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क्या सरकारी कर्मचारी सियासी रैलियों में शामिल नहीं हो सकते? जानिए क्या है नियम - code of conduct for govt employee - CODE OF CONDUCT FOR GOVT EMPLOYEE

ज्य सरकार का कोई भी कर्मचारी नौकरी में रहते हुए ना इलेक्शन लड़ सकता है और ना ही राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा ले सकते हैं. सरकारी कर्मचारी किसी भी पॉलिटिक्ल पार्टी को ज्वाइन नहीं कर सकता है. ड्यूटी के दौरान ना किसी पार्टी की रैली में हिस्सा है और ना ही किसी तरह का भाषण और नारे लगा सकता है. यहां तक की किसी पार्टी का झंडा भी नहीं पकड़ सकता है. ऐसे नियम सरकारी कर्मचारियों की निष्पक्षता के लिए बनाया जाता है.

code of conduct for govt employee
सांकेतिक तस्वीर (बीजेपी फेसबुक पेज)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : May 18, 2024, 7:53 PM IST

Updated : May 18, 2024, 8:09 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं. इसी बीच बीजेपी की चुनावी रैली में शामिल होना एक सरकारी कर्मचारी को महंगा पड़ गया. यह कर्मचारी शिक्षा विभाग में बतौर अध्यापक तैनात है, जिसे चुनाव आयोग से शिकायत के बाद सस्पेंड कर दिया गया है. ये अध्यापक शिमला संसदीय क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी एवं सांसद सुरेश कश्यप की रैली में शामिल होने गया था. जिसकी तस्वीर भी सामने आई, जिसे चुनाव आयोग के सी-विजिल एप पर डाला गया और फिर एक्शन हो गया. निलंबित शिक्षक का हैडक्वार्टर शिलाई भेजा गया है.

क्या कोई सरकारी कर्मचारी सियासी रैलियों में शामिल नहीं हो सकता ?

दरअसल हिमाचल में चुनाव के मद्देनजर आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू है. चुनाव आयोग जैसे ही किसी चुनाव की तारीखों का ऐलान करता है तो विधानसभा चुनाव के दौरा राज्य में और लोकसभा चुनाव के लिए देशभर में मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट यानी आदर्श आचार संहिता प्रभावी हो जाती है. इस दौरान चुनाव आयोग की शक्तियां बढ़ जाती हैं और आचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग की इजाज़त के बिना किसी कर्माचरी या अधिकारी का तबादला भी नहीं है सकता है. ऐसे में इस दौरान सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए भी कुछ बंदिशें होती हैं.

कोई भी सरकारी कर्मचारी नौकरी में रहते हुए ना इलेक्शन लड़ सकता है और ना ही राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा ले सकते हैं. सरकारी कर्मचारी किसी भी पॉलिटिक्ल पार्टी को ज्वाइन नहीं कर सकता है. ड्यूटी के दौरान ना किसी पार्टी की रैली में हिस्सा है और ना ही किसी तरह का भाषण और नारे लगा सकता है. यहां तक की किसी पार्टी का झंडा भी नहीं पकड़ सकता है. ऐसे नियम सरकारी कर्मचारियों की निष्पक्षता के लिए बनाया जाता है, प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिए इस तरह के कानून बना रखें हैं. यदि कोई कर्मचारी इन नियमों को भंग करता है तो उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है. सहायक निर्वाचन अधिकारी राजकुमार ने बताया कि किसी भी राजनीतिक गतिविधियों में सरकारी कर्मचारी हिस्सा नहीं ले सकते हैं.

