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बिहार में MSP की जमीनी हकीकत, तय कीमत से कम दाम में धान बेच रहे किसान

बिहार में धान के लिए 1940 रुपए एमएसपी (Minimum Support Price) तय की है. इसके बावजूद बिहार में किसानों को कम दाम में धान बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है. पैक्स धान की खरीद में ढिलाई दे रहा है. जिस कारण किसान परेशान हो रहे हैं. पढ़ें रिपोर्ट...

बिहार में कम दाम पर धान बेचने को मजबूर हैं किसान
बिहार में कम दाम पर धान बेचने को मजबूर हैं किसान
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Published : Dec 15, 2021, 8:04 PM IST

पटना: बिहार में सरकार ने धान के लिए 1940 रुपए प्रति क्विंटल की एमएसपी (MSP in Bihar) तय की है. लेकिन फिर भी बिहार में किसान कम दाम में धान बेचने को मजबूर हैं. धान अधिप्राप्ति की धीमी रफ्तार के कारण किसानों को यह परेशानी हो रही है. इस मामले में विपक्ष ने हमला बोला है. कहा, किसान सवाल खड़े कर रहे हैं और सरकार यह दावा कर रही है कि सब कुछ ठीक है.

यह भी पढ़ें- विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर JDU और BJP में तकरार, लगातार किया जा रहा वार-पलटवार

बिहार सरकार ने इस वर्ष 45 लाख मीट्रिक टन धान खरीद का लक्ष्य (Paddy Procurement Target) निर्धारित किया है. सरकार का निर्देश है कि ज्यादा नमी का बहाना बनाकर कोई पैक्स या व्यापार मंडल कमीशन नहीं ले सकता. यदि नमी के नाम पर किसानों को परेशान किया जाएगा या ज्यादा प्रति क्विंटल कमीशन लिया जाएगा तो ये अपराध माना जाएगा. लेकिन फिर भी किसान परेशान हैं. पैक्स उनसे तरह-तरह के बहाने बना रहे हैं. यह हम नहीं कह रहे. यह दावा है किसान संगठन का और विपक्ष के नेताओं का.

बिहार में कम दाम पर धान बेचने को मजबूर हैं किसान

'सरकार पैक्स या व्यापार मंडल के जरिए धान बेचने के लिए किसानों को कहती है. लेकिन पैक्स अपनी सीमा बताते हुए किसानों को इंतजार करने के लिए कह रहे हैं. अब अगर पिछले साल किसानों की फसल बर्बाद हुई और इस वर्ष आगे खेती करनी है, तो किसान कितना इंतजार करेंगे. वह अपना धान कहां रखेंगे. इसलिए जब पैक्स हाथ खड़े कर रहे हैं तो किसान अपना अनाज कम दाम पर अपना धान बेचने को मजबूर हैं. अगर पैक्स के जरिए भी खरीद होती है तो भी किसानों को 1940 रुपए के बजाय 15-16 सौ प्रति क्विंटल से ज्यादा का भाव नहीं मिलता.' -रामचंद्र महतो, उपाध्यक्ष, बिहार राज्य किसान महासभा

राजद नेता शक्ति सिंह यादव ने पैक्स के जरिए धान खरीद में व्याप्त भ्रष्टाचार का मामला सामने लाया है. उन्होंने सहकारिता और प्रशासन से जुड़े लोगों पर भी किसानों को परेशान करने का आरोप लगाया है. कहा कि, 'सरकार जानबूझकर किसानों को परेशान करती है. अगर मंडी होती तो किसान इतने मजबूर नहीं होते.'

'बिहार में भी अन्य राज्यों की तरह मंडी जरूर होनी चाहिए और यही वजह है कि हम एमएसपी को कानूनी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. क्योंकि जब एमएसपी को कानूनी दर्जा मिल जाएगा तो कोई भी सरकार किसानों का अनाज खरीदने से इनकार नहीं कर पाएगी. तब उन्हें मंडियों की व्यवस्था भी करनी पड़ेगी. जब एमएसपी को कानूनी दर्जा मिल जाएगा तो किसानों की समस्याएं काफी हद तक कम हो जाएगी.' -रामबाबू कुमार, सीपीआई नेता

