ETV Bharat / state

शौक के चलते राजा ने बनवाया था रामशहर किला, हाथी के दांतों से की गई है खास कलाकारी

जिला सोलन का रामशहर किला राजा राम चंद ने अपने शौक के चलते करवाया था. उन्हें कला और वास्तुकला का बहुत शौक था.

ramshehar fort
author img

By

Published : Nov 18, 2019, 2:37 PM IST

सोलन: हिमाचल के किले सीरिज में अब तक हम आपको बहुत सी ऐतिहासिक धरोहरों से रूबरू करवा चुके हैं जो अपने अंदर इतिहास को संजोए हुए है. आज हम आपको जिस ऐतिहासिक धरोहर के बारे में बताने जा रहे हैं वो है जिला सोलन का रामशहर किला जिसका निर्माण राजा राम चंद ने अपने शौक के चलते करवाया था.

दरअसल हंडूर रियासत के राजा विक्रम चंद जोकि साल1477 से 1492 तक गद्दी पर रहे, तब नालागढ़ की बुनियाद रखी गई और नालागढ़ को रियासत की राजधानी बनाया गया. राजा विक्रम चंद की मृत्यु के बाद राजा केदार चंद, राजा जय चंद और फिर राजा नारायण चंद गद्दी पर बैठे. राजा नारायण चंद के देहांत के बाद उनके बेटे राजा राम चंद को गद्दी दी गई.

well in fort
किले में मौजूद कुंए

राजा राम चंद को कला और वास्तुकला (तामीरत) का बहुत शौक था, इसलिए उन्होंने रामगढ़ के मशहूर किले का निर्माण (तामीर) करवाया था. राजा राम चंद के देहांत के बाद राजा संसार चंद ने गद्दी संभाली. साल 1675 को संसार चंद के बेटे राजा धर्म चंद ने सत्ता की कमान संभाली. इसके बाद 1742 में सिरमौर रियासत की लड़ाई भी हुई जिसमें राजा धर्म चंद के भाई की युद्ध में मौत हो गई. राजा धर्म चंद के बाद भी कई राजाओं ने यहां राज पाठ संभाला. साल 1842 को बसंत पंचमी के दिन राजा राम सरण को गद्दी पर बैठाया गया.

रामशहर किला

राजा राम सरन ने रामशहर में 1 जोड़ को तालाब बनवाया जिसमें रिवालसर झील की तरह पांच टीले पानी में तैरते थे, इस तालाब के साथ ही सखड़ी देवी माता का मंदिर है जोकि राजा ईश्वरी सिंह द्वारा स्थापित करवाया गया था. माता को हंडूर के लोग सती माता के नाम से पूजते हैं. माता के मंदिर के बिल्कुल साथ बना ये तालाब आज भी मौजूद है और इसके पानी से नहाने मात्र ही चर्म रोग जैसी बीमारियां भी खत्म हो जाती है, लेकिन हिमाचल सरकार और नालागढ़ प्रशासन की लापरवाही के चलते आज ये तालाब अपनी पहचान खो चुका है.

jail in fort
किले में मौजूद जेल

रामशहर किला नालागढ़ से 10 मील की दूरी पर स्थित है. इस शहर में किसी समय बहुत रौनक हुआ करती थी और 300 के करीब दुकानें हुआ करती थीं. किले में एक दरवाजा बनाया गया है जिसका नाम नालागढ़ गेट है और यहां खड़े होकर नालागढ़ का पूरा नजारा देखा जा सकता है. किले में आज भी पुरानी कैदियों की जेल मौजूद है. साथ ही किले में भंडार ग्रह के लिये राजा द्वारा पांच कुऐं भी बनवाये गये थे जिसमें राजा अपना राशन और अन्य सामग्री रखते थे. किले में रानियों के लिये स्नान ग्रह भी बनवाये गये थे. साथ ही किले के मुख्य द्वार के दरवाजे पर हाथी दांतों से की गई कलाकारी आज भी देखी जा सकती है.

