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हिमाचल के इस अफसर को सैल्यूट तो बनता है, जिसे मरा हुआ समझा उस महिला को 20 साल बाद परिवार से मिलवाया - KARNATAKA WOMAN SAKAMMA STORY

पिछले 20 सालों से परिवार से अलग होकर हिमाचल में भटक रही थी साकम्मा. इस एचएएस अधिकारी की बदौलत परिवार से मिली.

KARNATAKA WOMAN SAKAMMA STORY
एडीसी मंडी रोहित राठौर और कर्नाटक की साकम्मा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 27, 2024, 12:53 PM IST

Updated : Dec 27, 2024, 3:02 PM IST

मंडी: कुछ लोग खमोशी से वो काम कर जाते हैं, जो दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाती है. ऐसी ही एक मिसाल हिमाचल प्रदेश के एक अफसर ने पेश की है. एचएएस अधिकारी और मौजूदा समय में एडीसी मंडी रोहित राठौर ने अपनी नीयत और काबीलियत के बूते एक ऐसी महिला को 20 साल बाद उसके घरवालों से मिला दिया. जिसे मरा हुआ मानकर परिवारवाले अंतिम संस्कार तक कर चुके थे. भाषा और इलाके से अनजान ये महिला भी हिमाचल से करीब दो हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक की रहने वाली थी. 20 सालों तक दर-दर भटकती रही, यहां तक कि उसका असली नाम तक किसी को नहीं पता था लेकिन रोहित राठौर ने इंसानियत के साथ-साथ एक काबिल अफसर होने की ऐसी मिसाल पेश की है कि हर ओर उनकी वाहवाही हो रही है.

साकम्मा को नहीं आती थी हिंदी

बात 18 दिसंबर 2024 की है, जब एक प्रशासनिक अधिकारी के नाते रोहित राठौर मंडी जिले में स्थित भंगरोटू वृद्धाश्रम पहुंचे. ये उनका रूटीन दौरा था, ताकि यहां रह रहे बुजुर्गों को मिल रही सुविधाओं का जायजा लिया जा सके और कमियों को दूर किया जा सके. यहां उनकी नजर एक मायूस चेहरे पर पड़ी. सर्दियों के मौसम में शॉल ओढ़े और हिमाचल के सर्द थपेड़ों से बचने के लिए आग के सामने बैठी साकम्मा सोच में डूबी थी. ये चेहरा बेगाने प्रदेश में अपनों से मिलने के लिए करीब दो दशकों से तड़प रहा था.

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20 सालों से लापता कर्नाटक की साकम्मा (ETV Bharat)

रोहित राठौर के मुताबिक साकम्मा को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि वो हिमाचल प्रदेश की रहने वाली नहीं है. इसके बाद उन्होंने महिला के बारे में ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश की तो पता चला कि इनका नाम शीला है और दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य की रहने वाली हैं. अधिक जानने पर मालूम हुआ कि महिला को हिंदी नहीं आती, इसलिए अपने बारे में ज्यादा कुछ नहीं बोल पाती हैं.

रोहित राठौर ने निकाला आइडिया

रोहित राठौर महिला की जुबान तो समझ नहीं सकते थे, लेकिन आखों में छिपी बेबसी और दर्द को इंसानियत के चश्मे से देख लिया. जो शायद बीते 20 बरस में कोई और नहीं देख पाया था. एडीसी मंडी रोहित राठौर ने हिमाचल में तैनात कर्नाटक राज्य से संबंध रखने वाले अफसरों की मदद ली. उन्होंने सबसे पहले आईएएस अधिकारी नेत्रा मैत्ती को फोन किया जो कांगड़ा जिले के पालमपुर में बतौर एसडीएम तैनात हैं और मूलतः कर्नाटक की रहने वाली हैं. नेत्रा मैत्ती की बात साकम्मा से करवाई. जिसके बाद पता चला कि जिस महिला को वृद्धाश्रम में शीला कहा जा रहा है उसका असली नाम साकम्मा है. साकम्मा भी अपनी भाषा में बात करने वाले इंसान से बात करके खुश हो गई. नेत्रा से बात करके शायद उन्हें अपने पन का अहसास हुआ और अपनी पूरी कहानी बयां कर दी.

