भोपाल। उपचुनाव में 69.93% मतदान के बाद कांग्रेस को जीत की आस है तो बीजेपी को सरकार बनाने के लिए जीत की जरूरत है. हालांकि कांग्रेस सरकार बनाए इसके लिए जरूरी है कि वो सभी 28 सीटें जीते, जो अंदर ही अंदर कांग्रेस को भी पता है कि ये मुश्किल है. ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के साख के अलावा यह चुनाव शिवराज और ग्वालियर चंबल अंचल में पकड़ रखने वाले नरेंद्र सिंह तोमर के लिए भी काफी अहम है, उनके लिए बीजेपी का सरकार बनना बेहद जरूरी है, उतना ही जरूरी बीजेपी में उनके कद का बना रहना और यह तभी संभव है, जब बीजेपी की सरकार तो बने लेकिन सिंधिया के समर्थकों की हिस्सेदारी कम हो.
अब जब काउंटिंग का काउंटडाउन चालू हो गया है, तो हम जानते हैं आखिर परिणाम के बाद कैसे बनेगी सरकार और क्या हो सकते हैं सत्ता के समीकरण.
किस फॉर्मूले से हल होगा सत्ता का गणित
उपचुनाव के परिणाम आने के साथ ही सदन में विधायकों की संख्या 202 से बढ़कर 229 हो जाएगी. इसलिए बीजेपी को बहुमत के 115 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए इस उपचुनाव में मात्र आठ सीटों को जीतने की जरूरत है, जबकि कांग्रेस को पूरी 28 सीटें जीतनी होंगी.
कांग्रेस कैसे बना सकती है सरकार
- वर्तमान में कांग्रेस के पास 87 विधायक हैं, ऐसे में उसे 28 और विधायकों की जरूरत होगी, जिससे वो 115 के जादुई आंकड़े को छू लेगी और वह दोबारा प्रदेश की सत्ता में काबिज हो जाएगी.
- अगर कांग्रेस 28 सीटें नहीं जीत पाती तो उसे कम से कम 21 सीटें जीतने के साथ ही 4 निर्दलीय, 2 बीएसपी और 1 एसपी के विधायकों की जरूरत होगी. ऐसे में 21+4+3+2 की मदद से कांग्रेस 115 के जादुई आंगकड़े को छु लेगी.
बीजेपी के लिए कैसा होगा सरकार का समीकरण
- वर्तमान में बीजेपी के पास 107 विधायक हैं ऐसे में उसे उपचुनाव में मात्र 8 सीटें जीतनी की जरूरत होगी, जिसके जीतने पर वह वह सरकार बना लेगी. जो 115 के आंकड़े को छूते हैं.
- अगर बीजेपी 8 से एक कम सीट भी जीतती है तो कांग्रेस के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ हो जाएगा. वहीं बीजेपी को सरकार बचाने के लिए निर्दलीय या सपा-बसपा का मुंह ताकना पड़ सकता है.
- बीजेपी एक सीट जीतकर भी बना सकती है सरकार. अगर बीजेपी एक सीट जीतती है तो उसकी संख्या हो जाएगी 108. ऐसे में बसपा के 2, निर्दलीय 4, सपा एक को मिलाकर उसके आसानी से 115 सीटें हो जाएंगी.
कैसी है अभी की विधानसभा
विधानसभा की कुल 230 सीटों में से वर्तमान में बीजेपी के 107 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के 87, चार निर्दलीय, दो बीएसपी और एक एसपी का विधायक है. बाकी 29 सीटें खाली हैं, जिनमें से दमोह विधानसभा को छोड़कर 28 सीटों पर उपचुनाव संपन्न हुए हैं.
क्या है कांग्रेस का 28 सीट के जीत का दावा
मध्यप्रदेश की 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में राजनीतिक विश्लेषण के चलते दोनों दल अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों 28-28 सीटें हासिल करने जा रही है. कांग्रेस का दावा है कि, हमारे दावे को समझने के लिए 2018 के विधानसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डालें, तो ये तथ्य सामने आएंगे. जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, उनमें से 27 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था. इनमें से ज्यादातर सीटें कांग्रेस लंबे समय से जीतती आ रही है. इन सीटों पर कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले लगभग चार लाख 99 हजार मत ज्यादा मिले थे. जो इन सीटों पर हुए कुल मतदान के मत प्रतिशत का लगभग 14 फीसदी था. यानि इन सभी सीटों पर बीजेपी पहले से ही भारी मतों से पीछे थी.
बीजेपी का दावा परिणाम पक्ष में
बीजेपी का मानना है कि कांग्रेस मुगालते में हैं. 2018 का चुनाव अलग था, यह 2020 का चुनाव है. कांग्रेस ने मतदाता के मतदान का सम्मान नहीं किया था. इसलिए उनके विधायक दल छोड़ कर चले गए. बीजेपी का कहना है कि, '15 महीने की सरकार में कमलनाथ ने ऐसे ऐसे पाप किए, जिनके लिए क्षमा नहीं हैं. इस कारण उपचुनाव में जनता ने बीजेपी का साथ दिया है और काउंटिंग के अंत तक ये साफ हो जाएगा की जनता फिर से शिवराज की सरकार चाहती है.
2018 के मुकाबले घट गया मतदान
उपचुनाव के 28 सीटों की बात करें तो साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार यहां मतदान का प्रतिशत घट गया है. 2018 में इन सीटों पर औसत मतदान 72.92 प्रतिशत था. जबकि 2020 में घटकर इस उपचुनाव में 68.46 प्रतिशत हो गया है. यानी 2018 के मुकाबले 2020 में 4.46 फीसदी वोट कम पड़े हैं.
पूर्व विधायकों को फिर विधायक बनना जरूरी
कांग्रेस से भाजपा में गए 25 पूर्व विधायकों के सामने फिर से विधायक बनने के रास्ते में सबसे बड़ी चुनौती खुद को मिले वोटों के अंतर को पाटना था, जो उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में भाजपा उम्मीदवारों से अधिक मिले थे. इस मामले में सबसे ज्यादा चुनौती उन पूर्व विधायकों के सामने थी, जो 2000 से कम मतों से जीते थे. इनमें मंत्री हरदीप सिंह डंग की जीत सबसे छोटी थी और वह 350 मतों से जीते थे. उसके बाद मांधाता के नारायण पटेल 1236 और नेपानगर की सुमित्रा देवी 1256 मतों से जीती थीं. अब देखना होगा की जनता ने क्या फैसलो किया है.
2018 में किसे मिली थी कितनी सीट
2018 में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मिलकर प्रदेश में कांग्रेस का 15 साल पुराना वनवास खत्म किया था, जिसके बाद कांग्रेस की सीटें 58 से 114 जबकि भाजपा 165 से लुढ़ककर 109 पर आ गई. हालांकि यह भी दिलचस्प है कि भाजपा का वोट प्रतिशत 41% जबकि कांग्रेस का 40.9% रहा. बसपा को दो जबकि अन्य को पांच सीटें मिली थी.