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स्पेशल रिपोर्ट: पाली का 'अपना घर', अब तक 232 लोगों को उनके परिवार से मिलवाया - Special report

पाली के अपना घर में अब तक 263 प्रभु को यहां पर लाया जा चुका है. इन 263 प्रभु में से 232 प्रभु को देश के अलग-अलग कोने से इनके परिवार को ढूंढकर उनके परिजनों से मिलाया है. यहां लाने वाले सभी मानसिक विक्षिप्त लोगों को इस संस्था ने प्रभु का दर्जा दिया, जिसके लिए यहां सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं.

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Published : Oct 22, 2019, 5:24 PM IST

पाली. अपनों से मिलने की चाहत तो हर कोई रखता है, लेकिन सड़कों पर घूमने वाले मानसिक विक्षिप्त लोगों को अपनों से कौन मिलाए. भूख, गंदगी, बदहाली में जीने वाले ये लोग अपनों से कब बिछड़े थे, किसी को पता नहीं, इनके अपने भी इन्हें ढूंढ रहे हैं या नहीं इसका भी कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. लेकिन इन लोगों के लिए भी अपना बनकर कर कोई आया. अपनों को अपनों से मिलाने की मुहिम चला रहे अपना घर ने पाली में कुछ ऐसी की मिसाल पेश की है. इस संस्था ने इस तरह के लोगों को प्रभु का दर्जा दिया.

पाली के अपना घर पर स्पेशल रिपोर्ट

यहां इन प्रभु का ख्याल रखने के साथ ही उनका अच्छा उपचार भी करवाया जाता है, जिससे कि वह दुरुस्त होकर अपनों का पता बताने में सक्षम हो सकें. इनकी मदद से अपना घर इनके परिजनों से मिलाने में सफल हो सके.

अपनों से अब तक 232 प्रभु को मिलवाया

पाली में अपना घर स्थापित होने के बाद में अब तक 263 प्रभु को यहां पर लाया जा चुका है. इन 263 प्रभु में से 232 प्रभु को देश के अलग-अलग कोने से इनके परिवार को ढूंढकर उनके परिजनों से मिलाया है. संस्था के पदाधिकारियों की माने तो यहां पर ज्यादातर सड़कों पर बदहाली में घूमने वाले प्रभु को यहां लाकर उन्हें सुव्यवस्थित किया जाता है. सप्ताह में डॉक्टरों से उचित उपचार करवाया जाता है और पौष्टिक आहार देकर उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाने की कोशिश की जाती है. इनकी देखरेख के लिए संस्था हर संभव प्रयास करती है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: कोटा के बाढ़ पीड़ितों का दर्द...पानी में बही जिंदगीभर की कमाई तो कैसे मनाएं दिवाली

यहां कुछ प्रभु ऐसे हैं जो अपने हाथों से भी खाना नहीं खा पाते. संस्था के पदाधिकारी अपने हाथों से खाना खिलाते हैं. संस्था के पदाधिकारियों की माने तो उन्होंने अपने नंबर पाली के सभी स्थान पर दे रखे हैं. आम जनता द्वारा फोन करने पर किसी भी तरह प्रभु को अपना घर में लाया जाता है. संस्थाओं के पदाधिकारियों ने बताया कि अब तक इन्होंने दिल्ली, महाराष्ट्र, असम, बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में अपनों से बिछड़े प्रभु को उनके अपनों से मिलाया है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: डूंगरपुर में 8 ITI की घोषणा कर भूल गई सरकार, 5 साल में एक भी भवन नहीं हुआ तैयार

अपना घर की बात करें तो इसका शाब्दिक अर्थ इसके अंदर जाने पर साफ नजर आता है. यहां प्रभु के लिए अपना घर में बेहतर से बेहतर सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. प्रभु के लिए यहां पर उचित बेड की व्यवस्था है. दोनों समय उनके लिए बेहतर भोजन की व्यवस्था है, साथ ही उपचार के लिए पाली के अच्छे डॉक्टरों की टीम भी लगातार यहां पर सेवाएं देती हैं. अधिकृत पदाधिकारियों ने बताया कि इनके यहां से ऐसे भी प्रभु निकले हैं, जो पूरी तरह से मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होकर अपने घर गए हैं.

