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अदानी पावर लिमिटेड: 280 करोड़ का अप-फ्रंट मनी मामला, आज HC में सुनवाई - जयराम सरकार

अदानी पावर लिमिटेड को 280 करोड़ अप-फ्रंट मनी लौटने से इनकार के बाद और ब्रेकल कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज न होना जयराम सरकार के गले का फांस बना हुआ है. आज मामले में शिमला हाईकोर्ट में होगी सुनवाई.

फाइल फोटो
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Published : Jul 11, 2019, 8:50 AM IST

शिमला: एक तरफ अदानी की 280 करोड़ रुपये की मांग दूसरी ओर ब्रेकल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का पेच जयराम सरकार के गले की फांस बना हुआ है. सरकार से एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी मिलने के नौ महीने बाद भी विजीलेंस विभाग ने एफआईआर दर्ज नहीं की है.

वहीं, प्रदेश सरकार ने अदानी पावर लिमिटेड को 280 करोड़ अप-फ्रंट मनी लौटने से इनकार कर के बाद मामला प्रदेश हाईकोर्ट में हैं. मामले की सुनवाई गुरुवार को प्रदेश हाईकोर्ट में होगी. विजीलेंस विभाग ने सरकार को एक प्रश्नावली भेज कर जवाब मांगा था, जिससे एफआईआर दर्ज करने का काम लटका है.

इससे पहले पूर्व की वीरभद्र सरकार ने भी मामले में एफआइआर दर्ज करवाने का काम लटकाया था. जयराम सरकार ने सिंतबर 2018 में विजीलेंस को इस मामले में नियमित एफआइआर दर्ज करने की इजाजत दी थी, लेकिन विजीलेंस ने एफआइआर दर्ज करने के बजाय सरकार से और प्रश्नों के जवाब मांग लिए, जिससे विजीलेंस विभाग भी सावालों के घेरे में आ गया है.

ब्रेकल कॉरपोरेशन एनवी ने छह हजार करोड़ की परियोजना को हासिल करने के लिए दिए टेंडर में कहा था कि कंपनी 12 फरवरी 2005 को बनी थी, लेकिन बाद में जांच में सामने आया था कि कंपनी असल में 13 फरवरी 2006 को बनी थी. इसके अलावा ब्रेकल ने दावा किया था कि मैसर्स एसएनसी-लावालिन की उनके साथ तीस फीसदी की भागीदारी है, लेकिन कंपनी ने जांच में ऐसी किसी भी भागीदारी से इंकार कर दिया था.
ब्रेकल ने टेंडर दस्तावेजों में कहा था कि मैसर्स स्टैंडर्ड बैंक की उनके साथ 45 फीसदी की हिस्सेदारी है, लेकिन विजीलेंस की 2007-08 में की गई प्रारंभिक जांच में स्टैंडर्ड बैंक ने इस तरह की भागीदारी से इंकार कर ब्रेकल कंपनी के दावे को झूठा करार दिया था.

दिलचस्प तौर पर ब्रेकल ने इस परियोजना का आवंटन हो जाने के बाद 21 मई 2008 को सरकर को दिए जवाब में माना था कि उसने 49 फीसदी हिस्सेदारी मैसर्स अदानी पावर को हस्तातंरित करने की सहमति दी है. ये आवंटन की शर्तों और प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट के नियमों के खिलाफ था.

परियोजना के लिए अप-फ्रंट मनी व जुर्माने के तौर पर 280 करोड़ रुपये अदानी पावर के खाते से जमा हुआ था. अब अदानी पावर कंपनी पैसे को वापस मांग रहा है जबकि टेंडर की शर्तों के मुताबिक ये पैसा जब्त हो चुका है.जांच में ब्रेकल कंपनी का अस्तित्व नीदरलैंड में होने का दावा भी संदेहास्पद था. वहां का पता पोस्ट बॉक्स नंबर के आधार पर दिया गया था. यही नहीं आयकर विभाग की ओर से 23 मई 2008 को सरकार को मिली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि ये कागजी कंपनी है. विजीलेंस विभाग ने इस आवंटन में मचाई गई धांधलियों में धारा 420 के तहत मामला दर्ज कर पूरी जांच करने की सलाह दी थी.

