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सर्दियों में बढ़ जाता है इंसानों का बाघों से संघर्ष, नए साल में अब तक तीन जानें गई, एक्सपर्ट्स से जानिए बचने का रास्ता? - TIGER ATTACKS IN RAMNAGAR

सर्दियों के मौसम में इंसानों पर बाघों के हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं, ईटीवी भारत की टीम ने एक्सपटर्स से जाना आखिर क्या है वजह.

TIGER ATTACKS IN UTTARAKHAND
सर्दियों में बढ़े इंसान और बाघों के संघर्ष के मामले (SOURCE: ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 18, 2025, 4:31 PM IST

Updated : Jan 18, 2025, 9:14 PM IST

रामनगर (कैलाश सुयाल): उत्तराखंड में इंसानों और जंगली जानवरों का संघर्ष कोई नई बात नहीं है. खास तौर पर बाघों का इंसानी इलाकों में धमक देना और इंसानों पर हमला करना. सर्दियों के मौसम में इंसान का बाघों के साथ संघर्ष बढ़ रहा है. कॉर्बेट के आसपास इस संघर्ष में पिछले 7 दिनों में 3 अलग अलग जगहों मे 3 लोगों ने अपनी जान गंवाई है. वहीं नैनीताल जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में 25 साल में 50 से ज्यादा लोगों ने बाघ के हमले में अपनी जान गंवाई और हर साल ये आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.

हर साल बढ़ रहे मानव वन्य जीव संघर्ष के आंकड़े: बता दें कि उत्तराखंड के नैनीताल जिले में मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं. आंकड़ों की मानें तो पिछले 25 वर्षों में नैनीताल जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में 50 से ज्यादा लोगों ने वन्यजीवों के हमलों में अपनी जान गंवाई है. वन महकमा भले ही मानव वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए रोडमैप बनाने की बात करे, लेकिन हकीकत में मानव वन्य जीव संघर्ष हर साल लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है. इसके गवाह मौजूदा आंकड़े हैं.

सर्दियों में बढ़े इंसान और बाघों के संघर्ष के मामले (ETV BHARAT)

बाघ के हमलों के आंकड़े: नैनीताल जिले के रामनगर क्षेत्र में ही अकेले 25 सालों में 41 लोग बाघ के हमले में मारे जा चुके हैं. जान गंवाने वालों में 17 महिलाएं भी शामिल हैं. वर्ष 2009 में एक महिला, वर्ष 2010 में चार महिलाएं, वर्ष 2011 में दो महिलाएं, वर्ष 2013 में एक युवक, वर्ष 2014 में तीन, वर्ष 2016 में पांच, वर्ष 2018 में एक युवक, वर्ष 2017 में दो, वर्ष 2018 में एक युवक, वर्ष 2019 में तीन युवक, वर्ष 2021 में एक महिला को बाघ ने मार डाला था. वर्ष 2022 में तीन लोग बाघ के हमले में मारे गए हैं. इसके अलावा 2023 में कालागढ़ में 17 अक्टूबर को वनकर्मी बाघ का निवाला बनाया. दस नवंबर को तराई पश्चिमी वन प्रभाग के आमपोखरा रेंज में महिला, 13 नवंबर को नेपाली श्रमिक, 23 नवंबर को नेपाली श्रमिक एवं कार्बेट के ढेला रेंज में दिसंबर में एक युवक को बाघ ने मार डाला. वर्ष 2024 में 27 जनवरी को बाघ ने चुकुम में बुजुर्ग को बाघ ने मारा. इसके बाद 28 जनवरी 2024 एवं 17 फरवरी को बाघ ने फिर से दो महिलाओं को निवाला बनाया. अप्रैल माह में बासीटीला में युवक को मार डाला. पांच नवंबर को बाघ ने ढिकुली में, 18 दिसंबर को रिगोंड़ा में दो महिलाओं को मारा. पिछले हफ्ते 3 लोगों को बाघ ने निवाला बनाया. जिसमें एक महिला के साथ ही 2 पुरुष शामिल हैं. इसके साथ ही नैनीताल के भीमताल, हल्द्वानी के अन्य क्षेत्रों में 10 से ज्यादा लोगों को बाघ ने निवाला बनाया.

