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व्हाइट डस्ट से जा रही कई लोगों की जान, फिर भी प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान - चरगवां जबलपुर

जबलपुर में चरगवां रोड पर स्थित फैक्ट्री से निकलने वाली डस्ट लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. इसके अलावा फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. बावजूद इसके प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है.

The factory
फैक्ट्री
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Published : Sep 14, 2020, 10:57 PM IST

जबलपुर। शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर चरगवां रोड पर 12 से ज्यादा गांव के लोग सफेद डस्ट से परेशान हैं. इस इलाके में सफेद पत्थर की चट्टानें हैं. जिन्हें यहां स्थित फैक्ट्री में पीसकर बारीक किया जाता है. इतना बारीक कि पत्थर डस्ट बनकर हवा में उड़ने लगते हैं. इसका इस्तेमाल टेलकम पाउडर समेत मेडिसिन, रंगोली, पेंट इंडस्ट्री में किया जाता है. एक तरफ इस फैक्ट्री से इतने महत्वपूर्ण उत्पाद तैयार किए जाते हैं, तो वहीं इससे निकलने वाली डस्ट लोगों को कष्ट दे रही है. मजदूरों के फेंफड़ों को ये डस्ट नुकसान पहुंचा रही है, तो आस-पास के लोगों की नाक में भी दम कर रखा है.

सफेद डस्ट से लोग परेशान

कैसे होता है इस फैक्ट्री में निर्माण कार्य

सबसे पहले खदानों से पत्थर खोदा जाता है. इसके बाद इसे बड़ी-बड़ी मशीनों में पीसने के लिए डाल दिया जाता है. लेकिन इस दौरान ये मशीनें डस्ट पार्टिकल के रूप में धुआं छोड़तीं हैं. जो उड़कर आस-पास के खेतों और घरों पर सफेद चादर बनकर छा जाता है. इसकी वजह से फसलें तो खराब हो रहीं हैं, लोगों को कई गंभीर बीमारियां भी हो रहीं हैं.

white dust on plant
पौधों पर जमी सफेद डस्ट

मजदूरों को सबसे ज्यादा खतरा

देश में लेबर लॉ की स्थिति वैसे ही खराब है. फैक्ट्रियों में मजदूरों की सुरक्षा इंतजामों की स्थिति किसी से छुपी नहीं हुई है. इस फैक्ट्री में भी मजदूरों की हालत भी दयनीय ही है. मजदूर हवा के जरिए इन डस्ट पार्टिकल को अपने फैफड़ों में ले रहे हैं. जिससे श्वास संबंधी गंभीर बीमारियां हो रहीं हैं. इससे मजदूरों का शारीरिक विकास रुक जाता है. कई लोगों की कम उम्र में ही मौत हो जाती है. आस-पास के ग्रामीण बताते हैं कि इस इलाके में बहुत सारे मजदूरों की मौत टीवी जैसी बीमारी से होती है.

नियमों की उड़ाई जा रहीं धज्जियां

नियम के मुताबिक इस इंडस्ट्री को पूरी तरह से कवर होना चाहिए. ताकि डस्ट बाहर न निकल सके. साथ ही मजदूरों को काम करते वक्त तमाम सुरक्षा उपाय किए जाएं. लेकिन फैक्ट्री मालिक इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं.

प्रशासन भी नहीं दे रहा ध्यान

फैक्ट्री के पास में ही एक महिला का घर और खेत है. महिला का कहना है कि उन्होंने कई बार मामले की शिकायत तहसीलदार से की है. कई बार इस मामले में पेशी भी हुई है, लेकिन आज तक समस्या का कोई हल नहीं निकला.

आज तक नहीं हुआ कोई सर्वे

दरअसल सफेद डस्ट की वजह से बीमार हो रहे मजदूरों का सही-सही आंकड़ा भी किसी के पास नहीं है. प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की तरफ से आज तक कोई सर्वे नहीं हुआ है. इससे समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है.

जबलपुर। शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर चरगवां रोड पर 12 से ज्यादा गांव के लोग सफेद डस्ट से परेशान हैं. इस इलाके में सफेद पत्थर की चट्टानें हैं. जिन्हें यहां स्थित फैक्ट्री में पीसकर बारीक किया जाता है. इतना बारीक कि पत्थर डस्ट बनकर हवा में उड़ने लगते हैं. इसका इस्तेमाल टेलकम पाउडर समेत मेडिसिन, रंगोली, पेंट इंडस्ट्री में किया जाता है. एक तरफ इस फैक्ट्री से इतने महत्वपूर्ण उत्पाद तैयार किए जाते हैं, तो वहीं इससे निकलने वाली डस्ट लोगों को कष्ट दे रही है. मजदूरों के फेंफड़ों को ये डस्ट नुकसान पहुंचा रही है, तो आस-पास के लोगों की नाक में भी दम कर रखा है.

सफेद डस्ट से लोग परेशान

कैसे होता है इस फैक्ट्री में निर्माण कार्य

सबसे पहले खदानों से पत्थर खोदा जाता है. इसके बाद इसे बड़ी-बड़ी मशीनों में पीसने के लिए डाल दिया जाता है. लेकिन इस दौरान ये मशीनें डस्ट पार्टिकल के रूप में धुआं छोड़तीं हैं. जो उड़कर आस-पास के खेतों और घरों पर सफेद चादर बनकर छा जाता है. इसकी वजह से फसलें तो खराब हो रहीं हैं, लोगों को कई गंभीर बीमारियां भी हो रहीं हैं.

white dust on plant
पौधों पर जमी सफेद डस्ट

मजदूरों को सबसे ज्यादा खतरा

देश में लेबर लॉ की स्थिति वैसे ही खराब है. फैक्ट्रियों में मजदूरों की सुरक्षा इंतजामों की स्थिति किसी से छुपी नहीं हुई है. इस फैक्ट्री में भी मजदूरों की हालत भी दयनीय ही है. मजदूर हवा के जरिए इन डस्ट पार्टिकल को अपने फैफड़ों में ले रहे हैं. जिससे श्वास संबंधी गंभीर बीमारियां हो रहीं हैं. इससे मजदूरों का शारीरिक विकास रुक जाता है. कई लोगों की कम उम्र में ही मौत हो जाती है. आस-पास के ग्रामीण बताते हैं कि इस इलाके में बहुत सारे मजदूरों की मौत टीवी जैसी बीमारी से होती है.

नियमों की उड़ाई जा रहीं धज्जियां

नियम के मुताबिक इस इंडस्ट्री को पूरी तरह से कवर होना चाहिए. ताकि डस्ट बाहर न निकल सके. साथ ही मजदूरों को काम करते वक्त तमाम सुरक्षा उपाय किए जाएं. लेकिन फैक्ट्री मालिक इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं.

प्रशासन भी नहीं दे रहा ध्यान

फैक्ट्री के पास में ही एक महिला का घर और खेत है. महिला का कहना है कि उन्होंने कई बार मामले की शिकायत तहसीलदार से की है. कई बार इस मामले में पेशी भी हुई है, लेकिन आज तक समस्या का कोई हल नहीं निकला.

आज तक नहीं हुआ कोई सर्वे

दरअसल सफेद डस्ट की वजह से बीमार हो रहे मजदूरों का सही-सही आंकड़ा भी किसी के पास नहीं है. प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की तरफ से आज तक कोई सर्वे नहीं हुआ है. इससे समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है.

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