ये भी पढ़ें - अद्भुत हिमाचल: गद्दी समुदाय की अनूठी परंपरा, लिखित समझौते के बाद नहीं टल सकती शादी

सोलन: हिमाचल के किले सीरिज में अब तक हम आपको बहुत सी ऐतिहासिक धरोहरों से रूबरू करवा चुके हैं जो अपने अंदर इतिहास को संजोए हुए है. आज हम आपको जिस ऐतिहासिक धरोहर के बारे में बताने जा रहे हैं वो है जिला सोलन का रामशहर किला जिसका निर्माण राजा राम चंद ने अपने शौक के चलते करवाया था.

दरअसल हंडूर रियासत के राजा विक्रम चंद जोकि साल1477 से 1492 तक गद्दी पर रहे, तब नालागढ़ की बुनियाद रखी गई और नालागढ़ को रियासत की राजधानी बनाया गया. राजा विक्रम चंद की मृत्यु के बाद राजा केदार चंद, राजा जय चंद और फिर राजा नारायण चंद गद्दी पर बैठे. राजा नारायण चंद के देहांत के बाद उनके बेटे राजा राम चंद को गद्दी दी गई.

well in fort
किले में मौजूद कुंए

राजा राम चंद को कला और वास्तुकला (तामीरत) का बहुत शौक था, इसलिए उन्होंने रामगढ़ के मशहूर किले का निर्माण (तामीर) करवाया था. राजा राम चंद के देहांत के बाद राजा संसार चंद ने गद्दी संभाली. साल 1675 को संसार चंद के बेटे राजा धर्म चंद ने सत्ता की कमान संभाली. इसके बाद 1742 में सिरमौर रियासत की लड़ाई भी हुई जिसमें राजा धर्म चंद के भाई की युद्ध में मौत हो गई. राजा धर्म चंद के बाद भी कई राजाओं ने यहां राज पाठ संभाला. साल 1842 को बसंत पंचमी के दिन राजा राम सरण को गद्दी पर बैठाया गया.

रामशहर किला

राजा राम सरन ने रामशहर में 1 जोड़ को तालाब बनवाया जिसमें रिवालसर झील की तरह पांच टीले पानी में तैरते थे, इस तालाब के साथ ही सखड़ी देवी माता का मंदिर है जोकि राजा ईश्वरी सिंह द्वारा स्थापित करवाया गया था. माता को हंडूर के लोग सती माता के नाम से पूजते हैं. माता के मंदिर के बिल्कुल साथ बना ये तालाब आज भी मौजूद है और इसके पानी से नहाने मात्र ही चर्म रोग जैसी बीमारियां भी खत्म हो जाती है, लेकिन हिमाचल सरकार और नालागढ़ प्रशासन की लापरवाही के चलते आज ये तालाब अपनी पहचान खो चुका है.

jail in fort
किले में मौजूद जेल

रामशहर किला नालागढ़ से 10 मील की दूरी पर स्थित है. इस शहर में किसी समय बहुत रौनक हुआ करती थी और 300 के करीब दुकानें हुआ करती थीं. किले में एक दरवाजा बनाया गया है जिसका नाम नालागढ़ गेट है और यहां खड़े होकर नालागढ़ का पूरा नजारा देखा जा सकता है. किले में आज भी पुरानी कैदियों की जेल मौजूद है. साथ ही किले में भंडार ग्रह के लिये राजा द्वारा पांच कुऐं भी बनवाये गये थे जिसमें राजा अपना राशन और अन्य सामग्री रखते थे. किले में रानियों के लिये स्नान ग्रह भी बनवाये गये थे. साथ ही किले के मुख्य द्वार के दरवाजे पर हाथी दांतों से की गई कलाकारी आज भी देखी जा सकती है.

