पटनाः बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी डॉ. सत्येंद्र नारायण सिन्हा की रविवार को 103वीं जयंती मनाई जा रही है. वे भारत के स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, सांसद, शिक्षामंत्री, जेपी आंदोलन के स्तम्भ और बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनका जन्म 12 जुलाई 1917 को हुआ था और 4 सितम्बर 2006 में उनका निधन हो गया.
10 सालों तक रहे केंद्रीय कैबिनेट मंत्री
डॉ. सत्येंद्र नारायण सिन्हा भारतीय राजनेता थे. प्यार से लोग उन्हें 'छोटे साहब' कहते थे. उन्होंने अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई. उन्हें 10 सालों तक लगातार केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय समिति में एशिया का प्रतिनिधित्व भी किया था.
सात बार रहे सांसद
सत्येंद्र बाबू का प्रारंभिक विद्यार्थी जीवन इलाहाबाद में लाल बहादुर शास्त्री के सानिध्य में बीता. उनपर लाल बहादुर शास्त्री के सहजता का व्यापक असर पड़ा. सत्येंद्र नारायण सिन्हा बिहार के औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से सात बार सांसद रहे और इसे 'मिनी चितौड़गढ़' के नाम से जाना जाता रहा.
डिफैक्टो सीएम
पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने छठे और सातवें दशक में बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाई. उनके राजनीतिक समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री बने पंडित बिनोदानंद झा ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से विशेष आग्रह करके उन्हें बिहार लाया और मंत्रिमडल में दूसरा स्थान दिया. उन दिनों उन्हें बिहार का 'डिफैक्टो' सीएम माना जाता था.
बिहार की राजनीति के लिए मास्टर स्ट्रोक
1963 में कामराज योजना के बाद सत्येंद्र नारायण सिन्हा के बिहार में केबी सहाय को मुख्यमंत्री पद पर स्थापित करने का निर्णय बिहार की राजनीति के लिए मास्टर स्ट्रोक की तरह माना जाता है. सत्येन्द्र बाबू 1961 में बिहार के शिक्षा मंत्री, कृषि और स्थानीय प्रशासन मंत्री बने. उन्होंने राजनीति के लिए मानवीय अनुभूतियों को तिलांजलि दे दी.
चिल्ड्रेन पार्क का नामकरण
शिक्षा मंत्री के कार्यकाल में सत्येन्द्र बाबू ने कई अभूतपूर्व योगदान दिए. उन्होंने मगध विश्वविद्यालय की स्थापना की. पटना के चिल्ड्रेन पार्क श्रीकृष्णापुरी का नामकरण पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के नाम पर कर दिया गया है.
महिला सशक्तिकरण की मिसाल
पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा वैशाली की पहली महिला सांसद थीं और 1980 में जनता पार्टी व 1984 में कांग्रेस पार्टी से सांसद बनी थीं. उन्होंने महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की थी. आज भी सत्येन्द्र बाबू को उनके योगदान के लिए प्रेरणा स्त्रोत के रूप में देखा जाता है.