पौराणिक पांडुलिपियों का होगा डिजिटाइजेशन, भावी पीढ़ियों के लिए अकादमी का अहम फैसला
इन पांडुलिपियों को सहेज कर इनको भविष्य के लिए सरंक्षित करने के लिए पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन भी अकादमी करने जा रही है. इस कार्य के लिए सरकार से बजट मिल चुका है.
पौराणिक पांडुलिपियों
शिमलाः प्रदेश में प्राचीन काल की पौराणिक हस्तलिखित पांडुलिपियों का भंडार है. इन पांडुलिपियों को संरक्षित करने का जिम्मा हिमाचल संस्कृति एवं भाषा अकादमी उठा रही है. अकादमी के पुस्तकालय में प्रदेश भर से संरक्षित की गई पांडुलिपियों का बहुमूल्य भंडार है. इन पांडुलिपियों को सहेज कर इनको भविष्य के लिए सरंक्षित करने के लिए पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन भी अकादमी करने जा रही है. इस कार्य के लिए सरकार से बजट मिल चुका है. अकादमी के पास पांडुलिपियों के बहुमूल्य भंडार की बात की जाए तो उसमें ज्यादातर लिपियां धार्मिक, साहित्य,ज्योतिष, आयुर्वेद, इतिहास और धर्मग्रंथ शामिल हैं.स्पेशल रिपोर्ट
बता दें कि सैकड़ों साल पहले जब पुस्तकें प्रकाशित करने के संसाधन कम थे तो लोग हाथों से लिखा करते थे और यह ग्रन्थ उस समय की प्रचलित लिपियों में लिखे जाते थे, जिन्हें खोज कर अब विभाग उनका संरक्षण कर रहा है. ये सभी पांडुलिपियां हस्तलिखित हैं और कई नष्ट होने की कगार पर भी हैं. ऐसे में विभाग का यह प्रयास है कि इनको डिजिटाइज कर इन्हें भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके. इन पांडुलिपियों में जो अकादमी के पुस्तकालय में संरक्षित कर रखी गई है, उसमें कांगड़ा में 600 साल पुराना कराड़ा सूत्र भी है जो भोटी लिपि में लिखा गया है और आर्युवेद से संबंधित है.
अकादमी ने जिन पांडुलिपियों को संरक्षित किया है, उसमें मुनि मेघ बिलास द्वारा रचित, हनुमान नाटक जो प्रदेश की एक मात्र किताब है, गृह प्रवेश पूजन की विधि, वास्तु शास्त्र, अथ शिव शस्त्रम नामावली जिसमें भगवान शिव के 1008 नाम शामिल है. इसके साथ ही टांकरी लिपि में काग भाषा का 100 मीटर का स्क्रॉल, शौली मंदिर का इतिहास, कुर्सीनामा, सांचा सब संरक्षित किया गया है.
अकादमी के पास लाहौल स्पीति की स्वर्णाक्षरों में लिखी एक पांडुलिपि भी है. ये ग्रन्थ पाउची लिपि में लिखे गए है. भाषा कला एवं संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ. कर्म सिंह का कहना है कि हिमाचल में पांडुलिपि का भंडार है. यहां पुराण काल से लेकर ऋषि मुनि काल तक लेखन की परंपरा रही है और उसी का भंडार पांडुलिपि के रूप में मौजूद है, जिसको अब संरक्षण के लिए विभाग की उन्हें डिजिटल करने की योजना है. अकादमी प्रदेश की सभी पांडुलिपियों को डिजिटल करेगा और इसकी एक लाइब्रेरी तैयार करेगा.
शिमलाः प्रदेश में प्राचीन काल की पौराणिक हस्तलिखित पांडुलिपियों का भंडार है. इन पांडुलिपियों को संरक्षित करने का जिम्मा हिमाचल संस्कृति एवं भाषा अकादमी उठा रही है. अकादमी के पुस्तकालय में प्रदेश भर से संरक्षित की गई पांडुलिपियों का बहुमूल्य भंडार है. इन पांडुलिपियों को सहेज कर इनको भविष्य के लिए सरंक्षित करने के लिए पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन भी अकादमी करने जा रही है. इस कार्य के लिए सरकार से बजट मिल चुका है. अकादमी के पास पांडुलिपियों के बहुमूल्य भंडार की बात की जाए तो उसमें ज्यादातर लिपियां धार्मिक, साहित्य,ज्योतिष, आयुर्वेद, इतिहास और धर्मग्रंथ शामिल हैं.स्पेशल रिपोर्ट
बता दें कि सैकड़ों साल पहले जब पुस्तकें प्रकाशित करने के संसाधन कम थे तो लोग हाथों से लिखा करते थे और यह ग्रन्थ उस समय की प्रचलित लिपियों में लिखे जाते थे, जिन्हें खोज कर अब विभाग उनका संरक्षण कर रहा है. ये सभी पांडुलिपियां हस्तलिखित हैं और कई नष्ट होने की कगार पर भी हैं. ऐसे में विभाग का यह प्रयास है कि इनको डिजिटाइज कर इन्हें भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके. इन पांडुलिपियों में जो अकादमी के पुस्तकालय में संरक्षित कर रखी गई है, उसमें कांगड़ा में 600 साल पुराना कराड़ा सूत्र भी है जो भोटी लिपि में लिखा गया है और आर्युवेद से संबंधित है.
