भोपाल। एक बार फिर लेखकों की अवार्ड वापसी का मुद्दा चर्चाओं में है. इस बार वजह है कि लेखकों की अवार्ड वापसी के बाद पुरस्कृत विजेताओं के लिए लगाई गई नई शर्त. संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पुरस्कार देने से पहले विजेताओं से एक शपथ पत्र भरवाया जाए कि वे पुरस्कार वापस नहीं करेंगे. समिति का सुझाव है कोई पुरस्कार देते समय विजेता की मंजूरी ली जाए, ताकि राजनीतिक वजह से अवार्ड वापसी ना हो सके. ये देश के लिए अपमान जनक है. हालांकि संसद की स्थाई समिति की इस रिपोर्ट का जनवादी लेखक संघ ने विरोध किया है. जनवादी लेखक संघ का ऐतराज ये है कि किसी भी लेखक से ये ‘अन्डरटेकिंग’ देना उसके लिए अपमानजनक होगा. लेखक संघ के मुताबिक यह पुरस्कार हासिल करने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का, कम-से-कम कागज़ी स्तर पर, समर्पण करने जैसा होगा.
पहले जानें क्या है संसदीय समिति की सिफारिश: संसद की समिति ने अपनी रिपोर्ट में साहित्य अकादमी समेत अन्य अकादमियों को लेकर कहा है कि "ये गैर राजनीतिक संगठन है. समिति का सुझाव है कि किसी को भी अवार्ड देते समय, जिन्हें ये पुरस्कार दिया जा रहा है उनकी रजामदी भी लेनी चाहिए. ताकि वे किसी भी राजनीति कारण से इसे लौटा ना पाएं. क्योंकि ऐसा करना देश के लिए अपमान जनक होगा. वाईएसआरसीपी सांसद विजय साई रेड्डी इस संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं. इसमें समिति ने ये सिफारिश है कि समिति जिन्हें पुरस्कार देना है, उन उममीदवारों की पहले मंजूरी लें.
ये शर्त लेखकों के लोकतांत्रिक अधिकार पर हमला: जनवादी लेखक संघ से जुड़े लेखकों-संस्कृतिकर्मियों को संसदीय समिति के इस प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया है. लेखक संघ के मुताबिक यह शर्त एक लेखक और नागरिक के रूप में उसके लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है. समिति के मुताबिक ‘भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हमारे संविधान ने हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी सौंपी है और साथ में विरोध प्रदर्शन की आजादी भी. पुरस्कार वापसी विरोध प्रदर्शन का एक तरीक़ा भर है. इस तरह की शर्तों से किसी को भी अवार्ड वापसी से रोकना नामुमकिन ही होगा, क्योंकि उसे कानूनी तौर पर दंडनीय अपराध का दर्जा नहीं दिया जा सकता, पर महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह ‘अन्डरटेकिंग’ देना उनके लिए अपमानजनक होगा. यह पुरस्कार हासिल करने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का, कम-से-कम कागजी स्तर पर, समर्पण करने जैसा होगा.
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ये लेखक की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला: जनवादी लेखक संघ से जुड़े लेखक राम प्रकाश त्रिपाठी ने इस प्रस्ताव का कड़े शब्दों में विरोध किया है. "उन्होंने कहा है कि ये सीधे-सीधे आर्टिकल 19 से मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीधे तौर पर बाधित करता है. ये प्रस्ताव हमको हमारी विरोध की अभिव्यक्ति बाधित करता है. त्रिपाठी सवाल करते हैं सरकार काम ही ऐसा क्यों करती है कि पुरस्कार वापस करना पड़े. इस देश में ना राजनीति प्रतिबंधित है ना राजनीतिक विचार प्रतिबंधित है. संसद की ये सिफारिश बताती है कि पुरस्कार लौटाओ की गैंग की कील इतनी गहरी धंसी है कि अब तक दर्द कर रही है. खास बात ये है कि जो सरकार में बैठे हैं उन्हीं के लोगों को पुरस्कार मिलेंगे...वो क्यों वापस करेंगे ये निर्णय ही मूर्खतापूर्ण है."