पाली. अपनों से मिलने की चाहत तो हर कोई रखता है, लेकिन सड़कों पर घूमने वाले मानसिक विक्षिप्त लोगों को अपनों से कौन मिलाए. भूख, गंदगी, बदहाली में जीने वाले ये लोग अपनों से कब बिछड़े थे, किसी को पता नहीं, इनके अपने भी इन्हें ढूंढ रहे हैं या नहीं इसका भी कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. लेकिन इन लोगों के लिए भी अपना बनकर कर कोई आया. अपनों को अपनों से मिलाने की मुहिम चला रहे अपना घर ने पाली में कुछ ऐसी की मिसाल पेश की है. इस संस्था ने इस तरह के लोगों को प्रभु का दर्जा दिया.

पाली के अपना घर पर स्पेशल रिपोर्ट

यहां इन प्रभु का ख्याल रखने के साथ ही उनका अच्छा उपचार भी करवाया जाता है, जिससे कि वह दुरुस्त होकर अपनों का पता बताने में सक्षम हो सकें. इनकी मदद से अपना घर इनके परिजनों से मिलाने में सफल हो सके.

अपनों से अब तक 232 प्रभु को मिलवाया

पाली में अपना घर स्थापित होने के बाद में अब तक 263 प्रभु को यहां पर लाया जा चुका है. इन 263 प्रभु में से 232 प्रभु को देश के अलग-अलग कोने से इनके परिवार को ढूंढकर उनके परिजनों से मिलाया है. संस्था के पदाधिकारियों की माने तो यहां पर ज्यादातर सड़कों पर बदहाली में घूमने वाले प्रभु को यहां लाकर उन्हें सुव्यवस्थित किया जाता है. सप्ताह में डॉक्टरों से उचित उपचार करवाया जाता है और पौष्टिक आहार देकर उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाने की कोशिश की जाती है. इनकी देखरेख के लिए संस्था हर संभव प्रयास करती है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: कोटा के बाढ़ पीड़ितों का दर्द...पानी में बही जिंदगीभर की कमाई तो कैसे मनाएं दिवाली

यहां कुछ प्रभु ऐसे हैं जो अपने हाथों से भी खाना नहीं खा पाते. संस्था के पदाधिकारी अपने हाथों से खाना खिलाते हैं. संस्था के पदाधिकारियों की माने तो उन्होंने अपने नंबर पाली के सभी स्थान पर दे रखे हैं. आम जनता द्वारा फोन करने पर किसी भी तरह प्रभु को अपना घर में लाया जाता है. संस्थाओं के पदाधिकारियों ने बताया कि अब तक इन्होंने दिल्ली, महाराष्ट्र, असम, बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में अपनों से बिछड़े प्रभु को उनके अपनों से मिलाया है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: डूंगरपुर में 8 ITI की घोषणा कर भूल गई सरकार, 5 साल में एक भी भवन नहीं हुआ तैयार

अपना घर की बात करें तो इसका शाब्दिक अर्थ इसके अंदर जाने पर साफ नजर आता है. यहां प्रभु के लिए अपना घर में बेहतर से बेहतर सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. प्रभु के लिए यहां पर उचित बेड की व्यवस्था है. दोनों समय उनके लिए बेहतर भोजन की व्यवस्था है, साथ ही उपचार के लिए पाली के अच्छे डॉक्टरों की टीम भी लगातार यहां पर सेवाएं देती हैं. अधिकृत पदाधिकारियों ने बताया कि इनके यहां से ऐसे भी प्रभु निकले हैं, जो पूरी तरह से मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होकर अपने घर गए हैं.

