बगहा: महर्षि वाल्मीकि भारत के दर्शन और इतिहास में एक बहुत ही चर्चित नाम हैं. बिहार के इकलौते वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बहुतायत संख्या में दिमकों का टीला देखने को मिलता है. इस टीलों का खास कनेक्शन महर्षि वाल्मीकि से है. डाकू रत्नाकर का महर्षि वाल्मीकि बनने के पीछे की दिलचस्प कहानी वीटीआर में मिलने वाले बांबी यानी दीमक के टीले से आखिर कैसे जुड़ी है.
VTR में दिमक टीले की कहानी : रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है. आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध होने से पूर्व महर्षि वाल्मीकि एक डाकू थे. इन्हें डाकू रत्नाकर के नाम से जाना जाता था जो अपने परिवार के पालन पोषण के लिए राहगीरों को लूटते थे. दरअसल इसके पीछे कई कहानियां सुनने में आती हैं. रत्नाकर नाम का एक डाकू लोगों पर हमला करके जबरन उनसे उनकी संपत्ति छीनने का काम करता था. ऐसा करते काफी समय हो गया, इसी बीच उस लुटेरे के जीवन में नारद मुनि से मिलन की जीवन बदलने वाली घटना आई.
पाप के कर्म को छोड़ राम नाम जपने की सलाल: इसी बीच एक बार नारद मुनि जंगल से गुजर रहे थे तभी डाकू रत्नाकर ने उनको बन्दी बना लिया. जिसके बाद नारद मुनि ने इस पाप के कर्म को छोड़ राम नाम जपने की सलाह दी. ग्रंथों के मुताबिक डाकू रत्नाकर की जीवन में इस घटना के बाद बहुत बड़ा बदलाव आया और वे तपस्या में लीन हो गए.
दीमक के घर कहलाए वाल्मीकि: रत्नाकर लंबे समय तक एक ही जगह बैठे राम नाम का जप करते रहे. ऐसे में उनके सारे शरीर पर दीमक का पहाड़ सा जम गया. चूंकि दीमक के घर को वाल्मीकि कहते हैं, इसलिए वे भी वाल्मीकि कहलाने लगे. भगवान राम नाम की कृपा से यही संसार के आदि कवि हुए, जिन्होंने वाल्मीकि रामायण नामक महाकाव्य की रचना की. इस प्रकार लगातार राम नाम के जप से वाल्मीकि डाकू से ब्रह्मर्षि हुए.
"दीमक और चींटियों को संस्कृत में वाल्मी कहा जाता है. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व जंगल से सटे नेपाल के चितवन में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है. महर्षि वाल्मीकि ने यहीं पर तपस्या कर समाधि ली थी. इस दौरान दिमकों ने उनके शरीर पर अपना घर बना लिया था. इसी वजह से डाकू रत्नाकर का नाम महर्षि वाल्मीकि पड़ा. जिन्होंने आगे चलकर रामायण की रचना की. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में आज भी बड़े पैमाने पर दिमकों का टीला राह चलते नजर आ जाता है. ये बांबी हमारे इको सिस्टम के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं." - डॉ समीर कुमार सिन्हा, ज्वाइंट डायरेक्टर सह चीफ इकोलॉजिस्ट, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया
लकड़ी को रीसायकल करने मदद करता है दीमक: बता दें कि दिमकों को एक कुशल आर्किटेक्ट के तौर पर जाना जाता है. इनके बनाए टीले सैकड़ों हजारों साल तक खड़े रहते हैं. दीमक प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों में महत्वपूर्ण हैं. खास तौर पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में क्योंकि वे पेड़ों से मृत लकड़ी को रीसायकल करने में मदद करते हैं. गायों की तरह दीमक भी लकड़ी से मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कार्बन छोड़ते हैं जो दो सबसे महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैसें हैं. लिहाजा जैव वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के साथ दीमक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेज़ी से योगदान दे सकते हैं.
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