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खगड़िया: सरकार को सलाना 30 लाख रुपये राजस्व देने वाले इस स्टेशन की हालत जर्जर - खगड़िया की खबर

जीआरपी अधिकारी का कहना है कि हमारे बैठने के लिए छत भी नहीं है. जिस छत के नीचे हम बैठते हैं वो कब ढह जाए पता नहीं. बताया गया कि इस कमरे में 4 सुरक्षाकर्मी बैठते हैं. रेलवे स्टाफ ने बताया कि यहां केवल 2 ही स्टाफ ड्यूटी पर हैं.

महेशखूंट स्टेशन पर बुनियादी सुविधाएं तक नहीं
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Published : Aug 26, 2019, 10:33 PM IST

खगड़िया: जिले का महेशखुंट स्टेशन खंडहर में बदलता जा रहा है. हालांकि इस स्टेशन से सरकार को हर साल 25 से 30 लाख राजस्व मिलता है. लेकिन इसका कोई भी फायदा स्टेशन को नहीं मिलता. स्टेशन पर न तो पीने का पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय की. वहीं, इस स्टेशन पर बैठने के लिए एक कुर्सी तक नहीं है.

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महेशखूंट स्टेशन की हालत खराब

सुविधाओं से वंचित है महेशखुंट स्टेशन
जिले के महेशखुंट स्टेशन पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है. यह स्टेशन धीरे-धीरे खंडहर में बदलता जा रहा है. हालांकि सरकार को इस स्टेशन से हर साल 25 से 30 लाख राजस्व प्राप्त होता है. लेकिन फिर भी स्टेशन पर न तो पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय की. शौचालय नहीं होने से पुरुष तो कहीं भी चले जाते हैं. लेकिन महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. स्टेशन पर प्रतिदिन 15 सौ से 2 हजार तक यात्री आते हैं, लेकिन ट्रेन का इंतजार करने के लिए बैठने लायक कुर्सियां भी नहीं है. यात्रियों का कहना है कि यहां रात में चोर-लुटेरों का डर रहता है. इस स्टेशन पर एक लाइट तक नहीं है. वहीं, स्टेशन की शेड की हालत भी जर्जर है.

यात्रियों को झेलनी पड़ती है परेशानी

यात्रियों से लेकर स्टाफ तक है परेशान
जीआरपी अधिकारी का कहना है कि हमारे बैठने के लिए छत भी नहीं है. जिस छत के नीचे हम बैठते हैं वो कब ढह जाए पता नहीं. बताया गया कि इस कमरे में 4 सुरक्षाकर्मी बैठते हैं. रेलवे स्टाफ ने बताया कि यहां केवल 2 ही स्टाफ ड्यूटी पर हैं. इससे हमें बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है. एक समय पर एक ही स्टाफ रहता है. वहीं, एक दिन में 15 सौ से 2 हजार यात्री आते हैं. इतना ही नहीं इस स्टेशन का मास्टर भी मेडिकल छुट्टी पर गया है. ऐसी व्यवस्था से यहां के लोग सरकार से बहुत ही नाराज हैं.

खगड़िया: जिले का महेशखुंट स्टेशन खंडहर में बदलता जा रहा है. हालांकि इस स्टेशन से सरकार को हर साल 25 से 30 लाख राजस्व मिलता है. लेकिन इसका कोई भी फायदा स्टेशन को नहीं मिलता. स्टेशन पर न तो पीने का पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय की. वहीं, इस स्टेशन पर बैठने के लिए एक कुर्सी तक नहीं है.

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महेशखूंट स्टेशन की हालत खराब

सुविधाओं से वंचित है महेशखुंट स्टेशन
जिले के महेशखुंट स्टेशन पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है. यह स्टेशन धीरे-धीरे खंडहर में बदलता जा रहा है. हालांकि सरकार को इस स्टेशन से हर साल 25 से 30 लाख राजस्व प्राप्त होता है. लेकिन फिर भी स्टेशन पर न तो पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय की. शौचालय नहीं होने से पुरुष तो कहीं भी चले जाते हैं. लेकिन महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. स्टेशन पर प्रतिदिन 15 सौ से 2 हजार तक यात्री आते हैं, लेकिन ट्रेन का इंतजार करने के लिए बैठने लायक कुर्सियां भी नहीं है. यात्रियों का कहना है कि यहां रात में चोर-लुटेरों का डर रहता है. इस स्टेशन पर एक लाइट तक नहीं है. वहीं, स्टेशन की शेड की हालत भी जर्जर है.