ये भी पढ़ें: 20 साल पहले कर दिया था अंतिम संस्कार, अब हिमाचल में मिली कर्नाटक की साकम्मा, कहानी फिल्मी नहीं रियल है

ये भी पढ़ें: बेजुबानों को सहारा देकर मिसाल बनी हिमाचल की बेटी, सोशल मीडिया ने बनाया एनिमल लवर, प्रेरक है कहानी

साकम्मा ने अधिकारियों को बताई सारी आपबीती

यहां से कुछ जानकारियां जुटाने के बाद रोहित राठौर ने डीसी मंडी अपूर्व देवगन के माध्यम से जिला में प्रोबेशन पर आए आईपीएस अधिकारी रवि नंदन को साकम्मा के पास व्यक्तिगत तौर पर जाकर बातचीत करने का निवेदन किया. रवि नंदन भी कर्नाटक से हैं. इस महिला ने उन्हें भी अपनी सारी बात बताई और इस तरह शीला का असली नाम साकम्मा और घर का पता चल पाया. जिसके बाद रोहित राठौर और साथी अफसरों की टीम साकम्मा को उनके घर पहुंचाने के मिशन में जुट गई.

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कर्नाटक से आए अधिकारियों के साथ साकम्मा (ETV Bharat)

कर्नाटक में वायरल हुए साकम्मा के वीडियो

इसके बाद साकम्मा के परिवार को तलाशने का कार्य शुरू हुआ. डीसी मंडी अपूर्व देवगन ने प्रदेश सरकार के माध्यम से कर्नाटक सरकार से संपर्क साधा और साकम्मा के फोटो-वीडियो और अन्य प्रकार की जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की. कर्नाटक में साकम्मा के वीडियो हो गए और फिर कर्नाटक के अफसरों की मदद से साकम्मा के परिवार तक पहुंचा जा सका. नतीजा ये निकला कि साकम्मा के परिवार की तलाश हो गई, लेकिन यहां एक ऐसी जानकारी भी मिली जो और भी दिल झकझोरने वाली थी.

परिवार कर चुका था साकम्मा का अंतिम संस्कार

परिवार के मुताबिक साकम्मा करीब 2 दशक पहले से लापता है और परिवार साकम्मा को मरा हुआ मान चुका था और बकायदा अंतिम संस्कार भी कर चुका था. परिवार के मुताबिक हादसे की शिकार एक महिला के शव को साकम्मा का शव समझकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया था. साकम्मा का परिवार उसे पिछले 20 सालों से मरा हुआ समझ रहा था.

एडीसी मंडी रोहित राठौर का कहना है, "यह सभी के सामूहिक प्रयास थे, जिस कारण साकम्मा आज अपने घर वापस पहुंच पाई है. हिमाचल प्रदेश सरकार, डीसी मंडी अपूर्व देवगन, आईएएस अधिकारी नेत्रा मैत्ती और आईपीएस प्रोबेशन रवि नंदन सहित अन्य लोगों ने जो प्रयास किए, यह उसी का नतीजा है. हमें इस बात की खुशी है कि हम एक महिला को इतने सालों के बाद वापिस अपने घर पहुंचा पाए हैं."

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हिमाचल और कर्नाटक से आए अधिकारियों के साथ साकम्मा ( (ETV Bharat)

ऐसे अफसर को सैल्यूट तो बनता है

शीला को उनकी असल पहचान यानी नाम और नई जिंदगी दिलाने में रोहित राठौर की सबसे अहम भूमिका रही है. उनके इस काम की हर कोई सराहना कर रहा है. 2008 बैच के एचएएस अधिकारी रोहित राठौर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले से हैं और इन दिनों मंडी में बतौर एडीसी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. रोहित राठौर ने पहली बार कर्नाटक की साकम्मा को वृद्धाश्रम में देखा. भले ही वो साकम्मा की भाषा को नहीं समझ पाए, लेकिन उसकी मजबूरी,चेहरे की मायूसी और अपनों से मिलने की तड़प को वो पहली बार में ही समझ गए. इसके बाद उन्होंने साकम्मा को उनके घर पहुंचाने का ऐसी बेमिसाल कोशिश की. जो ऐसे अंजाम पर पहुंची कि एक परिवार की खुशियां 20 साल बाद घर लौट आई. इस अफसर की मेहनत रंग लाई और अब साकम्मा अपने परिवार के साथ है. रोहित राठौर ने ना सिर्फ इंसानियत दिखाई बल्कि एक अच्छे अफसर के रूप में भी खुद को साबित किया जो लोगों के लिए काम करता है. उनके दुख दर्द को समझता है और सीमाओं से पार जाकर अपनी जिम्मेदारी निभाता है. ऐसे अफसर को एक सैल्यूट तो बनता है.

