लातेहार:झारखंड राज्य का चतरा संसदीय क्षेत्र कई मायनों में अनोखा है. तीन जिलों में फैले इस लोकसभा क्षेत्र के मतदाता लोकतंत्र के लिए मिसाल हैं. यहां के पिछले चुनाव परिणाम के आंकड़ों पर नजर डालें तो एक बात साफ हो जाती है कि चतरा संसदीय क्षेत्र के मतदाता जाति के आधार पर नहीं बल्कि भावनाओं के आधार पर वोट करते हैं.
दरअसल, मौजूदा राजनीतिक माहौल में जाति और संप्रदाय एक बड़ा कारक बन गया है. राजनीतिक दलों के लोग भी चाहते हैं कि जिस क्षेत्र में जो जाति बाहुल्य है, वहां उसी जाति के उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाया जाये. लेकिन झारखंड का चतरा संसदीय क्षेत्र राजनीति के जातीय पैमाने को हमेशा नकारता रहा है. यहां के मतदाता जाति से ऊपर उठकर भावनाओं के आधार पर वोट डालते हैं. इस बात को यहां के मतदाता प्रत्येक मतदान में साबित भी करते हैं.
चतरा संसदीय क्षेत्र के चुनाव परिणाम के आंकड़ों पर ध्यान दें तो यहां से ऐसे उम्मीदवार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं, जिनकी जाति और समुदाय के पांच हजार लोग भी इस लोकसभा क्षेत्र में नहीं रहते हैं. वहीं, चुनाव के दौरान कई ऐसे उम्मीदवारों को 5000 वोट भी नहीं मिल सके, जिनकी जाति और समुदाय के लोगों की संख्या लाखों में है. यानी चतरा संसदीय क्षेत्र के मतदाता जाति आधारित राजनीति को नकारने के साथ-साथ उन लोगों को भी सबक सिखाते हैं जो जाति आधारित राजनीति के सहारे अपनी नैया पार लगाने की कोशिश करते हैं.
जिनकी बिरादरी की संख्या कम उनकी होती है बंपर जीत
चतरा संसदीय क्षेत्र के लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो एक बात साफ हो जाती है कि यहां जिन उम्मीदवारों की जाति और समुदाय के लोग कम हैं, उन्होंने बंपर जीत हासिल की है. मारवाड़ी अग्रवाल समुदाय से आने वाले धीरेंद्र अग्रवाल इस संसदीय क्षेत्र से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. जबिक पूरे संसदीय क्षेत्र में मारवाड़ी समुदाय की संख्या बहुत कम है.
वहीं पंजाबी समुदाय से आने वाले इंदर सिंह रामधारी भी यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर जीते थे. देखा जाए तो चतरा संसदीय क्षेत्र में पंजाबी समुदाय के लोगों की संख्या नगण्य है. वहीं राजपूत समुदाय से आने वाले सुनील कुमार सिंह पिछले दो बार से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतते रहे हैं. चतरा संसदीय क्षेत्र में राजपूत समुदाय की आबादी अन्य जातियों की तुलना में काफी कम है.