पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू के खराब प्रदर्शन और हाल में नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार को फिसड्डी दिखाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने एक बार फिर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग (Demand to Give Special Status to Bihar) जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया है. हालांकि उनको बीजेपी का साथ नहीं मिल रहा है. इस वजह से कई तरह के कयास लगने लगे हैं. चर्चा तो यह भी होने लगी है कि जिस तरह आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू ने विशेष राज्य के मुद्दे पर एनडीए का साथ छोड़ा था, कहीं नीतीश भी उसी राह पर न चल निकलें.
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सियासी गलियारों में कयास लगने लगे हैं कि अगर केंद्र सरकार ने विशेष राज्य की मांग नहीं मानी तो 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार कोई बड़ा धमाका कर सकते हैं. जेडीयू के सांसद और मंत्री के तेवर भी तल्ख हैं. एक तरफ पार्टी के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी करेंगे. वहीं दूसरी तरफ सांसद दिनेश चंद्र यादव कहते हैं कि सीएम यदि एनडीए से अलग होने का फैसला लेते हैं तो पूरी पार्टी उनका साथ होगी.
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर बीजेपी से जेडीयू नाराज!
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा जब नीति आयोग ने बिहार को पिछड़ा बता दिया तो बिहार के विकास के लिए विशेष राज्य का दर्जा जरूरी है.
- जेडीयू की ओर से 'विशेष अभियान देश के प्रधान बिहार पर दें ध्यान' नाम से मुहिम चल रही है.
- जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी करेंगे.
- जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की अध्यक्षता में सांसद दिलेश्वर कामत के आवास पर सभी सांसदों ने बैठक की.
- मधेपुरा से जेडीयू सांसद दिनेश चंद्र यादव ने कहा कि अगर नीतीश कुमार एनडीए से अलग होने का फैसला लेते हैं तो पार्टी उनका साथ देगी.
बीजेपी से नीतीश की नाराजगी के कई और भी कारण!
- पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठुकरा दी.
- जेडीयू के 16 सांसद होने के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल में केवल एक मंत्री पद.
- बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बनी, एलजेपी को लेकर बीजेपी की भूमिका से नाराजगी.
- जातीय जनगणना की मांग भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नहीं मानी.
- जनसंख्या नियंत्रण, जातीय जनगणना और विशेष राज्य के दर्जे पर बीजेपी मंत्रियों और नेताओं की बयानबाजी.
- 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तालमेल को लेकर बीजेपी का रुख साफ नहीं.
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मौजूदा समय में देश के 11 राज्यों असम, नागालैंड, हिमाचल, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है. पहले जम्मू कश्मीर को भी स्पेशल स्टेटस का दर्जा मिला हुआ था।. वहीं, बिहार के अलावा आंध्र प्रदेश, गोवा, राजस्थान और उड़ीसा भी लगातार विशेष राज्य के दर्जे की मांग करता रहा है.
अब तक जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला है, वह इस प्रकार से है...
- नागालैंड-1969
- असम-1969
- जम्मू-कश्मीर- 1969 (अब राज्य नहीं रहा)
- हिमाचल प्रदेश-1971
- मणिपुर-1972
- मेघालय-1972
- त्रिपुरा-1972
- सिक्किम-1975
- अरुणाचल प्रदेश-1987
- मिजोरम-1987
- उत्तराखंड-2011
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असल में विशेष राज्य का दर्जा मिलने से केंद्रीय योजनाओं में राज्य का हिस्सा केवल 10 फीसदी रह जाता है. 90 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार ही देती है. स्पेशल स्टेटस का दर्जा नहीं मिलने से 70 फीसदी राशि केंद्र ऋण के रूप में देती है और 30 प्रतिशत सहायता के रूप में देती है. इसके अलावा उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, आयकर, बिक्री कर, कॉरपोरेट टैक्स जैसे केंद्रीय करों में भारी छूट मिल जाती है. इससे निवेश में भी मदद मिलती है. अभी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का जो प्रावधान बनाया गया है, उसमें दुर्गम क्षेत्र वाला पर्वतीय भू-भाग हो, राज्य का कोई भी सीमा अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगती हो, राज्य की प्रति व्यक्ति आय और गैर कर राजस्व कम हो, आधारभूत ढांचा पर्याप्त नहीं हो, जनजातीय संख्या की बहुलता हो अथवा जनसंख्या घनत्व बहुत कम हो.
