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स्पेशल: संगमरमर की खूबसूरती तराशने वाले हुनरमंदों के हाथ खाली, जुबां पर रह गई बस बेबसी की दास्तां - Artwork from marble

मकराना में खदानों से निकले बेडौल पत्थरों को अपने हाथ से तराशकर सुंदर कलाकृतियां और मूर्तियां बनाने वाले हुनरमंद हाथ लॉकडाउन में रियायत मिलने के बाद भी काम को मोहताज हैं. मजदूरों को इन दिनों परिवार का गुजारा करने लायक मेहनताना भी नहीं मिल पा रहा है. आर्थिक तंगी से जूझ रहे मजदूर और व्यापारियों पर देखिए स्पेशल रिपोर्ट...

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
संगमरमर तराशने वाले कलाकारों पर आर्थिक संकट
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Published : Jul 1, 2020, 11:47 PM IST

नागौर. मकराना की खदानों से निकलने वाला चमकदार सफेद संगमरमर न केवल धार्मिक स्थल, महल, घर और होटल्स की शान बढ़ाता आया है. बल्कि इस पत्थर से बनी कलाकृतियां भी देश-विदेश में खूब पसंद की जाती हैं. मकराना के हुनरमंद हाथों ने खदान से निकले बेडौल पत्थरों को अपनी मेहनत के दम पर देवी-देवताओं, शहीदों और कई महापुरुषों की मूर्तियों का आकार दिया है और यह सिलसिला अभी भी जारी है.

संगमरमर की खूबसूरती तराशने वाले हुनरमंदों के हाथ खाली

कई हस्तशिल्पी इन पत्थरों को तराशकर आकर्षक कलाकृतियां बनाते हैं, जो देश के कोने-कोने से लेकर विदेशों में भी पसंद की जाती है. लेकिन कोरोना काल में बाकि क्षेत्रों की तरह ही मकराना का हस्तशिल्प उद्योग भी ठप हो गया है. अपनी मेहनत और हुनर के दम पर पत्थरों को तराशकर आकर्षक कलाकृतियां और मूर्तियां बनाने वाले हाथ इस कोरोना काल में काम को मोहताज हो गए हैं.

आर्थित तंगी से बेहाल मजदूर और व्यापारी

आवाजाही के साधन बंद होने और मंदी की मार के चलते कारीगरों की ओर से तैयार की गई कलाकृतियों और मूर्तियों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में हस्तशिल्प उद्योग से जुड़े मजदूर से लेकर व्यापारी तक आर्थिक तंगी झेल रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि मकराना में संगमरमर हस्तशिल्प से सीधे तौर पर करीब 35 हजार लोग जुड़े हुए हैं. इन सभी के लिए कोरोना काल में अपना और परिवार का पेट पालना अब मुश्किल हो गया है.

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
पत्थरों को तराशकर बनाई गई कलाकृतियां

पढ़ें- स्पेशलः मार्बल खदानों में काम शुरू पर आर्थिक संकट बरकरार...नहीं मिल रहे खरीदार

इस क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि एक तो पहले से ही इस क्षेत्र को सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिल पाई थी. वहीं, अब कोरोना महामारी के चलते यह उद्योग पूरी तरह से ठप हो गया है. बाहर से आने वाले खरीदार नहीं आ रहे हैं तो तैयार माल भी नहीं बिक रहा है. ऐसे में कलाकृतियां बनाने वाले कारखानों में सन्नाटा पसरा हुआ है.

मूर्तिकारों को नहीं मिल रहा काम

संगमरमर की खदान से निकले पत्थरों को तराशकर कलाकृतियां बनाने वाले लियाकत अली का कहना है कि वह और उन जैसे मजदूर काम पर आते हैं. लेकिन काम नहीं मिल पाता है. दिनभर मेहनत करके जो माल तैयार करते हैं, उसके खरीदार नहीं आ रहे हैं. माल नहीं बिकने की स्थिति में कारखाना मालिक भी मेहनताना देने की स्थिति में नहीं हैं.

