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इन किशोरों के काम को देख के बड़े भी हुए मुरीद, जानें पूरी खबर - आवारा कुत्तों को भोजन

किसी भी काम को करने के लिए जुनून और ईमानदार पहल की जरूरत होती है. प्रदेश की राजधानी के पटना सिटी (Patna City of the state capital)स्थित चोरवा मंदिर इलाके का रौनक वैसे ही लड़कों में शामिल है, जिसकी पहल के बाद अब बड़े लोग भी जुड़ते जा रहे हैं. इस काम जुटे सभी दसवीं से बारहवीं तक के छात्र (10th to 12th class students) हैं और अलग-अलग स्कूलों में पढ़ते हैं.

स्ट्रीट डॉग्स को रात में जाकर खाना देने वाली किशोरों की टीम
स्ट्रीट डॉग्स को रात में जाकर खाना देने वाली किशोरों की टीम
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Published : Jul 29, 2022, 7:28 PM IST

Updated : Jul 30, 2022, 6:08 PM IST

पटना : प्रदेश की राजधानी के रहने वाले रौनक ने 2 साल पहले आवारा कुत्तों (स्ट्रीट डॉग्स) को लेकर एक पहल (initiative for stray dogs) की थी. रौनक ने यह काम पहले तो अपने एक दोस्त के साथ शुरू किया, लेकिन बाद में उसकी मित्र मंडली में और लोग भी जुड़ते चले गए. आज रौनक की मंडली में 13 फ्रेंड है. जो हफ्ते में 6 दिन रात में 9 बजे के बाद 12 बजे तक एक जगह को तय करते हैं. उसके बाद ये उस इलाके के स्ट्रीट डॉग्स को जाकर खाना (Feeding stray dogs) देते हैं और उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त करते हैं.


रौनक ने दो साल पहले की थी शुरुआत : रौनक बताते हैं कि उन्होंने करीब 2 साल पहले इस काम को शुरू किया था, तब कोरोना की आहट हो रही थी. तब मैंने सड़क पर एक कुत्ते को मरणासन्न हालत में देखा था. फिर मैंने सोचा कि इसके जैसे और कुत्तों के लिए भी कुछ किया जा सकता है. इस बात का जिक्र मैंने अपने फ्रेंड से किया तो वह मेरी बात से सहमत हुआ और मेरा साथ देने के लिए तैयार हो गया.
रौनक कहते हैं कि पहले हम लोगों ने दूध-रोटी खिलाना शुरू किया. शुरू में तीन-चार लोग ही साथ में थे, हमलोगों ने अपनी पॉकेट मनी को एकत्र किया और अपने काम में लग गए. हम लोगों ने इस बारे में दोस्तों को जानकारी दी, फिर दोस्त धीरे-धीरे मोटिवेट हुए.

देखें वीडियो.



घर वालों को था ऑब्जेक्शन : रौनक बताते हैं कि रात में घर से बाहर निकलने को लेकर घर वालों का ऑब्जेक्शन था. वे घर से बाहर निकलने को मना करते थे. घरवाले यह भी कहते थे कि इससे बेहतर है कि किसी इंसान को खिला दो. हम लोग रात 9:00 से 9:30 बजे रात के बीच घर से निकलते थे और 11:30 से 12:00 बजे तक अपना ये काम करते थे.



शुरू से ही डॉग लवर : रौनक के फ्रेंड आयुष बताते हैं कि हम लोग शुरू से ही डॉग लवर रहे हैं. यह काम करने में अच्छा भी लगता है. हम दूसरे लोगों से भी अपील कर रहे हैं कि वे भी अपने आसपास के इलाकों के स्ट्रीट डॉग्स की मदद करें.रौनक की फ्रेंड हर्षिता बताती है कि मेरे घर वालों को इस तरह का कोई टेंशन नहीं था. उनका कहना था कि अच्छा काम कर रही हो तो हम तुम्हें नहीं रोकेंगे. जहां तक सेफ्टी की बात है तो सब हमारे भाई ही हैं तो मैं इसके लिए भी आश्वस्त थी. रौनक की एक और फ्रेंड देवांशी कहती है - मुझे स्ट्रीट डॉग से थोड़ी दूरी पसंद है. मैं साथ में तो रहती थी लेकिन मैं वीडियो शूट करती थी.

ये भी पढ़ें :- पद्मावती का पशु प्रेम बना मिसाल, रोज 80 कुत्तों का भरती हैं पेट



कुत्तों के गले में रेडियम बेल्ट भी : ये सभी स्टूडेंट्स डॉग्स के लिए उनके गले में रेडियम बेल्ट भी लगाते हैं ताकि वह रात के वक्त किसी वाहन से दुर्घटना का शिकार न हो जाए. इनका कहना था कि इसके लिए वे खुद पैसे इकट्ठा करते हैं यहां से खरीदते हैं और दिल्ली से भी मंगाते हैं. हालांकि, उनकी यह भी शिकायत थी कि जब वे कुत्तों के गले में वे बेल्ट लगाते हैं तो स्थानीय लोग उसे निकाल भी लेते हैं. रौनक के फ्रेंड लक्ष्य कहते हैं कि बिहार में यह बेल्ट मिलता था, लेकिन उसकी कीमत ज्यादा होती थी. शुरू में हमने 60-70 पीस रेडियम बेल्ट मंगवाया था.

