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इटरनल विश्वविद्यालय बड़ू साहिब के डॉ. नीरज का बजा डंका, 30 लाख की परियोजना राशि से सम्मानित - विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग

केंद्र इटरनल विश्वविद्यालय बड़ू साहिब के सहायक प्राध्यापक डॉ. नीरज कुमार वशिष्ठ को गेहूं में पाउडर फफूंदी प्रतिरोधी जीन के हाई रेजोल्यूशन की परख विकास और पहचान के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और भारत सरकार ने शोध कार्य के लिए 30 लाख की परियोजना राशि से सम्मानित किया है.

Eternal University Baru Sahib
Neeraj Kumar awarded project of 30 Lakhs
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Published : Oct 9, 2020, 4:43 PM IST

राजगढ़: उत्तर भारत के एक मात्र कन्या विश्वविद्यालय और आध्यात्मिक एवं आधुनिक शिक्षा के केंद्र इटरनल विश्वविद्यालय बड़ू साहिब के सहायक प्राध्यापक डॉ. नीरज कुमार वशिष्ठ को गेहूं में पाउडर फफूंदी प्रतिरोधी जीन के हाई रेजोल्यूशन की परख विकास और पहचान के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और भारत सरकार ने शोध कार्य के लिए 30 लाख की परियोजना राशि से सम्मानित किया है.

इस परियोजना के तहत न्यू जनरेशन सीक्वेंसिंग (NGS) का उपयोग कर गेहूं में पाउडर फफूंदी प्रतिरोध जीन के लिए कोमपेटिव एलिला स्पेसिफिक पीसीआर (KASP) मार्करों को विकसित किया जाएगा और इन मार्करों का सत्यापन भी किया जाएगा.

इंटरनल विश्विद्यालय संत बाबा इकबाल सिंह व उप कुलपति डॉ. दैवेद्र सिंह के कुशल मार्गदर्शन में अनुसंधान और विकास की बेहतरी के लिए विज्ञान की नई तकनीकों मे नए आयाम स्थापित कर रहा है.

यह देखा गया है कि हिमाचल प्रदेश में गेहू उत्पादन का क्षेत्र बहुत कम है और देखा गया है कि गेहूं की अधिकांश किस्में पाउडर फफूंदी और कुछ अन्य रोगों के लिए अतिसंवेदनशील हैं. यही कारण है कि हिमाचल के अधिकतर किसान गेहूं नहीं उगाना चाहते हैं और अन्य राज्यों से गेहूं आयात करते हैं.

आत्म निर्भरता के लिए गेहूं के क्षेत्र और उत्पादन को बढ़ाने के लिए, रोग प्रतिरोध किस्मों के विकास के लिए भी आवश्यक है. पौधों की ब्रीडिंग के पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके प्रतिरोध किस्मों को विकसित किया जा सकता है, लेकिन ये विधियां समय लेने वाली और महंगी हैं. केएएसपी विधि प्रजनन कार्यक्रम की एक उन्नत विधि है, मल्टीप्लेक्स विधियों की तुलना में ये अधिक किफायती और कम समय लेती है. यह अध्ययन शोधकर्ताओं, पेथॉलोजिस्ट, प्रजनकों और छात्रों को फसल प्रजनन कार्यक्रम को गति देने में मदद करेगा.

राजगढ़: उत्तर भारत के एक मात्र कन्या विश्वविद्यालय और आध्यात्मिक एवं आधुनिक शिक्षा के केंद्र इटरनल विश्वविद्यालय बड़ू साहिब के सहायक प्राध्यापक डॉ. नीरज कुमार वशिष्ठ को गेहूं में पाउडर फफूंदी प्रतिरोधी जीन के हाई रेजोल्यूशन की परख विकास और पहचान के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और भारत सरकार ने शोध कार्य के लिए 30 लाख की परियोजना राशि से सम्मानित किया है.

इस परियोजना के तहत न्यू जनरेशन सीक्वेंसिंग (NGS) का उपयोग कर गेहूं में पाउडर फफूंदी प्रतिरोध जीन के लिए कोमपेटिव एलिला स्पेसिफिक पीसीआर (KASP) मार्करों को विकसित किया जाएगा और इन मार्करों का सत्यापन भी किया जाएगा.

इंटरनल विश्विद्यालय संत बाबा इकबाल सिंह व उप कुलपति डॉ. दैवेद्र सिंह के कुशल मार्गदर्शन में अनुसंधान और विकास की बेहतरी के लिए विज्ञान की नई तकनीकों मे नए आयाम स्थापित कर रहा है.

यह देखा गया है कि हिमाचल प्रदेश में गेहू उत्पादन का क्षेत्र बहुत कम है और देखा गया है कि गेहूं की अधिकांश किस्में पाउडर फफूंदी और कुछ अन्य रोगों के लिए अतिसंवेदनशील हैं. यही कारण है कि हिमाचल के अधिकतर किसान गेहूं नहीं उगाना चाहते हैं और अन्य राज्यों से गेहूं आयात करते हैं.

आत्म निर्भरता के लिए गेहूं के क्षेत्र और उत्पादन को बढ़ाने के लिए, रोग प्रतिरोध किस्मों के विकास के लिए भी आवश्यक है. पौधों की ब्रीडिंग के पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके प्रतिरोध किस्मों को विकसित किया जा सकता है, लेकिन ये विधियां समय लेने वाली और महंगी हैं. केएएसपी विधि प्रजनन कार्यक्रम की एक उन्नत विधि है, मल्टीप्लेक्स विधियों की तुलना में ये अधिक किफायती और कम समय लेती है. यह अध्ययन शोधकर्ताओं, पेथॉलोजिस्ट, प्रजनकों और छात्रों को फसल प्रजनन कार्यक्रम को गति देने में मदद करेगा.

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