TIGER ATTACKS IN UTTARAKHAND
हाल ही में रामनगर में एक महिला की बाघ हमले में चली गई जान (SOURCE: ETV BHARAT)

बाघों के हमले बढ़ने के पीछे की वजह क्या मानते हैं वन्यजीव प्रेमी: वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल कहते हैं कि सरकार को ठोस कार्य योजना बनानी पड़ेगी. क्योंकि मानव और बाघों के संघर्ष में दोनों को क्षति होती है. उनका ये भी कहना है कि-

सर्दियों में बाघों की गतिविधि इसलिए भी ज्यादा बढ़ जाती हैं, क्योंकि ये उनके समागम का समय होता है. एक जगह से दूसरी जगह उनका प्रवास बढ़ता है. सर्दियों में चूंकि इंसानों की लकड़ी और घास के लिए जंगल पर निर्भरता ज्यादा बढ़ जाती है, इसलिए बाघ-इंसानों के संघर्ष की घटनाओं में इजाफा होता है. जंगल पर इंसानी निर्भरता को खत्म करना होगा. वहीं कैरिंग कैपिसिटी पर रिसर्च होनी चाहिए. अधिक बाघ होने की स्थिति में उनके लिए अलग से कॉरिडोर की व्यवस्था की जानी चाहिए.-संजय छिम्वाल, वन्य जीव प्रेमी-

जानकर कहते हैं कि लगातार खुल रहे नये-नये पर्यटन जोन इन बाघों के बढ़ते हमलों के पीछे की वजह भी हो सकते हैं. कहीं न कहीं जंगल में मानवीय दखलअंदाजी भी इसकी एक मुख्य वजह है, जहां भी पर्यटन के बहाने मानवीय दखलदांजी बढ़ेगी, उस क्षेत्र में बाघों के वासस्थल में खलल पड़ना तय है. ऐसे में बाघ जंगल के किनारे या फिर बाहरी क्षेत्रों का रुख करेंगे. बाघ के साथ बढ़ रहे इंसान के संघर्ष की घटनाओं ने वन्यजीव प्रेमियों के माथे पर भी बल डाल दिए हैं. वन्यजीव प्रेमी कहते हैं कि-

जंगल के किनारे प्रभावी गश्त होती रहे. जंगल से सटे गांवों में सोलर फैंसिंग से जनसुरक्षा की व्यवस्था हो. ग्रामीणों के लिए चारा पत्ती की व्यवस्था गांव में हो. तब बाघों से संघर्ष की घटनाओं में कमी देखी जा सकती है.

दीप रजवार, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बताते हैं कि-

बाघों को कलर ब्लाइंडनेस की वजह से साफ नहीं दिख पाता. जब जंगल में पुरुष या स्त्री लकड़ी या घास लेने जाते हैं, तो उनकी बॉडी पोस्चर यानि मुद्रा किसी हिरन के जैसी लगती है. बाघ इंसानों को इस मुद्रा में अपना शिकार समझ लेते हैं. इसलिए उन पर अटैक करते हैं.-दीप रजवार, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर-

वन्यजीव प्रेमी इमरान खान, बताते हैं कि टाइगर के व्यवहार में बदलाव हो रहा है. इसके पीछे की वजह बढ़ती आबादी, गाड़ियों का शोर, ट्रैफिक जैसे कारण अहम हैं. बिल्डिंगें बढ़ रही हैं. आज से 10 साल पहले शनिवार-रविवार सड़कों पर ट्रैफिक दिखता था लेकिन अब पहाड़ों से लेकर सड़क तक ट्रैफिक ही ट्रैफिक है. गाड़ियों का शोर है. पार्किंग अटी पड़ी हैं. ऐसे में कहीं ना कहीं जो टाइगर का आक्रमण बढ़ा है, उसका एक कारण ध्वनि प्रदूषण भी है. इसमें गाड़ियों, लोगों का प्रदूषण, शादियों में बजने वाले डीजे भी शामिल हैं.