इन बच्चों का कहना है कि उनकी पहल से धीरे-धीरे और लोग भी जुड़ रहे हैं और अब किसी न किसी काम के लिए खुद ही डोनेशन दे देते हैं. कभी कोई भोजन के लिए पैसा देता है तो कभी कोई रेडियम बेल्ट मंगवाने के लिए पैसे दे देता है. इनका ये भी कहना है कि ये एक सामाजिक काम है, इसमें हर कोई आगे आए और साथ दें.

ये भी पढ़ें :- नालंदावासियों को आवारा कुत्तों से मिलेगी निजात, एनिमल कंट्रोल बोर्ड कराएगा नसबंदी

पटना : प्रदेश की राजधानी के रहने वाले रौनक ने 2 साल पहले आवारा कुत्तों (स्ट्रीट डॉग्स) को लेकर एक पहल (initiative for stray dogs) की थी. रौनक ने यह काम पहले तो अपने एक दोस्त के साथ शुरू किया, लेकिन बाद में उसकी मित्र मंडली में और लोग भी जुड़ते चले गए. आज रौनक की मंडली में 13 फ्रेंड है. जो हफ्ते में 6 दिन रात में 9 बजे के बाद 12 बजे तक एक जगह को तय करते हैं. उसके बाद ये उस इलाके के स्ट्रीट डॉग्स को जाकर खाना (Feeding stray dogs) देते हैं और उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त करते हैं.


रौनक ने दो साल पहले की थी शुरुआत : रौनक बताते हैं कि उन्होंने करीब 2 साल पहले इस काम को शुरू किया था, तब कोरोना की आहट हो रही थी. तब मैंने सड़क पर एक कुत्ते को मरणासन्न हालत में देखा था. फिर मैंने सोचा कि इसके जैसे और कुत्तों के लिए भी कुछ किया जा सकता है. इस बात का जिक्र मैंने अपने फ्रेंड से किया तो वह मेरी बात से सहमत हुआ और मेरा साथ देने के लिए तैयार हो गया.
रौनक कहते हैं कि पहले हम लोगों ने दूध-रोटी खिलाना शुरू किया. शुरू में तीन-चार लोग ही साथ में थे, हमलोगों ने अपनी पॉकेट मनी को एकत्र किया और अपने काम में लग गए. हम लोगों ने इस बारे में दोस्तों को जानकारी दी, फिर दोस्त धीरे-धीरे मोटिवेट हुए.

देखें वीडियो.



घर वालों को था ऑब्जेक्शन : रौनक बताते हैं कि रात में घर से बाहर निकलने को लेकर घर वालों का ऑब्जेक्शन था. वे घर से बाहर निकलने को मना करते थे. घरवाले यह भी कहते थे कि इससे बेहतर है कि किसी इंसान को खिला दो. हम लोग रात 9:00 से 9:30 बजे रात के बीच घर से निकलते थे और 11:30 से 12:00 बजे तक अपना ये काम करते थे.



शुरू से ही डॉग लवर : रौनक के फ्रेंड आयुष बताते हैं कि हम लोग शुरू से ही डॉग लवर रहे हैं. यह काम करने में अच्छा भी लगता है. हम दूसरे लोगों से भी अपील कर रहे हैं कि वे भी अपने आसपास के इलाकों के स्ट्रीट डॉग्स की मदद करें.रौनक की फ्रेंड हर्षिता बताती है कि मेरे घर वालों को इस तरह का कोई टेंशन नहीं था. उनका कहना था कि अच्छा काम कर रही हो तो हम तुम्हें नहीं रोकेंगे. जहां तक सेफ्टी की बात है तो सब हमारे भाई ही हैं तो मैं इसके लिए भी आश्वस्त थी. रौनक की एक और फ्रेंड देवांशी कहती है - मुझे स्ट्रीट डॉग से थोड़ी दूरी पसंद है. मैं साथ में तो रहती थी लेकिन मैं वीडियो शूट करती थी.

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कुत्तों के गले में रेडियम बेल्ट भी : ये सभी स्टूडेंट्स डॉग्स के लिए उनके गले में रेडियम बेल्ट भी लगाते हैं ताकि वह रात के वक्त किसी वाहन से दुर्घटना का शिकार न हो जाए. इनका कहना था कि इसके लिए वे खुद पैसे इकट्ठा करते हैं यहां से खरीदते हैं और दिल्ली से भी मंगाते हैं. हालांकि, उनकी यह भी शिकायत थी कि जब वे कुत्तों के गले में वे बेल्ट लगाते हैं तो स्थानीय लोग उसे निकाल भी लेते हैं. रौनक के फ्रेंड लक्ष्य कहते हैं कि बिहार में यह बेल्ट मिलता था, लेकिन उसकी कीमत ज्यादा होती थी. शुरू में हमने 60-70 पीस रेडियम बेल्ट मंगवाया था.

इन बच्चों का कहना है कि उनकी पहल से धीरे-धीरे और लोग भी जुड़ रहे हैं और अब किसी न किसी काम के लिए खुद ही डोनेशन दे देते हैं. कभी कोई भोजन के लिए पैसा देता है तो कभी कोई रेडियम बेल्ट मंगवाने के लिए पैसे दे देता है. इनका ये भी कहना है कि ये एक सामाजिक काम है, इसमें हर कोई आगे आए और साथ दें.

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Last Updated : Jul 30, 2022, 6:08 PM IST
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