कुल्लू: देशभर में दिवाली का त्योहार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस दिन लोग घरों में भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काटकर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे. उनके आगमन पर अयोध्यावासियों ने दीपमाला जलाई. दीये जलाकर उत्सव मनाया गया और उनका स्वागत किया गया. तबसे हर साल कार्तिक मास की अमवास्या को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर श्रीराम के अयोध्या लौटने पर दिवाली मनाई जाती है तो फिर इस दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा क्यों होती है ?
भगवान राम से जुड़ी दिवाली तो लक्ष्मी पूजा क्यों ?
लक्ष्मी पूजा के बगैर दिवाली का त्योहार अधूरा है. जबकि दिवाली मनाने की कहानी भगवान राम से जुड़ी है. ऐसे में जानना जरूरी है कि दिवाली पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विधान क्यों है और हिंदू शास्त्र इसको लेकर क्या कहते हैं. कुल्लू के आचार्य शशिकांत शर्मा ने बताया कि "हिंदू शास्त्रों के मुताबिक कार्तिक मास की अमावस्या को लक्ष्मी पूजा का विधान है और इसकी मान्यता विष्णु के राम अवतार से भी पहले की है. भगवान विष्णु के 7वें अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राम अवतार के रूप में जन्म लिया था. लेकिन लक्ष्मी पूजन की कहानी उससे भी एक युग पहले अर्थात सतयुग की है."
आचार्य शशिकांत बताते हैं कि सतयुग में सुर-असुर संग्राम के बाद समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें अमृत, विष, ऐरावत हाथी, कामधेनु गाय समेत 14 रत्न निकले थे. इनमें महालक्ष्मी भी एक थीं. जिनका देवी-देवताओं ने स्वागत किया था. कहते हैं कि माता लक्ष्मी ने जिसके बाद कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का विवाह हुआ था. मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से ही धन्वंतरि निकले थे और वो अंत में अमृत कलश लेकर बाहर निकले थे. धन्वंतरि की पूजा धनतेरस पर की जाती है.