लोगों को टाइगर के साथ जीना सीखना होगा. लोगों को खुद में बदलाव करना पड़ेगा. टाइगर ने इतनी बाधाओं के बीच अपनी जनसंख्या बढ़ा ली हैं. टाइगर ने लोगों के साथ जीना सीखा है अब लोगों को टाइगर के साथ जीना सीखना पड़ेगा- इमरान खान, न्यजीव प्रेमी

वन विभाग ने आमजन से की अपील: वहीं डीएफओ रामनागर दिगंत नायक, बताते हैं कि टाइगर और इंसानों में संघर्ष की मुख्य वजह कि सर्दियों के मौसम में इंसानों की जंगलों पर निर्भरता बढ़ जाती है. सर्दी बढ़ती है तो लोग लकड़ी और कोयले के लिए जंगलों की ओर रुख करते हैं. धान कटने से लोगों के पास खेती भी नहीं है. इस कारण लोग जंगलों के भीतर जाने लगते हैं, जिससे वाइल्ड लाइफ और ह्यूमन कॉनफ्लिक्ट बढ़ने लगता है. एनकाउंटर्स बढ़ जाते हैं. इसके साथ ही दूसरा कारण है कि ये टाइगर्स के लिए मीटिंग सीजन है. बाघ इन दिनों ज्यादा आक्रामक मुद्रा में रहते हैं. ऐसे में रोडमैप तैयार किया जा रहा है कि जिसके तहत शॉर्ट टर्म प्लान पर काम करने के लिए पुलिस और ग्रामीणों के साथ मीटिंग करने की तैयारी है. जहां हम यहीं अनुरोध करेंगे कि एक महीना जंगल के अंदर ना जाएं. बल्कि वन विभाग लोगों को सब्सिडाइज्ड रेट पर ईंधन की लकड़ी मुहैय्या कराए. ताकि ईंधन के लिए लोग जंगल जाने से रुकेंगे.

TIGER ATTACKS IN UTTARAKHAND
बाघ हमले में जान गंवाने वाले परिवारों की नाराजगी की तस्वीरें (FILE PHOTO, ETV BHARAT)

वन विभाग भी इन घटनाओं पर चिंतित है. फिलहाल वह ग्रामीणों के लिए चारा पत्ती और लकड़ी का इंतजाम करने की बात कर रहा है, जिससे लोगों का जंगल में जाना कम हो सके. इसके साथ ही आने वाले समय के लिए भी एक कार्य योजना बनाने के लिए उच्च स्तर को लिखा जायेगा. वन विभाग गांवों में बजट की व्यवस्था कर सोलर लाइट्स, सोलर फेंसिंग, झाड़ियां कटवाने जैसी सुविधाओं की भी बात कर रहा है.

TIGER ATTACKS IN UTTARAKHAND
सर्दियों में बढ़ रहा HUMAN-TIGER का एनकाउंटर (SOURCE: ETV BHARAT)

नए साल 2025 में बाघ का आतंक: बता दें कि इस वर्ष 2025 में उत्तराखंड में सबसे पहली घटना नैनीताल जिले के रामनगर से सामने आई. यहां पर 8 जनवरी की रात सूचना मिली कि जंगल में लकड़ी लेने गई एक महिला अब तक नहीं लौटी है. घटना की जानकारी परिवार ने आसपास के लोगों को दी. जंगल में महिला के शरीर के टुकड़े मिले, जिससे कयास लगाए जाने लगे कि महिला को किसी जानवर ने अपना निवाला बनाया है. दूसरी घटना कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के बिजरानी रेंज के सांवल्दे नेपाली बस्ती की है. यहां 38 वर्षीय प्रेम को भी बाघ ने मौत के घाट उतारा था. वहीं तीसरी घटना रामनगर में देचौरी रेंज की है. यहां क्यारी गांव के आसपास से बुजुर्ग भुवन चंद्र बेलवाल के लापता होने की सूचना मिली, जिससे क्षेत्र में दहशत का माहौल पैदा हो गया. सर्च अभियान चलाने पर पता चला कि बुजुर्ग भुवन चंद्र बेलवाल की मौत बाघ के हमले से हुई है. कुल मिलाकर बीते तीन दिनों के अंदर रामनगर क्षेत्र में तीन लोगों को बाघ ने अपना निवाला बनाया है.