इन सबके अलावा राज्य का पिछड़ापन और विकट भौगोलिक स्थितियां भी महत्वपूर्ण है. ऐसे में बिहार के लिए केंद्र की शर्तों को पूरा करना संभव नहीं है, लेकिन बिहार में एक बड़े हिस्से में हर साल बाढ़ से तबाही होती है. बड़ी संख्या में लोग पलायन करते हैं. इसी को लेकर आधार भी बनाया जा रहा है. नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले, इसके लिए पटना से लेकर दिल्ली तक आंदोलन करते रहे हैं. वैसे तो नीतीश कुमार 2007 से ही विशेष राज्य के दर्जे की मांग करते रहे हैं और चुनाव से पहले यह मांग हमेशा जोर भी पकड़ती रही है.
2014 लोकसभा चुनाव से पहले भी मुख्यमंत्री ने पटना में पहले अधिकार रैली की और फिर उसके बाद दिल्ली में भी अधिकार रैली की थी. सीएम ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान भी चलाया और एक करोड़ से अधिक हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी भेजा. हाल के कुछ वर्षों में विशेष राज्य के दर्जे की मांग कमजोर जरूर हुई थी. पिछले दिनों मंत्री बिजेंद्र यादव ने यहां तक कह दिया कि आखिर कब तक मांगते रहेंगे, विशेष मदद ही दे दे केंद्र. हालांकि तब नीतीश कुमार की जमकर खिंचाई हुई और जिस प्रकार से नीति आयोग एक के बाद एक बिहार को फिसड्डी अपनी रिपोर्ट में बता रहा है, उसके बाद नीतीश कुमार ने फिर से अपने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को जोर-शोर से उठाना शुरू किया है.
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जेडीयू प्रवक्ता अरविंद निषाद का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पुरानी मांग है, लेकिन चंद्रबाबू नायडू की तरह एनडीए से हम लोग अलग हो जाएंगे, ऐसी कोई बात नहीं है. एनडीए में हैं और एनडीए में ही बिहार के विकास के लिए मजबूती से मांग रख रहे हैं. केंद्र को बिहार सरकार की ओर से विशेष राज्य के मुद्दे पर पत्र भी भेजा गया है. सरकार में तो बीजेपी भी है.
"बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पुरानी मांग है, लेकिन चंद्रबाबू नायडू की तरह एनडीए से हम लोग अलग हो जाएंगे, ऐसी कोई बात नहीं है. एनडीए में हैं और एनडीए में ही बिहार के विकास के लिए मजबूती से मांग रख रहे हैं. केंद्र को बिहार सरकार की ओर से विशेष राज्य के मुद्दे पर पत्र भी भेजा गया है. सरकार में तो बीजेपी भी है"- अरविंद निषाद, प्रवक्ता, जेडीयू
वहीं जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा का भी कहना है कि बिहार विधानसभा से सभी दलों ने विशेष राज्य की मांग का समर्थन किया था. अब जिन लोगों ने स्टैंड बदला है, इस बारे में वही लोग बेहतर बताएंगे. हम लोग चरणबद्ध ढंग से काम करते रहे हैं और विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर भी चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ेंगे.
