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NABI के शोध के बाद अब बिहार में भी होगी काले गेहूं की खेती - farming

शोध में पाया गया कि काले गेहूं में मौजूद एंटी ऑक्ससीडेंट फायदेमंद होते हैं. साथ ही ये बड़े रोगों को जड़ से मिटाने में रामबाण साबित होगा.

काले गेहूं की खेती
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Published : May 17, 2019, 7:04 PM IST

पूर्णिया: पीले गेहूं और सफेद चावल के बारे में तो सबको पता है लेकिन क्या आप काले या नीले गेहूं के बारे में जानते हैं? सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगता है. मगर NABI (नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट) के एक शोध में काले गेहूं की कई खूबियां सामने आई हैं. इसको देखते हुए पूर्णिया में भी अब काले गेहूं की खेती की जाएगी.

शोध में पाया गया कि काले गेहूं में मौजूद एंटी ऑक्ससीडेंट फायदेमंद होते हैं. साथ ही ये बड़े रोगों को जड़ से मिटाने में रामबाण साबित होगा. इसका उपयोग दूसरी बीमारियों और महंगे मेडिसिन के खर्चों से भी थोड़ी राहत देगा. पूर्णिया, बिहार का ऐसा पहला जिला होगा जहां इसकी खेती की जाएगी. काले गेहूं की खेती के लिए वैज्ञानिकों ने पूर्णिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी बड़े लेवल पर खेती के संकेत दिए हैं.

पहली बार में सफल परीक्षण
काला गेहूं लोगों की डेली डायट में कितना फायदेमंद है इसके लिए सबसे पहले चूहे पर प्रयोग किया गया. इसके सफल परीक्षण और 'दाने एक, फायदे अनेक' गुणों को देखकर ही शहर के एक बड़े व्यवसायी ने इसके बीज मंगवाए. उसने NABI की मदद से 15 अक्टूबर 2018 को डगरुआ और जलालगढ़ प्रखंड के एक एकड़ खेत में वैज्ञानिक देखभाल से इसकी खेती की, जो सफल रही. इसमें 12 से 15 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हुआ. इसी के साथ काले गेहूं की खेती करने वाला पूर्णिया बिहार का पहला जिला बन गया.

NABI ने पूर्णिया में की प्रेस कॉन्फ्रेंस

क्या होता है 'काला गेहूं' ?
ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में NABI जलालगढ़ के अभिषेक प्रताप सिंह ने बताया कि काला गेहूं विकसित की गई गेहूं की एक प्रजाति है. गेहूं में पाया जाने वाला एंथोसायनिन की मात्रा ही है जो गेहूं के रंग को प्रभावित करती है. इसमें मौजूद एंटी ऑक्ससिडेंट मानव शरीर में पैदा होने वाले विकारों को पनपने से रोकता है. दुनिया भर में प्रयोग किये जाने वाले पीले गेहूं और उसके सफेद आटे में जहां एंथोसायनिन नामक तत्व बेहद सामान्य मात्रा में होता है. वहीं, काले गेहूं में ये तत्व करीब 28 गुना ज्यादा पाया जाता है.

देखने में सामान्य आटे जैसा
दिखने में काले गेहूं का ऊपरी हिस्सा काला मालूम होता है लेकिन इसका आटा पीले गेहूं जैसा ही सफेद रंग का होता है. वैज्ञानिकों का दावा है कि जहां पीला गेहूं और उसका सामान्य आटा मानव शरीर में पैदा होने वाले विकारों और बड़े रोगों से लड़ने में अक्षम है. वहीं काले गेहूं में मौजूद एंथोसायनिन एंटीऑक्सीडेंट खराब पोषण से मानव शरीर में पनपने वाले प्रदूषक तत्व क्रोनिक ऑक्सिडेटिव को पनपने नहीं देता.

इन रोगों से लड़ेगा काला गेहूं
आपको बता दें कि काला गेहूं मोटापा, हृदय रोग, शुगर, कैंसर, उम्र बढ़ने, निम्न रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा जमाव, ग्लूकोज स्तर, रक्तचाप, इंसुलिन जैसी बड़ी बीमारियों को दूर करने में मदद करता है.