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मंडी: कुछ लोग खमोशी से वो काम कर जाते हैं, जो दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाती है. ऐसी ही एक मिसाल हिमाचल प्रदेश के एक अफसर ने पेश की है. एचएएस अधिकारी और मौजूदा समय में एडीसी मंडी रोहित राठौर ने अपनी नीयत और काबीलियत के बूते एक ऐसी महिला को 20 साल बाद उसके घरवालों से मिला दिया. जिसे मरा हुआ मानकर परिवारवाले अंतिम संस्कार तक कर चुके थे. भाषा और इलाके से अनजान ये महिला भी हिमाचल से करीब दो हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक की रहने वाली थी. 20 सालों तक दर-दर भटकती रही, यहां तक कि उसका असली नाम तक किसी को नहीं पता था लेकिन रोहित राठौर ने इंसानियत के साथ-साथ एक काबिल अफसर होने की ऐसी मिसाल पेश की है कि हर ओर उनकी वाहवाही हो रही है.

साकम्मा को नहीं आती थी हिंदी

बात 18 दिसंबर 2024 की है, जब एक प्रशासनिक अधिकारी के नाते रोहित राठौर मंडी जिले में स्थित भंगरोटू वृद्धाश्रम पहुंचे. ये उनका रूटीन दौरा था, ताकि यहां रह रहे बुजुर्गों को मिल रही सुविधाओं का जायजा लिया जा सके और कमियों को दूर किया जा सके. यहां उनकी नजर एक मायूस चेहरे पर पड़ी. सर्दियों के मौसम में शॉल ओढ़े और हिमाचल के सर्द थपेड़ों से बचने के लिए आग के सामने बैठी साकम्मा सोच में डूबी थी. ये चेहरा बेगाने प्रदेश में अपनों से मिलने के लिए करीब दो दशकों से तड़प रहा था.

KARNATAKA WOMAN SAKAMMA STORY
20 सालों से लापता कर्नाटक की साकम्मा (ETV Bharat)

रोहित राठौर के मुताबिक साकम्मा को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि वो हिमाचल प्रदेश की रहने वाली नहीं है. इसके बाद उन्होंने महिला के बारे में ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश की तो पता चला कि इनका नाम शीला है और दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य की रहने वाली हैं. अधिक जानने पर मालूम हुआ कि महिला को हिंदी नहीं आती, इसलिए अपने बारे में ज्यादा कुछ नहीं बोल पाती हैं.

रोहित राठौर ने निकाला आइडिया

रोहित राठौर महिला की जुबान तो समझ नहीं सकते थे, लेकिन आखों में छिपी बेबसी और दर्द को इंसानियत के चश्मे से देख लिया. जो शायद बीते 20 बरस में कोई और नहीं देख पाया था. एडीसी मंडी रोहित राठौर ने हिमाचल में तैनात कर्नाटक राज्य से संबंध रखने वाले अफसरों की मदद ली. उन्होंने सबसे पहले आईएएस अधिकारी नेत्रा मैत्ती को फोन किया जो कांगड़ा जिले के पालमपुर में बतौर एसडीएम तैनात हैं और मूलतः कर्नाटक की रहने वाली हैं. नेत्रा मैत्ती की बात साकम्मा से करवाई. जिसके बाद पता चला कि जिस महिला को वृद्धाश्रम में शीला कहा जा रहा है उसका असली नाम साकम्मा है. साकम्मा भी अपनी भाषा में बात करने वाले इंसान से बात करके खुश हो गई. नेत्रा से बात करके शायद उन्हें अपने पन का अहसास हुआ और अपनी पूरी कहानी बयां कर दी.

