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दोस्ती हो तो ऐसी: जहां जलती हैं चिताएं, वहां जल रहा है शिक्षा का अलख

तीन दोस्तों ने मुजफ्फरपुर के मुक्तिधाम यानी शमशान घाट के आसपास के उन गरीब बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया, जो कभी शवयात्रा के दौरान डाले जाने वाले पैसों को चुनने का काम करते थे. अबतक अप्पन पाठशाला से करीब 84 बच्चे जुड़ चुके हैं. पढ़ें पूरी खबर...

शमसान में पाठशाला
शमसान में पाठशाला
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Published : Aug 20, 2021, 10:56 PM IST

मुजफ्फरपुर : किसी ने सच कहा है अगर इंसान में सच्चे मन से कुछ करने की इच्छा हो तो कोई भी काम आसान हो जाता है. आधुनिकता के इस चकाचौंध में बिहार (Bihar) के मुजफ्फरपुर के कुछ युवा समाज के लिए ऐसी बानगी पेश कर रहे हैं. जिसकी मिशाल शायद ही कहीं देखने को मिले. दरअसल जिस जगह जाने से लोग डरते हैं, वहां शहर (Muzaffarpur) के तीन युवा अपने दोस्त सुमित की अगुवाई में एक साथ आकर शहर के एक श्मशान में स्थानीय स्लम बस्ती एवं गरीब बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने का काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें : पर्यावरण और ऑक्सीजन के महत्व का अलख जगा रहे युवा, कोरोना वीरों को दे रहे उपहार में पौधा

शहर के सिकन्दरपुर स्थित मुक्तिधाम में महज कुछ बच्चों के साथ शुरू हुई 'अप्पन पाठशाला' आज विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है. जिसका श्रेय जाता है मुजफ्फरपुर के एक युवा सुमित को. जिन्होंने श्मसान में आने वाले शवों के ऊपर से पैसे और फल चुनने वाले बच्चों को इस काम से छुटकारा दिलाने के लिए महज 6 बच्चों के साथ इस पहल को 2017 में शुरू किया था. बाद में उन्हें इस काम में दो और युवाओं और कुछ स्वयंसेवी लोगों का सहयोग मिला.

देखें वीडियो

जिसके बाद श्मशान में संचालित इस अनूठे पाठशाला में आज गरीब और स्लम इलाकों में रहने वाले करीब 84 बच्चे हिस्सा बने हुए हैं. जहां इस पाठशाला में लाश पर से बताशा और फल चुनने वाले बच्चे के हाथ कलम और किताब पकड़े ज्ञान अर्जन कर अपना भविष्य सवार रहे हैं. इस पाठशाला को शुरू करने का विचार जिज्ञासा समाज कल्याण के संस्थापक सुमित को उस वक्त आया. जब सुमित अपने एक परिचित के अंतिम संस्कार के दौरान यहां पहुंचे हुए थे.

इसे भी पढ़ें : कैदियों को डिजिटल साक्षर बनाने की पहल, देश में पहली बार बांका जेल से हुई शुरुआत

सुमित ने शमशान में कुछ बच्चों को शवों के ऊपर से पैसे और फल चुनते देखा तो बहुत दुख हुआ. इसे देख अंदर से व्यथित सुमित ने उसी दिन मन में ठान लिया कि वह इन बच्चों के लिए कुछ करेंगे. उसके बाद उन्होंने 2017 में इस पहल की शुरुआत कुछ बच्चों के अध्यापन से की. शुरू में बच्चे इस पाठशाला में आने से भी कतराते थे. लेकिन धीरे- धीरे दूसरे बच्चों की देखा देखी अन्य बच्चे भी इस पाठशाला का हिस्सा बनने लगें.

वहीं अब सुमित को इस काम में नगर निगम और मुक्तिधाम के प्रबंधन का भी सहयोग मिलने लगा है. वर्तमान समय में सुमित के इस सरहानीय पहल में उनके दो युवा दोस्त सुमन सौरभ और अभिराम कुमार भी इस अप्पन पाठशाला का हिस्सा है. जो बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेवारी बखूबी संभालते है. वहीं अगर इस पाठशाला की बात करें तो यहां पर सप्ताह में रविवार को छोड़कर 6 दिन बच्चों की पाठशाला चलती है. जहां प्रतिदिन नगर निगम की साफ सफाई के बाद संध्या चार बजे से बच्चों की पढ़ाई शुरू होती है, जो शाम में छह बजे खत्म हो जाती है.

