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बिहार के इस गांव में आज भी बजती है 'लैंडलाइन फोन की घंटी', क्यों 80 के दशक में जी रहे लोग? - KHANDAIL VILLEGE

बिहार का ऐसा गांव जहां के लोग रिश्तेदारों से बात करने के लिए मोबाइल नहीं बल्कि लैंडलाइन का इस्तेमाल करते हैं. पढ़ें खास रिपोर्ट.

Gaya Khandail Villege
ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 15, 2025, 5:34 PM IST

गया:भारत में जहां 5जी नेटवर्क तेजी से फैल रहा है. बाजार में 5जी फोन की डिमांड बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर बिहार का एक ऐसा गांव जहां के लोग आज भी लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करते हैं. सुनकर हैरानी होगी लेकिन यही सच्चाई है.

ईटीवी भारत की टीम गया शहर से लगभग 25 किमी दूर खंडैल गांव पहुंची. गांव में जाने के बाद सबसे पहले उस घर में गए जहां फोन की घंटी बज रही थी 'ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग.' इतने में 12 साल की जोया परवीन आयी और फोन उठाकर पूछा 'हेलो कौन?' उधर से आवाज आयी 'मैं मामा बोल रहा हूं' इसके बाद दोनों के बीच काफी देर तक बातें हुई और फिर 'फोन रख रही हूं' कहते हुए बातचीत खत्म की.

ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट (ETV Bharat)

मोबाइल इस्तेमाल नहीं करती जोया:ईटीवी भारत से बातचीत में जोया ने बताया कि वह अपने नाना के यहां रहती है. उसके मामा ने फोन किया था और उसी से बात कर रही थी. उसने बताया कि उसके मामा दिल्ली में रहते हैं. लैंडलाइन के बारे में पूछने पर बताया कि "यह काफी समय से घर में है और हमलोग इसी से बात करते हैं."

"मामा दिल्ली में रहते हैं. नाना के पास मोबाइल फोन है. हम लोग घर में बड़े वाले फोन (लैंडलाइन) से बात करते हैं. हमलोग मोबाइल नहीं चलाते हैं क्योंकि नाना घर में मोबाइल फोन नहीं रखते हैं. नाना जी के यहां काफी समय से लैंडलाइन फोन है. हमलोग इसी से बात करते हैं."-जोय परवीन

मामा से बात करती जोया परवीन (ETV Bharat)

जावेद खान के घर भी लैंडलाइन: जोया के बाद हम खंडैल गांव में ही एक सामाजिक कार्यकर्ता जावेद खान के घर पहुंचे. जावेद के घर के बाहरी हिस्से में बैठकनुमा एक ऑफिस बना है. ऑफिस में टेबल रखा है. इसपर एक लैंडलाइन फोन भी रखा है. हमारे पहुंचने के कुछ देर बाद ही फोन की ट्रिंग ट्रिंग की घंटी बजने लगी. घंटी सुनने के बाद ऐसा लगा जैसे हम पुराने जमाने के टेलीफोन बूथ पर बैठे हैं.

फोन की घंटी खत्म होने से पहले ही जावेन खान ने उठा लिया. 'उधर से आवाज आती है..'मैं शमशेर बोल रहा हूं..अस्सलाम वालेकुम'. इधर से जावेद कहते हैं, 'वालेकुम अस्सलाम..क्या हाल है शमशेर भाई'. इसके बाद दोनों में काफी देर तक बातचीत होती है. बातचीत के बाद जावेद खान फोन रख देते हैं.

40 से 50 घरों में लैंडलाइन फोन: जावेद खान संवाददाता से बातचीत में बताते हैं कि सिर्फ उनके घर में लैंडलाइन फोन नहीं बल्कि इस गांव के 40 से 50 घरों में लैंडलाइन फोन लगे हुए हैं. उन्होंने कई किस्से बताएं जो इस गांव को लैंडलाइन फोन से जोड़कर रखता है. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे सरकार ने इस गांव में ही टेलीफोन एक्सचेंज बनवा दिया था.