Intro:स्पेशल स्टोरी....पाली

पाली. अपनों से मिलने की चाहत तो हर कोई रखता है लेकिन सड़कों पर घूमने वाले मानसिक विक्षिप्त लोगों को अपनों से कौन मिलाए। भूख, गंदगी, बदहाली में जीने वाले यह लोग अपनों से कब बिछड़े थे, किसी को पता नहीं, इनके अपने भी इन्हें ढूंढ रहे हैं या नहीं इसका भी कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। लेकिन इन लोगों के लिए भी अपना बनकर कर कोई आया। अपनों को अपनों से मिलाने की मुहिम चला रहे अपना घर न पाली में कुछ ऐसी की मिसाल पेश की है। जिन्हें लोग पागल मानकर उनसे छुटकारा पाना चाहते है। उनको इस संस्था ने प्रभु का दर्जा दिया। यहां इन प्रभु का ख्याल रखने के साथ ही उनका अच्छा उपचार भी करवाया जाता है। जिससे कि वह दुरुस्त होकर अपनो का पता बताने में सक्षम हो सके। जिनकी मदद से अपनाघर इनके परिजनों से मिलाने में सफल हो सके।

ने अब तक 232 प्रभु को अपनों से मिला दिया


Body:गौरतलब है कि पाली में अपना घर स्थापित होने के बाद में अब तक 263 प्रभु को यहां पर लाया जा चुका है। इन 263 प्रभु में से 232 प्रभु को देश के अलग-अलग कोने से इनके परिवार को ढूंढकर उनके परिजनों से मिलाया है। प्रभु के घर के बिछड़ने की कहानियों को सुने तो हर किसी का दिल पसीज जाता है। कई प्रभु तो ऐसे हैं, जिस समय अपने घर से बिछड़े थे। उस समय उनके बच्चे पैदा हुए थे। और जब अपने परिवार से मिले तब तक उनके बच्चों के भी बच्चे बड़े हो चुके थे। संस्था के पदाधिकारियों की माने तो यहां पर ज्यादातर सड़कों पर बदहाली में घूमने वाले प्रभु को यहां लाकर उन्हें सुव्यवस्थित किया जाता है। सप्ताह में डॉक्टरों से उचित उपचार करवाया जाता है तथा पौष्टिक आहार देकर उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाने की कोशिश की जाती है। इनकी देखरेख के लिए संस्था हर संभव प्रयास करती है। प्रभु ऐसे हैं जो अपने हाथों से भी खाना नहीं खा पाते। संस्था के पदाधिकारी अपने हाथों से खाना खिलाते हैं। संस्था के पदाधिकारियों की माने तो उन्होंने अपने नंबर पाली के सभी स्थान पर दे रखे है। आम जनता द्वारा फोन करने पर किसी भी तरह प्रभु को अपना घर में लाया जाता है। संस्थाओं के पदाधिकारियों ने बताया कि अब तक इन्होंने दिल्ली, महाराष्ट्र, असम, बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों मैं अपनों से बिछड़े प्रभु को उनके अपनों से मिलाया है।


Conclusion: अपना घर की बात करें तो इसका शाब्दिक अर्थ इसके अंदर जाने पर साफ नजर आता है। जिन प्रभु को उनकी दरिद्रता के चलते लोग गिन्न करते नजर आते हैं। वही इन प्रभु के लिए अपना घर में बेहतर से बेहतर सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। प्रभु के लिए यहां पर उचित बेड की व्यवस्था है। दोनों समय उनके लिए बेहतर भोजन की व्यवस्था है, साथ ही उपचार के लिए पाली के अच्छे डॉक्टरों की टीम भी लगातार यहां पर सेवाएं देती है। अधिकृत पदाधिकारियों ने बताया कि इनके यहां से ऐसे भी प्रभु निकले हैं जो पूरी तरह से मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ होकर अपने घर गए हैं।
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