विजीलेंस के तत्कालीन आईजी सीताराम मरड़ी ने 26 फरवरी 2019 को तत्कालीन गृह सचिव को चिट्ठी लिख कर इस मामले में नियमित एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी थी. इस बीच 7 अक्तूबर 2009 को बोली में दूसरे नंबर पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की याचिका पर प्रदेया हाईकोर्ट की जस्टिस दीपक गुपता और जस्टिस वीके आहुजा की खंडपीठ ने इस आवंटन को रद्द कर दिया था.

हाईकोर्ट के फैसले को ब्रेकल व रिलायंस कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस पर सरकार ने विजीलेंस को सलाह दी कि जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामले में नियमित एफआईआर दर्ज न करें. वीरभद्र सिंह सरकार ने 2015 में इस परियोजना को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को आवंटित करने व अदानी पावर को अप फ्रंट मनी वापस करने का फैसला लिया था.

ब्रेकल ने 2014 में ही अपनी याचिका सुप्रीम कोर्ट से वापस ले ली थी व रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने 2016 में अपनी याचिका वापस ली थी. इसके बाद विजीलेंस ने 12 सितंबर 2016 और 31 मई 2017 को सरकार को चिट्ठियां लिख कर ब्रेकल के खिलाफ नियमित एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी, लेकिन ये मंजूरी नहीं दी गई.

सितंबर 2018 में जब जयराम सरकार ने नियमित एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी दे दी तो विजीलेंस विभाग ने नई प्रश्नावली भेज दी. ये प्रश्नावली पहले भी तो भेजी जा सकती थी इस बावत प्रधान सचिव विजीलेंस सजय कुंडू ने कहा कि विजीलेंस की ओर से प्रश्नावली आई है. विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर इस मसले पर चर्चा की जाएगी.

शिमला: एक तरफ अदानी की 280 करोड़ रुपये की मांग दूसरी ओर ब्रेकल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का पेच जयराम सरकार के गले की फांस बना हुआ है. सरकार से एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी मिलने के नौ महीने बाद भी विजीलेंस विभाग ने एफआईआर दर्ज नहीं की है.

वहीं, प्रदेश सरकार ने अदानी पावर लिमिटेड को 280 करोड़ अप-फ्रंट मनी लौटने से इनकार कर के बाद मामला प्रदेश हाईकोर्ट में हैं. मामले की सुनवाई गुरुवार को प्रदेश हाईकोर्ट में होगी. विजीलेंस विभाग ने सरकार को एक प्रश्नावली भेज कर जवाब मांगा था, जिससे एफआईआर दर्ज करने का काम लटका है.

इससे पहले पूर्व की वीरभद्र सरकार ने भी मामले में एफआइआर दर्ज करवाने का काम लटकाया था. जयराम सरकार ने सिंतबर 2018 में विजीलेंस को इस मामले में नियमित एफआइआर दर्ज करने की इजाजत दी थी, लेकिन विजीलेंस ने एफआइआर दर्ज करने के बजाय सरकार से और प्रश्नों के जवाब मांग लिए, जिससे विजीलेंस विभाग भी सावालों के घेरे में आ गया है.

ब्रेकल कॉरपोरेशन एनवी ने छह हजार करोड़ की परियोजना को हासिल करने के लिए दिए टेंडर में कहा था कि कंपनी 12 फरवरी 2005 को बनी थी, लेकिन बाद में जांच में सामने आया था कि कंपनी असल में 13 फरवरी 2006 को बनी थी. इसके अलावा ब्रेकल ने दावा किया था कि मैसर्स एसएनसी-लावालिन की उनके साथ तीस फीसदी की भागीदारी है, लेकिन कंपनी ने जांच में ऐसी किसी भी भागीदारी से इंकार कर दिया था.
ब्रेकल ने टेंडर दस्तावेजों में कहा था कि मैसर्स स्टैंडर्ड बैंक की उनके साथ 45 फीसदी की हिस्सेदारी है, लेकिन विजीलेंस की 2007-08 में की गई प्रारंभिक जांच में स्टैंडर्ड बैंक ने इस तरह की भागीदारी से इंकार कर ब्रेकल कंपनी के दावे को झूठा करार दिया था.

