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क्या है रूस की 'मीट ग्राइंडर' रणनीति, यूक्रेन युद्ध में कितनी कारगर, जानें सब कुछ - RUSSIA UKRAINE WAR

Russia Ukraine Conflict: यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस ने मीट ग्राइंडर रणनीति का सहारा लिया. आइए जानते हैं यह युद्ध रणनीति क्या है.

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यूक्रेन के खिलाफ रूस की 'मीट ग्राइंडर' रणनीति, युद्ध में कितनी कारगर, जानें सब कुछ (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 11, 2025, 11:00 PM IST

हैदराबाद: रूस-यूक्रेन युद्ध के तीन साल पूरे होने को हैं. इस संघर्ष में दोनों पक्ष हजारों सैनिकों को खो चुके हैं. रूसी हमलों में यूक्रेन के कई शहर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. भारी नुकसान के बाद भी दोनों देश युद्धविराम के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. इसके बजाय एक दूसरे के खिलाफ अलग-अलग युद्ध रणनीति का इस्तेमाल कर रहे हैं.

ऐसी की एक रणनीति है मीट ग्राइंडर (Meat Grinder). शत्रु पर काबू पाने के इरादे से मानव जीवन की परवाह किए बगैर किसी विशेष स्थान पर सैनिकों द्वारा एक के बाद एक लगातार हमला करना मीट ग्राइंडर रणनीति कहलाता है. मीट ग्राइंडर रणनीति सैनिकों के निजी जीवन के मूल्य को मान्यता नहीं देती है. रूस और उत्तर कोरिया इस रणनीति का इस्तेमाल जीवन की भारी कीमत पर कर रहे हैं. उत्तर कोरिया यूक्रेन युद्ध में रूस का साथ दे रहा है.

मीट ग्राइंडर रणनीति का इतिहास

मीट ग्राइंडर एक रूसी रणनीति है, युद्धक्षेत्र में यह दृष्टिकोण दुश्मन पर हावी होने के लिए सैनिकों की भारी तैनाती और आक्रामक हमले को महत्व देता है. नौ दशकों से चली आ रही यह रणनीति रूस का अनूठा दृष्टिकोण है, जिसमें दो बहुत पुरानी रणनीतियों - दुश्मन की ताकत को कमजोर करना और सामूहिक लामबंदी का संयोजन शामिल है. इसका उद्देश्य युद्ध के मैदान में सैनिकों की भारी तैनात करके केवल संख्या के बल पर दुश्मन को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर करना है.

संगठन और रणनीति में पिछड़ने के बावजूद, रूसी सेना ने इसी दृष्टिकोण के सहारे 1812 में नेपोलियन के आक्रमण के खिलाफ सफलतापूर्वक युद्ध लड़ा.

इसके बाद 'मीट ग्राइंडर' रणनीति सोवियत संघ (अब रूस) की सैन्य रणनीति का प्रमुख हिस्सा बन गई. 'मात्रा का अपना गुण होता है' वाक्यांश की जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्टालिन के नेतृत्व में अप्रमाणिक (apocryphal) हैं. स्टेलिनग्राद और कुर्स्क जैसी प्रमुख लड़ाइयों में लाखों सैनिकों की तैनाती शामिल थी, और सोवियत सेना ने आखिकार पूर्वी मोर्चे पर अपनी संख्या के बल पर जर्मन नाजी हमले (Nazi blitzkrieg) को कुचल दिया.

यूक्रेन के खिलाफ रूस की मीट ग्राइंडर रणनीति

रूस की मीट ग्राइंडर रणनीति बहुत प्रभावी और बेहद क्रूर है. रूस ने बटालियन सामरिक समूहों की असफल अवधारणा से अपनी रणनीति बदल दी - जिसमें पैराट्रूपर और विशेष बल रेजिमेंट जैसी कुछ सबसे कुलीन और कुशल रूसी सैन्य इकाइयां शामिल थीं - सोवियत-शैली के बड़े पैमाने पर सामने से हमले (मीट ग्राइंडर रणनीति) में. रूस ने इसका इस्तेमाल यूक्रेन के बखमुत शहर की लड़ाई में किया और 2023 में उस पर कब्जा कर लिया.

मीट ग्राइंडर रणनीति से लाभ
रूस ने पूर्वी यूक्रेन और रूस के पश्चिमी कुर्स्क क्षेत्र में लगभग 2,350 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (907 वर्ग मील) पर कब्जा कर लिया है. उसे यह सफलता बहुत ज्यादा जानमाल के नुकसान के साथ मिली है.

मीट ग्राइंडर रणनीति का नकारात्मक पहलू
इस रणनीति के कारण सैनिकों की हुई मौतों की संख्या मीट ग्राइंडर रणनीति के बर्बर पक्ष को दर्शाती है.

वॉशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर (ISW) के अनुसार, रूस ने अपने शरदकालीन हमलों के दौरान लगभग 1,25,800 सैनिकों को खो दिया है. रूस की मीट ग्राइंडर रणनीति का मतलब है कि मॉस्को कब्जे वाले क्षेत्र के प्रत्येक वर्ग किलोमीटर के लिए 50 से अधिक सैनिकों को खो रहा है. यूके डिफेंस इंटेलिजेंस के अनुमान के अनुसार, दिसंबर 2024 से, रूस के प्रतिदिन औसतन 1,523 लोग मारे गए और घायल हुए.