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
मूर्ति बनाता हुआ मूर्तिकार

उनका कहना है कि लॉकडाउन के चलते तीन महीने काम पूरी तरह ठप रहा. अब रियायत मिली तो काम पर आने लगे हैं. लेकिन न तो मेहनताना मिल पा रहा है और न ही कोई सुविधा. आवाजाही भी इतनी आसान नहीं है. लियाकत अली का कहना है कि जब तक आवाजाही के साधन सुचारू नहीं हो जाते और खरीदार नहीं आने लगते तब तक हालात में सुधार होने की कोई उम्मीद नहीं है. ऐसे में जैसे-तैसे गुजारा करना मजबूरी बन गया है.

तैयार माल भी नहीं बिक रहा

एक अन्य हस्तशिल्प मजदूर अब्दुल कलाम का कहना है कि कारखाने में पहले से जो माल तैयार है, वह भी नहीं बिक पा रहा है. बाहर से खरीदार आ नहीं रहे हैं. ऐसे में उन्हें कारखाना संचालक भी पूरी मजदूरी देने की हालत में नहीं हैं. उनका कहना है कि वे और उन जैसे मजदूर लंबे समय से जिन कारखाना संचालकों के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान उन्हें परेशानी नहीं आने दी. जितना उनसे बन पड़ा उन्होंने मदद की.

पढ़ें- स्पेशलः अपनी हालत पर आंसू बहा रहे अन्नदाता, पानी-पानी हो रही पसीने की कमाई

लेकिन वह भी कब तक अपनी जेब से भुगतान करे. अब जब कलाकृतियों का कोई खरीदार ही नहीं मिल रहा है, तो कारखाना मालिक भी मजदूरों को पूरा भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में जितना संभव होता है. वे मदद कर देते हैं और उसी में मजदूर अपना और परिवार का पेट भरने को मजबूर हैं.

तैयार मूर्तियों को लेने नहीं आ रहे लोग

मूर्तिकार राजकपूर की दुकान में देवी-देवताओं के साथ ही लोकदेवताओं, महापुरुषों और समाजसेवियों की मूर्तियां रखी है. वे लोकदेवताओं और देवीदेवताओं की मूर्तियां बनाकर तैयार रखते हैं और समाजसेवियों, शहीदों और महापुरुषों की मूर्तियां आर्डर पर बनाते हैं. उनका कहना है कि फिलहाल ना तो तैयार मूर्तियों के खरीदार आ रहे हैं और ना ही नए आर्डर मिल रहे हैं.

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
मूर्ति बनाता हुआ मूर्तिकार

यहां तक कि जो मूर्तियां लॉकडाउन से पहले आर्डर की गई थी, वे भी तैयार पड़ी हैं. लेकिन उन्हें लेने के लिए कोई नहीं आ रहा है. नतीजा यह है कि इन मूर्तियों को बनाने में जो लागत लगी है. वह भी नहीं निकल पा रही है. मूर्तियां नहीं बिकने से परिवार का गुजारा करना भी मुश्किल हो रहा है. उनका कहना है कि इस हालत में गुजारा करने के लिए लागत से कम कीमत पर भी मजबूरी में मूर्तियां बेचनी पड़ रही है.

पढ़ें- 18वीं सदी से अजमेर में स्थापित मुड्डा व्यवसाय की टूटी कमर, 2 हजार लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट

सरकार से मदद ना के बराबर

मकराना हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल गफूर चौहान बताते हैं कि बिजली के बिल का मामला हो या दूसरा कोई मुद्दा. लॉकडाउन के पहले भी सरकार की मदद ना के बराबर मिलती थी. अब तो पूरा मामला ठप पड़ गया है. उनका कहना है कि करीब 5 हजार इकाइयों पर सीधे तौर पर 35 हजार के आसपास मजदूर हस्तशिल्प उद्योग से जुड़े हैं.

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
मूर्तियों का निर्माण

लेकिन कोरोना काल में सरकार ने उनकी मदद के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया है. उनका कहना है कि प्रदेश की गहलोत सरकार ने जरूर राहत देने की घोषणा की है. लेकिन उसका फायदा हस्तशिल्प से जुड़े कामगारों और मजदूरों को नहीं मिल पाया है. साथ ही उनका यह भी आरोप है कि केंद्र सरकार की ओर से मदद मिलना तो दूर बल्कि हालात ज्यादा विकट होते जा रहे हैं. बहरहाल, देश के बाकि उद्योगों से जुड़े कामगारों की तरह ही मार्बल हस्तशिल्प के मजदूरों को भी उम्मीद है कि हालात जल्द सामान्य होंगे और फिर से उन्हें सम्मानजनक मेहनताना मिलेगा.