"बिहार विधानसभा से सभी दलों ने विशेष राज्य की मांग का समर्थन किया था. अब जिन लोगों ने स्टैंड बदला है, इस बारे में वही लोग बेहतर बताएंगे. हम लोग चरणबद्ध ढंग से काम करते रहे हैं और विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर भी चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ेंगे"- अभिषेक झा, प्रवक्ता, जेडीयू
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उधर, विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर अलग रुख अख्तियार करने पर बीजेपी प्रवक्ता संजय टाइगर का कहना है कि हम लोग सब चाहते हैं कि बिहार का विकास हो. हर पार्टी का अपना अलग-अलग तरीका है. हम लोगों ने शुरू में भी प्रयास किया था, लेकिन यूपीए सरकार ने नहीं माना. केंद्र सरकार की तरफ से अब विशेष मदद ही मिल रही है. जो पिछड़ा राज्य है उनको आगे बढ़ाने के लिए विशेष मदद मिलना ही चाहिए, लेकिन विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए और उसी से कोई राज विकसित हो जाए या संभव नहीं है. पहले भी कई राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला है, लेकिन विकसित हो गए हैं ऐसा भी नहीं है और जिन्हें नहीं मिला वे भी विकसित हो गए हैं.
"जो पिछड़ा राज्य है, उनको आगे बढ़ाने के लिए विशेष मदद मिलना ही चाहिए लेकिन विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए और उसी से कोई राज विकसित हो जाए या संभव नहीं है. हमने देखा है कि पहले भी कई राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला है, लेकिन विकसित हो गए हैं ऐसा भी नहीं है और जिन्हें नहीं मिला वे भी विकसित हुए हैं"- संजय टाइगर, प्रवक्ता, बिहार बीजेपी
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर जेडीयू के रुख पर राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. अजय झा का कहना है कि यह नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स है. विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर अपना अलग स्टैंड रखकर वे विपक्ष में भी अपनी स्वीकार्यता बनाए रखना चाहते हैं, ताकि कोई फैसला लेने में परेशानी नहीं हो.
"यह नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स है. विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर अपना अलग स्टैंड रखकर वे विपक्ष में भी अपनी स्वीकार्यता बनाए रखना चाहते हैं, ताकि कोई फैसला लेने में परेशानी नहीं हो. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दरअसल नीतीश कुमार के लिए विन-विन सिचुएशन है"- प्रो. अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ
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हाल के दिनों में विशेष राज्य के दर्जे को लेकर बीजेपी और जेडीयू नेताओं के बीच लगातार बयानबाजी भी हो रही है. बीजेपी कोटे की उपमुख्यमंत्री रेणु देवी के बयान से भी नीतीश काफी खफा भी हुए थे. उन्होंने कहा था कि विशेष राज्य के दर्जे की जरूरत बिहार को नहीं है, इस पर मुख्यमंत्री ने तुरंत जवाब दिया कि डिप्टी सीएम को कुछ भी पता नहीं है मिलेंगी तो उनको बता देंगे. वहीं डिप्टी सीएम के बाद बीजेपी के कई मंत्रियों ने एक के बाद एक यही बयान दिया और इसके कारण जेडीयू और बीजेपी में खटास लगातार बढ़ रही है. इससे पहले भी जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश कुमार की मांग पर प्रधानमंत्री ने कोई पहल नहीं की. हां मुलाकात जरूर की, लेकिन कास्ट सेंसस कराने से साफ इनकार कर दिया.
नीतीश की नाराजगी केवल इन्हीं सब कारणों से नहीं है. पहले भी पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग उन्होंने प्रधानमंत्री से पटना विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में की थी, लेकिन पीएम मोदी ने उस समय भी इंकार कर दिया था. एक के बाद एक मांग को ठुकराए जाने से नीतीश खफा हैं, लेकिन मजबूरी है कि नीतीश के पास ऑप्शन नहीं है. आरजेडी अब उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है. ऐसे में बीजेपी के साथ गठबंधन में रहना मजबूरी है. इन सब के बीच जेडीयू 2024 और 2025 चुनाव की जोर-शोर से तैयारी कर रहा है. ऐसे में इन दोनों चुनावों से ठीक पहले नीतीश चौंकाने वाले फैसले ले लें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.
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