वाराणसी: कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, किसी को जमीं तो किसी को आसमान नहीं मिलता. एक पुरानी फिल्म के ग़ज़ल की यह चंद लाइनें आज के युवाओं पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. उम्मीद से ज्यादा पाने की चाहत और फिर उन चीजों के न मिलने के बाद नशे की लत में डूब रहा युवा कहीं ना कहीं से खुद के साथ अपने परिवार की भी जिंदगी को बर्बाद कर रहा है.
ऐसे ही युवाओं में बनारस का एक ऐसा युवा भी है जो न सिर्फ नशे की लत से दूर है, बल्कि 15 साल से युवाओं को नशे से दूर करने की जुगत में दिन-रात परेशान है. वाराणसी में रहकर इसे अपनी कर्मभूमि मानते हुए एक छोटी सी बात को दिल में लगाकर युवाओं को नशे की लत से दूर रखने के लिए सुमित सिंह आज के युवाओं के लिए एक बड़ी मिसाल है. सुमित 2012 में अपने स्टूडेंट लाइफ से ही ऐसी मुहिम में जुटे हैं.
मूल रूप से भदोही के रहने वाले सुमित सिंह की कर्मभूमि वाराणसी है. बनारस से ही पढ़ाई करने के बाद सुमित ने जब अपने करियर को आगे बढ़ाने की सोची तो उनका सामना एक ऐसी बुराई से हुआ जो उनके जैसे युवाओं को गर्त में धकेलने का काम कर रही थी.
सुमित बताते हैं कि 2014 में पढ़ाई करने के दौरान जब पत्रकारिता के लिए वह एक बड़ी कंपनी में पहुंचे तो ट्रेनिंग के दौरान उन्हें एक सीनियर ने बनारस के एक ऐसे पहलू से रूबरू करवाया जिसे सुनकर वह अंदर से हिल गए.
सुमित बताते हैं कि मैं बनारस को हमेशा सबके सामने संस्कृति की राजधानी धर्म की नगरी और एक अद्भुत शहर के रूप में प्रस्तुत करता था, लेकिन जब उनके सीनियर ने बनारस के घाटों पर नशे की गिरफ्त की चर्चा की तो सुनकर बहुत बुरा लगा. उनके सीनियर ने कहा कि बनारस के गंगा घाटों पर तो अंग्रेज नशा करने का अड्डा बना रहे हैं. सिगरेट, गांजा और शराब घाटों और युवाओं को बर्बाद कर रहा है. यह सुनकर सुमित के मन में बस इन चीजों से मुक्ति का विचार आया.
सुमित बताते हैं कि बस यहीं से हमारी मुहिम की शुरुआत हुई. 2016 तक हम और हमारे कुछ दोस्त अस्सी घाट से लेकर अलग-अलग गंगा घाटों पर टहलते हुए नशा कर रहे लोगों को ऐसा न करने की अपील करते थे. लोगों को पकड़ कर नशे के बुरे पहलू के बारे में बताते थे. जिसके बाद बहुत से लोग नशा करने की जगह उनकी मुहिम से जुड़ते गए. अंग्रेजों ने भी उनका बहुत साथ दिया.
सुमित बताते हैं कि 2 साल तक हमारा यह अभियान चला और उसके बाद हमने 2016 में काशियना फाउंडेशन के नाम से एक संस्था बनाई. इस संस्था के निर्माण के बाद हमारे साथ युवाओं की टीम जुड़ती चली गई. उनके साथ वर्तमान में 25 राज्यों में लगभग 1200 से ज्यादा युवाओं की टीम है जो नशा मुक्ति उन्मूलन की दिशा में काम कर रही है.
सुमित का कहना है कि 2016 के बाद उनके इस काम ने रफ्तार पकड़ी. घर-घर पहुंच कर बनारस में एक गांव शिवदासपुर को गोद लेकर इस मुहिम की शुरुआत हुई. इस शुरुआत को आगे बढ़ाना मुश्किल था, लेकिन सुमित ने हार नहीं मानी. उन्होंने वाराणसी के रेड लाइट एरिया शिवदासपुर को गोद ले लिया. उस वक्त काम मुश्किल था, लेकिन तत्कालीन जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा और तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी सुनील वर्मा ने साथ दिया. कागजी कार्रवाई पूरी हुई और सुमित को ऑन पेपर शिवदासपुर गोद मिल गया. यहां पर सुमित ने काम शुरू किया तो, उसका दिमाग थोड़ा सा चेंज होने लगा.
सुमित का कहना है कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि शिवदासपुर रेड लाइट एरिया है. यहां के 10- 12 मकान की वजह से पूरा का पूरा इलाका बदनाम था. लोग यहां पर रहना नहीं चाहते थे और युवा नशे की लत में पड़ते जा रहे थे. जिसके बाद यहां के कुछ लोकल लड़कों के साथ सुमित ने यहां मुहिम शुरू की. यहां पहली बार जन चौपाल का आयोजन हुआ. जिसमें तत्कालीन मंत्री और विधायक नीलकंठ तिवारी ने लोगों की समस्याओं को सुना.
यहां की रेड लाइट एरिया में रहने वाली सेक्स वर्कर्स की भी समस्याओं को सुना गया और निस्तारण हुआ. जिसके बाद लोग सुमित से जुड़ते चले गए. सुमित ने बताया कि हम कई-कई रात इस गांव में बिताते थे. लोगों को समझाना, बड़े बुजुर्गों के साथ बैठकर युवाओं को नशे की लत से दूर करने का प्रयास करना. यह हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया.
तीन साल तक हमने इस गांव में खूब मेहनत की, जिसका नतीजा हुआ कि लगभग 2 से 3 दर्जन की संख्या में युवाओं ने नशे की लत को छोड़कर हमारे साथ जुड़कर इस मुहिम में समर्थन करने के लिए प्रयास शुरू किया.
सुमित बताते हैं कि उनके इस प्रयासों का नतीजा था कि 2020 में केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें नशा उन्मूलन समिति का एडवाइजर बनाया गया. वह हाल ही में दूसरी बार इस केंद्र सरकार की समिति के एडवाइजर के तौर पर नियुक्त हुए हैं. जिसमें देश भर में 570 नशा उन्मूलन केंद्रों पर जाना. वहां पर नशे के आदि लोगों को नशे से दूर करना उनके परिवारों से मुलाकात करके उनकी समस्याओं को सुनना यह सारा काम किया जाता है.