ये भी पढ़ें - अद्भुत हिमाचल: गद्दी समुदाय की अनूठी परंपरा, लिखित समझौते के बाद नहीं टल सकती शादी

Intro:हंडूर रियासत के राजा विक्रम चंद जोकि सावंत 1477 से सावंत 1492 तक गद्दी पर रहे तब नालागढ़ की बुनियाद रखी गई और नालागढ़ को रियासत की राजधानी बनाया गया। सावंत 1578 के बाद राजा रामचंद द्वारा ही रामगढ़ का मशहूर किला तामीर करवाया गया था।
Body:राजा विक्रम चंद की मृत्यु के बाद सावंत 1492 में राजा केदार चंद को गद्दी पर बैठाया गया उस समय दिल्ली में हुमायू बादशाह की हकूमत थी उसके बाद सावंत 1504 में उनकी मृत्यु हो गई उनके बाद राजा जै चंद के बाद सावंत1578 को राजा नारायण चंद जोकि उस समय नाबालिक थे उस समय नाबालिक राजा नारायण चंद के साथ नूरपुर के राजा नें अपनी बेटी का रिशत किया जोकि बाद में रानी नें यह रिशत न मंजूर कर दिया फिर राजा नूरपूर नें यह रिशत बिलासपूर में कर दिया राजा बिलासपूर नें राजा नूरपूर के कहनें पर नालागढ़ पर चढाई कर दी लेकिन बाद में सूल्ह हो गई ओर रत्तगढ़ का किला राजा बिलासपूर को दे दिया गया उसके बाद सावंत 1578 को राजा नारायण चंद का देहांत हो गया उसके बाद गद्दी उनके पुत्र राजा राम चंद को दी गई राजा राम चंद को तामीरत का बडा शोंक था ओर इसके द्वारा ही रामगढ़ का मशहूर किला तामीर करवाया गया था ओर शहर को भी आबाद किया गया जिसका नाम बाद में राजा साहब के नाम पर रामशहर पडा, गर्मियों के मौसम में राजा रामशहर किले में रिहाईश रखते थे।
किले की खासियत:- रामशहर किला नालागढ़ से 10 मील की दूरी पर स्थित है, राजा राम चंद नें इसे आबाद किया ओर नाम पर इसका नाम रखा इस शहर में किसी समय बहुत रोनक हुआ करती थी ओर 300 के करीब दुकानें हुआ करती थी तथा उ दा मकान भी थे ओर किला रामगढ़ समुद्र की सतह से 3167 मीटर की बुलंदी पर स्थित है, इस किले में एक दरवाजा बनाया गया है जिसका नाम नालागढ़ गेट के नाम से जाना जाता है जहां खडे होकर पूरा नालागढ़ देखा जा सकता है, किले में आज भी पुरानी कैदियों की जेल मौजूद है ओर साथ ही किले में भंडार ग्रह के लिये राजा द्वारा पांच कुऐं भी बनवाये गये थे जिसमें राजा अपना राशन व अन्य सामग्री रखते थे, किले में रानियों के लिये स्नान ग्रह भी बनावाये गये थे ओर साथ किले के मु य द्वार के दरवाजे पर आज भी हाथी दांतों से की गई कलाकारी देखी जा सकती हैै।
राजा राम चंद का देहांत:- राजा राम चंद का सावंत 1624 में देहांत हो गया उसके बाद राजा संसार चंद नें गद्दी को संभाला, राजा संसार चंद के आठ साहिबजादे थे जिनके नाम धर्म चंद, लाल चंद, पृथ्वी चंद, नानक चंद, हरि चंद, नहर चंद, बदन चंद ओर खुशहाल चंद थे। सावंत 1675 को संसार चंद के पुत्र राजा धर्म चंद को गद्दी पर बैठाया गया,
रिहासत को बचानें के लिये लडे गये युद्ध:- राजा धर्म चंद के समय रिहासत सिरमौर की लडाई सावंत 1742 में हुई इसमें राजा धर्म चंद के जो भाई युद्ध में शामिल हुये उनकी युद्ध में मृत्युु हो गई, राजा धर्म चंद के बाद 1758 में राजा हि मत सिंह को गद्दी पर बैठाया गया उस दौरान सावंत 1761 में पठानों नें रोपड़ पर हलमा कर दिया जिसमें राजा हि मत सिंह नें बहादुरी से पठानों का सामना किया परंतु राजा को युद्ध में तीर लगनें के कारण वह वीर गती को प्राप्त हो गये, उसके बाद राजा भुप चंद सावंत 1761 से 1812 तक सियासत में रहे उसके बाद राजा मान चंद 1812 में गद्दी पर बैठे जोकि संस्कृत के विद्धान थे जाकि ज्यादा समय पाठ- पूजा में ही व्यतीत करते थे जिसका फायदा उठाकर राजा भुप चंद के दुसरे बेटे नें दरबारियों के साथ मिलकर छूरे से उनपर वार कर दिया जिस कारण उनकी मौत हो गई। उसके बाद सावंत 1842 को बसंत पंचमी के दिन राजा राम सरण को गद्दी पर बैठाया गया। अपनी हकूमत

