देहरादून: उत्तराखंड में शिक्षकों के तबादले शिक्षा विभाग के लिए किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं रहते. इस बार भी कुछ हालात इसी तरह के दिख रहे हैं. हालांकि, शिक्षा विभाग में शिक्षा मंत्री के निर्देश पर इस बार काउंसलिंग के बाद तबादले किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है, लेकिन हाईकोर्ट के एक पुराने आदेश ने महकमे को दुविधा में डाल दिया है. दरअसल, एक जनहित याचिका में सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 70% शिक्षकों के विद्यालय में होने पर ही शिक्षकों को स्थानांतरण के लिए कार्य मुक्त करने के निर्देश दिए थे. ऐसे में शिक्षा विभाग ने तमाम शिक्षकों की काउंसलिंग के बाद मनचाही पोस्टिंग का फैसला तो कर दिया है लेकिन 70% शिक्षकों की मौजूदगी वाले निर्देशों का कैसे अनुपालन होगा इस पर दुविधा की स्थिति बनी हुई है.
राजकीय शिक्षक संघ के पूर्व महामंत्री सोहन सिंह माजिला ने एक तरफ शिक्षा विभाग द्वारा पारदर्शी ट्रांसफर के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था करने पर खुशी जाहिर की तो दूसरी तरफ उन्होंने हाई कोर्ट के 70% शिक्षक विद्यालय में होने वाली बाध्यता के मामले में भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर कुछ सवाल खड़े किए हैं. सोहन सिंह माजिला ने साफ किया है कि हाईकोर्ट ने विद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती को लेकर भी निर्देश जारी किए थे जिस पर विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई. इसका खामियाजा अब शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है. इस बार स्थानांतरण सत्र 2024-25 के लिए शिक्षा विभाग द्वारा काउंसलिंग विज्ञापन में हाई कोर्ट के इन निर्देशों का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया था, जिसके चलते अपने तबादलों के लिए निदेशालय से लेकर मंडल मुख्यालय तक काउंसलिंग के लिए बड़ी संख्या में शिक्षक पहुंचे. ऐसे में अब शिक्षकों का स्थानांतरण करते हुए इन्हें बिना शर्त कार्यमुक्त किया जाना न्यायोचित है.
शिक्षा विभाग में मौजूद सेवा नियमावली के अनुसार प्रवक्ता के 50% पदों को सहायक अध्यापक की पदोन्नति से भरे जाने की व्यवस्था है. पिछले 4 सालों से इन पदों के लिए पदोन्नति नहीं की गई है. ऐसे में पर्वतीय जनपदों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए प्रवक्ता पद पर पदोन्नति बेहद जरूरी मानी जा रही है.