अरवल: बिहार में 20वीं सदी के आखिर में तत्कालीन मध्य बिहार के इलाकों में पटना-गया-जहानाबाद-नालंदा और भोजपुर का इलाका ऐसी सामूहिक हत्याओं (Lakshmanpur Bathe Killing) के लिए पूरे देश में बदनाम हो गया था. उस वक्त जाति आधारित हथियारबंद निजी सेनाओं का ऐसा कहर था कि उनके सामने सिस्टम भी लाचार नजर आता था. इन्हीं सामूहिक नरसंहारों में 90 के दशक के लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार (Laxmanpur Bathe Narsanhar) ने पूरे देश को थर्रा दिया था.
ये भी पढ़ें- खुलासा: पैसा नहीं है तो गिरवी रखता था सामान, ड्रग डीलिंग के दौरान गिरफ्त में मास्टरमाइंड
डरावनी साबित हुई थी 1 दिसंबर 1997 की रात : अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव (Arwal laxmanpur bathe) में 1 दिसंबर, 1997 को लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 58 दलितों का सामूहिक नरसंहार कर दिया गया था. आज इस नरसंहार के 25 साल पूरे हो गए हैं. आइए जानते हैं कैसे अपराधियों ने इस घटना को अंजाम दिया और इसके बाद पूरा देश कैसे आक्रोशित हो उठा.
58 लोगों को बाथे में उतारा गया था मौत के घाट : रात नाव में सवार होकर कई अपराधियों ने सोन नदी को पार किया. उनके निशाने पर था लक्ष्मणपुर बाथे गांव, जहां पिछड़े जाति के लोगों के लिए एक अनहोनी दस्तक दे रही थी. अपराधियों ने नाव से उतरते ही सबसे पहले नाविकों को मौत के घाट उतारा. ठंड भरी उस रात में सोन नदी का वो हिस्सा लहू से रंग दिया गया था. आरोप है कि ऊंची जाति के लोगों द्वारा बनाई गई रणवीर सेना गिरोह के लोगों ने 58 लोगों को गोलियों से भून डाला (ranvir sena killed 58 people of schedule caste) था. मरने वालों में 27 महिलाएं और 16 बच्चे भी शामिल थे. उन 27 महिलाओं में से करीब दस महिलाएं गर्भवती भी थीं. हत्यारों ने करीब तीन घंटे तक यह खूनी खेल खेला.
रणवीर सेना पर लगा आरोप : दो दिनों तक स्थानीय लोगों ने शवों का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया था. लोग लाशें रखकर न्याय की दुहाई देते रहे. 3 दिसंबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने गांव का दौरा किया उसके बाद शवों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया. एक साथ 58 चिताएं जली थीं. बाथे नरसंहार का आरोप अगड़ी जाति के एक संगठन रणवीर सेना के उपर लगा, जिसका नेतृत्व ब्रह्मेश्वर मुखिया कर रहे थे. इस नरसंहार ने पूरे देश को हिला दिया था. उस समय राष्ट्रपति रहे के आर नारायणन ने गहरी चिंता जताते हुए इस हत्याकांड को 'राष्ट्रीय शर्म' करार दिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल समेत सभी पार्टियों के नेताओं ने इस हत्याकांड की घोर निंदा की थी.
बिहार में 90 का दशक, जातीय नरसंहारों का दौर : बता दें कि बिहार में नब्बे का दशक जातीय नरसंहारों का दौर था. अगड़े-पिछड़े, वंचित और संभ्रांत के बीच छिड़ा वर्ग संघर्ष, जातीय संघर्ष में बदलकर सैकड़ों लोगों की बलि लेने लगा था. बिहार के खेत-खलिहान आंदोलनों, अन्याय और शोषण से धधक रहे थे. लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार इसी धधक का एक जीता जागता मिसाल था. पिछड़ी जाति के वंचितों ने आवाज उठाई और जमीन पर अपना हक मांगा, उनकी राजनीति करने वाली भाकपा-माले ने हथियार उठाए. उस दौर में सत्ता तक पहुंच रखने वाले सामंतों के खिलाफ जनता एकजुट हुई, लेकिन उस जनता को सबक सिखाने और अगड़ी जाति के जमींदारों के रसूख की रक्षा के लिए बनी रणबीर सेना ने गोलियां दाग कर उस आवाज को शांत करने की कोशिश की.
बिहार का 'लाल इलाका' : ये वो दौर था जब पटना, जहानाबाद, अरवल, गया और भोजपुर को 'लाल इलाका' कहा जाता था, क्योंकि इस इलाके में भाकपा-माले के गुटों की तूती बोलती थी. बिहार के ये इलाके सवर्णों की निजी सेना और भाकपा माले की संग्राम भूमि बन चुके थे. संग्राम का यह मुद्दा भूमि सुधार का था, जमीनों पर भूमिहीनों के हक का था. इसी दौरान जहानाबाद के इस इलाके में सक्रिय लाल झंडेवालों यानी भाकपा-माले के साथ जुड़ने की सज़ा रणबीर सेना ने लक्ष्मणपुर बाथे टोला की उस दलित बस्ती को दी थी.
हाइकोर्ट ने अभियुक्तों को कर दिया था बरी : इस मामले में कुल 46 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें से 19 लोगों को निचली अदालत ने ही बरी कर दिया था जबकि एक व्यक्ति सरकारी गवाह बन गया था. पटना की एक अदालत ने अप्रैल 2010 में 16 दोषियों को मौत की सजा सुनाई और 10 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. ज़िला और सत्र न्यायधीश विजय प्रकाश मिश्रा ने कहा था कि ये घटना समाज के चरित्र पर धब्बा है. 2013 में सभी 26 अभियुक्तों को पटना की हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया.