ETV Bharat / opinion

कक्षा 5 और 8 में डिटेंशन सिस्टम को फिर से लागू करना समय की मांग - DETENTION SYSTEM IN CLASS 5 AND 8

केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र के तहत कक्षा 5 और 8 के लिए नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है. इसे स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग (एससीईआरटी) के रिटायर प्रोफेसर डॉ. जी जगन मोहन राव ने विस्तार से समझाया है.

Re-Introduction of Detention System in Class V and VIII is the need of the hour
प्रतीकात्मक तस्वीर (ANI)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 13, 2025, 4:58 PM IST

भारत सरकार की नो-डिटेंशन पॉलिसी 2009 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत शुरू की गई थी. इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि छात्र स्कूल छोड़े बिना कम से कम प्रारंभिक शिक्षा (Elementary Education) पूरी करें. वार्षिक स्थिति शिक्षा रिपोर्ट (ASER), 2022 ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ग्रामीण भारत में कक्षा 3 के केवल 20 प्रतिशत छात्र ही कक्षा 2 के स्तर की पाठ्यपुस्तक को अपनी क्षेत्रीय भाषा में धाराप्रवाह रूप से पढ़ सकते हैं.

नॉन-डिटेंशन पॉलिसी के कारण छात्रों और शिक्षकों में सुस्ती आई है, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक मानकों में गिरावट देखी गई. 2019 में, राज्यों को नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने का निर्णय लेने की अनुमति देने के लिए RTE अधिनियम में संशोधन किया गया था. तब से दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेशों सहित 18 राज्यों ने नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है.

केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) के तहत कक्षा 5 और 8 के लिए नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है. इसमें केंद्रीय विद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूल और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय सहित 3000 से अधिक केंद्रीय विद्यालय शामिल हैं. अब इस पर निर्णय लेने की बारी तेलुगु भाषी राज्यों की है. इस संदर्भ में, अविभाजित आंध्र प्रदेश राज्य में नो-डिटेंशन पॉलिसी के ऐतिहासिक विकास, मूल्यांकन प्रक्रिया, अंतराल और उभरते समाधान पर इस लेख में चर्चा की गई है.

  • 2

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में परिकल्पना की गई है कि स्कूली शिक्षा में मौजूदा 10+2 संरचना को 3 से18 वर्ष की आयु को कवर करते हुए 5+3+3+4 की नई शैक्षणिक और पाठ्यचर्या संरचना के साथ संशोधित किया जाएगा. वर्तमान में, 3 से 6 आयु वर्ग के बच्चे 10+2 संरचना में शामिल नहीं हैं, क्योंकि कक्षा 1 6 वर्ष की आयु से शुरू होती है दोनों मिलकर 3 से 8 वर्ष की आयु को कवर करते हैं.

प्रारंभिक चरण, कक्षा 3 से 5 जो 8 से11 साल की आयु को कवर करती है. मध्य चरण में कक्षा 6 से 8 जो 11 से14 साल की आयु को कवर करती है और माध्यमिक चरण - कक्षा 9 से12 दो चरणों में, यानी पहले चरण में 9 और 10 तथा दूसरे चरण में 11 और 12 जो 14 से18 साल की आयु को कवर करती है. नीति में छात्र विकास के लिए मूल्यांकन प्रक्रियाओं में परिवर्तन की परिकल्पना की गई है. जबकि कक्षा 10 (एसएससी) और 12 (इंटरमीडिएट) के लिए बोर्ड परीक्षाएं जारी रहेंगी, ताकि छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, प्रधानाचार्यों और पूरी स्कूली शिक्षा प्रणाली के लाभ के लिए न केवल कक्षा 10 और 12 के अंत में, बल्कि पूरे स्कूली वर्षों में प्रगति को ट्रैक किया जा सके.

सभी छात्र कक्षा 3, 5 और 8 में स्कूली परीक्षा देंगे, जो उपयुक्त प्राधिकारी (बोर्ड) द्वारा आयोजित की जाएगी. चरण 8 के अंत में केवल कुछ ही छात्रों में अपेक्षित योग्यताएं होती हैं, जबकि बड़ी संख्या में छात्रों में साक्षरता और अंकगणित में योग्यताएं नहीं होती हैं. उपलब्धि स्तर में अंतर अप्रभावी पाठ्यक्रम संचालन और नो डिटेंशन सिस्टम के कारण है. इस संदर्भ में कुछ संशोधनों के साथ चरण 5 और 8 में डिटेंशन सिस्टम शुरू करने की परिकल्पना की गई है.