के दौरान राजा नें रिहासत को बहुत बढावा दिया, पूर्व में मतयाणा तक सिरमौर में अजमेेर गढ़ तक जोकि यमूना किनारे पर स्थित है साथ ही सपाटू का किला भी इनकी निगरानी में था, सावंत 1848 में करीब 20,000 की फौज इक्कठी करके कांगडा, नाहन, चंबा तथा कुछ अन्य राजाऔं की तरफ से गुल्लरवाला पर हमला किया गया तथा दुसरी तरफ से कुछ अन्य राजाऔं द्वारा खुशहाल सिंह, सरदार धर्म सिंह, दरवारा सिंह अकाली व अन्य राजाऔं द्वारा जिनकी फौज 35,000 थी में जंग हुई, इस जंग में सिक्खों की हार हुई तथा इस जंग में चार सिक्ख राजा शहिद हो गये। सावंत 1852 में राजा संसार चंद कांगडा वाले की मद्द से किला सगड़ोह, किला फतेहपुर, किला रत्न पुर ओर किला बहादुरगढ़ पर कब्जा किया गया। राजा रामसरण नें बहुत सी रिहासतों को कहलूर का हिस्सा फतेह करके रिहासत नालागढ़ में मिला लिया, नालागढ़ की बढ़ती ताकत देखकर राजा बिलासपुर नें गौरखों की मद्द से राजा नालागढ़ ओर कटौच राजा कांगड़ा द्वारा छीनें हुये इलाके राजा कहलूर को वापिस लौटा दिये, गौरखों नें धीरे- धीरे दरिया जमूना ओर सतलुज के आस- पास की छोटी- छोटी रिहासतों को जीत कर इनपर अपना कब्जा जमा लिया, गौरखों नें पहाडी रिहासतों पर सावंत 1813 से सावंत 1815 तक राज किया, गौरखे लोगों से घी, मक्खन व दहीं छीन लिया करते थे ओर साथ ही लगान भी वसूल किया करते थे,
अग्रेंज सरकार को दावत:- सावंत 1862 में राजा साहब नें अग्रेंज सरकार के गर्वनर जनरल से मुलाकात की ईजाज्त मांगी, सावंत 1864 में करनल अखतर लौनी जब लाहौर से लुधियाना वापिस पहुंचे तो राजा साहब से उनकी मुलाकात हुई वहीं राजा नें गौरखों के जुल्म की कहानी करनल को सुनाई ओर मद्दी करनें की प्रार्थना की उसके बाद वापिस आनें पर राजा नें लड़ाई की तैयारी की ओर तींन माह बाद जनरल अखतर लोनी भी अपनी सेना के साथ उनके साथ युद्ध में गये, सबसे पहले जनरल नें नालागढ़ की घेरा बंदी की ओर गौरखों की फौज जो किले की हिफाजत कर रही थी जिनके सात दिंन तक लड़ाई करनें के पश््चात 5 अक्तुबर सावंत 1814 को किला नालागढ़ फतेह किया गया ओर राजा साहब कि हवाले किया गया।
लड़ाई रामगढ़ की:- नालागढ़ फतेह करनें के बाद अग्रेंजी फौज मोजा पन्नर के रास्ते रिवालसर पहुंची ओर किला रामगढ़ की तरफ गई जोकि गौरखों का सबसे बड़ा ओर मजबूत मोर्चा था, अग्रेंजी फौजों नें मोजा नहर के पास मोर्चा बंदी की, अग्रेंजी फौज नें इस जगह मोर्चा लगाकर तोपें स्थापीत कर दी ओर किला रामगढ़ पर तापों से गोलाबारी करते रहे, अमर सिंह किला मलोन से तीन