राज्य सरकार की तरह केंद्र सरकार के अफसर और कर्मचारी भी चुनाव नहीं लड़ सकते. रिटायरमेंट और वीआरएस के बाद कर्मचारी चुनाव लड़ सकते हैं साथ ही किसी भी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं. यदि वीआरएस लेकर चुनाव लड़ने वाला कर्मचारी इलेक्शन हार जाए तो वो अपना वीआरएस वापस लेने के लिए सरकार के पास आवेदन दे सकता है. बता दें कि हिमाचल के पूर्व आईपीएस अफसर एएन शर्मा ने चुनाव लडऩे के लिए नौकरी छोड़ दी थी. बाद में उन्हें पार्टी की तरफ से टिकट नहीं मिला था. नौकरी छोड़ने के बाद भाजपा सरकार ने उन्हें फिर से नियुक्ति दे दी थी.

शिमला: हिमाचल प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं. इसी बीच बीजेपी की चुनावी रैली में शामिल होना एक सरकारी कर्मचारी को महंगा पड़ गया. यह कर्मचारी शिक्षा विभाग में बतौर अध्यापक तैनात है, जिसे चुनाव आयोग से शिकायत के बाद सस्पेंड कर दिया गया है. ये अध्यापक शिमला संसदीय क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी एवं सांसद सुरेश कश्यप की रैली में शामिल होने गया था. जिसकी तस्वीर भी सामने आई, जिसे चुनाव आयोग के सी-विजिल एप पर डाला गया और फिर एक्शन हो गया. निलंबित शिक्षक का हैडक्वार्टर शिलाई भेजा गया है.

क्या कोई सरकारी कर्मचारी सियासी रैलियों में शामिल नहीं हो सकता ?

दरअसल हिमाचल में चुनाव के मद्देनजर आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू है. चुनाव आयोग जैसे ही किसी चुनाव की तारीखों का ऐलान करता है तो विधानसभा चुनाव के दौरा राज्य में और लोकसभा चुनाव के लिए देशभर में मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट यानी आदर्श आचार संहिता प्रभावी हो जाती है. इस दौरान चुनाव आयोग की शक्तियां बढ़ जाती हैं और आचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग की इजाज़त के बिना किसी कर्माचरी या अधिकारी का तबादला भी नहीं है सकता है. ऐसे में इस दौरान सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए भी कुछ बंदिशें होती हैं.

कोई भी सरकारी कर्मचारी नौकरी में रहते हुए ना इलेक्शन लड़ सकता है और ना ही राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा ले सकते हैं. सरकारी कर्मचारी किसी भी पॉलिटिक्ल पार्टी को ज्वाइन नहीं कर सकता है. ड्यूटी के दौरान ना किसी पार्टी की रैली में हिस्सा है और ना ही किसी तरह का भाषण और नारे लगा सकता है. यहां तक की किसी पार्टी का झंडा भी नहीं पकड़ सकता है. ऐसे नियम सरकारी कर्मचारियों की निष्पक्षता के लिए बनाया जाता है, प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिए इस तरह के कानून बना रखें हैं. यदि कोई कर्मचारी इन नियमों को भंग करता है तो उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है. सहायक निर्वाचन अधिकारी राजकुमार ने बताया कि किसी भी राजनीतिक गतिविधियों में सरकारी कर्मचारी हिस्सा नहीं ले सकते हैं.

राज्य सरकार की तरह केंद्र सरकार के अफसर और कर्मचारी भी चुनाव नहीं लड़ सकते. रिटायरमेंट और वीआरएस के बाद कर्मचारी चुनाव लड़ सकते हैं साथ ही किसी भी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं. यदि वीआरएस लेकर चुनाव लड़ने वाला कर्मचारी इलेक्शन हार जाए तो वो अपना वीआरएस वापस लेने के लिए सरकार के पास आवेदन दे सकता है. बता दें कि हिमाचल के पूर्व आईपीएस अफसर एएन शर्मा ने चुनाव लडऩे के लिए नौकरी छोड़ दी थी. बाद में उन्हें पार्टी की तरफ से टिकट नहीं मिला था. नौकरी छोड़ने के बाद भाजपा सरकार ने उन्हें फिर से नियुक्ति दे दी थी.

Last Updated : May 18, 2024, 8:09 PM IST
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