1966 में कोठारी आयोग की रिपोर्ट ने संकेत दिया था कि धीरे-धीरे स्कूल स्तर पर डिटेंशन की प्रणाली को समाप्त किया जाना चाहिए, और इसकी जगह कक्षा में शिक्षण और मूल्यांकन के एक नए पैटर्न को अपनाया जाना चाहिए.

  • 3

यह स्कूल स्तर पर डिटेंशन को वास्तव में अप्रासंगिक और अनावश्यक बना देगा. भले ही कोठारी आयोग ने कक्षा1 के स्तर पर डिटेंशन को समाप्त करने का सुझाव देकर इस पर काफी सावधानी बरती थी, जहां वित्तीय, समाजशास्त्रीय और शैक्षणिक जैसे विभिन्न कारणों से ठहराव और बर्बादी की घटना सबसे अधिक थी. आंध्र प्रदेश सरकार ने इससे भी आगे बढ़कर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के पूरे दायरे में डिटेंशन सिस्टम को समाप्त कर दिया. केवल दो स्तरों पर डिटेंशन के सिद्धांत को बरकरार रखा, अर्थात 7वीं कक्षा जो प्राथमिक शिक्षा में अंतिम बिंदु है और माध्यमिक शिक्षा में 10वीं कक्षा.

आंध्र प्रदेश सरकार ने 27 नवंबर1971 के जी.ओ. एम.एस. संख्या 1781 के तहत गतिरोध और वेस्टेज की समस्याओं को दूर करने के लिए नई विकास नीति शुरू की. कक्षा 7 और 10 को छोड़कर सभी कक्षाओं में डिटेंशन सिस्टम को समाप्त कर दिया गया और निरंतर और व्यापक शिक्षा की एक नई नीति शुरू की गई. नई प्रक्रिया में शामिल व्यापक प्रक्रिया नीचे दी गई है.

⦁ शिक्षा का प्राथमिक चरण (कक्षा I से IV)

नई नीति के अनुसार, शिक्षकों को परीक्षण तैयार करने होंगे, जिसमें परिभाषित विशिष्ट उद्देश्यों के आधार पर मौखिक, लिखित और व्यावहारिक पहलू शामिल होंगे. परिणामों को दो महत्वपूर्ण अभिलेखों, अर्थात प्रगति कार्ड और संचयी रिकॉर्ड में व्यवस्थित रूप से दर्ज किया जाना है. होम असाइनमेंट और क्लास वर्क को भी मूल्यांकन के एक भाग के रूप में माना जाना चाहिए.

⦁ शिक्षा का उच्च प्राथमिक चरण (कक्षा V से VII)

वर्ष का संपूर्ण पाठ्यक्रम सुविधाजनक यूनिट में विभाजित है. इन यूनिट के आधार पर, यूनिट टेस्ट आयोजित किए जाते हैं. इन शिक्षक द्वारा बनाए गए टेस्ट के रिजल्ट प्रोग्रेस कार्ड में दर्ज किए जाने हैं. यूनिट टेस्ट के अलावा, क्वार्टरली एग्जाम, हॉफ इयरली और एनुअल एग्जाम आयोजित की जानी हैं. साथ ही ओवऑल असेसमेंट ग्रेड के रूप में क्युमुलेटिव रिकॉर्ड में दर्ज किया जाना है.

  • 4

उच्च प्राथमिक चरण के अंत में, जिला स्तर पर एक जनरल प्रमोशन एग्जामिनेशन आयोजित की जानी है. जिला शिक्षा अधिकारी सामान्य परीक्षा बोर्ड के अध्यक्ष हैं और उन्हें सामान्य परीक्षा आयोजित करने और उच्च प्राथमिक विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार है. अलग-अलग टेस्ट के लिए दिया जाने वाला वेटेज इस प्रकार है:

क्वार्टरली और हॉफ इयरली परीक्षाओं को 25 फीसदी वेटेज और वार्षिक परीक्षा को 50 प्रतिशत वेटेज.

  • उपस्थिति:

प्रत्येक छात्र और प्राथमिक स्तर के लिए न्यूनतम उपस्थिति 80 प्रतिशत और माध्यमिक स्तर के लिए 90 प्रतिशत है. अपरिहार्य कारणों से विशेष मामलों में 10 प्रतिशत उपस्थिति माफ करने का अधिकार प्रधानाध्यापक को है. विभिन्न परीक्षाओं में उपस्थिति अनिवार्य है और यदि कुछ छात्र अपरिहार्य कारणों से परीक्षा देने में असफल रहते हैं, तो परीक्षाएं दोबारा ली जाती हैं. यदि छात्र का प्रदर्शन सभी परीक्षाओं और टेस्ट में संतोषजनक है, तो उपस्थिति की आवश्यकता 60 प्रतिशत हो सकती है.

