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उत्तराखंड के इस शिव मंदिर की महाभारत से जुड़ी है कथा, पांडवों के पूर्वजों को मिली थी मुक्ति, स्वयंभू है विशाल शिवलिंग! - Panchaleshwar Mahadev temple - PANCHALESHWAR MAHADEV TEMPLE

Ancient Panchaleshwar Mahadev Temple of Haridwar यूं तो पूरे उत्तराखंड में भगवान शिव के तमाम प्रसिद्ध मंदिर हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे महाभारत कालीन शिव मंदिर के बारे में बताएंगे जो अद्भुत रहस्यों से जुड़ा हुआ है. इस मंदिर का नाम है पंचलेश्वर महादेव मंदिर.

Ancient Panchaleshwar Mahadev Temple of Haridwar
उत्तराखंड के इस शिव मंदिर की महाभारत से जुड़ी है कथा (PHOTO- ETV Bharat Graphics)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 29, 2024, 6:03 AM IST

पंचलेश्वर महादेव मंदिर (VIDEO- ETV Bharat)

लक्सर (उत्तराखंड):श्रावण मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है. भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने-अपने शिवालयों में जलार्पण करते हैं. कहा जाता है कि श्रावण मास में शिव जी की पूजा और अभिषेक करने से साथ ही सोमवार के व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती है. स्कंद पुराण के अनुसार, इस महीने की हर तिथि व्रत और पर्व के समान होती है.

हरिद्वार जिले के पचेवली गांव के पास भगवान शिव का महाभारत काल के समय का पंचलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. श्रावण मास में इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. इन दिनों भी हजारों भक्त भगवान शिव की पूजा करने मंदिर में उमड़ रहे हैं. सोमवार को यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है.

श्रावण मास में पंचलेश्वर महादेव मंदिर में लगती है भक्तों की भारी भीड़ (PHOTO- ETV Bharat)

मंदिर की पौराणिक कथा: कहा जाता है कि इस मंदिर में आकर पांडवों के पूर्वजों ने अपने पापों से मुक्ति पाई थी और अज्ञातवास के दौरान खुद पांडवों ने भी यहां साधना की थी. यहां बाणगंगा के नाम से प्रसिद्ध गंगा नदी है. खास बात है कि नदी मंदिर के बराबर से उल्टी दिशा यानी पश्चिम दिशा में बहती है.

ऐसे मिली थी मुक्ति: स्थानीय ग्रामीण और मंदिर के साधक बताते हैं कि सतयुग में यहां स्वयंभू शिवलिंग स्थापित हुआ था. द्वापर युग में जब पांडवों के पूर्वज चित्र और विचित्र को मनसा का पाप लग गया था तो पाप से मुक्ति पाने के लिए भीष्म पितामह ने उन्हें ऐसे स्थान पर दाह संस्कार करने को कहा था, जहां स्वयंभू शिवलिंग हो. साथ ही गंगा नदी पश्चिम दिशा में बहती हो. वहां पांच पीपल के पेड़ हों. इसके बाद चित्र-विचित्र ने इस मंदिर की खोज की और यहां आकर खुद को उपलों की चिता में भस्म करके मनसा के पास से मुक्ति पाई.

मंदिर के किनारे से बहती है बाणगंगा के नाम से प्रसिद्ध गंगा नदी. (PHOTO- ETV Bharat)

पांवड भी आए थे मंदिर: पौराणिक कथाओं के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडव भी इस मंदिर में आए थे और कुछ दिन यहां रहकर उन्होंने भी भगवान शिव की साधना की थी. महाशिवरात्रि और गंगा स्नान के पर्व पर यहां बड़े मेले लगते हैं. दूर दराज से श्रद्धालु यहां आकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. लेकिन पिछले कई सालों से यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. स्थानीय ग्रामीण इसके जीर्णोद्धार की मांग भी कर रहे हैं.

पंचलेश्वर महादेव मंदिर में पांडवों के पूर्वजों को मिली थी मुक्ति. (PHOTO- ETV Bharat)

पर्यटन विभाग ने जीर्णोद्धार की कवायद की: हरिद्वार जिला पर्यटन अधिकारी सुरेश यादव का कहना है मंदिर का स्वयंभू शिवलिंग के बराबर किसी भी मंदिर में शिवलिंग नहीं है. पर्यटन विभाग ने मंदिर के पूरे परिसर का आर्किटेक्ट से निरीक्षण करते हुए मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम से एस्टीमेट बनाकर शासन को भेजा है.

मंदिर में है विशालकाय शिवलिंग (PHOTO- ETV Bharat)

आपदा में बह गए थे पीपल के पेड़: गौर है कि साल 1982 में आई भयंकर बाढ़ से मंदिर परिसर में खड़े पीपल के पेड़ बह गए थे. लेकिन मंदिर को बाढ़ से जरा भी क्षति नहीं पहुंची थी. तत्कालीन सरकार ने बांध बनाकर गंगा की धारा को दूसरी दिशा में मोड़ दिया था. आज गंगा की छोटी धारा यहां से बहती है.

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