TIGER ATTACKS IN UTTARAKHAND
25 साल में 50 से ज्यादा लोगों की जान ले चुके हैं बाघ (SOURCE: ETV BHARAT)

ये भी पढ़ें- ओखलढुंगा क्षेत्र में पकड़ा गया बाघ, महिला को बनाया था निवाला, ग्रामीणों ने ली राहत की सांस

ये भी पढे़ं- उत्तराखंड में 48 घंटे में 6 मौतें, हिंसक हो रहे जंगली जानवर, सर्दियों में बढ़ रही घटनाएं, जानिये वजह

रामनगर (कैलाश सुयाल): उत्तराखंड में इंसानों और जंगली जानवरों का संघर्ष कोई नई बात नहीं है. खास तौर पर बाघों का इंसानी इलाकों में धमक देना और इंसानों पर हमला करना. सर्दियों के मौसम में इंसान का बाघों के साथ संघर्ष बढ़ रहा है. कॉर्बेट के आसपास इस संघर्ष में पिछले 7 दिनों में 3 अलग अलग जगहों मे 3 लोगों ने अपनी जान गंवाई है. वहीं नैनीताल जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में 25 साल में 50 से ज्यादा लोगों ने बाघ के हमले में अपनी जान गंवाई और हर साल ये आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.

हर साल बढ़ रहे मानव वन्य जीव संघर्ष के आंकड़े: बता दें कि उत्तराखंड के नैनीताल जिले में मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं. आंकड़ों की मानें तो पिछले 25 वर्षों में नैनीताल जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में 50 से ज्यादा लोगों ने वन्यजीवों के हमलों में अपनी जान गंवाई है. वन महकमा भले ही मानव वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए रोडमैप बनाने की बात करे, लेकिन हकीकत में मानव वन्य जीव संघर्ष हर साल लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है. इसके गवाह मौजूदा आंकड़े हैं.

सर्दियों में बढ़े इंसान और बाघों के संघर्ष के मामले (ETV BHARAT)

बाघ के हमलों के आंकड़े: नैनीताल जिले के रामनगर क्षेत्र में ही अकेले 25 सालों में 41 लोग बाघ के हमले में मारे जा चुके हैं. जान गंवाने वालों में 17 महिलाएं भी शामिल हैं. वर्ष 2009 में एक महिला, वर्ष 2010 में चार महिलाएं, वर्ष 2011 में दो महिलाएं, वर्ष 2013 में एक युवक, वर्ष 2014 में तीन, वर्ष 2016 में पांच, वर्ष 2018 में एक युवक, वर्ष 2017 में दो, वर्ष 2018 में एक युवक, वर्ष 2019 में तीन युवक, वर्ष 2021 में एक महिला को बाघ ने मार डाला था. वर्ष 2022 में तीन लोग बाघ के हमले में मारे गए हैं. इसके अलावा 2023 में कालागढ़ में 17 अक्टूबर को वनकर्मी बाघ का निवाला बनाया. दस नवंबर को तराई पश्चिमी वन प्रभाग के आमपोखरा रेंज में महिला, 13 नवंबर को नेपाली श्रमिक, 23 नवंबर को नेपाली श्रमिक एवं कार्बेट के ढेला रेंज में दिसंबर में एक युवक को बाघ ने मार डाला. वर्ष 2024 में 27 जनवरी को बाघ ने चुकुम में बुजुर्ग को बाघ ने मारा. इसके बाद 28 जनवरी 2024 एवं 17 फरवरी को बाघ ने फिर से दो महिलाओं को निवाला बनाया. अप्रैल माह में बासीटीला में युवक को मार डाला. पांच नवंबर को बाघ ने ढिकुली में, 18 दिसंबर को रिगोंड़ा में दो महिलाओं को मारा. पिछले हफ्ते 3 लोगों को बाघ ने निवाला बनाया. जिसमें एक महिला के साथ ही 2 पुरुष शामिल हैं. इसके साथ ही नैनीताल के भीमताल, हल्द्वानी के अन्य क्षेत्रों में 10 से ज्यादा लोगों को बाघ ने निवाला बनाया.