यह अपेक्षित पद्धति होने के कारण, मूल्यांकन प्रक्रिया के वर्तमान परिदृश्य को संक्षेप में इस प्रकार बताया जा सकता है:-

कक्षा-5 के अंत में ब्लॉक स्तर (अब मंडल) परीक्षा बहुत पहले समाप्त कर दी गई थी. कक्षा-7 की परीक्षा जो जिला स्तर पर आयोजित की जाती थी, उसे भी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण समाप्त कर दिया गया था. केवल कक्षा-10 के अंत में, यानी एसएससी, बोर्ड परीक्षा आयोजित की जाती है. एसएससी स्तर पर अपनाई गई मूल्यांकन प्रक्रियाएं और भी बदतर हो गई हैं.

प्रश्नपत्र लीक होने जैसी धमकियों से बचने के लिए बोर्ड ने बहुत ही जटिल प्रक्रिया अपनाई है. जिला स्तर पर गुणवत्ता नियंत्रण अधिकारी डीईओ को परीक्षा आयोजित करने और मौके पर मूल्यांकन में भाग लेने में अधिक समय देना पड़ता है। दुर्भाग्य से एसएससी परीक्षाओं के परिणाम माध्यमिक विद्यालयों के मानकों का आकलन करने के संकेतक बन गए हैं.

  • 5

इसी को ध्यान में रखते हुए प्राइवेट स्कूलों से कंपटीशन करने के लिए स्कूली शिक्षा के अधिकारियों ने स्कूलों को लक्ष्य तय कर दिए हैं. नतीजतन, स्कूल लक्ष्य हासिल करने के लिए अनुचित तरीके अपना रहे हैं. मार्च 2024 में जहां एसएससी का पास कार्टेज 91.31% है, वहीं इंटरमीडिएट प्रथम वर्ष का पास कार्टेज 60.01% है. दसवीं कक्षा में बोर्ड परीक्षा के लिए दिया जाने वाला वेटेज 80% और आंतरिक मूल्यांकन के लिए 20% है. पास मार्क 35% है.

यानी अगर कोई छात्र बोर्ड परीक्षा में 28 अंक लाता है तो वह परीक्षा पास हो जाएगा. बोर्ड परीक्षा में छात्र को मिले 28 अंक उसके वास्तविक प्रदर्शन के लिए नहीं जोड़े जा सकते. पता चला है कि परीक्षा केंद्र पर कदाचार रोकने के लिए उठाए गए कड़े कदमों के बावजूद परीक्षा केंद्र पर बड़े पैमाने पर कदाचार के मामले सामने आते हैं. पेपर मूल्यांकन में सब्जेक्टिविटी से इनकार नहीं किया जा सकता. इस प्रकार, एसएससी में प्राप्त अंक छात्र की वास्तविक योग्यता और प्रदर्शन को नहीं दर्शाते.

मूल्यांकन प्रक्रिया
स्कूल स्तर पर रचनात्मक और योगात्मक मूल्यांकन किया जाता है. फॉर्मेटिव असेसमेंट (रचनात्मक मूल्यांकन) के लिए 20 अंक और योगात्मक मूल्यांकन (Summative Assessment) के लिए 80 अंक निर्धारित किए गए हैं. प्रत्येक क्षेत्र में छात्रों के सीखने के परिणामों का परीक्षण करने के लिए एप्रोप्रिएट वेटेज दिया जाता है. प्रोजेक्ट वर्क दिया जाता है. प्राप्त अंकों को प्रगति रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है. हालांकि परीक्षण प्रक्रिया और रिपोर्टिंग प्रणाली वैज्ञानिक लगती है, लेकिन अपनाई गई प्रक्रिया बोझिल लगती है.

सरकारी स्कूलों में न तो अभिभावक और न ही छात्र परीक्षाओं पर ध्यान देते हैं. बताया जाता है कि शिक्षकों के लिए परीक्षा आयोजित करना एक कठिन काम बन गया है. इसके अलावा शिक्षकों के लिए स्व-मूल्यांकन प्रक्रिया शुरू की गई है जो छात्रों के प्रदर्शन पर आधारित है. परीक्षाओं में छात्रों का प्रदर्शन शिक्षकों की योग्यता और प्रतिबद्धता का आकलन करने का संकेतक बन गया है.

