किशनगंजः कोरोना वायरस से बचाव के लिए लॉकडाउन समाज के अंतिम पायदान के लोगों पर मुसीबत का पहाड़ बनकर टूटा है. जिले का मल्लिक समाज भी इस लॉकडाउन से खासा परेशान हुआ है. महादलित समुदाय में शामिल इन की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है और आज यह समाज भुखमरी की कगार पर पहुंच चुका है.
जीवन निर्वहन के लिए रोजगार के नाम पर ये आज भी परंपरागत धंधे पर आश्रित हैं. अधिकांश लोग रोजी-रोटी के नाम पर बांस की टोकरी या दूसरे सामान बनाने में लगे हैं. इसके अतिरिक्त सूअर पालन भी इनके आय का एक स्रोत है.
मल्लिक समुदाय के लोगों की आर्थिक स्थिति खराब
लॉकडाउन में शादी नहीं हुई और इनके बनाए सामान भी ज्यों के त्यों रखे रह गए. इसके अलावा गर्मी में इनके बनाए हुए पंखों की बिक्री भी होती थी. लेकिन टेक्नोलॉजी के बढ़ने की वजह से इसकी बिक्री भी पहले से ही कम हुई. वहीं लॉकडाउन के बाद हाथ वाले पंखे की बिक्री बिल्कुल बंद हो गई और पहले से कमजोर वर्ग वाले मल्लिक समुदाय के लोगों की कमर कोरोना काल में टूट गई.
कोरोना काल में टूटी मल्लिक समुदाय के लोगों की कमर
ईटीवी भारत से बात करते हुए इन लोगों ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी हम बांस के समान बना रहे थे. हमें उम्मीद थी कि शादियों में इन की काफी मांग होगी, इसके लिए हमने बड़े पैमाने पर पैसे कर्ज लेकर बांस खरीद लिए थे. इन सामानों को बनाना भी शुरू कर दिया था. लेकिन जब शादी का मौसम शुरू होने वाला ही था, तब तक देश में लॉकडाउन शुरू हो गया. इससे हमारा सारा काम चौपट हो गया. दुःख की बात यह है कि भुखमरी की स्थिति के बावजूद सरकार हमारे बारे में नहीं सोच रही है. सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही इस कारण हम लोग ज्यादा परेशान हैं.