जबलपुर। मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार बीते 18 सालों के शासनकाल के दौरान अपनी उपलब्धियां गिनवाते हुए नहीं थकती है, लेकिन वस्तु स्थिति कुछ और है. असर नाम की संस्था ने मध्य प्रदेश के दो बड़े जिले भोपाल और जबलपुर की ग्रामीण इलाकों के 14 से 18 साल के बच्चों के बीच में अध्ययन किया. जहां इन बच्चों से बाकायदा कुछ मौखिक सवाल पूछे गए और कुछ लिखित प्रश्न पत्र दिए गए. इसके आधार पर जो रिपोर्ट बनी है. उसे असर नाम की संस्था ने सार्वजनिक किया है. असर ने केवल मध्य प्रदेश नहीं बल्कि देश के 26 राज्यों के अलग-अलग जिलों के ग्रामीण परिवेश में पढ़ने वाले बच्चों के आंकड़े जारी किए हैं. इसमें मध्य प्रदेश के जबलपुर और भोपाल जैसे बड़े शहरों की ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले बच्चों की स्थिति चिंताजनक है. एनुअल स्टेट्स ऑफ एजूकेशन रिपोर्ट 2023
अंग्रेजी और इंग्लिश में फर्क नहीं समझते
एआईई आर की 2023 की रिपोर्ट चौंकाने वाली है. इसमें संस्था की ओर से जबलपुर और भोपाल की ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले 14 से 18 साल के बच्चों का टेस्ट लिया गया. इनमें ज्यादातर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हैं. इन बच्चों को दूसरी क्लास की अंग्रेजी नहीं आती. यह दूसरी क्लास की अंग्रेजी के सरल सहज से वाक्य नहीं पढ़ पाते. जबलपुर और भोपाल के ग्रामीण इलाकों के 63% बच्चों को सामान्य अंग्रेजी नहीं आती.
गुणा भाग नहीं आता
ग्रामीण इलाकों में बिना अंग्रेजी के तो जीवन चल सकता है, लेकिन जिंदगी में खाने और कमाने के लिए गुणा भाग आना बहुत जरूरी है, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि असर की रिपोर्ट में यह स्पष्ट है की लगभग 60% बच्चों को जिनकी उम्र 14 से 18 साल है. उन्हें बहुत सरल से गुणा और भाग करने नहीं आते. इनमें पूरा अध्ययन सरकारी स्कूल के बच्चों के बीच में किया गया.
ब्याज का कैलकुलेशन
₹20000 का यदि साल भर का ब्याज 12% के दर से मिलता है, तो किसी ग्राहक को कितना ब्याज मिलेगा. इस सवाल के जवाब में भोपाल के मात्र 10% बच्चे जवाब दे पाए और जबलपुर के तो मात्र चार प्रतिशत बच्चों ने ही इस सवाल का सही जवाब दिया. 14 से 18 साल के इन बच्चों में मात्र 50% बच्चे ऐसे हैं जिन्हें रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली इकाइयों के बारे में पूरी जानकारी है. मसलन लगभग 40% बच्चों को तो यह पता नहीं है की वजन तोला कैसे जाता है. कितने ग्राम में एक पाव और कितने ग्राम में आधा किलो हो जाता है. वहीं लगभग 50% बच्चे लंबाई-चौड़ाई नापने में फिट, मीटर और सेंटीमीटर के माध्यम से नाप जोख नहीं कर पाते.
मोबाइल के इस्तेमाल में बहुत आगे
इसी संस्था ने मोबाइल के उपयोग को लेकर जब जबलपुर और भोपाल के ग्रामीण इलाकों के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का अध्ययन किया तो लगभग 90% बच्चे मोबाइल चलाना जानते हैं, लेकिन इसमें भी ज्यादातर लड़कों और लड़कियों को केवल मोबाइल के सामान्य फीचर आते हैं. वह मोबाइल से जुड़ी हुई सुरक्षात्मक गतिविधियां सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाते. मसलन केवल 33% लड़कियां ही सोशल मीडिया पर अपने प्लेटफार्म प्राइवेट कर पाए. वहीं 60% से ज्यादा बच्चों को तो सोशल मीडिया का पासवर्ड चेंज करना नहीं आता.
हालांकि मोबाइल के बारे में शिक्षा स्कूल में नहीं दी जाती. इसलिए इसका ठीकरा सरकार पर नहीं फोड़ा जा सकता. ज्यादातर लड़कियों के पास मोबाइल नहीं है. ग्रामीण इलाकों में केवल 14 से 18 वर्ष के लड़कियों में केवल 9% लड़कियों के पास ही मोबाइल है, लेकिन इतनी कम संख्या होने के बाद भी सोशल मीडिया का दुरुपयोग और इसकी वजह से उपजने वाली समस्याएं इन इलाकों में देखी जा सकती है.
भोपाल, जबलपुर के 14-18 साल के 68% पढ़ पाए कक्षा 2 का पाठ
एएसईआर में मध्यप्रदेश के दो जिलों में सर्वेक्षण किया गया. जिसमें भोपाल और जबलपुर शामिल है. सर्वे में ये तथ्य सामने आया है कि भोपाल के 14-18 साल के 68.8 प्रतिशत और जबलपुर के 68 प्रतिशत युवा ही कक्षा दो का पाठ पढ़ पाए. वहीं भोपाल के 38.1 प्रतिशत और जबलपुर के 36.2 प्रतिशत युवा ही गणित का सवाल हल कर पाए. वहीं छात्रों के लिए अंग्रेजी भी सर्वे में बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई. भोपाल के 50.4 प्रतिशत और जबलपुर के 35.4 प्रतिशत युवा ही अंग्रेजी का वाक्य पढ़ पाए.
भोपाल में 22.9 और जबलपुर के 36.5 प्रतिशत छात्र-छात्राओं में नहीं लिया एडमिशन
जबलपुर और भोपाल के गांव में स्कूल की पढ़ाई छोड़ने के बाद छात्र और छात्राएं कहीं नामांकन नहीं करवाते. ना तो यह आगे की पढ़ाई जारी करते हैं और ना ही उनकी जानकारी सरकारी आंकड़ों में कहीं होती है. यहां तक की रोजगार विभाग के पास भी उनके आंकड़े नहीं होते. रिपोर्ट में भोपाल में 22.9 प्रतिशत छात्र ऐसे मिले और जबलपुर में यह संख्या लगभग 36.5 प्रतिशत की है.
इस रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया है कि मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है और शिक्षा के नाम पर सरकार भी खाना पूर्ति कर रही है. बड़ी तादाद में ग्रामीण युवाओं के बेरोजगार होने की बड़ी वजह है यही है अब सरकार इन रिपोर्ट को कितनी गंभीरता से लेती है यह देखना होगा.