  • 6

निष्कर्ष
नॉन-डिटेंशन पॉलिसी के कारण छात्रों, शिक्षकों और शिक्षाविदों में असंतुष्टि की भावना पैदा हुई है, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक मानकों में गिरावट आई है. निचले स्तरों में आवश्यक ज्ञान और कौशल के बिना स्वचालित पदोन्नति के कारण माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तरों पर असफलता दर में वृद्धि हुई है. नीति ने छात्रों और शिक्षकों के बीच जवाबदेही को कम कर दिया है, क्योंकि छात्रों को उनके प्रदर्शन की परवाह किए बिना स्वचालित रूप से अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाता है.

नीति खराब सीखने के परिणामों, अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचे की कमी, मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण और सामाजिक-आर्थिक कारकों के मूल कारणों को संबोधित नहीं करती है. माध्यमिक स्तर पर शैक्षणिक संस्थान ऐसे प्रमाण पत्र जारी करने के केंद्र बन गए हैं जो सीखने के परिणामों पर आधारित नहीं हैं बल्कि केवल स्कूल में उपस्थित होने पर आधारित हैं। वे नकली प्रमाण पत्रों के समान ही अच्छे हैं.

शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को सशक्त बनाना है. सशक्तीकरण तभी होता है जब विद्यार्थी योग्यता प्राप्त करता है. जब योग्यता प्राप्त नहीं होती तो शिक्षा का क्या उपयोग? इन प्रमाणपत्रों का क्या मूल्य? माध्यमिक स्तर पर कम उपलब्धि प्राथमिक स्तर पर कम उपलब्धि का परिणाम है. इसलिए, प्राथमिक शिक्षा जो कि आधार स्तर है, बहुत महत्वपूर्ण है. राष्ट्रीय नीति 2020 में प्री-प्राइमरी सेक्शन को प्राइमरी में विलय करने की परिकल्पना की गई है.

प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक, भले ही DIET में प्रशिक्षित हों, लेकिन उनके पास प्री-प्राइमरी कक्षाओं को संभालने के लिए आवश्यक शैक्षणिक कौशल नहीं हैं. इसलिए, प्री-प्राइमरी प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति की आवश्यकता है. जबकि आंगनवाड़ी 3 वर्ष की आयु के बच्चों की देखभाल करती हैं. प्राथमिक स्तर पर, सीखने का ध्यान सीखने के लिए सीखना होना चाहिए. बच्चे जन्मजात क्षमताओं के साथ पैदा होते हैं.

इसलिए प्राथमिक स्तर पर शिक्षक को स्व-शिक्षण गतिविधियां प्रदान करनी होती हैं, जिससे सीखना हमेशा जारी रहता है. यदि प्रारंभिक चरण में कक्षा की गतिविधियां बच्चों को शामिल करते हुए आकर्षक हैं, तो सीखना प्रभावी और स्वचालित हो जाता है. इस प्रकार बच्चे को न केवल योग्यताएं मिलती हैं बल्कि स्कूली शिक्षा के प्रति रुचि भी विकसित होती है. यदि इस बात का ध्यान रखा जाए तो पढ़ाई छोड़ने का सवाल ही नहीं उठेगा.

  • 7

कक्षा 5 और 8 में डिटेंशन सिस्टम लागू होने से मानकों का रखरखाव सुनिश्चित होगा. यह सिस्टम छात्रों को ट्रैक पर रखेगा, पढ़ाई में उनकी रुचि विकसित करेगा. जिसके परिणामस्वरूप वे कक्षा की गतिविधियों में शामिल होंगे और चुनौतीपूर्ण कार्यों के रूप में परीक्षा देंगे. इस प्रकार, यदि प्राथमिक स्तर पर अच्छे मानक बनाए रखे जाते हैं, तो माध्यमिक स्तर पर छात्र निश्चित रूप से सीखने के परिणाम प्राप्त करेंगे.

शिक्षा के प्रति लोगों में बहुत जागरूकता है. गरीब से गरीब व्यक्ति ने शिक्षा के महत्व को पहचाना है और अपने बच्चों को स्कूल भेज रहा है. यदि कक्षा की गतिविधियां आकर्षक हैं, यदि बच्चे के सीखने के परिणाम उत्तरोत्तर दिखाई देते हैं, व्यवहार में बदलाव होता है, तो कोई भी अभिभावक बच्चे को स्कूल से नहीं हटाता है. डिटेंशन सिस्टम लागू होने से ड्रॉपआउट होने के खिलाफ तर्क काल्पनिक हैं.

