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किशनगंजः दूसरे के घरों में नहीं बजी शहनाई तो मल्लिक समाज के लोगों पर छाया भुखमरी का संकट - कोरोना वायरस

हिंदू समाज में मई और जुलाई के महीने में कई शादियां होती हैं. लेकिन, पिछले 4 महीनों से जारी लॉकडाउन की वजह से कोई मांगलिक कार्य नहीं हुए. इस कारण मल्लिक समुदाय के लोगों की आमदनी नहीं हो पाई. जिस कारण ये समाज के लोग अब भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.

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Published : Sep 4, 2020, 9:33 PM IST

किशनगंजः कोरोना वायरस से बचाव के लिए लॉकडाउन समाज के अंतिम पायदान के लोगों पर मुसीबत का पहाड़ बनकर टूटा है. जिले का मल्लिक समाज भी इस लॉकडाउन से खासा परेशान हुआ है. महादलित समुदाय में शामिल इन की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है और आज यह समाज भुखमरी की कगार पर पहुंच चुका है.

जीवन निर्वहन के लिए रोजगार के नाम पर ये आज भी परंपरागत धंधे पर आश्रित हैं. अधिकांश लोग रोजी-रोटी के नाम पर बांस की टोकरी या दूसरे सामान बनाने में लगे हैं. इसके अतिरिक्त सूअर पालन भी इनके आय का एक स्रोत है.

mallik samaj
हाथ के बनाए पंखे
लॉकडाउन की वजह से बढ़ी इनकी परेशानीलॉकडाउन ने मल्लिक समाज कि लोगों की चिंता बढ़ा दी है. मई-जून के महीने में होने वाली हिंदू शादियों में इन लोगों की काफी उपयोगिता होती है. हिंदू शादियों में इस्तेमाल होने वाले डाली, डलिया, दौरा, सुप इत्यादि जैसे सामानों को यह समाज ही बनाता है. बांस के बने लगभग सभी सामान इनकी ओर से बनाए जाते हैं. लॉकडाउन की वजह से इनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है.
mallik samaj
डलिया, दौरा

मल्लिक समुदाय के लोगों की आर्थिक स्थिति खराब
लॉकडाउन में शादी नहीं हुई और इनके बनाए सामान भी ज्यों के त्यों रखे रह गए. इसके अलावा गर्मी में इनके बनाए हुए पंखों की बिक्री भी होती थी. लेकिन टेक्नोलॉजी के बढ़ने की वजह से इसकी बिक्री भी पहले से ही कम हुई. वहीं लॉकडाउन के बाद हाथ वाले पंखे की बिक्री बिल्कुल बंद हो गई और पहले से कमजोर वर्ग वाले मल्लिक समुदाय के लोगों की कमर कोरोना काल में टूट गई.

पेश है खास रिपोर्ट

कोरोना काल में टूटी मल्लिक समुदाय के लोगों की कमर
ईटीवी भारत से बात करते हुए इन लोगों ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी हम बांस के समान बना रहे थे. हमें उम्मीद थी कि शादियों में इन की काफी मांग होगी, इसके लिए हमने बड़े पैमाने पर पैसे कर्ज लेकर बांस खरीद लिए थे. इन सामानों को बनाना भी शुरू कर दिया था. लेकिन जब शादी का मौसम शुरू होने वाला ही था, तब तक देश में लॉकडाउन शुरू हो गया. इससे हमारा सारा काम चौपट हो गया. दुःख की बात यह है कि भुखमरी की स्थिति के बावजूद सरकार हमारे बारे में नहीं सोच रही है. सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही इस कारण हम लोग ज्यादा परेशान हैं.

किशनगंजः कोरोना वायरस से बचाव के लिए लॉकडाउन समाज के अंतिम पायदान के लोगों पर मुसीबत का पहाड़ बनकर टूटा है. जिले का मल्लिक समाज भी इस लॉकडाउन से खासा परेशान हुआ है. महादलित समुदाय में शामिल इन की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है और आज यह समाज भुखमरी की कगार पर पहुंच चुका है.

जीवन निर्वहन के लिए रोजगार के नाम पर ये आज भी परंपरागत धंधे पर आश्रित हैं. अधिकांश लोग रोजी-रोटी के नाम पर बांस की टोकरी या दूसरे सामान बनाने में लगे हैं. इसके अतिरिक्त सूअर पालन भी इनके आय का एक स्रोत है.

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हाथ के बनाए पंखे
लॉकडाउन की वजह से बढ़ी इनकी परेशानीलॉकडाउन ने मल्लिक समाज कि लोगों की चिंता बढ़ा दी है. मई-जून के महीने में होने वाली हिंदू शादियों में इन लोगों की काफी उपयोगिता होती है. हिंदू शादियों में इस्तेमाल होने वाले डाली, डलिया, दौरा, सुप इत्यादि जैसे सामानों को यह समाज ही बनाता है. बांस के बने लगभग सभी सामान इनकी ओर से बनाए जाते हैं. लॉकडाउन की वजह से इनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है.
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डलिया, दौरा

मल्लिक समुदाय के लोगों की आर्थिक स्थिति खराब
लॉकडाउन में शादी नहीं हुई और इनके बनाए सामान भी ज्यों के त्यों रखे रह गए. इसके अलावा गर्मी में इनके बनाए हुए पंखों की बिक्री भी होती थी. लेकिन टेक्नोलॉजी के बढ़ने की वजह से इसकी बिक्री भी पहले से ही कम हुई. वहीं लॉकडाउन के बाद हाथ वाले पंखे की बिक्री बिल्कुल बंद हो गई और पहले से कमजोर वर्ग वाले मल्लिक समुदाय के लोगों की कमर कोरोना काल में टूट गई.

पेश है खास रिपोर्ट

कोरोना काल में टूटी मल्लिक समुदाय के लोगों की कमर
ईटीवी भारत से बात करते हुए इन लोगों ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी हम बांस के समान बना रहे थे. हमें उम्मीद थी कि शादियों में इन की काफी मांग होगी, इसके लिए हमने बड़े पैमाने पर पैसे कर्ज लेकर बांस खरीद लिए थे. इन सामानों को बनाना भी शुरू कर दिया था. लेकिन जब शादी का मौसम शुरू होने वाला ही था, तब तक देश में लॉकडाउन शुरू हो गया. इससे हमारा सारा काम चौपट हो गया. दुःख की बात यह है कि भुखमरी की स्थिति के बावजूद सरकार हमारे बारे में नहीं सोच रही है. सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही इस कारण हम लोग ज्यादा परेशान हैं.

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