'पैक्स के जरिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर धान की खरीद हो रही है. इसमें कहीं कोई परेशानी नहीं है. कुछ किसान जल्द से जल्द अपना अनाज बेचना चाहते हैं. जिसकी वजह से उन्हें दिक्कत होती है. जबकि पैक्स भी अपनी कुछ मजबूरियां हैं. यह बात उन्हें समझनी चाहिए. मानता हूं कि बिहार में गन्ना खरीद का न्यूनतम समर्थन मूल्य अभी तक तय नहीं हुआ है.' -प्रमोद कुमार, गन्ना विकास एवं विधि मंत्री

यह भी पढ़ें- पैक्सों में धान क्यों नहीं बेचना चाहते हैं जमुई के किसान, जानें वजह

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पटना: बिहार में सरकार ने धान के लिए 1940 रुपए प्रति क्विंटल की एमएसपी (MSP in Bihar) तय की है. लेकिन फिर भी बिहार में किसान कम दाम में धान बेचने को मजबूर हैं. धान अधिप्राप्ति की धीमी रफ्तार के कारण किसानों को यह परेशानी हो रही है. इस मामले में विपक्ष ने हमला बोला है. कहा, किसान सवाल खड़े कर रहे हैं और सरकार यह दावा कर रही है कि सब कुछ ठीक है.

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बिहार सरकार ने इस वर्ष 45 लाख मीट्रिक टन धान खरीद का लक्ष्य (Paddy Procurement Target) निर्धारित किया है. सरकार का निर्देश है कि ज्यादा नमी का बहाना बनाकर कोई पैक्स या व्यापार मंडल कमीशन नहीं ले सकता. यदि नमी के नाम पर किसानों को परेशान किया जाएगा या ज्यादा प्रति क्विंटल कमीशन लिया जाएगा तो ये अपराध माना जाएगा. लेकिन फिर भी किसान परेशान हैं. पैक्स उनसे तरह-तरह के बहाने बना रहे हैं. यह हम नहीं कह रहे. यह दावा है किसान संगठन का और विपक्ष के नेताओं का.

बिहार में कम दाम पर धान बेचने को मजबूर हैं किसान

'सरकार पैक्स या व्यापार मंडल के जरिए धान बेचने के लिए किसानों को कहती है. लेकिन पैक्स अपनी सीमा बताते हुए किसानों को इंतजार करने के लिए कह रहे हैं. अब अगर पिछले साल किसानों की फसल बर्बाद हुई और इस वर्ष आगे खेती करनी है, तो किसान कितना इंतजार करेंगे. वह अपना धान कहां रखेंगे. इसलिए जब पैक्स हाथ खड़े कर रहे हैं तो किसान अपना अनाज कम दाम पर अपना धान बेचने को मजबूर हैं. अगर पैक्स के जरिए भी खरीद होती है तो भी किसानों को 1940 रुपए के बजाय 15-16 सौ प्रति क्विंटल से ज्यादा का भाव नहीं मिलता.' -रामचंद्र महतो, उपाध्यक्ष, बिहार राज्य किसान महासभा

राजद नेता शक्ति सिंह यादव ने पैक्स के जरिए धान खरीद में व्याप्त भ्रष्टाचार का मामला सामने लाया है. उन्होंने सहकारिता और प्रशासन से जुड़े लोगों पर भी किसानों को परेशान करने का आरोप लगाया है. कहा कि, 'सरकार जानबूझकर किसानों को परेशान करती है. अगर मंडी होती तो किसान इतने मजबूर नहीं होते.'

'बिहार में भी अन्य राज्यों की तरह मंडी जरूर होनी चाहिए और यही वजह है कि हम एमएसपी को कानूनी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. क्योंकि जब एमएसपी को कानूनी दर्जा मिल जाएगा तो कोई भी सरकार किसानों का अनाज खरीदने से इनकार नहीं कर पाएगी. तब उन्हें मंडियों की व्यवस्था भी करनी पड़ेगी. जब एमएसपी को कानूनी दर्जा मिल जाएगा तो किसानों की समस्याएं काफी हद तक कम हो जाएगी.' -रामबाबू कुमार, सीपीआई नेता

'पैक्स के जरिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर धान की खरीद हो रही है. इसमें कहीं कोई परेशानी नहीं है. कुछ किसान जल्द से जल्द अपना अनाज बेचना चाहते हैं. जिसकी वजह से उन्हें दिक्कत होती है. जबकि पैक्स भी अपनी कुछ मजबूरियां हैं. यह बात उन्हें समझनी चाहिए. मानता हूं कि बिहार में गन्ना खरीद का न्यूनतम समर्थन मूल्य अभी तक तय नहीं हुआ है.' -प्रमोद कुमार, गन्ना विकास एवं विधि मंत्री

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