हजार गौरखा फौज के साथ किला रामगढ़ बचानें के लिये पहुंचे जिनके पास देसी तोपें थी, अग्रेंजी फोज पहाडी के निचले हिस्से में थी ओर गौरखों की उपरी हिस्सों में थी इसलिये अग्रेंजी फोजों की गोला बारी का असर दुशमन फोज पर ज्यादा नहीं हो पा रहा था, इस लड़ाई के दौरान दिनांक 26 नव बर 1814 को ले टीनेंट जार्ज टा स विलियमज़ मारे गये जिनकी कब्र आज भी रामगढ़ में स्थित हैै, जनरल लोनी अखतर नें दुशमनों को धोखा देनें के लिये किला मलोन की तरफ बढ़े, गौरखें जनरल की चाल को न समझ सके ओर किला रामगढ़ से धार- धार मलोन की ओर जानें लगे, इस तरह गौरखों की फोज का कुछ हिस्सा किले से निकल गया, जनरल ओर राजा साहब नें विचार किया कि इस जगह से किला जीतना मुश्किल है इसलिये तोपों को किसी तरह धार पहुंचाया गया ओर दुसरी तरफ गौरखों नें भी खुब आग बरसाई लेकिंन अब किस्मत बदल चुकि थी अग्रेंजो द्वारा किले पर फायॅर करनें से बाहरी दरवाजे टुट चुके थे, गौरखों नें दरवाजा खोलकर सफेद चादर हिलाकर सुल्ह की इच्छा जाहिर की, इस तरह दिनंाक 11 फरवरी सावंन 1815 को रामगढ़ का किला फतेह हो गया।
राजा रामसरन की रिहासत की वापसी:- राजा राम सरन नें हि मत ओर बहादुरी दिखाकर अग्रेंजों से अपनी रिहासत का सारा हिस्सा मांगा, अग्रेंजों नें उन्हें जीता हुआ ईलाका देनें की पेशकश की पर राजा साहब नें अपनी जागीर नालागढ़ कबूल की, दिनांक 20 अक्तु बर 1815 को राजा साहब अग्रेंजों को पांच हजार रूपये कर देते थे इस दौरान अग्रेंजों नें बिलासपुर का किला भी राजा को वापिस कर दिया जिसपर 60 साल हकूमत के बाद वकरात पाई इसके बाद इनके बेटे विजय सिंह नें 1848 से 1857 तक राज किया, राजा विजय सिंह की मृत्यु के बाद कोई जायज हकदार न होनें के कारण अग्रेंजी सरकार के अधींन यह रिहासत हो गई। राजा अगड़ सिंह नें 1860 में वजीर का काम संभाला जोकि अपनें पिता के समय से करते आ रहे थे, राजा अगड़ सिंह नें 16 साल तक राज किया जिसके बाद 1876 में इनकी मृत्यु हो गई, मृत्यु के पश््चात तमाम रिहासत को बर्खास्त कर दिया गया ओर तमाम कैदियों को रिहा कर दिया गया, रिहासत का वजीर गुलाम सिंह ओर जोगिन्द्र सिंह को दौ हजार साठ रूपये सालाना पेशंन लगा दी गई उनकी माता के गुजारे का भी बंदोबस्त कर दिया गया इसके बाद पुरानें मुलाजमों की एक कमेटी बनाई गई जिसनें तेरह साल तक सही तरिके से कार्य किया परंतु 1893 में यह कमेटी तोडऩी पड़ी क्योंकि वह सही तरिके से कार्य नहीं कर रहे थे, उसके बाद 1895 में भगवान सिंह ओर फतेह सिंह को वजीर बनाया गया, कुछ समय बाद इनको बदल कर जोगिन्द्र सिंह ओर हरि सिंह को यह काम सोंपा गया, इसके बाद एक ओर कमेटी बनाई गई जिसका सदर बाबू सिंह को बनाया गया, इसके बाद इन्द्र सिंह ओर हरि सिंह को बनाया गया।