TIGER ATTACKS IN UTTARAKHAND
हाल ही में रामनगर में एक महिला की बाघ हमले में चली गई जान (SOURCE: ETV BHARAT)

बाघों के हमले बढ़ने के पीछे की वजह क्या मानते हैं वन्यजीव प्रेमी: वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल कहते हैं कि सरकार को ठोस कार्य योजना बनानी पड़ेगी. क्योंकि मानव और बाघों के संघर्ष में दोनों को क्षति होती है. उनका ये भी कहना है कि-

सर्दियों में बाघों की गतिविधि इसलिए भी ज्यादा बढ़ जाती हैं, क्योंकि ये उनके समागम का समय होता है. एक जगह से दूसरी जगह उनका प्रवास बढ़ता है. सर्दियों में चूंकि इंसानों की लकड़ी और घास के लिए जंगल पर निर्भरता ज्यादा बढ़ जाती है, इसलिए बाघ-इंसानों के संघर्ष की घटनाओं में इजाफा होता है. जंगल पर इंसानी निर्भरता को खत्म करना होगा. वहीं कैरिंग कैपिसिटी पर रिसर्च होनी चाहिए. अधिक बाघ होने की स्थिति में उनके लिए अलग से कॉरिडोर की व्यवस्था की जानी चाहिए.-संजय छिम्वाल, वन्य जीव प्रेमी-

जानकर कहते हैं कि लगातार खुल रहे नये-नये पर्यटन जोन इन बाघों के बढ़ते हमलों के पीछे की वजह भी हो सकते हैं. कहीं न कहीं जंगल में मानवीय दखलअंदाजी भी इसकी एक मुख्य वजह है, जहां भी पर्यटन के बहाने मानवीय दखलदांजी बढ़ेगी, उस क्षेत्र में बाघों के वासस्थल में खलल पड़ना तय है. ऐसे में बाघ जंगल के किनारे या फिर बाहरी क्षेत्रों का रुख करेंगे. बाघ के साथ बढ़ रहे इंसान के संघर्ष की घटनाओं ने वन्यजीव प्रेमियों के माथे पर भी बल डाल दिए हैं. वन्यजीव प्रेमी कहते हैं कि-

जंगल के किनारे प्रभावी गश्त होती रहे. जंगल से सटे गांवों में सोलर फैंसिंग से जनसुरक्षा की व्यवस्था हो. ग्रामीणों के लिए चारा पत्ती की व्यवस्था गांव में हो. तब बाघों से संघर्ष की घटनाओं में कमी देखी जा सकती है.

दीप रजवार, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बताते हैं कि-

बाघों को कलर ब्लाइंडनेस की वजह से साफ नहीं दिख पाता. जब जंगल में पुरुष या स्त्री लकड़ी या घास लेने जाते हैं, तो उनकी बॉडी पोस्चर यानि मुद्रा किसी हिरन के जैसी लगती है. बाघ इंसानों को इस मुद्रा में अपना शिकार समझ लेते हैं. इसलिए उन पर अटैक करते हैं.-दीप रजवार, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर-

वन्यजीव प्रेमी इमरान खान, बताते हैं कि टाइगर के व्यवहार में बदलाव हो रहा है. इसके पीछे की वजह बढ़ती आबादी, गाड़ियों का शोर, ट्रैफिक जैसे कारण अहम हैं. बिल्डिंगें बढ़ रही हैं. आज से 10 साल पहले शनिवार-रविवार सड़कों पर ट्रैफिक दिखता था लेकिन अब पहाड़ों से लेकर सड़क तक ट्रैफिक ही ट्रैफिक है. गाड़ियों का शोर है. पार्किंग अटी पड़ी हैं. ऐसे में कहीं ना कहीं जो टाइगर का आक्रमण बढ़ा है, उसका एक कारण ध्वनि प्रदूषण भी है. इसमें गाड़ियों, लोगों का प्रदूषण, शादियों में बजने वाले डीजे भी शामिल हैं.