दिलचस्प तौर पर ब्रेकल ने इस परियोजना का आवंटन हो जाने के बाद 21 मई 2008 को सरकर को दिए जवाब में माना था कि उसने 49 फीसदी हिस्सेदारी मैसर्स अदानी पावर को हस्तातंरित करने की सहमति दी है. ये आवंटन की शर्तों और प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट के नियमों के खिलाफ था.

परियोजना के लिए अप-फ्रंट मनी व जुर्माने के तौर पर 280 करोड़ रुपये अदानी पावर के खाते से जमा हुआ था. अब अदानी पावर कंपनी पैसे को वापस मांग रहा है जबकि टेंडर की शर्तों के मुताबिक ये पैसा जब्त हो चुका है.जांच में ब्रेकल कंपनी का अस्तित्व नीदरलैंड में होने का दावा भी संदेहास्पद था. वहां का पता पोस्ट बॉक्स नंबर के आधार पर दिया गया था. यही नहीं आयकर विभाग की ओर से 23 मई 2008 को सरकार को मिली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि ये कागजी कंपनी है. विजीलेंस विभाग ने इस आवंटन में मचाई गई धांधलियों में धारा 420 के तहत मामला दर्ज कर पूरी जांच करने की सलाह दी थी.

विजीलेंस के तत्कालीन आईजी सीताराम मरड़ी ने 26 फरवरी 2019 को तत्कालीन गृह सचिव को चिट्ठी लिख कर इस मामले में नियमित एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी थी. इस बीच 7 अक्तूबर 2009 को बोली में दूसरे नंबर पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की याचिका पर प्रदेया हाईकोर्ट की जस्टिस दीपक गुपता और जस्टिस वीके आहुजा की खंडपीठ ने इस आवंटन को रद्द कर दिया था.

हाईकोर्ट के फैसले को ब्रेकल व रिलायंस कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस पर सरकार ने विजीलेंस को सलाह दी कि जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामले में नियमित एफआईआर दर्ज न करें. वीरभद्र सिंह सरकार ने 2015 में इस परियोजना को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को आवंटित करने व अदानी पावर को अप फ्रंट मनी वापस करने का फैसला लिया था.

ब्रेकल ने 2014 में ही अपनी याचिका सुप्रीम कोर्ट से वापस ले ली थी व रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने 2016 में अपनी याचिका वापस ली थी. इसके बाद विजीलेंस ने 12 सितंबर 2016 और 31 मई 2017 को सरकार को चिट्ठियां लिख कर ब्रेकल के खिलाफ नियमित एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी, लेकिन ये मंजूरी नहीं दी गई.

सितंबर 2018 में जब जयराम सरकार ने नियमित एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी दे दी तो विजीलेंस विभाग ने नई प्रश्नावली भेज दी. ये प्रश्नावली पहले भी तो भेजी जा सकती थी इस बावत प्रधान सचिव विजीलेंस सजय कुंडू ने कहा कि विजीलेंस की ओर से प्रश्नावली आई है. विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर इस मसले पर चर्चा की जाएगी.