सन् 1911 में ईशरी सिंह स्र्वग सिधार गये:- सन् 1911 में ईशरी सिंह की मौत के बाद उनके छोटे भाई जोगिन्द्र सिंह को गद्दी पर बैठाया गया, सावंन 1916 में पहाड़ की जनता बागी हो गई क्योंकि वह कर लेनें के खिलाफ थे, सावंन 1919 में कानूनी बंदोबस्त शुरू किया गया। राजा जोगिन्द्र सिंह 1947 तक ही राज कर सके क्योंकि 15 अगस्त 1947 को भारत देश आजाद हो गया ओर नालागढ़ की रियासत को पटियाला एड् इस्ट पंजाब यूनियनमें मिला लिया गया पीपसो में जोगिन्द्र सिंह के पुत्र राजा सुरेन्द्र सिंह वित्त मंत्री थे, 1956 में पीपसो को पंजाब में मिला लिया गया। 1966 में पंजाब का विभाजन करके हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया, नालागढ़, ऊना तथा कांगडा को हिमाचल प्रदेश में मिलाया गया। राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र विजेन्द्र सिंह हिमाचल सरकार में स्वास्थय मंत्री पद पर रहे, 1995 में नालागढ़ विधान सभा से विजेन्द्र सिंह विद्यायक के रूप में प्रतीनिधित्व कर रहे है ।
Conclusion:राजा राम सरन नें रामशहर में 1 जोड़ को तलाब बनवाया जिसमें रिवालसर झील की तरह पांच टीले पानी में तैरते थे, इस तलाब के साथ ही सखड़ी देवी माता का मंदिर है जोकि राजा ईश्वरी सिंह द्वारा स्थापित करवाया गया था माता को हंडूर के लोग सती माता के नाम से पूजते हैं यहां पर जेठ महीने के पहले शुक्रवार को मेला भी लगता है सखड़ी देवि का एक मंदिर बिलासपुर में भी स्थित है माता के मंदिर के बिल्कुल साथी यह तलाब आज भी मौजूद है और इस तालाब के पानी से नहाने मत्र ही चर्म रोग जैसी बीमारियां भी खत्म हो जाती है मगर हिमाचल सरकार और नालागढ़ प्रशासन की लापरवाही के चलते और लोगों द्वारा तलाब को प्रदूषित करने के कारण आज तालाब पूरी तरह से अपनी पहचान खो चुका है इस बारे में जब हमने मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि कई वर्ष पहले तलाब के नजदीक सरकारी स्कूल का निर्माण करवाया गया था उस दौरान तलाब को लोगों द्वारा दूषित करने के चलते तलाब में तैरते पांच टीले देखते ही देखते अदृश्य हो गए उनका मानना है कि अगर प्रशासन इस तालाब को दोबारा साफ करवाती है तो शायद यह टीले दोबारा से तैरते हुए लोगों को दिख सकेंगे
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.