यह कहा गया है कि, देश के 18 राज्यों ने पहले ही कक्षा 5 और 8 में डिटेंशन पॉलिसी को अपना लिया है, जिसमें केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रबंधित स्कूल भी शामिल हैं. जाहिर है कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की राज्य सरकारों के पास कक्षा 5 और 8 में डिटेंशन पॉलिसी के प्रस्ताव को स्वीकार करने और प्राथमिक शिक्षा पर उचित ध्यान देने के साथ इसे सही मायने में लागू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

ये भी पढ़ें: 5वीं और 8वीं क्लास में अब फेल होंगे छात्र? सरकार ने खत्म की 'नो डिटेंशन पॉलिसी

भारत सरकार की नो-डिटेंशन पॉलिसी 2009 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत शुरू की गई थी. इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि छात्र स्कूल छोड़े बिना कम से कम प्रारंभिक शिक्षा (Elementary Education) पूरी करें. वार्षिक स्थिति शिक्षा रिपोर्ट (ASER), 2022 ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ग्रामीण भारत में कक्षा 3 के केवल 20 प्रतिशत छात्र ही कक्षा 2 के स्तर की पाठ्यपुस्तक को अपनी क्षेत्रीय भाषा में धाराप्रवाह रूप से पढ़ सकते हैं.

नॉन-डिटेंशन पॉलिसी के कारण छात्रों और शिक्षकों में सुस्ती आई है, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक मानकों में गिरावट देखी गई. 2019 में, राज्यों को नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने का निर्णय लेने की अनुमति देने के लिए RTE अधिनियम में संशोधन किया गया था. तब से दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेशों सहित 18 राज्यों ने नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है.

केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) के तहत कक्षा 5 और 8 के लिए नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है. इसमें केंद्रीय विद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूल और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय सहित 3000 से अधिक केंद्रीय विद्यालय शामिल हैं. अब इस पर निर्णय लेने की बारी तेलुगु भाषी राज्यों की है. इस संदर्भ में, अविभाजित आंध्र प्रदेश राज्य में नो-डिटेंशन पॉलिसी के ऐतिहासिक विकास, मूल्यांकन प्रक्रिया, अंतराल और उभरते समाधान पर इस लेख में चर्चा की गई है.

  • 2

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में परिकल्पना की गई है कि स्कूली शिक्षा में मौजूदा 10+2 संरचना को 3 से18 वर्ष की आयु को कवर करते हुए 5+3+3+4 की नई शैक्षणिक और पाठ्यचर्या संरचना के साथ संशोधित किया जाएगा. वर्तमान में, 3 से 6 आयु वर्ग के बच्चे 10+2 संरचना में शामिल नहीं हैं, क्योंकि कक्षा 1 6 वर्ष की आयु से शुरू होती है दोनों मिलकर 3 से 8 वर्ष की आयु को कवर करते हैं.

प्रारंभिक चरण, कक्षा 3 से 5 जो 8 से11 साल की आयु को कवर करती है. मध्य चरण में कक्षा 6 से 8 जो 11 से14 साल की आयु को कवर करती है और माध्यमिक चरण - कक्षा 9 से12 दो चरणों में, यानी पहले चरण में 9 और 10 तथा दूसरे चरण में 11 और 12 जो 14 से18 साल की आयु को कवर करती है. नीति में छात्र विकास के लिए मूल्यांकन प्रक्रियाओं में परिवर्तन की परिकल्पना की गई है. जबकि कक्षा 10 (एसएससी) और 12 (इंटरमीडिएट) के लिए बोर्ड परीक्षाएं जारी रहेंगी, ताकि छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, प्रधानाचार्यों और पूरी स्कूली शिक्षा प्रणाली के लाभ के लिए न केवल कक्षा 10 और 12 के अंत में, बल्कि पूरे स्कूली वर्षों में प्रगति को ट्रैक किया जा सके.

सभी छात्र कक्षा 3, 5 और 8 में स्कूली परीक्षा देंगे, जो उपयुक्त प्राधिकारी (बोर्ड) द्वारा आयोजित की जाएगी. चरण 8 के अंत में केवल कुछ ही छात्रों में अपेक्षित योग्यताएं होती हैं, जबकि बड़ी संख्या में छात्रों में साक्षरता और अंकगणित में योग्यताएं नहीं होती हैं. उपलब्धि स्तर में अंतर अप्रभावी पाठ्यक्रम संचालन और नो डिटेंशन सिस्टम के कारण है. इस संदर्भ में कुछ संशोधनों के साथ चरण 5 और 8 में डिटेंशन सिस्टम शुरू करने की परिकल्पना की गई है.

1966 में कोठारी आयोग की रिपोर्ट ने संकेत दिया था कि धीरे-धीरे स्कूल स्तर पर डिटेंशन की प्रणाली को समाप्त किया जाना चाहिए, और इसकी जगह कक्षा में शिक्षण और मूल्यांकन के एक नए पैटर्न को अपनाया जाना चाहिए.

