित राजनीति को नकारने के साथ-साथ उन लोगों को भी सबक सिखाते हैं जो जाति आधारित राजनीति के सहारे अपनी नैया पार लगाने की कोशिश करते हैं.

जिनकी बिरादरी की संख्या कम उनकी होती है बंपर जीत

चतरा संसदीय क्षेत्र के लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो एक बात साफ हो जाती है कि यहां जिन उम्मीदवारों की जाति और समुदाय के लोग कम हैं, उन्होंने बंपर जीत हासिल की है. मारवाड़ी अग्रवाल समुदाय से आने वाले धीरेंद्र अग्रवाल इस संसदीय क्षेत्र से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. जबिक पूरे संसदीय क्षेत्र में मारवाड़ी समुदाय की संख्या बहुत कम है.

वहीं पंजाबी समुदाय से आने वाले इंदर सिंह रामधारी भी यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर जीते थे. देखा जाए तो चतरा संसदीय क्षेत्र में पंजाबी समुदाय के लोगों की संख्या नगण्य है. वहीं राजपूत समुदाय से आने वाले सुनील कुमार सिंह पिछले दो बार से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतते रहे हैं. चतरा संसदीय क्षेत्र में राजपूत समुदाय की आबादी अन्य जातियों की तुलना में काफी कम है.

पार्टियों को नहीं करनी पड़ती जातिगत आधार पर माथापच्ची

चतरा संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशियों के चयन को लेकर राजनीतिक दल के आलाकमान को भी जातीय आधार पर माथापच्ची नहीं करनी पड़ रही है. राजनीतिक मामलों के जानकार डॉ. विशाल शर्मा (प्रोफेसर) के मुताबिक, चतरा संसदीय क्षेत्र की खासियत रही है कि यहां के लोग जातिगत भावना से ऊपर उठकर वोट करते हैं. यह लोकतंत्र के लिए भी बहुत अच्छी बात है.

उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों के ऊंचे पदों पर बैठे नेता भी जानते हैं कि यहां की जनता जज्बात वोट करती है. इसी वजह से यहां उम्मीदवारों के चयन के लिए जातीय समीकरण कोई मायने नहीं रखता.

उन्होंने कहा कि चतरा संसदीय क्षेत्र के अलावा आसपास की कुछ अन्य सामान्य लोकसभा सीटों पर भी लोग जातिगत भावना से ऊपर उठकर भावनाओं के आधार पर वोट करते हैं. इसी वजह से जातीय समीकरण में पिछड़ने के बावजूद बेहतर उम्मीदवार भी आसानी से चुनाव जीत जाते हैं. चतरा संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं द्वारा जातिगत भावना को पीछे छोड़कर जज्बात के साथ मतदान करने की परंपरा लोकतंत्र के लिए काफी सुखद है.

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