यह भी पढ़ें- ग्रीनलैंड और पनामा नहर पर कब्जा क्यों चाहते हैं ट्रंप, अमेरिका के लिए दोनों कितने अहम, जानें

हैदराबाद: रूस-यूक्रेन युद्ध के तीन साल पूरे होने को हैं. इस संघर्ष में दोनों पक्ष हजारों सैनिकों को खो चुके हैं. रूसी हमलों में यूक्रेन के कई शहर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. भारी नुकसान के बाद भी दोनों देश युद्धविराम के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. इसके बजाय एक दूसरे के खिलाफ अलग-अलग युद्ध रणनीति का इस्तेमाल कर रहे हैं.

ऐसी की एक रणनीति है मीट ग्राइंडर (Meat Grinder). शत्रु पर काबू पाने के इरादे से मानव जीवन की परवाह किए बगैर किसी विशेष स्थान पर सैनिकों द्वारा एक के बाद एक लगातार हमला करना मीट ग्राइंडर रणनीति कहलाता है. मीट ग्राइंडर रणनीति सैनिकों के निजी जीवन के मूल्य को मान्यता नहीं देती है. रूस और उत्तर कोरिया इस रणनीति का इस्तेमाल जीवन की भारी कीमत पर कर रहे हैं. उत्तर कोरिया यूक्रेन युद्ध में रूस का साथ दे रहा है.

मीट ग्राइंडर रणनीति का इतिहास

मीट ग्राइंडर एक रूसी रणनीति है, युद्धक्षेत्र में यह दृष्टिकोण दुश्मन पर हावी होने के लिए सैनिकों की भारी तैनाती और आक्रामक हमले को महत्व देता है. नौ दशकों से चली आ रही यह रणनीति रूस का अनूठा दृष्टिकोण है, जिसमें दो बहुत पुरानी रणनीतियों - दुश्मन की ताकत को कमजोर करना और सामूहिक लामबंदी का संयोजन शामिल है. इसका उद्देश्य युद्ध के मैदान में सैनिकों की भारी तैनात करके केवल संख्या के बल पर दुश्मन को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर करना है.

संगठन और रणनीति में पिछड़ने के बावजूद, रूसी सेना ने इसी दृष्टिकोण के सहारे 1812 में नेपोलियन के आक्रमण के खिलाफ सफलतापूर्वक युद्ध लड़ा.

इसके बाद 'मीट ग्राइंडर' रणनीति सोवियत संघ (अब रूस) की सैन्य रणनीति का प्रमुख हिस्सा बन गई. 'मात्रा का अपना गुण होता है' वाक्यांश की जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्टालिन के नेतृत्व में अप्रमाणिक (apocryphal) हैं. स्टेलिनग्राद और कुर्स्क जैसी प्रमुख लड़ाइयों में लाखों सैनिकों की तैनाती शामिल थी, और सोवियत सेना ने आखिकार पूर्वी मोर्चे पर अपनी संख्या के बल पर जर्मन नाजी हमले (Nazi blitzkrieg) को कुचल दिया.

यूक्रेन के खिलाफ रूस की मीट ग्राइंडर रणनीति

रूस की मीट ग्राइंडर रणनीति बहुत प्रभावी और बेहद क्रूर है. रूस ने बटालियन सामरिक समूहों की असफल अवधारणा से अपनी रणनीति बदल दी - जिसमें पैराट्रूपर और विशेष बल रेजिमेंट जैसी कुछ सबसे कुलीन और कुशल रूसी सैन्य इकाइयां शामिल थीं - सोवियत-शैली के बड़े पैमाने पर सामने से हमले (मीट ग्राइंडर रणनीति) में. रूस ने इसका इस्तेमाल यूक्रेन के बखमुत शहर की लड़ाई में किया और 2023 में उस पर कब्जा कर लिया.

मीट ग्राइंडर रणनीति से लाभ
रूस ने पूर्वी यूक्रेन और रूस के पश्चिमी कुर्स्क क्षेत्र में लगभग 2,350 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (907 वर्ग मील) पर कब्जा कर लिया है. उसे यह सफलता बहुत ज्यादा जानमाल के नुकसान के साथ मिली है.

मीट ग्राइंडर रणनीति का नकारात्मक पहलू
इस रणनीति के कारण सैनिकों की हुई मौतों की संख्या मीट ग्राइंडर रणनीति के बर्बर पक्ष को दर्शाती है.

वॉशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर (ISW) के अनुसार, रूस ने अपने शरदकालीन हमलों के दौरान लगभग 1,25,800 सैनिकों को खो दिया है. रूस की मीट ग्राइंडर रणनीति का मतलब है कि मॉस्को कब्जे वाले क्षेत्र के प्रत्येक वर्ग किलोमीटर के लिए 50 से अधिक सैनिकों को खो रहा है. यूके डिफेंस इंटेलिजेंस के अनुमान के अनुसार, दिसंबर 2024 से, रूस के प्रतिदिन औसतन 1,523 लोग मारे गए और घायल हुए.

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