  • 3

यह स्कूल स्तर पर डिटेंशन को वास्तव में अप्रासंगिक और अनावश्यक बना देगा. भले ही कोठारी आयोग ने कक्षा1 के स्तर पर डिटेंशन को समाप्त करने का सुझाव देकर इस पर काफी सावधानी बरती थी, जहां वित्तीय, समाजशास्त्रीय और शैक्षणिक जैसे विभिन्न कारणों से ठहराव और बर्बादी की घटना सबसे अधिक थी. आंध्र प्रदेश सरकार ने इससे भी आगे बढ़कर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के पूरे दायरे में डिटेंशन सिस्टम को समाप्त कर दिया. केवल दो स्तरों पर डिटेंशन के सिद्धांत को बरकरार रखा, अर्थात 7वीं कक्षा जो प्राथमिक शिक्षा में अंतिम बिंदु है और माध्यमिक शिक्षा में 10वीं कक्षा.

आंध्र प्रदेश सरकार ने 27 नवंबर1971 के जी.ओ. एम.एस. संख्या 1781 के तहत गतिरोध और वेस्टेज की समस्याओं को दूर करने के लिए नई विकास नीति शुरू की. कक्षा 7 और 10 को छोड़कर सभी कक्षाओं में डिटेंशन सिस्टम को समाप्त कर दिया गया और निरंतर और व्यापक शिक्षा की एक नई नीति शुरू की गई. नई प्रक्रिया में शामिल व्यापक प्रक्रिया नीचे दी गई है.

⦁ शिक्षा का प्राथमिक चरण (कक्षा I से IV)

नई नीति के अनुसार, शिक्षकों को परीक्षण तैयार करने होंगे, जिसमें परिभाषित विशिष्ट उद्देश्यों के आधार पर मौखिक, लिखित और व्यावहारिक पहलू शामिल होंगे. परिणामों को दो महत्वपूर्ण अभिलेखों, अर्थात प्रगति कार्ड और संचयी रिकॉर्ड में व्यवस्थित रूप से दर्ज किया जाना है. होम असाइनमेंट और क्लास वर्क को भी मूल्यांकन के एक भाग के रूप में माना जाना चाहिए.

⦁ शिक्षा का उच्च प्राथमिक चरण (कक्षा V से VII)

वर्ष का संपूर्ण पाठ्यक्रम सुविधाजनक यूनिट में विभाजित है. इन यूनिट के आधार पर, यूनिट टेस्ट आयोजित किए जाते हैं. इन शिक्षक द्वारा बनाए गए टेस्ट के रिजल्ट प्रोग्रेस कार्ड में दर्ज किए जाने हैं. यूनिट टेस्ट के अलावा, क्वार्टरली एग्जाम, हॉफ इयरली और एनुअल एग्जाम आयोजित की जानी हैं. साथ ही ओवऑल असेसमेंट ग्रेड के रूप में क्युमुलेटिव रिकॉर्ड में दर्ज किया जाना है.

  • 4

उच्च प्राथमिक चरण के अंत में, जिला स्तर पर एक जनरल प्रमोशन एग्जामिनेशन आयोजित की जानी है. जिला शिक्षा अधिकारी सामान्य परीक्षा बोर्ड के अध्यक्ष हैं और उन्हें सामान्य परीक्षा आयोजित करने और उच्च प्राथमिक विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार है. अलग-अलग टेस्ट के लिए दिया जाने वाला वेटेज इस प्रकार है:

क्वार्टरली और हॉफ इयरली परीक्षाओं को 25 फीसदी वेटेज और वार्षिक परीक्षा को 50 प्रतिशत वेटेज.

  • उपस्थिति:

प्रत्येक छात्र और प्राथमिक स्तर के लिए न्यूनतम उपस्थिति 80 प्रतिशत और माध्यमिक स्तर के लिए 90 प्रतिशत है. अपरिहार्य कारणों से विशेष मामलों में 10 प्रतिशत उपस्थिति माफ करने का अधिकार प्रधानाध्यापक को है. विभिन्न परीक्षाओं में उपस्थिति अनिवार्य है और यदि कुछ छात्र अपरिहार्य कारणों से परीक्षा देने में असफल रहते हैं, तो परीक्षाएं दोबारा ली जाती हैं. यदि छात्र का प्रदर्शन सभी परीक्षाओं और टेस्ट में संतोषजनक है, तो उपस्थिति की आवश्यकता 60 प्रतिशत हो सकती है.