बहरहाल मुजफ्फरपुर के इन युवाओं की सकारात्मक सोच और अनूठी पहल की वजह से समाज के कमजोर वर्ग से आने वाले बच्चें भी ज्ञान अर्जित कर अपना सुनहरा भविष्य लिखने की शुरुआत कर चुके है. ऐसे में आज जरूरत है समाज को सुमित जैसे सोच रखने वाले हजारों लाखों युवाओं की. जिनके सोच की बदौलत हमारे देश को तरक्की के मार्ग पर आगे ले जाने से शायद ही कोई ताकत रोक पाए. ऐसे में इन युवाओं की यह पहल निःसंदेह सरहानीय होने के साथ-साथ काबिले तारीफ भी है

मुजफ्फरपुर : किसी ने सच कहा है अगर इंसान में सच्चे मन से कुछ करने की इच्छा हो तो कोई भी काम आसान हो जाता है. आधुनिकता के इस चकाचौंध में बिहार (Bihar) के मुजफ्फरपुर के कुछ युवा समाज के लिए ऐसी बानगी पेश कर रहे हैं. जिसकी मिशाल शायद ही कहीं देखने को मिले. दरअसल जिस जगह जाने से लोग डरते हैं, वहां शहर (Muzaffarpur) के तीन युवा अपने दोस्त सुमित की अगुवाई में एक साथ आकर शहर के एक श्मशान में स्थानीय स्लम बस्ती एवं गरीब बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने का काम कर रहे हैं.

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शहर के सिकन्दरपुर स्थित मुक्तिधाम में महज कुछ बच्चों के साथ शुरू हुई 'अप्पन पाठशाला' आज विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है. जिसका श्रेय जाता है मुजफ्फरपुर के एक युवा सुमित को. जिन्होंने श्मसान में आने वाले शवों के ऊपर से पैसे और फल चुनने वाले बच्चों को इस काम से छुटकारा दिलाने के लिए महज 6 बच्चों के साथ इस पहल को 2017 में शुरू किया था. बाद में उन्हें इस काम में दो और युवाओं और कुछ स्वयंसेवी लोगों का सहयोग मिला.

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जिसके बाद श्मशान में संचालित इस अनूठे पाठशाला में आज गरीब और स्लम इलाकों में रहने वाले करीब 84 बच्चे हिस्सा बने हुए हैं. जहां इस पाठशाला में लाश पर से बताशा और फल चुनने वाले बच्चे के हाथ कलम और किताब पकड़े ज्ञान अर्जन कर अपना भविष्य सवार रहे हैं. इस पाठशाला को शुरू करने का विचार जिज्ञासा समाज कल्याण के संस्थापक सुमित को उस वक्त आया. जब सुमित अपने एक परिचित के अंतिम संस्कार के दौरान यहां पहुंचे हुए थे.

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सुमित ने शमशान में कुछ बच्चों को शवों के ऊपर से पैसे और फल चुनते देखा तो बहुत दुख हुआ. इसे देख अंदर से व्यथित सुमित ने उसी दिन मन में ठान लिया कि वह इन बच्चों के लिए कुछ करेंगे. उसके बाद उन्होंने 2017 में इस पहल की शुरुआत कुछ बच्चों के अध्यापन से की. शुरू में बच्चे इस पाठशाला में आने से भी कतराते थे. लेकिन धीरे- धीरे दूसरे बच्चों की देखा देखी अन्य बच्चे भी इस पाठशाला का हिस्सा बनने लगें.

वहीं अब सुमित को इस काम में नगर निगम और मुक्तिधाम के प्रबंधन का भी सहयोग मिलने लगा है. वर्तमान समय में सुमित के इस सरहानीय पहल में उनके दो युवा दोस्त सुमन सौरभ और अभिराम कुमार भी इस अप्पन पाठशाला का हिस्सा है. जो बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेवारी बखूबी संभालते है. वहीं अगर इस पाठशाला की बात करें तो यहां पर सप्ताह में रविवार को छोड़कर 6 दिन बच्चों की पाठशाला चलती है. जहां प्रतिदिन नगर निगम की साफ सफाई के बाद संध्या चार बजे से बच्चों की पढ़ाई शुरू होती है, जो शाम में छह बजे खत्म हो जाती है.

बहरहाल मुजफ्फरपुर के इन युवाओं की सकारात्मक सोच और अनूठी पहल की वजह से समाज के कमजोर वर्ग से आने वाले बच्चें भी ज्ञान अर्जित कर अपना सुनहरा भविष्य लिखने की शुरुआत कर चुके है. ऐसे में आज जरूरत है समाज को सुमित जैसे सोच रखने वाले हजारों लाखों युवाओं की. जिनके सोच की बदौलत हमारे देश को तरक्की के मार्ग पर आगे ले जाने से शायद ही कोई ताकत रोक पाए. ऐसे में इन युवाओं की यह पहल निःसंदेह सरहानीय होने के साथ-साथ काबिले तारीफ भी है

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