पूर्णिया में शुरूआत
पूर्णिया में आयोजित NABI की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि इस साल के आखिरी महीने यानी नवम्बर-दिसम्बर तक पूर्णिया में बड़े लेवल पर काले गेहूं की खेती की जाएगी. साथ ही जल्द ही बाजारों में काला गेहूं और उससे बने प्रोडेक्ट नजर आने लगेंगे. प्रेस कॉन्फ्रेंस में नरम चावल की किस्म पर भी बात की गई. जिसे सामान्य पानी में 20 मिनट भिगोकर पकाया जा सकेगा.

पूर्णिया: पीले गेहूं और सफेद चावल के बारे में तो सबको पता है लेकिन क्या आप काले या नीले गेहूं के बारे में जानते हैं? सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगता है. मगर NABI (नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट) के एक शोध में काले गेहूं की कई खूबियां सामने आई हैं. इसको देखते हुए पूर्णिया में भी अब काले गेहूं की खेती की जाएगी.

शोध में पाया गया कि काले गेहूं में मौजूद एंटी ऑक्ससीडेंट फायदेमंद होते हैं. साथ ही ये बड़े रोगों को जड़ से मिटाने में रामबाण साबित होगा. इसका उपयोग दूसरी बीमारियों और महंगे मेडिसिन के खर्चों से भी थोड़ी राहत देगा. पूर्णिया, बिहार का ऐसा पहला जिला होगा जहां इसकी खेती की जाएगी. काले गेहूं की खेती के लिए वैज्ञानिकों ने पूर्णिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी बड़े लेवल पर खेती के संकेत दिए हैं.

पहली बार में सफल परीक्षण
काला गेहूं लोगों की डेली डायट में कितना फायदेमंद है इसके लिए सबसे पहले चूहे पर प्रयोग किया गया. इसके सफल परीक्षण और 'दाने एक, फायदे अनेक' गुणों को देखकर ही शहर के एक बड़े व्यवसायी ने इसके बीज मंगवाए. उसने NABI की मदद से 15 अक्टूबर 2018 को डगरुआ और जलालगढ़ प्रखंड के एक एकड़ खेत में वैज्ञानिक देखभाल से इसकी खेती की, जो सफल रही. इसमें 12 से 15 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हुआ. इसी के साथ काले गेहूं की खेती करने वाला पूर्णिया बिहार का पहला जिला बन गया.

NABI ने पूर्णिया में की प्रेस कॉन्फ्रेंस

क्या होता है 'काला गेहूं' ?
ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में NABI जलालगढ़ के अभिषेक प्रताप सिंह ने बताया कि काला गेहूं विकसित की गई गेहूं की एक प्रजाति है. गेहूं में पाया जाने वाला एंथोसायनिन की मात्रा ही है जो गेहूं के रंग को प्रभावित करती है. इसमें मौजूद एंटी ऑक्ससिडेंट मानव शरीर में पैदा होने वाले विकारों को पनपने से रोकता है. दुनिया भर में प्रयोग किये जाने वाले पीले गेहूं और उसके सफेद आटे में जहां एंथोसायनिन नामक तत्व बेहद सामान्य मात्रा में होता है. वहीं, काले गेहूं में ये तत्व करीब 28 गुना ज्यादा पाया जाता है.

देखने में सामान्य आटे जैसा
दिखने में काले गेहूं का ऊपरी हिस्सा काला मालूम होता है लेकिन इसका आटा पीले गेहूं जैसा ही सफेद रंग का होता है. वैज्ञानिकों का दावा है कि जहां पीला गेहूं और उसका सामान्य आटा मानव शरीर में पैदा होने वाले विकारों और बड़े रोगों से लड़ने में अक्षम है. वहीं काले गेहूं में मौजूद एंथोसायनिन एंटीऑक्सीडेंट खराब पोषण से मानव शरीर में पनपने वाले प्रदूषक तत्व क्रोनिक ऑक्सिडेटिव को पनपने नहीं देता.

इन रोगों से लड़ेगा काला गेहूं
आपको बता दें कि काला गेहूं मोटापा, हृदय रोग, शुगर, कैंसर, उम्र बढ़ने, निम्न रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा जमाव, ग्लूकोज स्तर, रक्तचाप, इंसुलिन जैसी बड़ी बीमारियों को दूर करने में मदद करता है.