अकादमी ने जिन पांडुलिपियों को संरक्षित किया है, उसमें मुनि मेघ बिलास द्वारा रचित, हनुमान नाटक जो प्रदेश की एक मात्र किताब है, गृह प्रवेश पूजन की विधि, वास्तु शास्त्र, अथ शिव शस्त्रम नामावली जिसमें भगवान शिव के 1008 नाम शामिल है. इसके साथ ही टांकरी लिपि में काग भाषा का 100 मीटर का स्क्रॉल, शौली मंदिर का इतिहास, कुर्सीनामा, सांचा सब संरक्षित किया गया है.
अकादमी के पास लाहौल स्पीति की स्वर्णाक्षरों में लिखी एक पांडुलिपि भी है. ये ग्रन्थ पाउची लिपि में लिखे गए है. भाषा कला एवं संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ. कर्म सिंह का कहना है कि हिमाचल में पांडुलिपि का भंडार है. यहां पुराण काल से लेकर ऋषि मुनि काल तक लेखन की परंपरा रही है और उसी का भंडार पांडुलिपि के रूप में मौजूद है, जिसको अब संरक्षण के लिए विभाग की उन्हें डिजिटल करने की योजना है. अकादमी प्रदेश की सभी पांडुलिपियों को डिजिटल करेगा और इसकी एक लाइब्रेरी तैयार करेगा.
Intro:प्रदेश में प्राचीन काल की पौराणिक हस्तलिखित पांडुलिपियों का भंडार है। इन पांडुलिपियों को संरक्षित करने का जिम्मा हिमाचल संस्कृति एवं भाषा अकादमी उठा रही है। अकादमी के पुस्तकालय में प्रदेश भर से संरक्षित की गई पांडुलिपियों का बहुमूल्य भंडार है। इन्हें सहेज कर इनको भविष्य के लिए सरंक्षित करने के लिए पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन भी अकादमी करने जा रही है। इस कार्य के लिए बजट भी सरकार से अकादमी से मिल चुका है। अकादमी के पास पांडुलिपियों के बहुमूल्य भंडार की बात की जाए उसमें ज्यादातर लिपियां धार्मिक साहित्य,ज्योतिष, आर्युवेद, ज्योतिष, इतिहास और धर्मग्रंथ शामिल है।
Body:ये सभी पांडुलिपियां हस्तलिखित हैं ओर कई नष्ट होने की कगार पर भी है ऐसे में विभाग का यह प्रयास है कि इनको डिजिटाइज कर इन्हें भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके। इन पांडुलिपियों में जो अकादमी के पुस्तकालय में संरक्षित कर रखी गई है उसमें कांगड़ा में 600 साल पुराना कराड़ा सूत्र जो भोटी लिपि में लिखा गया है वह आर्युवेद से संबंधित है। इसके साथ ही पांगी में चस्क भटोरी पांडुलिपि भी अकादमी ने संरक्षित की है जिसका वजन 18 किलो तक है। अकादमी के पुस्तकालय में पाउची, पंडवानी, चंदवानी, भटाक्षरी चार प्रमुख लिपियों में लिखे ग्रन्थ ओर पुस्तकें शामिल है। अकादमी ने जिन पांडुलिपियों को संरक्षित किया है उसमें मेघ बिलास मुनि मेघ बिलास द्वारा रचित,हनुमान नाटक जो प्रदेश की एक मात्र किताब है,गृह प्रवेश पूजन की विधि, वास्तु शास्त्र, अथ शिव शस्त्रम नामावली जिसमें भगवान शिव के 1008 नाम शामिल है। इसके साथ ही टांकरी लिपि में काग भाषा का 100 मीटर का स्क्रॉल, शौली मंदिर का इतिहास, कुर्सीनामा, साँचा सब संरक्षित किया गया है।
Conclusion:अकादमी के पुस्तकालय में कहलूर,बिलासपुर-नालागढ़, सिरमौर रियासत के इतिहास जो कि उर्दु में है। इसके अलावा कटोच वंश का इतिहास, कनावर जिसमें किन्नौर का इतिहास, राजघराने, नूरपूर पठानिया, पठानिया वंश का इतिहास, बृजभाषा में रसविलास, सिरमौर सांचा, रामपुर के ढलोग से मंत्र-तंत्र,राजगढ़ से 300 साला पुराना इतिहास, 12 वी शताब्दी में राजस्थान के पंडित रानी के दहेज में आए थे वो भी संरक्षित कर रखे गए है।
