अजमेर. ग्लोबल वार्मिंग को लेकर विश्व चिंता में डूबा हुआ है. पर्यावरण असंतुलन से होने वाले दुष्प्रभाव का असर भी प्राकृतिक आपदा के रूप में कभी-कभार देखने को मिल रहा है. ऐसे में पर्यावरण को संतुलित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने और उन्हें संरक्षित करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर प्रयास किया जाता रहा है, लेकिन लोग इसको गंभीरता से नहीं लेते. ऐसे लोगों को अजमेर जिले के पदमपुरा गांव और यहां रहने वाले लोगों से सीख लेनी चाहिए. पदमपुरा गांव पर्यावरण के लिए नजीर है. 705 वर्षों से इस गांव में नीम के पेड़ को काटना गुनाह माना जाता रहा है. इस गांव का प्रत्येक व्यक्ति नीम को नारायण मानकर उसकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.
ऐसे बना 'नीम वाला गांव' :अजमेर से 18 किलोमीटर दूर अरावली पहाड़ियों की गोद में बसा पदमपुरा गांव का इतिहास 705 वर्ष पुराना है. पहाड़ी की तलहटी पर बसे इस गांव में एक छोटा सा गढ़ है जो इसके प्राचीन इतिहास का गवाह है. इस गांव की चर्चा होती है तो लोग इसको नीम वाला गांव से भी जानते है. इसका कारण गांव में हजारों की संख्या में नीम के पेड़ का होना है. यह अपने आप में अद्भुत है. इस गांव में नीम के पेड़ को काटना तो दूर उसकी टहनी को भी तोड़ना अपराध माना जाता है. करीब 1200 व्यक्तियों की आबादी वाले पदमपुरा गांव में नीम का पेड़ उनकी आस्था ही नहीं है, बल्कि बुजुर्गों से मिली विरासत भी है, जिसको उतनी ही शिद्दत के साथ यहां सहेज कर रखा जाता है. गांव के प्राचीन और जर्जर हो रहे गढ़ से यदि गांव को देखते है तो दूर तक जहां भी नजर जाती है, वहा नीम के पेड़ ही नजर आते है. ऐसा नहीं है कि नीम के अलावा अन्य पेड़ नहीं है, लेकिन इस गांव और यहां रहने वाले लोगों के लिए नीम का पेड़ भगवान है.
पर्यावरण संरक्षण की अद्भुत नजीर : अजमेर में वरिष्ठ पत्रकार रोहिताश गुर्जर का पदमपुरा गांव से गहरा नाता रहा है. ननीहाल होने के कारण बचपन से गुर्जर पदमपुरा आते-जाते रहे हैं और यहां के इतिहास और विरासत से भली भांति परिचित भी है. ईटीवी भारत की टीम जब पदमपुरा पंहुची तब रोहिताश गुर्जर से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि पदमसिंह नाम के एक क्षत्रिय ने गांव को बसाया था. गांव के बीच पहाड़ी की तलहटी में एक ऊंचे टीले पर प्राचीन गढ़ आज भी मौजूद है. पदम सिंह ने जब गांव बसाया तब ग्रामीणों ने मिलकर प्रण लिया कि नीम के पेड़ को कभी नहीं काटा जाएगा और यह कानून ही बन गया. गांव में अधिकांश आबादी गुर्जर समाज की है. गुर्जर समाज के आराध्य देव देवनारायण है जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं. ऐसे में यहां लोगों में नीम के पेड़ को भी देव नारायण मानकर लोग अपनी आस्था प्रकट करते हैं.
रोहिताश बताते हैं कि विगत वर्षों में प्रकृति में काफी बदलाव देखे गए हैं. खासकर मौसम में भी परिवर्तन आ गया है. इसके दुष्प्रभाव भी संसार भुगत रहा है. इसका कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है. वर्तमान में पर्यावरण को संतुलित करने के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है कि ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाए और उनका संरक्षण करें. जबकि पदमपुरा गांव के लोग 700 बरस पहले से नीम के महत्व और गुणों को जान गए और उसे संरक्षित रखे हुए हैं.