पूर्णिया में शुरूआत
पूर्णिया में आयोजित NABI की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि इस साल के आखिरी महीने यानी नवम्बर-दिसम्बर तक पूर्णिया में बड़े लेवल पर काले गेहूं की खेती की जाएगी. साथ ही जल्द ही बाजारों में काला गेहूं और उससे बने प्रोडेक्ट नजर आने लगेंगे. प्रेस कॉन्फ्रेंस में नरम चावल की किस्म पर भी बात की गई. जिसे सामान्य पानी में 20 मिनट भिगोकर पकाया जा सकेगा.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया) exclusive interiew with depth content । पीले गेहूं और सफेद चावल के बारे में तो हम से हर किसी ने सुना है। मगर क्या कभी आपने काला या ब्लू गेहूं के आटें से बनी रोटी का सेवन किया है। सुनने में भले ही थोड़ा अटपटा सा लगे मगर बेहद जल्द आपके निवाले में काला चावल व ठंडे पानी में भी पक जाने वाला नरम चावल होगा। ऐसा NABI के अंतर्गत कराए गए शोध में सामने आया है। कृषि वैज्ञानिकों का दावा है। कि इसमें मौजूद एंटी ऑक्ससीडेंट फल से कहीं ज्यादा फायदेमंद होने के साथ ही जहां कई बडे रोगों को जड़ से मिटाने में रामबाण साबित होगा। वहीं इसका उपयोग दूसरे बीमारियों और महंगे मेडिसीन के पचड़े से भी राहत देगा।


