नई दिल्ली:उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को प्रत्याशी के तौर पर चुनावी दंगल में उतारा है. उनको टिकट देने के बाद से स्थानीय स्तर पर शुरू हुआ विरोध अभी भी जारी है. लेकिन उत्तर पूर्वी सीट पर किसी पार्टी के लिए इस तरह का विरोध नया नहीं है. बीजेपी के सीटिंग सांसद मनोज तिवारी को यहां से पहली बार 2014 में टिकट देने पर भी खूब विरोध हुआ था. इस सीट को राजनीतिक लिहाज से पूर्वांचल वोट बैंक का बड़ा गढ़ माना जाता है. इस संसदीय क्षेत्र की कई विधानसभाओं में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की बड़ी संख्या है.
इसके चलते बीजेपी आमतौर पर यहां पर पूर्वांचल से ताल्लुक रहने वाले नेताओं पर ही बड़ा दांव खेलती आई है. बात 2014 के लोकसभा चुनाव में मनोज तिवारी को कैंडिडेट बनाए जाने की करें तो इसका बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने खूब विरोध किया था. इसकी एक बड़ी वजह पूर्वांचलियों के बड़े नेता माने जाने वाले बीजपी के कद्दावर नेता लाल बिहारी तिवारी को टिकट नहीं दिया जाना रहा. लेकिन मनोज तिवारी को टिकट देकर वोट बैंक को साधने का पूरी कोशिश की थी.
लाल बिहारी तिवारी ने शीला दीक्षित को 1998 में हराया था:लाल बिहारी तिवारी उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट के अस्तित्व में आने से पहले बीजेपी के टिकट पर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से दो बार सांसद चुने गए. उन्होंने पहली बार बीजेपी की टिकट पर पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से 1998 में चुनाव जीता था और सांसद चुने गए थे. तिवारी ने उस वक्त दिल्ली से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाली दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकी शीला दीक्षित को भी 45,362 वोटों के अंतराल से हराया था. तिवारी को इस चुनाव में कुल 5,63,083 वोट मिले थे. जबकि, कांग्रेस की शीला दीक्षित को 5,17,721 मत प्राप्त हुए थे.
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दोबारा 1999 में सांसद बने लाल बिहारी तिवारी:इसके बाद 1999 में फिर हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लाल बिहारी तिवारी ने कांग्रेस कैंडिडेट एवीएम एच. के. पुर को हराकर दोबारा जीत दर्ज की थी. तिवारी ने 5,21,434 वोट हासिल कर 82,760 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी का हराया था. तीसरी बार भी तिवारी को इस सीट से 2004 में टिकट दी गई, लेकिन उनको शीला दीक्षित के बेटे और कांग्रेस के प्रत्याशी संदीप दीक्षित ने 6,69,527 वोट हासिल कर 2,29,779 मतों से मात दे दी थी. सीटिंग सांसद रहते हुए तिवारी को सिर्फ 4,39,748 वोट मिले थे.