नागौर. मकराना की खदानों से निकलने वाला चमकदार सफेद संगमरमर न केवल धार्मिक स्थल, महल, घर और होटल्स की शान बढ़ाता आया है. बल्कि इस पत्थर से बनी कलाकृतियां भी देश-विदेश में खूब पसंद की जाती हैं. मकराना के हुनरमंद हाथों ने खदान से निकले बेडौल पत्थरों को अपनी मेहनत के दम पर देवी-देवताओं, शहीदों और कई महापुरुषों की मूर्तियों का आकार दिया है और यह सिलसिला अभी भी जारी है.

संगमरमर की खूबसूरती तराशने वाले हुनरमंदों के हाथ खाली

कई हस्तशिल्पी इन पत्थरों को तराशकर आकर्षक कलाकृतियां बनाते हैं, जो देश के कोने-कोने से लेकर विदेशों में भी पसंद की जाती है. लेकिन कोरोना काल में बाकि क्षेत्रों की तरह ही मकराना का हस्तशिल्प उद्योग भी ठप हो गया है. अपनी मेहनत और हुनर के दम पर पत्थरों को तराशकर आकर्षक कलाकृतियां और मूर्तियां बनाने वाले हाथ इस कोरोना काल में काम को मोहताज हो गए हैं.

आर्थित तंगी से बेहाल मजदूर और व्यापारी

आवाजाही के साधन बंद होने और मंदी की मार के चलते कारीगरों की ओर से तैयार की गई कलाकृतियों और मूर्तियों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में हस्तशिल्प उद्योग से जुड़े मजदूर से लेकर व्यापारी तक आर्थिक तंगी झेल रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि मकराना में संगमरमर हस्तशिल्प से सीधे तौर पर करीब 35 हजार लोग जुड़े हुए हैं. इन सभी के लिए कोरोना काल में अपना और परिवार का पेट पालना अब मुश्किल हो गया है.

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
पत्थरों को तराशकर बनाई गई कलाकृतियां

पढ़ें- स्पेशलः मार्बल खदानों में काम शुरू पर आर्थिक संकट बरकरार...नहीं मिल रहे खरीदार

इस क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि एक तो पहले से ही इस क्षेत्र को सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिल पाई थी. वहीं, अब कोरोना महामारी के चलते यह उद्योग पूरी तरह से ठप हो गया है. बाहर से आने वाले खरीदार नहीं आ रहे हैं तो तैयार माल भी नहीं बिक रहा है. ऐसे में कलाकृतियां बनाने वाले कारखानों में सन्नाटा पसरा हुआ है.

मूर्तिकारों को नहीं मिल रहा काम

संगमरमर की खदान से निकले पत्थरों को तराशकर कलाकृतियां बनाने वाले लियाकत अली का कहना है कि वह और उन जैसे मजदूर काम पर आते हैं. लेकिन काम नहीं मिल पाता है. दिनभर मेहनत करके जो माल तैयार करते हैं, उसके खरीदार नहीं आ रहे हैं. माल नहीं बिकने की स्थिति में कारखाना मालिक भी मेहनताना देने की स्थिति में नहीं हैं.

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
मूर्ति बनाता हुआ मूर्तिकार

उनका कहना है कि लॉकडाउन के चलते तीन महीने काम पूरी तरह ठप रहा. अब रियायत मिली तो काम पर आने लगे हैं. लेकिन न तो मेहनताना मिल पा रहा है और न ही कोई सुविधा. आवाजाही भी इतनी आसान नहीं है. लियाकत अली का कहना है कि जब तक आवाजाही के साधन सुचारू नहीं हो जाते और खरीदार नहीं आने लगते तब तक हालात में सुधार होने की कोई उम्मीद नहीं है. ऐसे में जैसे-तैसे गुजारा करना मजबूरी बन गया है.