यह अपेक्षित पद्धति होने के कारण, मूल्यांकन प्रक्रिया के वर्तमान परिदृश्य को संक्षेप में इस प्रकार बताया जा सकता है:-

कक्षा-5 के अंत में ब्लॉक स्तर (अब मंडल) परीक्षा बहुत पहले समाप्त कर दी गई थी. कक्षा-7 की परीक्षा जो जिला स्तर पर आयोजित की जाती थी, उसे भी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण समाप्त कर दिया गया था. केवल कक्षा-10 के अंत में, यानी एसएससी, बोर्ड परीक्षा आयोजित की जाती है. एसएससी स्तर पर अपनाई गई मूल्यांकन प्रक्रियाएं और भी बदतर हो गई हैं.

प्रश्नपत्र लीक होने जैसी धमकियों से बचने के लिए बोर्ड ने बहुत ही जटिल प्रक्रिया अपनाई है. जिला स्तर पर गुणवत्ता नियंत्रण अधिकारी डीईओ को परीक्षा आयोजित करने और मौके पर मूल्यांकन में भाग लेने में अधिक समय देना पड़ता है। दुर्भाग्य से एसएससी परीक्षाओं के परिणाम माध्यमिक विद्यालयों के मानकों का आकलन करने के संकेतक बन गए हैं.

  • 5

इसी को ध्यान में रखते हुए प्राइवेट स्कूलों से कंपटीशन करने के लिए स्कूली शिक्षा के अधिकारियों ने स्कूलों को लक्ष्य तय कर दिए हैं. नतीजतन, स्कूल लक्ष्य हासिल करने के लिए अनुचित तरीके अपना रहे हैं. मार्च 2024 में जहां एसएससी का पास कार्टेज 91.31% है, वहीं इंटरमीडिएट प्रथम वर्ष का पास कार्टेज 60.01% है. दसवीं कक्षा में बोर्ड परीक्षा के लिए दिया जाने वाला वेटेज 80% और आंतरिक मूल्यांकन के लिए 20% है. पास मार्क 35% है.

यानी अगर कोई छात्र बोर्ड परीक्षा में 28 अंक लाता है तो वह परीक्षा पास हो जाएगा. बोर्ड परीक्षा में छात्र को मिले 28 अंक उसके वास्तविक प्रदर्शन के लिए नहीं जोड़े जा सकते. पता चला है कि परीक्षा केंद्र पर कदाचार रोकने के लिए उठाए गए कड़े कदमों के बावजूद परीक्षा केंद्र पर बड़े पैमाने पर कदाचार के मामले सामने आते हैं. पेपर मूल्यांकन में सब्जेक्टिविटी से इनकार नहीं किया जा सकता. इस प्रकार, एसएससी में प्राप्त अंक छात्र की वास्तविक योग्यता और प्रदर्शन को नहीं दर्शाते.

मूल्यांकन प्रक्रिया
स्कूल स्तर पर रचनात्मक और योगात्मक मूल्यांकन किया जाता है. फॉर्मेटिव असेसमेंट (रचनात्मक मूल्यांकन) के लिए 20 अंक और योगात्मक मूल्यांकन (Summative Assessment) के लिए 80 अंक निर्धारित किए गए हैं. प्रत्येक क्षेत्र में छात्रों के सीखने के परिणामों का परीक्षण करने के लिए एप्रोप्रिएट वेटेज दिया जाता है. प्रोजेक्ट वर्क दिया जाता है. प्राप्त अंकों को प्रगति रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है. हालांकि परीक्षण प्रक्रिया और रिपोर्टिंग प्रणाली वैज्ञानिक लगती है, लेकिन अपनाई गई प्रक्रिया बोझिल लगती है.

सरकारी स्कूलों में न तो अभिभावक और न ही छात्र परीक्षाओं पर ध्यान देते हैं. बताया जाता है कि शिक्षकों के लिए परीक्षा आयोजित करना एक कठिन काम बन गया है. इसके अलावा शिक्षकों के लिए स्व-मूल्यांकन प्रक्रिया शुरू की गई है जो छात्रों के प्रदर्शन पर आधारित है. परीक्षाओं में छात्रों का प्रदर्शन शिक्षकों की योग्यता और प्रतिबद्धता का आकलन करने का संकेतक बन गया है.

  • 6

निष्कर्ष
नॉन-डिटेंशन पॉलिसी के कारण छात्रों, शिक्षकों और शिक्षाविदों में असंतुष्टि की भावना पैदा हुई है, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक मानकों में गिरावट आई है. निचले स्तरों में आवश्यक ज्ञान और कौशल के बिना स्वचालित पदोन्नति के कारण माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तरों पर असफलता दर में वृद्धि हुई है. नीति ने छात्रों और शिक्षकों के बीच जवाबदेही को कम कर दिया है, क्योंकि छात्रों को उनके प्रदर्शन की परवाह किए बिना स्वचालित रूप से अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाता है.