यात्रियों को झेलनी पड़ती है परेशानी

यात्रियों से लेकर स्टाफ तक है परेशान
जीआरपी अधिकारी का कहना है कि हमारे बैठने के लिए छत भी नहीं है. जिस छत के नीचे हम बैठते हैं वो कब ढह जाए पता नहीं. बताया गया कि इस कमरे में 4 सुरक्षाकर्मी बैठते हैं. रेलवे स्टाफ ने बताया कि यहां केवल 2 ही स्टाफ ड्यूटी पर हैं. इससे हमें बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है. एक समय पर एक ही स्टाफ रहता है. वहीं, एक दिन में 15 सौ से 2 हजार यात्री आते हैं. इतना ही नहीं इस स्टेशन का मास्टर भी मेडिकल छुट्टी पर गया है. ऐसी व्यवस्था से यहां के लोग सरकार से बहुत ही नाराज हैं.

Intro:जंहा एक तरफ सभी राज्यों में होड़ मची है । रेलवे स्टेशन को नया तरीका से आधुनिक बनाने की वंही बिहार में आज भी दसको पहले वाली सोच खगड़िया के महेसखुट रेलवे स्टेशन पर देखने को मिल रही है।


Body:जंहा एक तरफ सभी राज्यों में होड़ मची है । रेलवे स्टेशन को नया तरीका से आधुनिक बनाने की वंही बिहार में आज भी दसको पहले वाली सोच खगड़िया के महेसखुट रेलवे स्टेशन पर देखने को मिल रही है। महेसखुट रेलवे स्टेशन सिर्फ नाम का स्टेशन कह सकते है क्यों की यंहा पर एक शेड भी नही जिस से जिसमे यात्री बैठ कर आने जाने वाली ट्रेनों का इंतेजार कर सके अब आप बाकी सुविधाओ के बारे में मत सोचिए क्यों कि ये सोचना भी बेईमानी ही होगी लेकिन इन सब बातों के बीच एक चीज जानना बहुत जरूरी है।महेसखुट रेलवे स्टेशन महीना में कम से कम 25 से 30 लाख के बीच रेलवे विभाग को राजस्व देता है।
दसको पहले बना महेसखुट रेलवे स्टेशन की सुविधाओं की बात करे तो यंहा एक शेड भी नही है जिसमे यात्री बैठ कर आने वाली ट्रेनों का इंतेजार कर सके। कई वर्षों पहले एक शेड के नाम पर एक जर्जर छत है जो कब गिर जाए और कब एक बड़ा हादसा हो जाये कुछ नही कहा जा सकता। शौचालय की बात की जाय तो स्वच्छता अभियान की धूम तो पूरे देश मे मची है लेकिन वो बात दसूरी है कि कागजो पर ही मची है लेकिन खगड़िया में किस कदर इसकी धूम है आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है कि हर दिन 7 से 8 हजार यात्रियों को अंदर और बाहर भेजने वाला महेसखुट रेलवे स्टेशन में एक सरकारी शौचालय तक नही है।शौचालय के नाम पर खनापूर्ती जरूर कर दिया गया है लेकिन उसमें ताला लटका रहता साल के बारहों महीने।पिने के लिए भी किसी तरह की सुविधा यात्रियों के लिए नही की गई है। ना स्टेशन पर चार दिवारी है। बारिश के दिनों में स्टेशन एक वाटर पार्क का रूप ले लेता है। यात्री इस असुविधा को ले कर खासे नाराज दिखते है पत्रकार से बातचीत करने को भी सीधे मुह तैयार नही होते है क्यों की उनको सरकार पर से भरोसा उठता दिखाई दे रहा है सालो से ऐसे हालात में जी रहे है।
महिलायें यात्री तो सवालों के जवाब भी गुस्से में देती देखी हालांकि ये गुस्सा पत्रकारों पर नही था ये नारजगी उस विकाश को ले कर थी जो 70 साल से सिर्फ चुनावी मंचो से की जाती है।महिलाये का ज्यादा नाराज होना लाजमी भी था क्यों कि महिलाओं को शौच जाने के लिए आस पास के झड़ियों में जाना पड़ता है और पुरुष का तो पूछिये ही मत वो तो स्टेशन भी शुरू हो जाते है।अब एक और चीज है जिस पर नजर घुमाना जरूरी है और वो है स्टेशन के जीआरपी का रहने वाला बैरक।इस बैरक में चूहे बिल्ली भी रहना सुरक्षित महसूस नही करते लेकिन इसमें जीआरपी के सुरक्षाकर्मियों को रहना पड़ता है। ये कब गिर जाए और कब एक नया खबर बन जाये इसके बारे में कहा नही जा सकता।
अब बात करते है स्टेशन मास्टर की जो मशेसखुट स्टेशन के स्टेशन मास्टर है वो लम्बी छुट्टी पर अपना इलाज करवाने गए है और जो प्रभार में है उनका कहना है कि हम कुछ भी बोलने के लिए अधिकृत ही नही है। कहते है साहब की जोन के डीआरम से बात कर के बाइट ले लीजये।


Conclusion:
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