जावेद खान बताते हैं कि उनके घर में 1988 से लैंडलाइन फोन का कनेक्शन है. अब भी उनके घर में रिसीवर फोन है. पहले जब वे विदेश में रहते थे तो घर में माता-पिता और रिश्तेदारों से लैंडलाइन फोन से ही बात होती थी. क्योंकि उस समय मोबाइल नहीं था.

"2008 में हमारी जमीन पर बीटीएस की स्थापना हुई थी. केंद्रीय मंत्री डॉ शकील अहमद और कई नेता आए थे. नई टेक्नोलॉजी के दौर में रिसीवर फोन पर विश्वाश रखते हैं. ऐसा इसलिए कि इससे बातें की आवाज साफ आती है. नेटवर्क की समस्या नहीं होती है."-जावेद खान, समाजिक कार्यकर्ता

जावेद खान (ETV Bharat)

माजिद परवेज का घर तीसरा पड़ाव: जावेद खान के बाद हमने माजिद परवेज के घर की ओर रूख किया. मन तो पूरे गांव का दौरा करने का था लेकिन इसमें समय काफी ज्यादा लगता. लैंडलाइन की घंटी से गांव की सुंदरता में चार चांद लग रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे होई पुराने फिल्म का दृश्य सामने चल रहा हो. हम माजिद परवेज के घर पहुंच गए थे.

माजिद परवेज के घर जाते ही एक टेबल दिखा जिसपर लैंडलाइन फोन रखा हुआ था. पास में कुर्सी पर बैठकर माजिद किसी रिश्तेदार से गुप्तगू कर रहे थे. उनकी बात खत्म होने का हमने इंतजार किया. रिश्तेदार से कुछ देर बात करने के बाद फोन रख दिए और हमसे बात करने लगे. उन्होंने लैंडलाइन का किस्सा बताया.

'मोहल्ले में इकलौता फोन था': माजिद परवेज बताते हैं कि उनके घर में पिछले 30 साल से लैंडलाइन फोन है. उन्होंने बताया कि पहले पुराने घर में कनेक्शन था. कुछ सालों पहले बंद कर दिया था लेकिन अब नए घर में दो साल पहले फिर से लैंडलाइन शुरू कर दिया गया. माजिद पुरानी बात याद कर कहते हैं कि पहले मोहल्ले में इनके घर में इकलौता फोन था. आस-पड़ोस के लोग गल्फ या देश के किसी दूसरे राज्य में रहते थे. वहां से फोन आता था.

"भाई गल्फ कंट्री मस्कट में रहता है. वहां से लैंडलाइन से ही बात होती है. मोबाइल फोन से अच्छा लैंडलाइन कनेक्शन है. मोबाइल फोन का गलत उपयोग भी हो जाता है. बच्चे भी मोबाइल का इस्तेमाल ज्यादा करने लगे हैं. लैंडलाइन में इस तरह की कोई समस्या नहीं है. हम ने दोबारा इसी लिए कनेक्शन कराया है."-माजिद परविन

माजिद परवेज (ETV Bharat)

1988 में पहला कनेक्शन: गांव के जानकार बताते हैं कि 1988 में पहला कनेक्शन खंडैल गांव गया शेरघाटी स्टेट हाईवे चेरकी रोड पर स्थित हुआ था. वर्तमान में गांव की आबादी 350 घरों से अधिक होगी. लोग बताते हैं कि जब 100 से 150 घर थे तब भी 50 घरों में लैंडलाइन फोन का कनेक्शन था.

धीरे-धीरे बढ़ता गया फोन: पहली बार 1988 में मोजिबुल्लाह खान के घर में लैंडलाइन का कनेक्शन हुआ था. इसके बाद फिर आहिस्ता आहिस्ता अधिकांश घरों में लैंडलाइन फोन के कनेक्शन हो गए थे. हैरानी की बात है कि उस लैंडलाइन कनेक्शन से सरकार को अच्छा रेवेन्यू जाता था. उस समय गांव से एक लाख रुपए के करीब राजस्व जाता था.