अकादमी के पास लाहौल स्पीति की स्वर्णाक्षरों में लिखी एक पांडुलिपि भी है। ये ग्रन्थ पाउची लिपि में लिखे गए है। भाषा कला एवं संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ कर्म सिंह का कहना है कि हिमाचल में पांडुलिपि का भंडार है । यहां पर पुराण काल से लेकर ऋषि मुनि काल तक लेखन की परंपरा रही है ओर उसी का भंडार पांडुलिपि के रूप में मौजूद है, जिसको अब संरक्षण के लिए विभाग की उन्हें डिजिटल करने की योजना है। अकादमी प्रदेश की सभी पांडुलिपियों को डिजटल करेगा ओर इसकी एक लाइब्रेरी तैयार करेगा। बता दे कि सैकड़ों साल पहले जब पुस्तकें प्रकाशित करने के संसाधन कम थे तो लोग हाथों से लिखा करते थे और यह ग्रन्थ उस समय की प्रचलित लिपियों में लिखे जाते थे जिन्हें खोज कर अब विभाग उनका सरक्षंण कर रहा है। हालांकि अब इन भाषाओं के ज्ञाता कम है तो इन्हें पढ़ा जा सके इसके लिए अकादमी की ओर से गुरु शिष्य पंरपरा के तहत पांडुलिपियों को पढ़ने के लिए कोर्स करवाया जाता है जिससे कि नई युवा पीढ़ी भी इन पांडुलिपियों को पढ़ सके और इनका भविष्य के लिए भी संरक्षण हो सके।
बाइट: डॉ कर्म सिंह सचिव कला,संस्कृति एवं भाषा अकादमी
Body:ये सभी पांडुलिपियां हस्तलिखित हैं ओर कई नष्ट होने की कगार पर भी है ऐसे में विभाग का यह प्रयास है कि इनको डिजिटाइज कर इन्हें भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके। इन पांडुलिपियों में जो अकादमी के पुस्तकालय में संरक्षित कर रखी गई है उसमें कांगड़ा में 600 साल पुराना कराड़ा सूत्र जो भोटी लिपि में लिखा गया है वह आर्युवेद से संबंधित है। इसके साथ ही पांगी में चस्क भटोरी पांडुलिपि भी अकादमी ने संरक्षित की है जिसका वजन 18 किलो तक है। अकादमी के पुस्तकालय में पाउची, पंडवानी, चंदवानी, भटाक्षरी चार प्रमुख लिपियों में लिखे ग्रन्थ ओर पुस्तकें शामिल है। अकादमी ने जिन पांडुलिपियों को संरक्षित किया है उसमें मेघ बिलास मुनि मेघ बिलास द्वारा रचित,हनुमान नाटक जो प्रदेश की एक मात्र किताब है,गृह प्रवेश पूजन की विधि, वास्तु शास्त्र, अथ शिव शस्त्रम नामावली जिसमें भगवान शिव के 1008 नाम शामिल है। इसके साथ ही टांकरी लिपि में काग भाषा का 100 मीटर का स्क्रॉल, शौली मंदिर का इतिहास, कुर्सीनामा, साँचा सब संरक्षित किया गया है।
Conclusion:अकादमी के पुस्तकालय में कहलूर,बिलासपुर-नालागढ़, सिरमौर रियासत के इतिहास जो कि उर्दु में है। इसके अलावा कटोच वंश का इतिहास, कनावर जिसमें किन्नौर का इतिहास, राजघराने, नूरपूर पठानिया, पठानिया वंश का इतिहास, बृजभाषा में रसविलास, सिरमौर सांचा, रामपुर के ढलोग से मंत्र-तंत्र,राजगढ़ से 300 साला पुराना इतिहास, 12 वी शताब्दी में राजस्थान के पंडित रानी के दहेज में आए थे वो भी संरक्षित कर रखे गए है।
अकादमी के पास लाहौल स्पीति की स्वर्णाक्षरों में लिखी एक पांडुलिपि भी है। ये ग्रन्थ पाउची लिपि में लिखे गए है। भाषा कला एवं संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ कर्म सिंह का कहना है कि हिमाचल में पांडुलिपि का भंडार है । यहां पर पुराण काल से लेकर ऋषि मुनि काल तक लेखन की परंपरा रही है ओर उसी का भंडार पांडुलिपि के रूप में मौजूद है, जिसको अब संरक्षण के लिए विभाग की उन्हें डिजिटल करने की योजना है। अकादमी प्रदेश की सभी पांडुलिपियों को डिजटल करेगा ओर इसकी एक लाइब्रेरी तैयार करेगा। बता दे कि सैकड़ों साल पहले जब पुस्तकें प्रकाशित करने के संसाधन कम थे तो लोग हाथों से लिखा करते थे और यह ग्रन्थ उस समय की प्रचलित लिपियों में लिखे जाते थे जिन्हें खोज कर अब विभाग उनका सरक्षंण कर रहा है। हालांकि अब इन भाषाओं के ज्ञाता कम है तो इन्हें पढ़ा जा सके इसके लिए अकादमी की ओर से गुरु शिष्य पंरपरा के तहत पांडुलिपियों को पढ़ने के लिए कोर्स करवाया जाता है जिससे कि नई युवा पीढ़ी भी इन पांडुलिपियों को पढ़ सके और इनका भविष्य के लिए भी संरक्षण हो सके।
बाइट: डॉ कर्म सिंह सचिव कला,संस्कृति एवं भाषा अकादमी