तैयार माल भी नहीं बिक रहा

एक अन्य हस्तशिल्प मजदूर अब्दुल कलाम का कहना है कि कारखाने में पहले से जो माल तैयार है, वह भी नहीं बिक पा रहा है. बाहर से खरीदार आ नहीं रहे हैं. ऐसे में उन्हें कारखाना संचालक भी पूरी मजदूरी देने की हालत में नहीं हैं. उनका कहना है कि वे और उन जैसे मजदूर लंबे समय से जिन कारखाना संचालकों के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान उन्हें परेशानी नहीं आने दी. जितना उनसे बन पड़ा उन्होंने मदद की.

पढ़ें- स्पेशलः अपनी हालत पर आंसू बहा रहे अन्नदाता, पानी-पानी हो रही पसीने की कमाई

लेकिन वह भी कब तक अपनी जेब से भुगतान करे. अब जब कलाकृतियों का कोई खरीदार ही नहीं मिल रहा है, तो कारखाना मालिक भी मजदूरों को पूरा भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में जितना संभव होता है. वे मदद कर देते हैं और उसी में मजदूर अपना और परिवार का पेट भरने को मजबूर हैं.

तैयार मूर्तियों को लेने नहीं आ रहे लोग

मूर्तिकार राजकपूर की दुकान में देवी-देवताओं के साथ ही लोकदेवताओं, महापुरुषों और समाजसेवियों की मूर्तियां रखी है. वे लोकदेवताओं और देवीदेवताओं की मूर्तियां बनाकर तैयार रखते हैं और समाजसेवियों, शहीदों और महापुरुषों की मूर्तियां आर्डर पर बनाते हैं. उनका कहना है कि फिलहाल ना तो तैयार मूर्तियों के खरीदार आ रहे हैं और ना ही नए आर्डर मिल रहे हैं.

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
मूर्ति बनाता हुआ मूर्तिकार

यहां तक कि जो मूर्तियां लॉकडाउन से पहले आर्डर की गई थी, वे भी तैयार पड़ी हैं. लेकिन उन्हें लेने के लिए कोई नहीं आ रहा है. नतीजा यह है कि इन मूर्तियों को बनाने में जो लागत लगी है. वह भी नहीं निकल पा रही है. मूर्तियां नहीं बिकने से परिवार का गुजारा करना भी मुश्किल हो रहा है. उनका कहना है कि इस हालत में गुजारा करने के लिए लागत से कम कीमत पर भी मजबूरी में मूर्तियां बेचनी पड़ रही है.

पढ़ें- 18वीं सदी से अजमेर में स्थापित मुड्डा व्यवसाय की टूटी कमर, 2 हजार लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट

सरकार से मदद ना के बराबर

मकराना हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल गफूर चौहान बताते हैं कि बिजली के बिल का मामला हो या दूसरा कोई मुद्दा. लॉकडाउन के पहले भी सरकार की मदद ना के बराबर मिलती थी. अब तो पूरा मामला ठप पड़ गया है. उनका कहना है कि करीब 5 हजार इकाइयों पर सीधे तौर पर 35 हजार के आसपास मजदूर हस्तशिल्प उद्योग से जुड़े हैं.

nagaur Marble workers in economic crisis, Handicraft works
मूर्तियों का निर्माण

लेकिन कोरोना काल में सरकार ने उनकी मदद के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया है. उनका कहना है कि प्रदेश की गहलोत सरकार ने जरूर राहत देने की घोषणा की है. लेकिन उसका फायदा हस्तशिल्प से जुड़े कामगारों और मजदूरों को नहीं मिल पाया है. साथ ही उनका यह भी आरोप है कि केंद्र सरकार की ओर से मदद मिलना तो दूर बल्कि हालात ज्यादा विकट होते जा रहे हैं. बहरहाल, देश के बाकि उद्योगों से जुड़े कामगारों की तरह ही मार्बल हस्तशिल्प के मजदूरों को भी उम्मीद है कि हालात जल्द सामान्य होंगे और फिर से उन्हें सम्मानजनक मेहनताना मिलेगा.

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