गांव से सबसे ज्यादा राजस्व: पहले आईएसडी और एसटीडी काल अधिक होती थी जिसके कारण भारत संचार को रेवेन्यू दूसरी जगहों से अधिक पहुंचता था. आईएसडी काल अधिक होने की वजह से विभाग ने गांव में ही 1990 से पहले टेलीफोन एक्चेंज बना दिया था. आज भी टेलीफोन एक्सचेंज है और यहां ऑपरेटर भी बहाल है.

अब वाईफाई ने लिया स्थान: हालांकि अब यहां भी भारत संचार की पुरानी टेक्नॉलॉजी बदल गई है. अब ब्रॉडबैंड कनेक्शन हो गया है. ब्रॉडबैंड में इंटरनेट वाईफाई की भी सुविधा उपलब्ध है. पूरी पंचायत में 150 ब्रॉडबैंड कनेक्शन हैं. इसके साथ लैंडलाइन का भी इस्तेमाल हो रहा है. यही कारण है कि अभी भी लैंडलाइन फोन की घंटी बज रही है.

खंडैल गांव (ETV Bharat GFX)

गल्फ कंट्री में काम करते हैं यहां के युवा: इस गांव के अधिकतर युवा गल्फ कंट्री में नौकरी करते हैं. 1980 के बाद से यहां के लोग विदेशों में जाकर नौकरी करने लगे थे. 350 घरों में आज भी 250 घर के लोग विदेश में काम करते हैं. इन लोगों से बातचीत करने के लिए गया शहर जाना होता था लेकिन लैंडलाइन लगने के बाद से बातचीत करना आसान हो गया था.

गांव में सेवा जारी:भारत संचार शेरघाटी के जेटीओ 'जूनियर टेलीकॉम आफिसर' विक्रम कुमार ने बताया कि टेक्नोलॉजी में बदलाव हुआ है लेकिन गांव में लैंडलाइन की सेवा जारी है. पहले कॉपर वायर टेक्नोलॉजी थी लेकिन अब फाइबर एफटीटीएस हो गई है. पहले तार कॉपर में रहता था उसकी टेक्नोलॉजी दूसरी थी. अब आईपी बेस टेक्नोलॉजी है. पहले उसका स्विच बड़ा होता था लेकिन अब छोटा होता है. इस से एनर्जी कम खर्च होती है. मैनपॉवर भी कम हो गया है.

"वर्तमान में खंडैल गांव में जो कनेक्शन है वह भी वायर कनेक्शन है. फर्क इतना है की पहले सिर्फ लैंडलाइन काल कनेक्शन था अब ब्रॉडबैंड कॉम्बो सर्विस है. जिसे ब्रॉड बैंड पल्स लैंड लाइन कहा जाता है. इस में इंटरनेट वाईफाई रोटर कनेक्शन होता है. जिस से इंटरनेट के सभी काम के साथ बात कर सकते हैं. अब प्लान के अनुसार रिचार्ज होता है."-विक्रम कुमार, जूनियर टेलीकॉम आफिसर

कैसे दूर करते हैं टेक्निकल फॉल्ट: एक्सचेंज के ऑपरेटर उपेन्द्र कुमार ने बताया कि आज भी यहां कनेक्शन बहुत चल रहा है. लोग आज भी कनेक्शन लगा रहे हैं. सुविधा पीएनटी में अधिक है. सुविधा जल्दी मिलती है. अगर कोई फॉल्ट आता है तो तुरंत उसे बनाते हैं ताकि अच्छी सुविधा मिले.

"200 से अधिक कनेक्शन पूरी पंचायत में है लेकिन रिसीवर फोन अधिक खंडैल गांव के लोग ही लगवाए हुए हैं. यह लोगों के ऊपर है कि वह रिसीवर फोन लगवाते हैं कि नहीं. अगर जो लगवाना चाहते हैं तो उनसे अलग से कोई चार्ज नहीं लगता है. सिर्फ रिसीवर अपना देना होता है."-उपेन्द्र कुमार, एक्सचेंज ऑपरेटर

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