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साकम्मा ने अधिकारियों को बताई सारी आपबीती

यहां से कुछ जानकारियां जुटाने के बाद रोहित राठौर ने डीसी मंडी अपूर्व देवगन के माध्यम से जिला में प्रोबेशन पर आए आईपीएस अधिकारी रवि नंदन को साकम्मा के पास व्यक्तिगत तौर पर जाकर बातचीत करने का निवेदन किया. रवि नंदन भी कर्नाटक से हैं. इस महिला ने उन्हें भी अपनी सारी बात बताई और इस तरह शीला का असली नाम साकम्मा और घर का पता चल पाया. जिसके बाद रोहित राठौर और साथी अफसरों की टीम साकम्मा को उनके घर पहुंचाने के मिशन में जुट गई.

KARNATAKA WOMAN SAKAMMA STORY
कर्नाटक से आए अधिकारियों के साथ साकम्मा (ETV Bharat)

कर्नाटक में वायरल हुए साकम्मा के वीडियो

इसके बाद साकम्मा के परिवार को तलाशने का कार्य शुरू हुआ. डीसी मंडी अपूर्व देवगन ने प्रदेश सरकार के माध्यम से कर्नाटक सरकार से संपर्क साधा और साकम्मा के फोटो-वीडियो और अन्य प्रकार की जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की. कर्नाटक में साकम्मा के वीडियो हो गए और फिर कर्नाटक के अफसरों की मदद से साकम्मा के परिवार तक पहुंचा जा सका. नतीजा ये निकला कि साकम्मा के परिवार की तलाश हो गई, लेकिन यहां एक ऐसी जानकारी भी मिली जो और भी दिल झकझोरने वाली थी.

परिवार कर चुका था साकम्मा का अंतिम संस्कार

परिवार के मुताबिक साकम्मा करीब 2 दशक पहले से लापता है और परिवार साकम्मा को मरा हुआ मान चुका था और बकायदा अंतिम संस्कार भी कर चुका था. परिवार के मुताबिक हादसे की शिकार एक महिला के शव को साकम्मा का शव समझकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया था. साकम्मा का परिवार उसे पिछले 20 सालों से मरा हुआ समझ रहा था.

एडीसी मंडी रोहित राठौर का कहना है, "यह सभी के सामूहिक प्रयास थे, जिस कारण साकम्मा आज अपने घर वापस पहुंच पाई है. हिमाचल प्रदेश सरकार, डीसी मंडी अपूर्व देवगन, आईएएस अधिकारी नेत्रा मैत्ती और आईपीएस प्रोबेशन रवि नंदन सहित अन्य लोगों ने जो प्रयास किए, यह उसी का नतीजा है. हमें इस बात की खुशी है कि हम एक महिला को इतने सालों के बाद वापिस अपने घर पहुंचा पाए हैं."

KARNATAKA WOMAN SAKAMMA STORY
हिमाचल और कर्नाटक से आए अधिकारियों के साथ साकम्मा ( (ETV Bharat)

ऐसे अफसर को सैल्यूट तो बनता है

शीला को उनकी असल पहचान यानी नाम और नई जिंदगी दिलाने में रोहित राठौर की सबसे अहम भूमिका रही है. उनके इस काम की हर कोई सराहना कर रहा है. 2008 बैच के एचएएस अधिकारी रोहित राठौर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले से हैं और इन दिनों मंडी में बतौर एडीसी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. रोहित राठौर ने पहली बार कर्नाटक की साकम्मा को वृद्धाश्रम में देखा. भले ही वो साकम्मा की भाषा को नहीं समझ पाए, लेकिन उसकी मजबूरी,चेहरे की मायूसी और अपनों से मिलने की तड़प को वो पहली बार में ही समझ गए. इसके बाद उन्होंने साकम्मा को उनके घर पहुंचाने का ऐसी बेमिसाल कोशिश की. जो ऐसे अंजाम पर पहुंची कि एक परिवार की खुशियां 20 साल बाद घर लौट आई. इस अफसर की मेहनत रंग लाई और अब साकम्मा अपने परिवार के साथ है. रोहित राठौर ने ना सिर्फ इंसानियत दिखाई बल्कि एक अच्छे अफसर के रूप में भी खुद को साबित किया जो लोगों के लिए काम करता है. उनके दुख दर्द को समझता है और सीमाओं से पार जाकर अपनी जिम्मेदारी निभाता है. ऐसे अफसर को एक सैल्यूट तो बनता है.

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Last Updated : Dec 27, 2024, 3:02 PM IST
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