Body:काले गेहूं के प्रयोग वाला पूर्णिया बिहार का ऐसा पहला जिला... दरअसल कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक काले गेहूं में मौजूद पोषक तत्व लोगों के लिए बतौर डेली डायट कितना फायदेमंद है। इसे लेकर वैज्ञानिकों की टीम ने एक चूहे पर इसका पहला प्रयोग किया। इसके सफल परीक्षण व 'दाने एक फायदे अनेक' गुणों को देखकर ही शहर के एक बड़े व्यवसाई ने इसके बीज मंगवाए। nabi के वैज्ञानिकों की मदद से बीते (15 oct- 15 nov) के बीच डगरुआ व जलालगढ़ प्रखंड के एक एकड़ खेत में वैज्ञानिक देखभाल के बीच की गई यह प्रायोगिक खेती सफल रही। जिसमें 12- 15 क्विंटल गेहूं का उत्पादन प्राप्त हुआ। इसी के साथ काले गेहूं की खेती करने वाला पूर्णिया बिहार का ऐसा पहला जिला बन गया। जानें क्या है काला गेहूं... इस बाबत ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में NABI, जलालगढ़ के अभिषेक प्रताप सिंह ने बताया कि दरअसल काला गेहूं विकसित की गई गेहूं की एक प्रजाति है। गेहूं में पाया जाने वाला एंथोसायनिन की मात्रा ही है। जो गेहूं के रंग को प्रभावित करने के साथ ही इसमें मौजूद एंटी ऑक्ससिडेंट मानव शरीर में पैदा होने वाले विकारों को पनपने से रोकता है। दुनिया भर में प्रयोग किये जाने वाले पीले गेहूं और उसके सफेद आटें में जहां एंथोसायनिन नामक तत्व बेहद सामान्य मात्रा में होता है। काले गेहूं में एंथोसायनिन सामान्य गेहूं यानी पारंपरिक आटें से 28 गुना अधिक है। लिहाज़ा इस तत्व की अधिकता जहां गेहूं के रंग को प्रभावित करती है। काले गेहूं का आटा पीले गेहूं के बनिस्पत मानव शरीर में पनपने वाले बीमारियों को पनपने की गुंजाईश ही नहीं छोड़ता। वहीं वैज्ञानिकों का दावा है कि इसके नियमित सेवन से दवाइयों के पचड़े से बचा जा सकेगा। सामान्य गेहूं से 28 गुना अधिक फायदेमंद.... वैसे दिखने में काले गेहूं का ऊपरी हिस्सा काला मालूम पड़ता है। इसका आटा पारंपरिक आटें की तरह सफेद रंग लिए ही होता है। मगर आप भी औरों की तरह इसके आटें के रंग पर जाकर धोखा मत खाइए। वैज्ञानिकों का दावा है कि जहां पीला गेहूं और उसका सामान्य आटा मानव शरीर में पैदा होने वाले विकारों व बड़े रोगों से लड़ने में अक्षम है। वहीं काले गेहूं में मौजूद 28 गुना अधिक एंथोसायनिन एंटीऑक्सीडेंट खराब पोषण से मानव शरीर में पनपने वाले प्रदूषक तत्व क्रोनिक ऑक्सिडेटिव को पनपने नहीं देता। इससे फ्री रेडिकल्स और सेल्युलर डिसग्युलेशन का स्तर उसी लेवल में होता है। स्वस्थ्य मानव शरीर को जितनी इसकी आवश्यकता है। फलों से भी ज्यादा फायदेमंद है काला गेहूं... हमारे रोजाना के डायट में जहां एक स्वस्थ्य मानव शरीर के लिए रंगीन फलों की पर्याप्त मात्रा और ऑक्सीडेंट के तनाव को रोकने के लिए रोजाना 500 ग्राम फलों के सेवन की बात मेडिकल साइंस व सर्जन करते हैं। वहीं फलों के सेवन से मधुमेह जैसे रोगों के पनपने के केसेज भी मेडिकल साइंस के सामने आई है। वहीं इससे इतर काले गेहूं नियमित सेवन हर मायनों में जहां स्वास्थ्य बर्धक है। वहीं छोटे-मोटे विकारों सहित बड़े रोगों का सर्वनाशक साबित होगा। इन रोगों का करेगा जड़ से सफाया.... वहीं काले गेहूं में मौजूद एंथोसायनिन एंटीऑक्सीडेंट ,आहार फाइबर ,लोहा ,प्रोटीन ,जिंक ,जस्ता और विटामिन का अनुशासित संयोजन जहां खराब पोषण के चलते मानव शरीर में पनपने वाले रोगों के खात्में का काम करता है। वहीं मोटापा ,हृदय रोग ,सुगर ,कैंसर ,उम्र बढ़ने ,निम्न रक्त कोलेस्ट्रॉल ,वसा जमाव ,ग्लूकोज स्तर ,रक्तचाप ,इंसुलिन सहिष्णुता जैसे बड़े बीमारियों को दूर करने में मदद करता है। बेहद जल्द किसानों के खेतों में दिखेगा काला गेहूं... हालांकि जिस मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट एंथोसायनिन काले गेहूं में मौजूद होता है। इस तत्व की उतनी ही मात्रा ब्लूबेरी ,ब्लैकबेरी व जामुन जैसे फलों में है। मगर सीजनल होने के साथ ही इसके महंगे प्रवृति को देखते हुए वैज्ञानिकों की एक टीम ने काले गेहूं से जुड़ा एक प्रयोग किया। लिहाजा इसकी सफलता के बाद बेहद जल्द जिले के कृषि पदाधिकारी सुरेंद्र प्रसाद इसे सब्सिडी के साथ किसानों के बीच ले जाने के लिए कृषि विभाग के निर्देशक के समक्ष पेशकश करने वाले हैं। वहीं इसके साथ ही बेहद जल्द दुकानों में कलरफुल ब्रेड ,बिस्किट व नूडल्स नजर आएंगे। अब ब्लैक एंड ब्लू चावल व नरम चावल के खेती की बारी..... वैज्ञानिकों व इस अनुसंधान क्षेत्र में सहयोग कर रहे सदस्यों ने प्रेस कान्फ्रेंस कर एक और बड़े संकेत दिए हैं। इसके मुताबिक इस साल के अंत तक ब्लू गेहूं की खेती कराई जाएगी। वहीं बेहद जल्द काला व ब्लू चावल के प्रयोग जिले में NABI करेगा। इसके साथ ही ऐसे नरम चावल की खेती पर भी बात चल रही है। जिसे ठंडे या सामान्य जल में 20 मिनट तक छोड़कर पकाया जा सकेगा। राष्ट्रीय कृषि जैव प्रौधोगिकी संस्थान (NABI) जलालगढ़ के अभिषेक प्रताप सिंह व सीमा साह ,महाराष्ट्र बीज निगम के आनंद सिंह ,भोला पासवान शास्त्री महाविद्यालय के वैज्ञानिक अनिल कुमार ,शहर के जाने -माने व्यवसायी विश्वनाथ अग्रवाल सहित जिले के व्यपारी जुट गए हैं।


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