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लॉकडाउन ने कर दिया बेबस, तो मछली मारकर जीविकोपार्जन करने को मजबूर ग्रामीण - लॉकडाउन और बेरोजगारी

बगहा में लॉकडाउन और बेरोजगारी की मार झेल रहे ग्रामीण ताल से मछली मारकर जीविकोपार्जन करने को मजबूर हैं. अधिकांश ग्रामीण ताल और उफनती नदियों में मछली मारकर परिवार का भरण पोषण करते दिख रहे हैं.

बिहार की खबर
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Published : Sep 16, 2020, 8:48 PM IST

बगहाः जिले में लॉकडाउन और बेरोजगारी की मार झेल रहे ग्रामीण ताल और उफनती नहरों में मछली मार कर जीविकोपार्जन करने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है कि ना तो यहां मजदूरी करने को मिल रहा है और ना ही ट्रेनें चल रही हैं. इसके चलते वो कहीं जा नहीं पा रहे, ताकि उन्हें काम मिल सके.

रोजगार के अभाव में मछली मारना बना सहारा
बता दें कि बगहा और रामनगर सहित दियारावर्ती इलाकों में मजदूरी और रोजगार की समस्या से दो चार हो रहे निचले तबके के लोग मछली मार कर जीविकोपार्जन करने को मजबूर हैं. लॉकडाउन की मार और बेरोजगारी से परेशान ग्रामीणों के सामने दो वक्त की रोटी को लेकर कई चुनौतियां सामने आ रही हैं. यही वजह है कि अधिकांश ग्रामीण ताल और उफनती नदियों में मछली मारकर परिवार का भरण पोषण करते दिख रहे हैं.

पेश है खास रिपोर्ट

लॉकडाउन में भी नहीं मिला रोजगार
दरअसल लॉकडाउन के दौरान आम व खास सभी परेशान हुए. ऐसे में मछुआरा वर्ग भी इससे खासा प्रभावित हुआ. मछुआरों का कहना है कि लॉकडाउन में मछली बेचने पर प्रतिबंध था. इसलिए भरण-पोषण का संकट खड़ा हो गया था. अब जब प्रतिबंध हटा है तो मछली मार 100 से 200 का जुगाड़ हो जा रहा है. जिससे भोजन पानी की समस्या दूर हुई है.

unemployment
मछली पकड़ते मछुआरे

बरसात में बंद है मजदूरी
मछली मारने के लिए सिर्फ मछुआरा वर्ग की ही भीड़ नहीं हो रही है. इसमें वैसे ग्रामीण भी शामिल हैं जिनको बरसात के समय मजदूरी का मौका नहीं मिल रहा है. इन ग्रामीणों का कहना है कि अभी रेलगाड़ियों का परिचालन भी नहीं हो रहा कि वे रोजगार की तलाश में अन्य नगरों का रुख करें. हालांकि वर्तमान हालात देखते हुए यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन समस्याओं से इतना जल्दी पार पाना मुमकिन नहीं लग रहा है.

बगहाः जिले में लॉकडाउन और बेरोजगारी की मार झेल रहे ग्रामीण ताल और उफनती नहरों में मछली मार कर जीविकोपार्जन करने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है कि ना तो यहां मजदूरी करने को मिल रहा है और ना ही ट्रेनें चल रही हैं. इसके चलते वो कहीं जा नहीं पा रहे, ताकि उन्हें काम मिल सके.

रोजगार के अभाव में मछली मारना बना सहारा
बता दें कि बगहा और रामनगर सहित दियारावर्ती इलाकों में मजदूरी और रोजगार की समस्या से दो चार हो रहे निचले तबके के लोग मछली मार कर जीविकोपार्जन करने को मजबूर हैं. लॉकडाउन की मार और बेरोजगारी से परेशान ग्रामीणों के सामने दो वक्त की रोटी को लेकर कई चुनौतियां सामने आ रही हैं. यही वजह है कि अधिकांश ग्रामीण ताल और उफनती नदियों में मछली मारकर परिवार का भरण पोषण करते दिख रहे हैं.

पेश है खास रिपोर्ट

लॉकडाउन में भी नहीं मिला रोजगार
दरअसल लॉकडाउन के दौरान आम व खास सभी परेशान हुए. ऐसे में मछुआरा वर्ग भी इससे खासा प्रभावित हुआ. मछुआरों का कहना है कि लॉकडाउन में मछली बेचने पर प्रतिबंध था. इसलिए भरण-पोषण का संकट खड़ा हो गया था. अब जब प्रतिबंध हटा है तो मछली मार 100 से 200 का जुगाड़ हो जा रहा है. जिससे भोजन पानी की समस्या दूर हुई है.

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मछली पकड़ते मछुआरे

बरसात में बंद है मजदूरी
मछली मारने के लिए सिर्फ मछुआरा वर्ग की ही भीड़ नहीं हो रही है. इसमें वैसे ग्रामीण भी शामिल हैं जिनको बरसात के समय मजदूरी का मौका नहीं मिल रहा है. इन ग्रामीणों का कहना है कि अभी रेलगाड़ियों का परिचालन भी नहीं हो रहा कि वे रोजगार की तलाश में अन्य नगरों का रुख करें. हालांकि वर्तमान हालात देखते हुए यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन समस्याओं से इतना जल्दी पार पाना मुमकिन नहीं लग रहा है.

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