Intro:विजीलेंस विभाग ने सरकार को एक प्रश्नावली भेज कर उनके जवाब मांगकर एफआइआर दर्ज करने काम लटका दिया है। इससे पहले पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार में भी इस मामले में एफआइआर दर्ज करने का काम लटकाता जा रहा है। लेकिन जयराम सरकार ने सिंतबर 2018 में विजीलेंस को इस मामले नियमित एफआइआर दर्ज करने की इजाजत दे दी। इसके बाद विजीलेंस ने एफआइआर दर्ज करने के बजाय सरकार से और प्रश्नों के जवाब मांग लिए है। इससे विजीलेंस विभाग सवालों में आ गया है।
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ब्रेकल कारपोरेशन एनवी ने छह हजार करोड़ की परियोजना को हासिल करने के लिए दी निविदा कहा था कंपनी 12 फरवरी 2005 को बनी थी लेकिन बाद में जांच मे ंसामने आया था कि यह कंपनी असल में 13 फरवरी 2006 को बनी थी। इसके अलावा ब्रेकल ने दावा किया था कि मैसर्स एसएनसी-लावालिन की उनके साथ तीस फीसद की भागीदारी है लेकिन उक्त कंपनी ने जांच में इस
इस तरह की भागीदारी से इंकार कर दिया था। ब्रेकल ने निविदा दस्तावेजों में कहा था कि मैसर्स स्टैंर्ड बैंक की उनके साथ 45 फीसद की हिस्सेदारी हैं, लेकिन विजीलेंस की 2007-08 में की गई प्रारंभिक जांच में स्टैंडर्ड बैंक ने इस तरह की भागीदारी से इंकार कर दिया था व ब्रेकल के इस दावे को झूठा करार दिया था ।
दिलचस्प तौर पर ब्रेकल ने इस परियोजना का आवंटन् हो जाने के बाद 21 मई 2008 को सरकर को दिए जवाब में माना था कि उसने 49 फीसद हिस्सेदारी मैसर्स अदाणी पावर को हस्तातंरित करने की सहमति दी है। यह आवंटन की शर्तों और प्री इंम्लीमेंटेशन एग्रीमेंट के अपनियमों के खिलाफ था। याद रहे इस परियोजना के लिए अप फ्रंट मनी व जुर्माने के तौर पर 280 करोड़ रुपया अदाणी पावर के खाते से जमा हुआ था। व अब अदाणी पावर इस पैसे को वापस मांग रहा है। जबकि निविदा शर्तों के मुताबिक जब्त हो चुका है।
जांच में ब्रेकल कंपनी का अस्तित्व नीदरलैंड में होने का दावा भी संदेहास्पद था व वहां का पता पोस्टबॉक्स नंबर के आधार पर दिया गया थ।
यही नहीं आयकर विभाग की ओर से 23 मई 2008 को सरकार को मिली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि यह कागजी कंपनी है। विजीलेंस विभाग ने इस आवंटन में मचाई गई धांधलियों में धारा 420 के तहत मामला दर्ज कर पूरी जांच करने की सलाह दी थी।
विजीलेंस के तत्कालीन आइजी सीताराम मरड़ी ने 26 फरवरी 2019 को तत्कालीन गृह सचिव को चिटठी लिख कर इस मामले में नियमित एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी थी।
इस बीच 7 अक्तूबर 2009 को बोली में दूसरे नंबर पर रिलायंस इंफ्र्रास्ट्रक्चर की याचिका पर प्रदेया हाईकोर्ट की जस्टिस दीपक गुपता और जस्टिस वीके आहुजा की खंडपीठ ने इस आवंटन को रदद कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले को ब्रेंकल व रिलायंस दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर सरकार ने विजीलेंस को सलाह दी कि जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है वह नियमित एफआइआर दर्ज न करे।
Conclusion:वीरभद्र सिंह सरकार ने 2015 में इस परियोजना का रिलायंस इंफा्रस्ट्रक्चर को आवंटित करने व अदाणी पावर क ो अप फ्रंट मनी वापस करने का फैसला ले लिया। ब्रेकल ने 2014 में ही अपनी याचिका सुप्रीम कोर्ट से वापस ले ली थी व रिलायंस इंफ्रांस्ट्रकर ने 2016 में अपनी याचिका वापस ले ली। इसके बाद विजीलेंस ने 12 सितंबर 2016 और 31 मई 2017 को सरकार को चिटिठयां लिख कर ब्रेकल के खिलाफ नियमित एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी। लेकिन ये मंजूरी नहीं दी गई। अब सितंबर 2018 में जब जयराम सरकार ने नियमित एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी दे दी तो विजीलेंस विभाग ने नई प्रश्नावली भेज दी है। यह प्रश्नावली पहले भी तो भेजी जा सकती थी इस बावत प्रधान सचिव विजीलेंस सजय कुंडू ने कहा कि विजीलेंस की ओर से प्रश्नावली आई है। विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर इस मसले पर गौर किया जाएगा।
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