नीति खराब सीखने के परिणामों, अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचे की कमी, मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण और सामाजिक-आर्थिक कारकों के मूल कारणों को संबोधित नहीं करती है. माध्यमिक स्तर पर शैक्षणिक संस्थान ऐसे प्रमाण पत्र जारी करने के केंद्र बन गए हैं जो सीखने के परिणामों पर आधारित नहीं हैं बल्कि केवल स्कूल में उपस्थित होने पर आधारित हैं। वे नकली प्रमाण पत्रों के समान ही अच्छे हैं.

शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को सशक्त बनाना है. सशक्तीकरण तभी होता है जब विद्यार्थी योग्यता प्राप्त करता है. जब योग्यता प्राप्त नहीं होती तो शिक्षा का क्या उपयोग? इन प्रमाणपत्रों का क्या मूल्य? माध्यमिक स्तर पर कम उपलब्धि प्राथमिक स्तर पर कम उपलब्धि का परिणाम है. इसलिए, प्राथमिक शिक्षा जो कि आधार स्तर है, बहुत महत्वपूर्ण है. राष्ट्रीय नीति 2020 में प्री-प्राइमरी सेक्शन को प्राइमरी में विलय करने की परिकल्पना की गई है.

प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक, भले ही DIET में प्रशिक्षित हों, लेकिन उनके पास प्री-प्राइमरी कक्षाओं को संभालने के लिए आवश्यक शैक्षणिक कौशल नहीं हैं. इसलिए, प्री-प्राइमरी प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति की आवश्यकता है. जबकि आंगनवाड़ी 3 वर्ष की आयु के बच्चों की देखभाल करती हैं. प्राथमिक स्तर पर, सीखने का ध्यान सीखने के लिए सीखना होना चाहिए. बच्चे जन्मजात क्षमताओं के साथ पैदा होते हैं.

इसलिए प्राथमिक स्तर पर शिक्षक को स्व-शिक्षण गतिविधियां प्रदान करनी होती हैं, जिससे सीखना हमेशा जारी रहता है. यदि प्रारंभिक चरण में कक्षा की गतिविधियां बच्चों को शामिल करते हुए आकर्षक हैं, तो सीखना प्रभावी और स्वचालित हो जाता है. इस प्रकार बच्चे को न केवल योग्यताएं मिलती हैं बल्कि स्कूली शिक्षा के प्रति रुचि भी विकसित होती है. यदि इस बात का ध्यान रखा जाए तो पढ़ाई छोड़ने का सवाल ही नहीं उठेगा.

  • 7

कक्षा 5 और 8 में डिटेंशन सिस्टम लागू होने से मानकों का रखरखाव सुनिश्चित होगा. यह सिस्टम छात्रों को ट्रैक पर रखेगा, पढ़ाई में उनकी रुचि विकसित करेगा. जिसके परिणामस्वरूप वे कक्षा की गतिविधियों में शामिल होंगे और चुनौतीपूर्ण कार्यों के रूप में परीक्षा देंगे. इस प्रकार, यदि प्राथमिक स्तर पर अच्छे मानक बनाए रखे जाते हैं, तो माध्यमिक स्तर पर छात्र निश्चित रूप से सीखने के परिणाम प्राप्त करेंगे.

शिक्षा के प्रति लोगों में बहुत जागरूकता है. गरीब से गरीब व्यक्ति ने शिक्षा के महत्व को पहचाना है और अपने बच्चों को स्कूल भेज रहा है. यदि कक्षा की गतिविधियां आकर्षक हैं, यदि बच्चे के सीखने के परिणाम उत्तरोत्तर दिखाई देते हैं, व्यवहार में बदलाव होता है, तो कोई भी अभिभावक बच्चे को स्कूल से नहीं हटाता है. डिटेंशन सिस्टम लागू होने से ड्रॉपआउट होने के खिलाफ तर्क काल्पनिक हैं.

यह कहा गया है कि, देश के 18 राज्यों ने पहले ही कक्षा 5 और 8 में डिटेंशन पॉलिसी को अपना लिया है, जिसमें केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रबंधित स्कूल भी शामिल हैं. जाहिर है कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की राज्य सरकारों के पास कक्षा 5 और 8 में डिटेंशन पॉलिसी के प्रस्ताव को स्वीकार करने और प्राथमिक शिक्षा पर उचित ध्यान देने के साथ इसे सही मायने में लागू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

ये भी पढ़ें: 5वीं और 8वीं क्लास में अब फेल होंगे छात्र? सरकार ने खत्म की 'नो डिटेंशन पॉलिसी

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.