रांचीः रिम्स अस्पताल को झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था का "लाइफ लाइन" कहा जाता है. लेकिन जब संसाधन और मैन पावर की बात आती है तो यह शब्द वेंटिलेटर पर चला जाता है. संस्थान के पास पैसे की कमी नहीं है. फिर भी उपलब्धियों से ज्यादा कमियां यहां की सुर्खियां बनती हैं. इससे निपटने की जिम्मेदारी और जवाबदेही रिम्स के निदेशक डॉ. राजकुमार के कंधों पर है. उनके एक साल का कार्यकाल 12 फरवरी को पूरा हो रहा है. लिहाजा, यह समझना जरूरी है कि उन्होंने पिछले 365 दिनों में रिम्स के लिए क्या कुछ किया है.
एक साल में रिम्स में 600 बेड बढ़े-निदेशक
रिम्स के निदेशक डॉ. राजकुमार एक प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन हैं. डॉ. राजकुमार एम्स ऋषिकेश के निदेशक भी रह चुके हैं. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है बेड की संख्या में इजाफा. इनके ज्वाइन करने के वक्त रिम्स में 1600 बेड थे, जो अब बढ़कर 2200 हो चुके हैं. ईटीवी भारत के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि रिम्स में 25 ओटी हैं, लेकिन एनेस्थेसिया वर्क स्टेशन की मशीनें नहीं होने की वजह से ऑपरेशन नहीं हो पाते थे. उन्होंने 28 मशीनें खरीदवाई. उनकी पहल पर अब तक 51 करोड़ के सामान खरीदे जा चुके हैं. अभी 161 करोड़ की खरीदारी की प्रक्रिया जारी है. एमआरआई मशीन का ऑर्डर दिया जा चुका है.
फैकल्टीज और नर्सों की नियुक्ति की कवायद
रिम्स निदेशक डॉ. राज कुमार के मुताबिक फैकल्टीज की नियुक्ति की तैयारी पूरी कर ली गई है. चयन समिति के अध्यक्ष विकास आयुक्त से अनुमति मिलने के साथ ही साक्षात्कार और नियुक्ति की जाएगी. नर्सों के 144 पदों पर नियुक्ति के लिए झारखंड कर्मचारी चयन आयोग यानी जेएसएससी को अधियाचना भेजी गई है. जेएसएससी के माध्यम से 19 टेक्नीशियन की नियुक्ति कर ली गई है. उन्होंने बताया कि चतुर्थ श्रेणी के 28 पदों पर नियुक्ति पूरी हो गई है. चतुर्थ श्रेणी के अन्य पदों पर भी नियुक्ति पूरी कर ली जाएगी.
रिम्स के री-डेवलपमेंट पर जोर
निदेशक डॉ. राजकुमार का कहना है कि रिम्स के री-डेवलपमेंट प्लान को लेकर खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गंभीर हैं. रिम्स के पुराने कैंपस और डीआईजी ग्राउंड को जोड़ने का प्लान है. पुराने कैंपस में जो भी क्षेत्र रखना है उसमें बाउंड्री देकर तीन गेट लगाए जा रहे हैं.
छोटी जरूरतों के लिए विभागाध्यक्ष अधिकृत
रिम्स निदेशक ने बताया कि छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए लंबी कवायद होती थी. किसी मशीन में लाख-दो लाख के पुर्जे खराब होने पर ऑपरेशन टल जाते थे. इसलिए अब विभागाध्यक्षों को डॉयरेक्ट छोटी जरूरतों के लिए अधिकृत कर दिया गया है. साथ ही सुबह 9 बजे से 5 बजे तक डॉक्टरों की उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई है.
रिम्स में 80 प्रतिशत दवाएं उपलब्ध-निदेशक
डॉ राजकुमार ने दावा किया है कि रिम्स में लगभग 80 प्रतिशत दवाओं के साथ-साथ सभी कंज्युमेबल्स उपलब्ध हैं. जो दवाएं कम होती हैं उसे जन औषधि से खरीदी जाती है. निदेशक के मुताबिक इंप्लांट तक अमृत फार्मेसी से लिया जाता है. अस्पताल में जो दवा उपलब्ध नहीं है तो उसकी जगह एविडेंस बेस्ड दवाएं ही लिखने की हिदायत दी गई है. किसी मरीज के पास एविडेंस बेस्ड दवाओं की अतिरिक्त की पर्ची मिलने पर एथिकल कार्रवाई की जाएगी.
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