लोगों को टाइगर के साथ जीना सीखना होगा. लोगों को खुद में बदलाव करना पड़ेगा. टाइगर ने इतनी बाधाओं के बीच अपनी जनसंख्या बढ़ा ली हैं. टाइगर ने लोगों के साथ जीना सीखा है अब लोगों को टाइगर के साथ जीना सीखना पड़ेगा- इमरान खान, न्यजीव प्रेमी

वन विभाग ने आमजन से की अपील: वहीं डीएफओ रामनागर दिगंत नायक, बताते हैं कि टाइगर और इंसानों में संघर्ष की मुख्य वजह कि सर्दियों के मौसम में इंसानों की जंगलों पर निर्भरता बढ़ जाती है. सर्दी बढ़ती है तो लोग लकड़ी और कोयले के लिए जंगलों की ओर रुख करते हैं. धान कटने से लोगों के पास खेती भी नहीं है. इस कारण लोग जंगलों के भीतर जाने लगते हैं, जिससे वाइल्ड लाइफ और ह्यूमन कॉनफ्लिक्ट बढ़ने लगता है. एनकाउंटर्स बढ़ जाते हैं. इसके साथ ही दूसरा कारण है कि ये टाइगर्स के लिए मीटिंग सीजन है. बाघ इन दिनों ज्यादा आक्रामक मुद्रा में रहते हैं. ऐसे में रोडमैप तैयार किया जा रहा है कि जिसके तहत शॉर्ट टर्म प्लान पर काम करने के लिए पुलिस और ग्रामीणों के साथ मीटिंग करने की तैयारी है. जहां हम यहीं अनुरोध करेंगे कि एक महीना जंगल के अंदर ना जाएं. बल्कि वन विभाग लोगों को सब्सिडाइज्ड रेट पर ईंधन की लकड़ी मुहैय्या कराए. ताकि ईंधन के लिए लोग जंगल जाने से रुकेंगे.

TIGER ATTACKS IN UTTARAKHAND
बाघ हमले में जान गंवाने वाले परिवारों की नाराजगी की तस्वीरें (FILE PHOTO, ETV BHARAT)

वन विभाग भी इन घटनाओं पर चिंतित है. फिलहाल वह ग्रामीणों के लिए चारा पत्ती और लकड़ी का इंतजाम करने की बात कर रहा है, जिससे लोगों का जंगल में जाना कम हो सके. इसके साथ ही आने वाले समय के लिए भी एक कार्य योजना बनाने के लिए उच्च स्तर को लिखा जायेगा. वन विभाग गांवों में बजट की व्यवस्था कर सोलर लाइट्स, सोलर फेंसिंग, झाड़ियां कटवाने जैसी सुविधाओं की भी बात कर रहा है.

TIGER ATTACKS IN UTTARAKHAND
सर्दियों में बढ़ रहा HUMAN-TIGER का एनकाउंटर (SOURCE: ETV BHARAT)

नए साल 2025 में बाघ का आतंक: बता दें कि इस वर्ष 2025 में उत्तराखंड में सबसे पहली घटना नैनीताल जिले के रामनगर से सामने आई. यहां पर 8 जनवरी की रात सूचना मिली कि जंगल में लकड़ी लेने गई एक महिला अब तक नहीं लौटी है. घटना की जानकारी परिवार ने आसपास के लोगों को दी. जंगल में महिला के शरीर के टुकड़े मिले, जिससे कयास लगाए जाने लगे कि महिला को किसी जानवर ने अपना निवाला बनाया है. दूसरी घटना कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के बिजरानी रेंज के सांवल्दे नेपाली बस्ती की है. यहां 38 वर्षीय प्रेम को भी बाघ ने मौत के घाट उतारा था. वहीं तीसरी घटना रामनगर में देचौरी रेंज की है. यहां क्यारी गांव के आसपास से बुजुर्ग भुवन चंद्र बेलवाल के लापता होने की सूचना मिली, जिससे क्षेत्र में दहशत का माहौल पैदा हो गया. सर्च अभियान चलाने पर पता चला कि बुजुर्ग भुवन चंद्र बेलवाल की मौत बाघ के हमले से हुई है. कुल मिलाकर बीते तीन दिनों के अंदर रामनगर क्षेत्र में तीन लोगों को बाघ ने अपना निवाला बनाया है.

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25 साल में 50 से ज्यादा लोगों की जान ले चुके हैं बाघ (SOURCE: ETV BHARAT)

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Last Updated : Jan 18, 2025, 9:14 PM IST
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